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रविवार, 25 जून 2017

पर्यटन परिक्रमा। . कुल्लू के बिजली महादेव अद्भुत चमत्कारी मंदिर ,बारह साल में बिजली गिरती हे शिवलिंग पर



पर्यटन परिक्रमा। . कुल्लू के बिजली महादेव अद्भुत चमत्कारी मंदिर ,बारह साल में बिजली गिरती हे शिवलिंग पर

Bijli Mahdev - Kullu- History

भारत में भगवन शिव के अनेक अद्भुत मंदिर है उन्हीं में से एक है हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में स्तिथ बिजली महादेव। कुल्लू का पूरा इतिहास बिजली महादेव से जुड़ा हुआ है। कुल्लू शहर में ब्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊंचे पर्वत के ऊपर बिजली महादेव का प्राचीन मंदिर है।पूरी कुल्लू घाटी में ऐसी मान्यता है कि यह घाटी एक विशालकाय सांप का रूप है। इस सांप का वध भगवान शिव ने किया था। जिस स्थान पर मंदिर है वहां शिवलिंग पर हर बारह साल में भयंकर आकाशीय बिजली गिरती है। बिजली गिरने से मंदिर का शिवलिंग खंडित हो जाता है। यहां के पुजारी खंडित शिवलिंग के टुकड़े एकत्रित कर मक्खन के साथ इसे जोड़ देते हैं। कुछ ही माह बाद शिवलिंग एक ठोस रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। इस शिवलिंग पर हर बारह साल में बिजली क्यों गिरती है और इस जगह का नाम कुल्लू कैसे पड़ा इसके पीछे एक पौराणिक कथा है जो इस प्रकार है।



रहता था कुलान्त राक्षस

कुल्लू घाटी के लोग बताते हैं कि बहुत पहले यहां कुलान्त नामक दैत्य रहता था। दैत्य कुल्लू के पास की नागणधार से अजगर का रूप धारण कर मंडी की घोग्घरधार से होता हुआ लाहौल स्पीति से मथाण गांव आ गया। दैत्य रूपी अजगर कुण्डली मार कर ब्यास नदी के प्रवाह को रोक कर इस जगह को पानी में डुबोना चाहता था। इसके पीछे उसका उद्देश्य यह था कि यहां रहने वाले सभी जीवजंतु पानी में डूब कर मर जाएंगे। भगवान शिव कुलान्त के इस विचार से से चिंतित हो गए।






अजगर के कान में धीरे से बोले भगवान शिव



बड़े जतन के बाद भगवान शिव ने उस राक्षस रूपी अजगर को अपने विश्वास में लिया। शिव ने उसके कान में कहा कि तुम्हारी पूंछ में आग लग गई है। इतना सुनते ही जैसे ही कुलान्त पीछे मुड़ा तभी शिव ने कुलान्त के सिर पर त्रिशूल वार कर दिया। त्रिशूल के प्रहार से कुलान्त मारा गया। कुलान्त के मरते ही उसका शरीर एक विशाल पर्वत में बदल गया। उसका शरीर धरती के जितने हिस्से में फैला हुआ था वह पूरा की पूरा क्षेत्र पर्वत में बदल गया। कुल्लू घाटी का बिजली महादेव से रोहतांग दर्रा और उधर मंडी के घोग्घरधार तक की घाटी कुलान्त के शरीर से निर्मित मानी जाती है। कुलान्त से ही कुलूत और इसके बाद कुल्लू नाम के पीछे यही किवदंती कही जाती है।



भगवान शिव ने इंद्र से कहा था इस स्थान पर गिराएं बिजली

कुलान्त दैत्य के मारने के बाद शिव ने इंद्र से कहा कि वे बारह साल में एक बार इस जगह पर बिजली गिराया करें। हर बारहवें साल में यहां आकाशीय बिजली गिरती है। इस बिजली से शिवलिंग चकनाचूर हो जाता है। शिवलिंग के टुकड़े इकट्ठा करके शिवजी का पुजारी मक्खन से जोड़कर स्थापित कर लेता है। कुछ समय बाद पिंडी अपने पुराने स्वरूप में आ जाती है

बिजली शिवलिंग पर ही क्यों गिरती है


आकाशीय बिजली बिजली शिवलिंग पर गिरने के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव नहीं चाहते चाहते थे कि जब बिजली गिरे तो जन धन को इससे नुकसान पहुंचे। भोलेनाथ लोगों को बचाने के लिए इस बिजली को अपने ऊपर गिरवाते हैं। इसी वजह से भगवान शिव को यहां बिजली महादेव कहा जाता है। भादों के महीने में यहां मेला-सा लगा रहता है। कुल्लू शहर से बिजली महादेव की पहाड़ी लगभग सात किलोमीटर है। शिवरात्रि पर भी यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है।


:  भगवान शिव ने इंद्र से कहा था इस स्थान पर गिराएं बिजली

कुलान्त दैत्य के मारने के बाद शिव ने इंद्र से कहा कि वे बारह साल में एक बार इस जगह पर बिजली गिराया करें। हर बारहवें साल में यहां आकाशीय बिजली गिरती है। इस बिजली से शिवलिंग चकनाचूर हो जाता है। शिवलिंग के टुकड़े इकट्ठा करके शिवजी का पुजारी मक्खन से जोड़कर स्थापित कर लेता है। कुछ समय बाद पिंडी अपने पुराने स्वरूप में आ जाती है।



बिजली शिवलिंग पर ही क्यों गिरती है
आकाशीय बिजली बिजली शिवलिंग पर गिरने के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव नहीं चाहते चाहते थे कि जब बिजली गिरे तो जन धन को इससे नुकसान पहुंचे। भोलेनाथ लोगों को बचाने के लिए इस बिजली को अपने ऊपर गिरवाते हैं। इसी वजह से भगवान शिव को यहां बिजली महादेव कहा जाता है। भादों के महीने में यहां मेला-सा लगा रहता है। कुल्लू शहर से बिजली महादेव की पहाड़ी लगभग सात किलोमीटर है। शिवरात्रि पर भी यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है।

सर्दियों में भारी बर्फबारी






यह जगह समुद्र स्तर 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। शीत काल में यहां भारी बर्फबारी होती है। कुल्लू में भी महादेव प्रिय देवता हैं। कहीं वे सयाली महादेव हैं तो कहीं ब्राणी महादेव। कहीं वे जुवाणी महादेव हैं तो कहीं बिजली महादेव। बिजली महादेव का अपना ही महात्म्य व इतिहास है। ऐसा लगता है कि बिजली महादेव के इर्द-गिर्द समूचा कुल्लू का इतिहास घूमता है। हर मौसम में दूर-दूर से लोग बिजली महादेव के दर्शन करने आते हैं।



सोमवार, 6 जनवरी 2014

कृष्ण मंदिर में गायी जाती है मुसलिम भक्त के नाम की आरती

राजस्थान के करौली नगर में मदन मोहन का एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में भगवान मदन मोहन यानी श्री कृष्ण विराजमान हैं। यहां के निवासियों में मदन मोहन के प्रति अपार श्रद्धा और आस्था है। करौली के मदन मोहन की एक कथा यहां काफी लोकप्रिय है। कथा है कि ताज खां नाम का एक मुसलमान कृष्ण की प्रतिमा की एक झलक पाते ही उनका अनन्य भक्त बन बैठा।

ताज खां कचहरी में एक चपरासी था। एक बार कचहरी के काम से इन्हें मदनमोहन जी के पुजारी गोस्वामी जी के पास भेजा गया। ताज खां मंदिर के बाहर खड़े रहकर ही गोस्वामी जी को अवाज लगाने लगे। इसी समय उनकी नजर मंदिर में स्थित मदनमोहन जी की मूर्ति पर गयी और वे कृष्ण के मुख को देखते रह गये। गोस्वामी जी के आने पर उनका ध्यान भंग हुआ और कचहरी का संदेश गोस्वमी जी को देकर ताज खां विदा हो गये।

ताज खां के मन मस्तिष्क पर मदन मोहन की ऐसी छवि बनी की हर पल उन्हें देखने की ताक में रहने लगे। मुसलमान होने के कारण वह मंदिर में जाने से डरते और बाहर से ही मदनमोहन को निहारते रहते। गोस्वामी जी को जब शंका हुई कि ताज खां छुपकर मदनमोहन का दर्शन करते हैं तो ताज खां को मंदिर आने से मना कर दिया। ताज खां गोस्वामी जी के मना करने के बाद भी मदर्शन के लिए मंदिर पहुंच गये तो एक कार्यकर्ता ने ताज खां को धक्का मार कर भगा दिया।

ताज खां इससे बहुत दुःखी हुए और भोजन पानी त्याग कर मदनमोहन को याद करके रोते रहे। कहते हैं कि भक्त की इस लगन पर भगवान का हृदय करूणा से भर उठा। मंदिर का नियम है कि रात्रि में आरती पूजा के बाद भगवान के सामने प्रसाद का थाल रखकर मंदिर का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया जाता है। रात्रि पूजा के बाद जब मंदिर बंद हुआ तो भगवान ने मंदिर के कार्यकर्ता का रूप धारण किया और प्रसाद की थाल लेकर भक्त ताज खां के घर पहुंच गये।

भगवान ने ताज खां से कहा कि गोस्वामी जी ने आपके लिए प्रसाद भेजा है। आप प्रसाद ग्रहण कर लें और सुबह थाल लेकर मंदिर में मदनमोहन के दर्शन के लिए पधारें। ताज खां को विश्वास नहीं हो रहा था कि गोस्वामी जी ने ऐसा कहा है। फिर भी ताज खां ने मंदिर के कार्यकर्ता का रूप धारण किये हुए भगवान की बात मानकर भावुक मन से प्रसाद ग्रहण किया।

इसके बाद भगवान वहां से विदा हो गये। दूसरी ओर गोस्वमी जी को भगवान ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि वह प्रसाद की थाल ताज खां के घर छोड़ आये हैं सुबह जब वह प्रसाद की थाल लेकर आए तो उसे मेरे दर्शन से मना मत करना।

गोस्वामी जी सुबह उठे तो देखा सचमुच मंदिर में प्रसाद का थाल नहीं था। गोस्वामी जी दौरकर महाराज के पास गये और सब हाल कह सुनाया। महाराज और गोस्वामी जी दोनों मंदिर लौट आये। मंदिर में पूजा के समय जब ताज खां आया तो उसके हाथ में प्रसाद का थाल देखकर सभी लोग हैरान रह गये। महाराज ने आगे बढ़कर ताज खां को गले से लगा लिया। सभी लोग भक्त ताज खां की जयजयकार कर उठे।

भक्त ताज खां को आज भी करौली के मदनमोहन मंदिर में संध्या आरती के समय 'ताज भक्त मुसलिम पै प्रभु तुम दया करी। भोजन लै घर पहुंचे दीनदयाल हरी।।' इस दोहे के साथ याद किया जाता है।

शनिवार, 7 सितंबर 2013

राजस्थान की धरोहर किराडू के प्राचीन मंदिर

देखिये खुबसूरत तस्वीरे। । राजस्थान की धरोहर किराडू के प्राचीन मंदिर
















यह स्थान राजस्थान के बाड़मेर से लगभग 35 किमी उत्तर-पश्चिम में है। किराडू के विश्व प्रसिद्ध पाँच मंदिरों का समूह बाड़मेर मुनाबाव रेलमार्ग पर खड़ीन स्टेशन से 5 किमी पर हथमा गांव के पास पहाड़ी के नीचे अवस्थित है। किराडू की स्थापत्य कला भारतीय नागर शैली की है। बताया जाता है कि यहाँ इस शैली के लगभग दो दर्जन क्षत विक्षत मंदिर थे लेकिन अभी ये केवल 5 हैं। यहाँ के मंदिरों में रति दृश्यों के स्पष्ट अंकन होने की वजह से किराडू को राजस्थान का खजूराहो भी कहा जाता है।

सन् 1161 के एक शिलालेख के अनुसार किराडू का प्राचीन नाम किरात कूप था तथा यह किसी समय परमार राजाओं की राजधानी था। इतिहासकारों के अनुसार किरातकूप पर गुजरात के चालुक्य राजवंश के प्रतिनिधि के रूप में परमार शासकों का शासन था। बताया जाता है कि चन्द्रावती के परमार राजा कृष्णराज द्वितीय के पुत्र सच्चा राजा ने 1075 एवं 1125 ईस्वी के मध्य इस स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। इन्हीं के वंशज सोमेश्वर ने सन् 1161 तक किराडू पर शासन किया तथा सन् 1178 तक यह महाराज पुत्र मदन ब्रह्मदेव के अधीन रहा और उसके बाद आसल ने यहाँ शासन किया था। यही वह काल था जब मोहम्मद गौरी ने आक्रमण किया। यहाँ के मंदिरों में काफी मात्रा में विध्वंस के चिह्न मौजूद है।

सोमेश्वर मंदिर इस स्थान का सबसे प्रमुख और बड़ा मंदिर है। इसके मूल मंदिर के बरामदे के बाहर तीन शिलालेख लगे हैं। विक्रम संवत 1209 का शिलालेख कुमारपाल सोलंकी का है तथा दूसरा शिलालेख संवत 1218 का है जिसमें परमार शासक सिंधुराज से लेकर सोमेश्वर तक की वंशावली अंकित है। संवत 1215 के तीसरे शिलालेख से किराडू के विध्वंस तथा इसके जीर्णोद्धार का पता चलता है।

कुछ लोग किरातकूप की उत्पत्ति किरात जाति से भी मानते हैं। किरात जाति का महाभारत में भी उल्लेख है। यह वनवासी जाति शिव तथा पार्वती को आराध्य देव के रूप में पूजने वाली थी। कहा जाता है कि एक बार किरातों का राजा धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन को पकड़ कर ले गया। उस समय धर्मराज युधिष्ठिर के कहने पर दुर्योधन को किरातों से भीम एवं अर्जुन ने छुड़वाया था। यह भी मान्यता है कि किराडू को उसी किरात जाति से संबंध के कारण ही किरात कूप कहा जाने लगा होगा।

किराडू में पत्थर पर उत्कीर्ण समस्त कलाकृतियां बेमिसाल हैं। मंदिरों की शायद कभी यहां पूरी श्रृंखला रही होगी परन्तु आज केवल पांच मंदिरों के भग्नावशेष ही दिखाई देते हैं। एक भगवान विष्णु का तथा अन्य मंदिर भगवान शिव के हैं।

यहाँ के खंडहरों में चारों ओर विलक्षण शिल्प बिखरा पड़ा है, बाह्य भाग अब भी कलाकृतियों से पूर्णत: सुसज्जित है। यहाँ 44 स्तम्भ इसके गौरवशाली अतीत को अभिव्यक्त करते हैं। सोमेश्वर मंदिर के पास ही एक छोटा-सा सुंदर शिवालय भी है। यहाँ के सोमेश्वर मंदिर में पग-पग पर तत्कालीन समृद्ध प्रस्तर कला का सौन्दर्य बिखरा पड़ा है, जैसे- युद्ध कौशल के दृश्य, बिगुल, तुरही, नगाड़े, पंच गणेश व नाना देव-देवी की प्रतिमाएँ, समुद्र मंथन, रामायण तथा महाभारत की विभिन्न दृश्यावलियां, मंदिरों के बीच के भाग में बिखरे पड़े कलात्मक स्तंभ, कला खंड व कलश खंड, मैथुन व रति क्रिया के सभी प्रमुख अंगों का स्पष्ट अंकन आदि।

मंदिर के मंडप के भीतर उत्कीर्ण नारी प्रतिमाएं नारी सौंदर्य की बेजोड़ कृतियां हैं जिनमें से एक कला खंड नारी केश विन्यास से संबद्ध है। इसे देखकर संवरी हुई केश राशि एवं वसन की सिलवटे नारी के सहज स्वरूप तथा भाव का साक्षात दर्शन कराती है। गर्भगृह के द्वार पर मंदिर परंपरा की अवधारणा के अनुरूप द्वारपाल, क्षेत्रपाल, देव-देवी तथा मंदिर के मूल नायक की सूक्ष्म कृतियों से सज्जित है। नागर शैली के मंदिर की परंपरा में बने शिव मंदिरों की श्रेणी में यह मंदिर मरुगुर्जर शैली की उच्च कोटि की कला का बेहतरीन नमूना है।



किराडू के सोमेश्वर मंदिर के पास स्थित छोटे शिव मंदिर की शैली में सोमेश्वर जितनी सूक्ष्मता नहीं है इसका भी गुंबद खंडित है किंतु यह अंदर से फिर भी सुरक्षित है व खंडित नहीं है। इस मंदिर की वीथिका के सामने की ओर ही कुछ दूर जाकर शिव, विष्णु और ब्रह्मा के मंदिर है। इनमें से एक मंदिर के प्रवेश द्वार की अर्गला पट्टी पर नीचे की ओर गौरी तथा गणेश की बहुत ही आकर्षक प्रतिमा है जिसमें गौरी के हाथ में मोदक है और बालक गणेश उस मोदक को अपनी सूँड से उठाने का प्रयास करते दिखते हैं।

राजस्थान के रेगिस्तान में अवस्थित इतिहास और स्थापत्य कला का संगम किराडू अपने आप में अति विशिष्ट है। इसमें उत्कीर्ण शिल्प दसवीं सदी के गौरवशाली अतीत और कला वैभव का प्रबल साक्षी है।