बाडमेर"कुरजां म्हाने भंवर मिला दिजो जी…'*
*बाडमेर न्यूज़ ट्रैक*
बालोतरा. सातसमंदर पार से आए कुरजां पंछियों के पहले जत्थे ने बालोतरा उपखंड क्षेत्र के पचपदरा आसपास के तालाबों पर दस्तक दे दी है। तुर्र-तुर्र के कलरव के साथ परवाज भरते प्रवासी परिंदों ने माहौल में जान फूंक दी है। हर वर्ष की तरह इस बार भी अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में सात समंदर पार करके ठंडे मुल्कों के प्रवासी परिंदे शीतकालीन प्रवास के लिए क्षेत्र में पहुंच चुके हैं। हजारों की तादाद में पहुंचने वाले ये परिंदे करीब छह माह तक यहां अठखेलियां करने के बाद फरवरी अंत में पुन: स्वदेश के लिए उड़ान भरेंगे। पचपदरा के तालर मैदान, हरजी, इमरतिया, चिरढाणी, नवोडा, इयानाडी तालाब के साथ ही मगरा क्षेत्र में हजारों की तादाद में कुरजां के समूह पहुंच चुके हैं। वहीं तिरसिगड़ी सोढ़ा के मालप तालाब, सिणली जागीर तालाब आस-पास के तालाबों में कुंरजों की किलौल देखी जा सकती है। छह माह के प्रवास के दौरान ये परिंदे यहां गर्भधारण के बाद फरवरी में स्वदेश के लिए उड़ान भरेंगे। राजस्थान के लोक गीतों में कुरजां पक्षी के महत्व को शानदार तरीके से उकेरा गया है। प्रियतम से प्रेमी पति, पिता तक संदेश पहुंचाने का जरिया कुरजां को माना गया है। कई लोक गीतों में कुरजां को ध्यान में रख कर गाया गया है। कुरजां म्हाने भंवर मिला दिजो जी.. गीत में पत्नी अपने पति से मिलाने का आग्रह कुरजां से करतीं हैं तो कुरजां म्हारो संदेशों म्हारा बाबोसा ने दीजे.., में महिला कुरजां के माध्यम से पिता को संदेश भेजती है।
पिता अपनी पुत्री को अवलू.. गीत के माध्यम से संदेश पहुंचाते हैं। कुरजां पर कई गीत हंै, जो विभिन्न संदेशों को पिरोकर गाए गए हैं। कुरंजा सदा समूह में रहती है और खेतों में लगे बेरी की झाड़ियां, पाला के बेर, मूंग, मूंगफली, बाजरा खाती हंंै। समूह में कुरजां आती है तो किसानों को परेशान करती हंै।
*बाडमेर न्यूज़ ट्रैक*
बालोतरा. सातसमंदर पार से आए कुरजां पंछियों के पहले जत्थे ने बालोतरा उपखंड क्षेत्र के पचपदरा आसपास के तालाबों पर दस्तक दे दी है। तुर्र-तुर्र के कलरव के साथ परवाज भरते प्रवासी परिंदों ने माहौल में जान फूंक दी है। हर वर्ष की तरह इस बार भी अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में सात समंदर पार करके ठंडे मुल्कों के प्रवासी परिंदे शीतकालीन प्रवास के लिए क्षेत्र में पहुंच चुके हैं। हजारों की तादाद में पहुंचने वाले ये परिंदे करीब छह माह तक यहां अठखेलियां करने के बाद फरवरी अंत में पुन: स्वदेश के लिए उड़ान भरेंगे। पचपदरा के तालर मैदान, हरजी, इमरतिया, चिरढाणी, नवोडा, इयानाडी तालाब के साथ ही मगरा क्षेत्र में हजारों की तादाद में कुरजां के समूह पहुंच चुके हैं। वहीं तिरसिगड़ी सोढ़ा के मालप तालाब, सिणली जागीर तालाब आस-पास के तालाबों में कुंरजों की किलौल देखी जा सकती है। छह माह के प्रवास के दौरान ये परिंदे यहां गर्भधारण के बाद फरवरी में स्वदेश के लिए उड़ान भरेंगे। राजस्थान के लोक गीतों में कुरजां पक्षी के महत्व को शानदार तरीके से उकेरा गया है। प्रियतम से प्रेमी पति, पिता तक संदेश पहुंचाने का जरिया कुरजां को माना गया है। कई लोक गीतों में कुरजां को ध्यान में रख कर गाया गया है। कुरजां म्हाने भंवर मिला दिजो जी.. गीत में पत्नी अपने पति से मिलाने का आग्रह कुरजां से करतीं हैं तो कुरजां म्हारो संदेशों म्हारा बाबोसा ने दीजे.., में महिला कुरजां के माध्यम से पिता को संदेश भेजती है।
पिता अपनी पुत्री को अवलू.. गीत के माध्यम से संदेश पहुंचाते हैं। कुरजां पर कई गीत हंै, जो विभिन्न संदेशों को पिरोकर गाए गए हैं। कुरंजा सदा समूह में रहती है और खेतों में लगे बेरी की झाड़ियां, पाला के बेर, मूंग, मूंगफली, बाजरा खाती हंंै। समूह में कुरजां आती है तो किसानों को परेशान करती हंै।