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बुधवार, 18 मई 2011

चिड़ियों के घोंसले


चिड़ियों के घोंसले 
'साग़र' पालमपुरी
अब क्या बताएँ क्या हुए चिड़ियों के घोंसले
तूफ़ाँ की नज़्र हो गए चिड़ियों के घोंसले

हर घर के ही दरीचों छतों में छुपे हैं साँप
महफ़ूज़ अब नहीं रहे चिड़ियों के घोंसले

पीपल के उस दरख़्त के कटने की देर थी
आबाद फिर न हो सके चिड़ियों के घोंसले

जब से हुए हैं सूखे से खलिहान बे-अनाज
लगते हैं कुछ उदास- से चिड़ियों के घोंसले

बढ़ता ही जा रहा है जो धरती पे दिन-ब-दिन
उस शोर-ओ-गुल में खो गये चिड़ियों के घोंसले

पतझड़ में कुछ लुटे तो कुछ उजड़े बहार में
सपनों की बात हो गये चिड़ियों के घोंसले

बनने लगे हैं जब से मकाँ कंकरीट के
तब से हैं दर-ब-दर हुए चिड़ियों के घोंसले

तारीख़ है गवाह कि फूले-फले बहुत
जो आँधियों से बच गए चिड़ियों के घोंसले

जब बज उठा शहर की किसी मिल का सायरन
‘साग़र’ को याद आ गये चिड़ियों के घोंसले