बाड़मेर नगर परिषद्। . स्वर्ण जयन्ती योजना में करोडो का घपला फर्जी भुगतान का माला बोर्ड बैठक में भी उठा था
हमारे द्वारा की गयी पड़ताल में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। एक बड़े अधिकारी से जब इस योजना में गड़बडिय़ों को लेकर जानकारी चाही गई तो उन्होंने बताया कि आप प्रशिक्षण में गड़बड़ी की बात कर रहे हो, जबकि यह मामला तो इतना बड़ा है कि इसकी गहराई से जांच हो तो कई बड़े पेच खुलेंगे। इस अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि योजना में गड़बड़ी तो दिसंबर से ही शुरू हो गई थी जब आदेश आए थे। इस अधिकारी ने यह भी बताया कि जनवरी से शुरू होने वाले प्रशिक्षण केंद्र फरवरी से ही क्यों शुरू हुए और नागौर परिषद क्षेत्र में यह शिविर अब अप्रैल में जाकर क्यों शुरू हो रहे हैं। इनकी जांच होनी चाहिए।
स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना के नाम पर सांख्यिकी विभाग व कुछ स्वयं सेवी संस्थाएं जिले में कागजी खानापूर्ति में जुटी हैं। जिले में 22 सौ महिलाओं को योजना का लाभ देना था ताकि वे अपने पांवों पर खड़ी हो सके. अपने स्तर पर छोटे मोटे काम करके घर परिवार चलाने में मदद कर सके। मगर जिले में कई जगह तो इस योजना के तहत ट्रेनिंग का काम शुरू ही नहीं हुआ है। कई स्थानों पर एनजीओ ने सांख्यिकी विभाग के अधिकारियों के साथ बंदरबांट करते हुए कागजों में ही ट्रेनिंग दे दी।
अधिकृत सूत्रों के अनुसार स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना के तहत बाड़मेर जिले में 22 सौ महिलाओं को स्वरोजगार का प्रशिक्षण दिया जाना था। यह कार्य वैसे तो जनवरी 2013 में ही शुरू हो जाना था मगर जिले में कई स्थानों पर पालिका व सांख्यिकी विभागों के अधिकारियों की बीच की खींचतान व कमीशन की सेटिंग नहीं बैठने से यह काम समय पर शुरू नहीं हो पाया। बाड़मेर में तो पूरा गड़बड़ झाला नज़र आ रहा है. एक भी वार्ड में प्रशिक्षण आयोजित नहीं हुआ. एक वार्ड में मेडिकल शिविर कुछ देर के लिए लगाया गया जिसका उद्घाटन कराया गया था उद्घाटन करतो के जाते ही शिविर समेत लिया. आयुक्त द्वारा सी एस डी कमेटी में बिना अनुमोदन के कई संस्थाओ को काम दिया गया हें जबकि कमेटी में मात्र दो संस्थाओ के ही प्रस्ताव आये थे. आयुक्त के गृह जिले की एक संस्था को लाखो रुपयों का काम फर्जी वादे में दिया गया हें .आयुक्त के स्वजातीय रिश्तेदार की इस संस्था को बिना अनुमोदन के कार्य दिया गया .
शुरुआत अप्रैल में क्यों
योजना के तहत बीपीएल परिवारों की गरीब महिलाओं को प्रशिक्षण जनवरी में ही शुरू हो जाना चाहिए था, मगर बाड़मेर ,बालोतरा पालिका क्षेत्रों में यह कार्य फरवरी माह में शुरू हो पाया। बाड़मेर नगर परिषद क्षेत्र में तो यह कार्य अब अप्रैल में शुरू हो रहा है। परिषद क्षेत्र में तो इस योजना के तहत आठ स्वयं सेवी संस्थाओं को ट्रेनिंग देने का जिम्मा सौंपा गया है, मगर अभी 2 अप्रैल को केवल मात्र एक संस्था की ओर से ही कार्य प्रारंभ करने की पुष्टि हो पाई है। आयुक्त ने 28 मार्च को ही प्रशिक्षण कार्य शुरू करने के आदेश दिए थे।
1 करोड़ 98 लाख की है योजना
सूत्रों ने बताया कि स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना के तहत बाड़मेर जिले में जिन 22 सौ महिलाओं को स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षण दिया जाना है, उसके लिए करीब 1 करोड़ 98 लाख रुपए का बजट प्रस्तावित है। इसमें प्रत्येक महिला के नाम पर नौ हजार रुपए तक का खर्चा एनजीओ के माध्यम से किया जा सकता है। मगर जमीनी स्तर कितनी महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जाना है और कितनी महिलाओं के नाम दर्ज है और कितनी महिलाओं के नाम से पैसे उठाए जा रहे हैं, यह भी अब जांच का विषय बन गया है।
इस तरह खर्च होता है पैसा
तीन माह के प्रशिक्षण के दौरान प्रत्येक प्रशिक्षार्थी महिला को 500 रुपए प्रति माह के हिसाब से 15 सौ रुपए का चेक स्टाइपेंड के तहत देना है। इसके अलावा 15 सौ रुपए का टूल किट भी दिया जाना है। प्रशिक्षण के बाद इन महिलाओं के स्वयं सहायता समूह बनाकर बैंकों से ऋण दिलवाने का काम भी एनजीओ का है। इसमें प्रति समूह 1.25 लाख रुपए का अनुदान परिषद व पालिकाओं द्वारा दिया जाता है। यह राशि सरकार ने पालिकाओं व परिषदों के खाते में भी जमा करा दी।
बाड़मेर जिले की नगर परिषद् में गत पांच सालो से इस योजना का काम एक मात्र संस्था को ही दिया जा रहा है. परिषद् द्वारा कभी संस्थाओ से प्रस्ताव नहीं मांगे गए. इस बार भी दो संस्थाओ के प्रस्ताव आये थे जिला कलेक्टर की अध्यक्षता वाली कमेटी ने जिसका अनुमोदन किया था. सरकारी आदेश के अनुसार कार्य जनवरी में आरम्भ किया जाना था, मगर आपसी बन्दर बाँट और सेटिंग में समय लगने से अप्रेल मे आदेश के साथ भुगतान करने का मामला सामने आया हें
स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना के नाम पर सांख्यिकी विभाग व कुछ स्वयं सेवी संस्थाएं जिले में कागजी खानापूर्ति में जुटी हैं। जिले में 22 सौ महिलाओं को योजना का लाभ देना था ताकि वे अपने पांवों पर खड़ी हो सके. अपने स्तर पर छोटे मोटे काम करके घर परिवार चलाने में मदद कर सके। मगर जिले में कई जगह तो इस योजना के तहत ट्रेनिंग का काम शुरू ही नहीं हुआ है। कई स्थानों पर एनजीओ ने सांख्यिकी विभाग के अधिकारियों के साथ बंदरबांट करते हुए कागजों में ही ट्रेनिंग दे दी।
अधिकृत सूत्रों के अनुसार स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना के तहत बाड़मेर जिले में 22 सौ महिलाओं को स्वरोजगार का प्रशिक्षण दिया जाना था। यह कार्य वैसे तो जनवरी 2013 में ही शुरू हो जाना था मगर जिले में कई स्थानों पर पालिका व सांख्यिकी विभागों के अधिकारियों की बीच की खींचतान व कमीशन की सेटिंग नहीं बैठने से यह काम समय पर शुरू नहीं हो पाया। बाड़मेर में तो पूरा गड़बड़ झाला नज़र आ रहा है. एक भी वार्ड में प्रशिक्षण आयोजित नहीं हुआ. एक वार्ड में मेडिकल शिविर कुछ देर के लिए लगाया गया जिसका उद्घाटन कराया गया था उद्घाटन करतो के जाते ही शिविर समेत लिया. आयुक्त द्वारा सी एस डी कमेटी में बिना अनुमोदन के कई संस्थाओ को काम दिया गया हें जबकि कमेटी में मात्र दो संस्थाओ के ही प्रस्ताव आये थे. आयुक्त के गृह जिले की एक संस्था को लाखो रुपयों का काम फर्जी वादे में दिया गया हें .आयुक्त के स्वजातीय रिश्तेदार की इस संस्था को बिना अनुमोदन के कार्य दिया गया .
शुरुआत अप्रैल में क्यों
योजना के तहत बीपीएल परिवारों की गरीब महिलाओं को प्रशिक्षण जनवरी में ही शुरू हो जाना चाहिए था, मगर बाड़मेर ,बालोतरा पालिका क्षेत्रों में यह कार्य फरवरी माह में शुरू हो पाया। बाड़मेर नगर परिषद क्षेत्र में तो यह कार्य अब अप्रैल में शुरू हो रहा है। परिषद क्षेत्र में तो इस योजना के तहत आठ स्वयं सेवी संस्थाओं को ट्रेनिंग देने का जिम्मा सौंपा गया है, मगर अभी 2 अप्रैल को केवल मात्र एक संस्था की ओर से ही कार्य प्रारंभ करने की पुष्टि हो पाई है। आयुक्त ने 28 मार्च को ही प्रशिक्षण कार्य शुरू करने के आदेश दिए थे।
1 करोड़ 98 लाख की है योजना
सूत्रों ने बताया कि स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना के तहत बाड़मेर जिले में जिन 22 सौ महिलाओं को स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षण दिया जाना है, उसके लिए करीब 1 करोड़ 98 लाख रुपए का बजट प्रस्तावित है। इसमें प्रत्येक महिला के नाम पर नौ हजार रुपए तक का खर्चा एनजीओ के माध्यम से किया जा सकता है। मगर जमीनी स्तर कितनी महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जाना है और कितनी महिलाओं के नाम दर्ज है और कितनी महिलाओं के नाम से पैसे उठाए जा रहे हैं, यह भी अब जांच का विषय बन गया है।
इस तरह खर्च होता है पैसा
तीन माह के प्रशिक्षण के दौरान प्रत्येक प्रशिक्षार्थी महिला को 500 रुपए प्रति माह के हिसाब से 15 सौ रुपए का चेक स्टाइपेंड के तहत देना है। इसके अलावा 15 सौ रुपए का टूल किट भी दिया जाना है। प्रशिक्षण के बाद इन महिलाओं के स्वयं सहायता समूह बनाकर बैंकों से ऋण दिलवाने का काम भी एनजीओ का है। इसमें प्रति समूह 1.25 लाख रुपए का अनुदान परिषद व पालिकाओं द्वारा दिया जाता है। यह राशि सरकार ने पालिकाओं व परिषदों के खाते में भी जमा करा दी।
बाड़मेर जिले की नगर परिषद् में गत पांच सालो से इस योजना का काम एक मात्र संस्था को ही दिया जा रहा है. परिषद् द्वारा कभी संस्थाओ से प्रस्ताव नहीं मांगे गए. इस बार भी दो संस्थाओ के प्रस्ताव आये थे जिला कलेक्टर की अध्यक्षता वाली कमेटी ने जिसका अनुमोदन किया था. सरकारी आदेश के अनुसार कार्य जनवरी में आरम्भ किया जाना था, मगर आपसी बन्दर बाँट और सेटिंग में समय लगने से अप्रेल मे आदेश के साथ भुगतान करने का मामला सामने आया हें