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शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

हिंदी की बिंदी हें राजस्थानी भाषा




हिंदी के विकास में राजस्थानी भाषा का योगदान विषय पर गोष्ठी का आयोजन


हिंदी की बिंदी हें राजस्थानी भाषा


बाड़मेर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति और जयनारायण व्यास महिला शिक्षण प्रशिक्षण महाविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में हिंदी दिवस पर हिंदी के विकास में राजस्थानी भाषा का योगदान विषय पर गोष्ठी का आयोजन प्रेमजीत धोबी अधीक्षण अभियंता विद्युत् विभाग के मुख्य आतिथ्य ,डॉ हुक्माराम सुथार व्याख्याता की अध्यक्षता और थानाधिकारी विद्युत् विभाग सतर्कता भगाराम ,इन्दर प्रकाश पुरोहित ,दीप सिंह रणधा ,तथा छात्रा संघ अध्यक्ष रघुवीर सिंह तामलोर के विशिष्ठ आतिथ्य में महाविद्यालय प्रांगन में किया गया ,मुख्य वक्ता प्रेमजीत धोबी ने कहा की विश्व की सबसे संराध भाषा हिंदी हें ,हिंदी के विकास में राजस्थानी का विशेष योगदान हें ,प्राचीन ग्रंथो में राजस्थानी भाषा का प्रमाणिक उलेख मिलाता हें ,उन्होंने कहा की हिंदी साहित्य में से राजस्थानी साहित्य मीरा बाई ,चंदर बरदाई आदी को निकाल दे तो क्या रह जाता हें ,उन्होंने कहा की हिंदी हमारी राज भाषा हें तो राजस्थानी हमारी मायड़ भाषा हें जिसे उचित सामान संवेधानिक मान्यता देकर दिलाया जाएगा ,उन्होंने कहा की जिस प्रकार स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में भारतीय संस्कृति का बखान हिंदी में किया था उसी में राजस्थानी संस्कृति का समावेश था ,इस अवसर पर डॉ हुक्माराम सुथार ने कहा की हिंदी को राष्ट्र भाषा का संवेधानिक दर्जा हासिल नहीं हें हिंदी विश्व स्तर की भाषा बन चुकी हें ऐसे में हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में अब अपना लेना चाहिए उन्होंने कहा की हिंदी के ख्यातनाम कवी नामवर सिंह ने कहाथा की हिंदी की जननी राजस्थानी भाषा हें ऐसे में माँ का दुत्कार और बेटी का सम्मान भारतीय परंपरा को नहीं दर्शाता ,उन्होंने कहा की राजस्थानी भाषा को मान्यता देकर ही हिंदी का मान बढ़ाया जा सकता हें .इस अवसर पर थाना अधिकारी भगाराम ने कहा की हिंदी के मान सामान के साथ राजस्थानी भाषा के भारतीय साहित्य में योगदान को भुलाया नहीं जा सकता ,दीप सिंह रणधा ने कहा की हिंदी की माँ राजस्थानी हें ,माँ घर पर हो और बेटी का सम्मान हो यह किसी भी पुत्र पुत्री को गवारा नहीं ,हिंदी के मान सम्मान में राजस्थानी को मान्यता देने से बढ़ोतरी होगी ,हम राज भाषा हिंदी का सम्मान करते हें हिंदी हमारा राष्ट्रीय गिरव हें तो राजस्थानी हमारी मायद भाषा हें ,इन्दर प्रकाश पुरोहित ने कहा की राजस्थानी का इतिहास और भारतीय संस्कृति और साहित्य में अहम् योगदान हें जिसे भुलाया नहीं जा सकता ,उन्होंने कहा की हिंदी के माथे की बिंदी राजस्थानी हें इस अवसर पर चन्दन सिंह भाटी ने कहा की हिंदी हमारी राष्ट्रिय भाषा हें जिसका सामान हम करते हें मगर राजस्थानी की अनदेखी को अब बर्दास्त नहीं किया जाएगा ,राजस्थानी भाषा को मायद भाषा के रूप में संवेधानिक दर्जा देना ही होगा रघुवीर सिंह तामलोर ने कहा की विदेशो में हिंदी सप्ताह पन्द्र दिन का मनाया जा रहा हें जिसमे सात दिन के आयोजन हिंदी और सात दिन राजस्थानी भाषा में आयोजन किये जा रहे हें मगर अपनी ही धरा पर राजस्थानी बेगानी हें ,उन्होंने कहा की महाविद्यालय में मनाये जाने वाले हिंदी सप्ताह के समस्त आयोजन राजस्थानी भाषा के विषयो पर ही आधारित हें ,इस अवसर पर महाविद्यालर प्राचार्य श्याम दास ने कहा की राजस्थानी और हिंदी भाषा का मिलन अनोखा हें ,इस अवसर पर महाविद्यालय की अमीना ने,नेहा ,राधा ने कविता पाठ ,संगीता चौधरी ,रीना कोठारी ने भाषण प्रगति और चंचल ने कविता पाठ किया ,इस अवसर पर अनिल सुखानी ,हितेश आचार्य ,विजय कुमार ,रमेश सिंह इन्दा ,अशोक सारला ,आवड सिंह सोढ़ा, ,चेतन सिंह ,मदन नाथ गोस्वामी सहित कर पदाधिकारी उपस्थित थे ,कार्यक्रम का सञ्चालन ज्योति खत्री और रीना कोठारी ने किया

रविवार, 9 सितंबर 2012

राजस्थानी भाषा प्रेमियों ने मनाया काला दिवस


राजस्थानी भाषा प्रेमियों ने मनाया काला  दिवस 

आरटेट परीक्षार्थियों को बाँधी काली पट्टिया .

आर टेट में राजस्थानी भाषा को शामिल करने की पुरजोर मांग

बाड़मेर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति बाड़मेर द्वारा प्रदेश समिति के आह्वान पर आज काला दिवस मन कर राजस्थानी भाषा को आर टेट में शामिल नहीं करने पर विरोध जताया ,समिति के संभाग उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी ने बताया की प्रदेश महामंत्री राजेन्द्र बारहट के निर्देशानुसार रवीवार को समिति ने काला दिवस मनाया ,संघर्ष समिति के जोधपुर संभाग उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी के अनुसार राज्य सरकार ने हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू, सिंधी, गुजराती और पंजाबी को तो राजस्थान की मातृभाषाएं मानते हुए आरटेट में शामिल किया है जबकि राजस्थान की प्रमुख भाषा राजस्थानी को कहीं जगह नहीं दी है। भाटी ने बताया कि जनगणना 2011 के आंकड़े बताते हैं कि 4 करोड़ 83 लाख लोगों ने अपनी मातृभाषा राजस्थानी दर्ज करवाई है तथा एनसीईआरटी ने भी इसे शिक्षा की माध्यम मातृभाषाओं की सूची में शामिल किया है। आरटेट में राजस्थानी न होने से प्रदेश की प्रतिभाएं पिछड़ रही हैं और अन्य प्रांतों के लोग यहां आसानी से सफल हो रहे हैं। यह प्रदेश के बेरोजगार शिक्षकों के साथ घोर अन्याय है, जिसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।जिला पाटवी रिडमल सिंह दांता बताया की राजस्थानी छात्रा परिषद् के अध्यक्ष अशोक सारला के नेतृत्व में हाई स्कूल ,हिन्दू सिंह तामलोर के नेतृत्व में गांधी चौक ,भोम सिंह बलाई और रघुवीर सिंह तामलोर राजकीय महाविद्यालय ,रमेश सिंह इन्दा सरस्वती विद्या मंदिर विजय सिंह खरा आवड सिंह सोढ़ा, तरुण मुखी के नेतृत्व में कन्या महाविद्यालय में परिक्षार्थियो को काली पट्टिया बांध कर विरोध स्वरुप परीक्षा देने का निवेदन किया जिसे परीक्षार्थियों ने सहर्ष स्वीकार कर काली पट्टिया बाँध कर परीक्षा दी ,राजस्थानी भाषा को आर टेट में शामिल करने की मांग का परीक्षार्थियों ने पुरजोर समर्थन किया ,इस अवसर पर राष्ट्रिय प्रवक्ता ॐ पुरोहित कागद का लिखा सन्देश राजस्थान री टेट परीक्षा में दूजै प्रांत री भाषावां नै राखणों दूजै प्रांत रै लोगां नै राजस्थान में नोकरी देवण रो खुलो नूंतो है । म्हे काळी पाटी बांध इण रो विरोध करां । म्हारो राजस्थान , म्हारा टाबर , म्हारा स्कूल है तो मास्टर बारै रा क्यूं ? टेट फगत एक परीक्षा नीं है ,म्हारै पेट रो सवाल है ।बिना राजस्थानी भाषा री टेट , राजस्थान नै करै ला मटियामेट ! जागो राजस्थान्यां ! पढ़कर सुनाया तथा इसकी शपथ समिति के पदाधिकारियों एवम कार्यकर्ताओ को दिलाई ,कार्यकर्ताओ ने जोश के साथ काली पट्टी बाँध राजस्थानी को शामिल नहीं करने का विरोध जताया , विरोध दिवस शांति पूर्वक तरीके से मनाया गया इस अवसर पर अशोक सारला ,नगर अध्यक्ष रमेश सिंह इन्दा ,अवाड़ सिंह सोढ़ा ,विजय सिंह खारा शिवराज सिंह धान्धू ,तरुण मुखी ,जीतेन्द्र फुलवारिया ,विजय सिंह तारातरा ,तेजाराम हुड्डा ,दिनेशपाल सिंह ,दिग्विजय सिंह चुली ,रतन सिंह आगोर ,किशोर सिंह बीजू ,दिलीप चारण संतोष माहेश्वरी ,तनवीर सिंह ,लक्ष्मण सिंह लुणु ,सूर्यदेव सिंह बालासर ,अवतार सिंह ,मुराद जायडू ,ओम प्रकाश जांगिड ,लोकेन्द्र सिंह देवड़ा,सहित कई कार्यकर्ता और पदाधिकारी उपस्थित थे
काला दिवस के संदर्भ में समिति द्वारा देश-विदेश में बसे राजस्थानियों व प्रदेश के लोगों की ओर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नाम काली पट्टी लगे पत्र भी बड़ी तादाद में प्रेषित किये गए ।

आर टेट में राजस्थानी भाषा को शामिल न करने के विरोध में नौ सितम्बर को मनाओ काला दिवस




शनिवार, 8 सितंबर 2012

जन प्रतिनिधियों को काली पट्टिया की भेंट ,सहयोग देंगे जन प्रतिनिधि


जन प्रतिनिधियों को काली पट्टिया की भेंट ,सहयोग देंगे जन प्रतिनिधि


बाड़मेर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति बाड़मेर द्वारा आर टेट में राजस्थानी भाषा को शामिल नहीं करने के विरोध में रविवार को मनाये जाने वाले काला दिवस में समस्त जनप्रतिनिधियों से शनिवार को समिति काली पट्टिया भेंट कर सहयोग की मांग की ,शनिवार को समिति के कार्यकर्ताओ के राजस्थानी भाषा के जज्बे को भारी बरसात भी डिगा नहीं पाई तेज़ बारिश के चलते बड़ी तादाद में संभाग उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी ,जिला पाटवी रिडमल सिंह दांता ,मोटियार परिषद् के पाटवी रघुवीर सिंह तामलोर ,राजस्थानी चिंतन परिषद् के अध्यक्ष रमेश गौड़ ,राजस्थानी छात्रा परिषद् के अध्यक्ष अशोक सारला ,मोटियार परिषद् के नगर अध्यक्ष रमेश सिंह इन्दा ,हिन्दू सिंह तामलोर ,सिवाना ब्लोक अध्यक्ष कल्याण सिंह दाखा ,भवानी सिंह लखा ,आवड सिंह सोधा ,भोम सिंह बलाई ,दिनेशपाल सिंह लखा ,,विजय सिंह खारा ,ओम प्रकाश जांगिड ,सुरेश जांगिड ,जीतेन्द्र फुलवारिया ,अवतार सिंह इन्द्रोई ,चोखाराम चौधरी ,तेजाराम हुड्डा ,खान मोहम्मद ,रतन सिंह आगोर ,कैलाश परिहार ,शामाराम सारण ,भूर चाँद जांगिड ,अभिषेक गोस्वामी, खेतदान चारण देरेन्द्र अनखिया ,सहित कई कार्यकर्ताओ के दलो ने सबसे पहले क्षेत्रीय विधायक मेवाराम जैन को काली पट्टी भेंट कर सहयोग माँगा ,विधायक मेवाराम जैन ने समिति के पदाधिकारियों को कहा की मै आपके साथ हूँ पूरा सहयोग करूंगा आज जयपुर जा रहा हूँ मुख्यमंत्रीजी से भी इस बारे में बात करूंगा ,समिति के कार्यकर्ताओ ने बाड़मेर प्रधान मूलाराम को काली पट्टी भेंट की तो उन्होंने काली पट्टी तुरंत बांह पर बाँध सहयोग की घोषणा कर दी ,समिति ने जिला प्रमुख श्रीमती मदन कौर को कार्यालय में जाकर काली पट्टी भेंट की,नगर पालिका उप सभापति चैन सिंह भाटी को भी काली पट्टी भेंट कर सहयोग की मांग की वंही भाजपा जिला अध्यक्ष मेजर पर्वत सिंह ,मरदुरेखा चौधरी ,प्रियंका चौधरी ,स्वरुप सिंह राठोड ,तेजदान चारण ,वीर सिंह भाटी ,लक्षमण वडेरा ,राम सिंह बोथिया ,सहित कई जन प्रतिनिधियों को काली पट्टिया भेंट कर सहयोग माँगा ,समस्त जन प्रतिन्बिधियो ने राजस्थानी भाषा के मुद्दे पर पूर्ण सहयोग की बात कही , समिति के कार्यकर्ताओ ने आज बाड़मेर के लेखको ,और साहित्यकारों से भी भेंट कर सहयोग माँगा ,समिति कार्यकर्ताओ ने चौथे स्तम्भ पत्रकारों को भी कार्यालय जाकर काली पट्टिया भेंट कर मायड़ भाषा के लिए सहयोग की मांग की ,,भारी बरसात के बीच समिति कार्यकर्ताओ ने समस्त जन प्रतिनिधियों के पास पहुँचाने का प्रयास किया ,राजथानी भाषा को आर टेट में शामिल करने के मुद्दे पर बाड़मेर एक नज़र हाथ सहयोग के लिए तत्पर थे ,जिससे कार्यकर्ताओ का हौंसला बुलंद हुआ ,

शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

शनिवार को भेंट करेंगे जन प्रतिनिधियों को काली पट्टिया

शनिवार को  भेंट करेंगे जन प्रतिनिधियों को काली पट्टिया


बाड़मेर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति बाड़मेर द्वारा आर टेट में राजस्थानी भाषा को शामिल नहीं करने के विरोध में नौ सितम्बर को मनाये जाने वाले काला दिवस पर जन प्रतिनिधियों ,समाज सेविओ ,पत्रकारों तथा लेखको ,कवियों एवम साहित्यकारों से सहयोग के किये शनिवार को काली पट्टिया न्हेंट कर आर टेट में राजस्थानी भाषा को शामिल करने के लिए समर्थन और सहयोग माँगा जाएगा ,संभाग उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी ने बताया की समिति और राजस्थानियों द्वारा आर टेट में राजस्थानी भाषा को शामिल करने की मांग के बावजूद इसे शामिल नहीं करने पर परीक्षा दिवस को काला दिवस के रूप में मानाने का निर्णय लिया हें ,जिसके लिए शनिवार को राजस्थानी मोटियार परिषद् ,राजस्थानी छात्रा परिषद् ,राजस्थानी चिंतन परिषद् अलग अलग अलग डालो में जन प्रतिनिधियों ,पत्रकारों ,समाजसेवियो ,लेखको ,कवियों ,तथा साहित्यकारों से सहयोग के लिए उन्हें काली पत्तिया भेंट करेंगे ,इसके लिए पांच डालो का गठन मोतियर परिषद् जिला पाटवी रघुवीर सिंह तामलोर ,राजस्थानी छात्रा परिषद् अध्यक्ष अशोक सारला ,नगर अध्यक्ष रमेश सिंह इन्दा ,तरुण मुखी ,हिन्दू सिंह तामलोर ,आवड सिंह सोढा ,विजय सिंह खारा,के नेतृत्व में दल गठित किये गए हें जो समिति के जिला पाटवी रिडमल सिंह दांता वरिष्ठ पदाधिकारी विजय कुमार ,नारायण सिंह इन्द्रोई ,प्रकाश जोशी ,अनिल सुखानी, भवेंद्र जाखड ,सुलतान सिंह रेडाना की देखरेख में काली पट्टिया भेंट कर सभी से सहयोग मांगेंगे , --

आर ऐ एस की परीक्षा के राजस्थानी भाषा के प्रश्न पत्र को बहार करने के विरोध में


आर ऐ एस की परीक्षा के राजस्थानी भाषा के प्रश्न पत्र को बहार करने के विरोध में

गुरुवार, 6 सितंबर 2012

आर पी एस सी का जलाया पुतला .मुख्यमंत्री को राजस्थानियों के साथ किये अन्याय के खिलाफ दिया ज्ञापन




आर ऐ एस की परीक्षा के राजस्थानी भाषा के प्रश्न पत्र को बहार करने के विरोध में


आर पी एस सी का जलाया पुतला .मुख्यमंत्री को राजस्थानियों के साथ किये अन्याय के खिलाफ दिया ज्ञापन


बाड़मेर आर ऐ एस मुख्या परीक्षा के लिए राजस्थान लोक सेवा आयोग के नए पैटर्न में राजस्थानी भाषा ,साहित्य और संस्कृति को दरकिनार करने के विरोध में अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति ,बाड़मेर के बेनर टेल राजस्थानी मोटियार परिषद् ,राजस्थानी छात्र परिषद् के तत्वाधान में गुरूवार को जिला कलेक्ट्रेट कर्यल्के के समक्ष आर पी एस सी का पुतला जलाया गया तह मुख्यमंत्री तथा राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के नाम जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा गया .जोधपुर संभाग उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी ने बताया राजस्थान लोक सेवा आयोग के नए पैटर्न में राजस्थानी भाषा ,साहित्य और संस्कृति को दरकिनार करने से बाहरी प्रान्तों के लोग राजस्थान में आसानी से सरकारी ओहदा पाएंगे .और राजस्थानी लोग अपने ही घर में बेघर हो जायेंगे.यह राजस्थान के लिए आत्मघाती हें .राजस्थान के शिक्षित बेरोजगारों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हें .यह अन्याय बर्दास्त नहीं किया जाएगा .सरकार के इस आत्मघाती कदम के विरोध में आज आर पी एस सी का पुतला जला राजस्थानी भाषा के प्रश्न पत्र को पुनः शामिल करने की मांग की ,कार्यक्रम में बाड़मेर जैसलमेर प्रभारी चन्दन सिंह भाटी जिला पाटवी रिड़मल सिंह दांता ,महासचिव विजय कुमार ,अनिल सुखानी ,मोटियार परिषद् के पाटवी और छात्र संघ अध्यक्ष रघुवीर सिंह तामलोर ,हिन्दू सिंह तामलोर ,राजस्थानी छात्र परिषद् के अध्यक्ष अशोक सारला ,नगर अध्यक्ष रमेश सिंह इन्दा ,अवाड़ सिंह सोढ़ा ,विजय सिंह खारा शिवराज सिंह धान्धू ,तरुण मुखी ,जीतेन्द्र फुलवारिया ,विजय सिंह तारातरा ,तेजाराम हुड्डा ,दिनेशपाल सिंह ,दिग्विजय सिंह चुली ,रतन सिंह आगोर ,किशोर सिंह बीजू ,दिलीप चारण संतोष माहेश्वरी ,तनवीर सिंह ,लक्ष्मण सिंह लुणु ,सूर्यदेव सिंह बालासर ,अवतार सिंह ,मुराद जायडू ,ओम प्रकाश जांगिड ,लोकेन्द्र सिंह देवड़ा,सहित कई कार्यकर्ता और पदाधिकारी उपस्थित थे .भाटी ने बताया की मुख्यमंत्री के नाम जिला कलेक्टर को सौंपे ज्ञापन में लिखा की पधारौ म्हारे देस का जुमला पर्यटन के नजरिये से तो आकर्षक है, लेकिन नौकरियों में यह जुमला हमारी अपनी राह में रोड़ा है। पहले आरएएस के पाठ्यक्रम में राजस्थानी का सौ नंबर का पेपर हुआ करता था, वह क्यों हट गया? कैसे हटा? इस बहस में पड़े बगैर इस तर्क में ज्यादा दम है कि सरकार चुनने वाले 70 फीसदी लोग राजस्थानी ही बोलते हैं। वे चाहे पढ़-लिखकर विदेश चले गए हों, पर मिले हैं तो पूछते यही है -कीकर हो सा। आज राजस्थानी को दरकिनार करने पर कोई सरकार से यह पूछे कि हम परीक्षा देने कहां जाएं तो वह खामोश क्यों है ? जब पड़ोसी राज्य अपने प्रदेश के जयकारे लगा रहे हों, ऐसे में हम क्यों जय राजस्थान के उद्घोष में क्षेत्रीयता ढूंढें़। सरकार को लोकभाषा की परिभाषा तो समझनी ही चाहिए। राजस्थानी भाषा आज आठवीं अनुसूची में नहीं है, प्रदेशवासियों की जिद है तो वह कल जरूर होगी, लेकिन प्रदेश सरकार को राजस्थानी का महत्व समझना चाहिए। उन्होंने लिखा हें की सरकार को राजस्थानी भाषा विरोधी सोच को बदल राजस्थानियों की अस्मिता को बचाए रखने का सहयोग करना चाहिए ,मोटियार परिषद् की जिला पाटवी रघुवीर सिंह ने कहा की सरकार अपने निर्णय को तुरंत प्रभाव से वापस लेकर राजस्थानी भाषा के प्रश्न पत्र को आर पी एस सी में शामिल कर लेना चाहिए अन्यथा सरकार को इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ेंगे ,जिला पाटवी रिड़मल सिंह दांता ने कहा की

राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा के पैटर्न में बदलाव प्रदेश के प्रतिभावान छात्रों के लिए एक सदमा है। सरकार ने प्रारूप में 20 नंबर का राजस्थानी का पेपर प्रस्तावित किया था, उसे हटा लिया है। हमने अब इन परीक्षाओं के लिए पूरे देश के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। हम क्षेत्रीयता में यकीन नहीं करते लेकिन प्रदेश की पैरवी में यह कहने का अधिकार तो रखते ही हैं कि अगर बाहरी उम्मीदवारों को राजस्थान की भाषा-संस्कृति का ज्ञान है तो वे इम्तिहान के जरिए यह साबित करें तो किसको आपत्ति हो सकती है, लेकिन इस बात की जांच कौन कर रहा है कि उसे भाषा आती है या नहीं? ऐसे में हमारे होनहारों के राजस्थानी होने का मतलब क्या और प्रिवलेज क्या? यह स्थिति दरअसल तब है, जब विधानसभा में यह संकल्प पास किया जा चुका है कि राजस्थानी को भाषा का दर्जा मिलना चाहिए।

रमेश सिंह इन्दा ने बताया की राजस्थान से यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि पड़ोसी राज्यों ने हमारे प्रतिभावान छात्रों के दरवाजे बंद कर रखे हैं। हम राजस्थान के अलावा किसी दूसरे प्रदेश में परीक्षा दे ही नहीं सकते और हमारे प्रदेश में आयोजित परीक्षाओं में आधे परीक्षार्थी बाहरी होंगे तो किसका हक मारा जाएगा? बाहरी आएं, लेकिन उन्हें यहां की भाषा व संस्कृति का ज्ञान तो होना ही चाहिए। अगर वे लोकभाषा को समझते हैं तो उनका स्वागत है। यक्ष प्रश्न यह है कि जो प्रतियोगी हमारी भाषा, संस्कृति, पहनावा, त्योहार-उत्सव को नहीं समझता, जिसका हमारी समस्याओं और जरूरतों से सरोकार नहीं, वह कैसे यहां लोकसेवक चयनित हो सकता है। प्रदेश के 70 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में राजस्थानी बोली जाती है। जो अधिकारी हमारी लोकभाषा को नहीं समझ सकता, वह कैसे शासकीय अधिकारी का दायित्व निभा सकेगा। जो केवल नौकरी करने के लिए आ रहे हैं और जो प्रदेश को समझते हैं, उस पर गर्व करते हैं- दोनों में फर्क कौन पहचानेगा?

राजस्थानी छात्र परिषद् के जिला अध्यक्ष अशोक सारला ने बताया की प्रशासनिक सेवा में कम्युनिकेशन ही प्रबंधन है। जो हमारी भाषा नहीं समझता और इसी भाषा में किसी को समझा नहीं सकता, वह कैसे यहां प्रशासन चला पाएगा। संघ लोक सेवा आयोग से चयनित होने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के लिए केरल व तमिलनाडु जैसे राज्यों ने नियम बना रखे हैं कि जिन आईएएस व आईपीएस अधिकारियों को कैडर में उनका राज्य मिलता है, उन अधिकारियों को तीन साल में इम्तिहान देकर बताना होगा कि उन्हें स्थानीय भाषा का ज्ञान हो गया है वरना न उनकी नौकरी कन्फर्म होगी और न ही वेतन वृद्धि ही मिलेगी। इसके विपरीत हमारे यहां सब करने की छूट है। भाषा आए न आए, शासन में बने रहेंगे।

अतः दौ सौ अंक के भाषा ज्ञान के प्रश्न पत्र में सौ अंक राजस्थानी भाषा ज्ञान के लिए तथा पचास पचास अंक हिंदी और अंग्रेजी ज्ञान के लिए निर्धारित किये जाये .तभी राजस्थान को सही मायने में न्याय मिल सकेगा .

सोमवार, 27 अगस्त 2012

टैट रो सवाल पेट रो सवाल

टैट रो सवाल पेट रो सवाल


राजस्थान के बेरोजगार शिक्षकों को उनका वाजिब हक मिले

टैट में राजस्थानी भाषा को शामिल करने की मांग को लेकर दिया ज्ञापन


बाड़मेर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति ,राजस्थानी मोटियार परिषद् ,राजस्थानी छात्रा परिषद् ,के तत्वाधान में प्रदेश समिति के आह्वान पर आर टेट में राजस्थानी भाषा को शामिल करने की मांग को लेकर मुख्यमंत्री के नाम जिला कलेक्टर को ज्ञापन सुपुर्द किया .समिति के संभाग उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी ने बताया की प्रदेश महामंत्री राजेन्द्र बारहट ,राजस्थानी छात्रा मोर्चा के प्रदेश संयोजक गौरी शंकर निमिवाल के निर्देशानुसार सोमवार को टैट रो सवाल ,पेट रो सवाल विषयक राजस्थानी भाषा को टैट में शामिल करने की मांग को लेकर समिति वरिष्ठ उपाध्यक्ष शेर सिंह भुरटिया ,रहमान जायडू, मोटियार परिषद् के जिला पाटवी औरमहाविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रघुवीर सिंह तामलोर ,राजस्थानी चिंतन परिषद् के जिला अध्यक्ष एडवोकेट रमेश गौड़ ,राजस्थानी छात्रा परिषद् के अध्यक्ष अशोक सारला , अनिरुद्ध रतनू ,दिनेश खत्री ,कपिल बालच हेमंत मेघवाल , उम्मेद आचार्य ,मनोज दवे सहित कई कार्यकर्ताओ तथा पदाधिकारियों की उपस्थिति में जिला कलेक्टर को ज्ञापन दिया ,ज्ञापन में लिखा हें की नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत बालक को प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा के माध्यम से शिक्षण करवाए जाने का प्रावधान रखा गया है। इसी संदर्भ में राज्य के शिक्षा विभाग ने हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, गुजराती, सिंधी, पंजाबी और उर्दू को राजस्थान की मातृभाषाएं मानते हुए इन्हें राजस्थान की प्राथमिक शिक्षा के माध्यम के रूप में स्वीकारा है और राजस्थान अध्यापक पात्रता परीक्षा आर टेट भी इन्हें शामिल किया गया है।
ज्ञापन में लिखा हें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कार्यकाल में 25 अगस्त, 2003 को राजस्थान की प्रमुख भाषा राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता की मांग का एक सर्वसम्मत संकल्प प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार को भेजा गया था और आप ही की सरकार इसे राजस्थान की जनता की मातृभाषा के रूप में स्वीकार नहीं कर रही है। फलस्वरूप राजस्थान का बालक अपनी मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने के अधिकार से वंचित तो रहेगा ही, RTET में भी राजस्थान के प्रतिभागियों को उनका वाजिब हक नहीं मिल पाएगा।
भाटी ने बताया की ज्ञापन में लिखा हें की आरटेट में 40 फीसदी अंक उक्त सात माध्यम भाषाओं के ज्ञान के लिए निर्धारित हैं और प्रतिभागी को इनमें से किन्हीं दो भाषाओं को क्रमशः प्रथम तथा द्वितीय भाषा के रूप में चुनना है। राजस्थान मूल के वे प्रतिभागी जिनकी मातृभाषा उक्त भाषा समूह (हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, गुजराती, सिंधी, पंजाबी और उर्दू ) से भिन्न है, वे प्रथम भाषा के रूप में तो हिन्दी का चयन कर रहे हैं, परन्तु द्वितीय भाषा के रूप में उन्हें अंग्रेजी या संस्कृत चुनने को मजबूर होना पड़ रहा है। स्वाभाविकसी बात है कि अपनी मातृभाषा का पेपर हल करना अन्य भाषा की अपेक्षा कहीं अधिक आसान होता है और राजस्थान मूल के वे लोग जिन्होंने अंग्रेजी या संस्कृत को द्वितीय भाषा के रूप में चुना है, पिछड़ जाएंगे। समीपवर्ती प्रांतों से आकर पंजाबी, गुजराती, उर्दू या सिंधी का चयन करने वाले प्रतिभागी बाजी मार जाएंगे और हमारा बेरोजगार तरसता रह जाएगा। चूंकि भर्ती परीक्षाओं में भी इन भाषाओं को शामिल किया जाएगा सो राजस्थान में पात्रता हासिल कर चुके अन्य प्रांतों के ये लोग एक बार फिर राजस्थानियों को ही राजस्थान में मात देने में सक्षम हो जाएंगे।
ज्ञापन में स्पष्ट किया की राजस्थानी भाषा गत 30 वर्षों से माध्यमिक शिक्षा बोर्ड तथा राजस्थान स्थित विश्वविद्यालयों के पाठ्क्रम में वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल है। विश्वविद्यालयों में दशकों से राजस्थानी विभाग भी स्थापित है। राज्य के बीएड पाठयक्रमों में राजस्थानी एक शिक्षण विषय रूप में शामिल है। यूजीसी भी राजस्थानी विषय में वर्ष में दो बार नेट व जओरएफ की परीक्षाएं करवाती हैं और फैलोशिप प्रदान करती है। इस विषय में राजस्थान तथा राजस्थान से बाहर के कई विश्वविद्यालय पीएच.डी भी करवाते हैं। अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों तथा ब्रिटेन की कैम्बि्रज यूनिवर्सिटी सहित देशविदेश के कई विश्वविद्यालयों में यह शोध व शिक्षण विषय के रूप में मान्य है, जिसके अंतर्गत हजारों शोध हुए हैं तथा हो रहे हैं। अमेरिका की लायब्रेरी ऑफ कांग्रेस ने राजस्थानी को विश्व की तेरह समृद्धत्तम भाषाओँ में शामिल किया है। एनसीईआरटी ने इसे मातृभाषाओं की सूची में शामिल किया है। केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ने भी वर्ष 1974 से इस भाषा को मान्यता प्रदान कर रखी है तथा प्रतिवर्ष राजस्थानी साहित्यकारों व अनुवादकों को पुरस्कृत करती है और इस भाषा और साहित्य से संबंधित सेमिनारों का आयोजन करती है। आरटेट में में राजस्थानी को शामिल न करना राजस्थानी जनता के साथ घोर अन्याय है।उक्त भाषा सूची में राजस्थानी को भी शामिल किया जाए, जिससे राजस्थान के बेरोजगार शिक्षकों को उनका वाजिब हक मिल सके।