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रविवार, 20 अक्टूबर 2013

पचपदरा में कांग्रेस के पास उम्मीदवार का टोटा ?किस पर खेले दांव असमंज की स्थति

पचपदरा में कांग्रेस के पास उम्मीदवार का टोटा ?किस पर खेले दांव असमंज की स्थति

अब तक चुनावो में जो मुख्यमंत्री बालोतरा आया वापस सत्ता में नहीं आ पाया 

बाड़मेर राजस्थान में कांग्रेस की सर्वाधिक प्रतिष्ठा की सीट पचपदरा कांग्रेस के लिए गले की हड्डी बन गयी हें। पचपदरा में रिफायनरी का शिलान्यास श्रीमती सोनिया गाँधी के हाथो करने के बाद से यह सीट कांग्रेस के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठा की बन गई ,साथ ही कांग्रेस रिफायनरी स्थापना को विकास मॉडल के रूप में दर्शा कर राजस्थान भर में चुनाव लड़ रही हें ,कांग्रेस इस सीट पर हर हाल में जीत चाहती हें ,पचपदरा के वर्तमान विधायक मदन प्रजापत के खिलाफ स्थानीय कांग्रेस नेता जबरदस्त लामबंद होकर दिल्ली जयपुर में डेरा जमाये हें वाही मदन प्रजापत अपनी टिकट बहाली के लिए पूरा जोर लगा रहे हें। पचपदरा के लिए अशोक गहलोत अपने पुत्र वैभव गहलोत के लिए गोपनीय सर्वे करवा चुके हें। सर्वे में कांग्रेस को रहत के आसार नज़र नही आये। गहलोत ने कुछ नामो पर चर्चा की मगर उम्मीदवार पचपदरा से लड़ने के इच्छुक नहीं। कांग्रेस सतही स्तर पर मजबूत और लोकप्रिय उम्मीदवार की तलाश में हें। अशोक गहलोत की निगाहें सांसद हरीश चौधरी पर ठहरी हें मगर हरीश चौधरी बायतु से लड़ने के इच्छुक बताये जा रहे हें ,ऐसे में पचपदरा से किसे मैदान में उतारे कांग्रेस के सामने संकट हें। ऐसी स्थति में पचपदरा की पूर्व विधायक और जिला प्रमुख श्रीमती मदन कौर कांग्रेस का बेहतर विकल्प साबित हो सकती हें। मदन कौर राजी नहीं होती हें तो मदन प्रजापत कांग्रेस की अंतिम पसंद हो सकते हें। भाजपा के अमराराम पहले से बढ़त ले चुके हें हालांकि उनके नाम की घोषणा भाजपा ने नहीं की मगर भाजपा के पास दूसरा विकल्प भी नहीं हें। रिफायनरी के शिलान्यास के साथ यह किद्वंती जुड़ गयी की जो मुख्यमंत्री बालोतरा में चुनाव मीटिंग करने अब तक आये वो वापस मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। गत चुनावो में वसुंधरा राजे भी बालोतरा आई थी उन्हें इस किदवंती की जानकारी दी तो उन्होंने इसे अंधविश्वास बता कर ताल दिया ,आख़िरकार बात सच साबित हुई ,इस बार रिफायनरी शिलान्यास के साथ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चुनावी आगाज़ पचपदरा से किया हें। उनकी स्थति चुनावो के बाद पता चलेगी ,बहरहाल कांग्रेस को सशक्त दावेदार की जरुरत हें पचपदरा में। भगाराम पंवार एंड पार्टी मदन प्रजापत की जोरदार मुखाफलत कर रहे हें। वो किसी भी सूरत में उन्हें टिकट लेने नहीं देना चाहते। 

सोमवार, 15 जुलाई 2013

हज़ारों किसानो ने गहलोत के खिलाफ ताल ठोंकी ...माहौल गरमाया



अशोक जी अब तो जनता ने कह दिया रिफायनरी लीलाना में लगे

हज़ारों किसानो ने गहलोत के खिलाफ ताल ठोंकी ...माहौल गरमाया


चन्दन सिंह भाटी


बाड़मेर राजस्थान में रिफायनरी को लेकर गत साल भर से चल रही कवायद आज उस वक़्त चरम पर पहुँच गई जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के रिफायनरी को बायतु के लीलाना से पचपदरा सिफ्ट करने के निर्णय के खिलाफ हज़ारों की तादाद में किसान और आम जन सडकों पर उतर आये .गहलोत के फैसे के खिलाफ स्थानीय जनता और नेताओ ने ताल ठोंक गहलोत के अरमानो पर पानी फेर दिया .सोमवार को बाड़मेर जिला मुख्यालय पर रिफायनरी बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले महासमेलन सिंधारी चौराहे पर रखा गय्या .महासम्मेलन में आम जनता ने रूचि दिखाई तथा हज़ारो की तादाद में लोग सम्मलेन में पौंच समिति के आन्दोलन को समर्थन देकर मुख्यमंत्री के सामने नया संकट खडा कर दिया .जाटों के अलावा एनी जातियों के लोग भी बड़ी तादाद में पहुंचे जिससे साबित हो गया की गहलोत का रिफायनरियो को पचपदरा स्थानांतरित करने का निर्णय बिलकुल गलत हें .आज के सम्मलेन से स्पष्ट हो गया की गहलोत के लिए यह चुनौती से कम , हें गहलोत के रवैये से जाट वैसे ही नाराज़ थे .रिफायनरी को जाट बाहुल्य क्षेत्र लीलाना से पचपदरा सिफ्ट करने से जाट भड़क गए ,जिले में यह पहला मौका हें जब जाटों के किसी आन्दोलन को एनी जातियों से भरपूर समर्थन दिया .समेलन में वक्ताओं ने जिस प्रकार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर वार किये उससे स्पस्ट हें की विधानसभा चुनावों में बहुत कुछ गहलोत के हाथो से फिसलने वाला हें .वक्तो ने साफ़ कहा की रिफायनरी किसी भी सूरत में पचॉदर जाने नहीं देंगे .सोनिया गाँधी और अशोक गहलोत को ओअचपदरा में रिफायनरी का ओअत्थर लगाने से पहले लाशों के ऊपर से गुजरना होगा .समेलन में शिराकर करने आये लोगो के चेहरो पर अशोक गहलोत के खिलाफ आक्रोश स्पष्ट दिखाई दे रहा था .चिलचिलाती धुप और जान लेवा उमस के बावजूद करीब पंद्रह हज़ार लोग डेट रहे .सम्मलेन में भाजपा कांग्रेस के कई नेता दलगत राजनीती से ऊपर उठ कर साथ साथ नज़र आये सभी ने एक स्वर में कहा की रिफायनरी बाड़मेर के विकास का प्रतिक हें इसे जाने नहीं देंगे .आज के सम्मलेन से साफ़ हो गया की गहलोत ने चुनावी वर्ष में अब वो उलटी पड़ती नज़र आ रही हें .रिफायनरी का मुद्दा उनके चुनावी योजनाओ पर पानी फेर दे तो कोई आश्चर्य नहीं .सम्मेल के नायक बायतु से कांग्रेस विधायक कर्नल सोना राम चौधरी रहे .कर्नल ने रिफायनरी पचपदरा ले जाने के पीछे अशोक गहलोत की सोची समझी साज़िश को बताया ,उन्होंने कहा की गहलोत नहीं चाहते की जाटों के किसी भी क्षेत्र का विकास हो .वो अपने क्षेत्र जोधपुर के नजदीक रिफायनरी लगाने का प्रयास कर रहे हें ताकि रिफायनरी का फायदा बाड़मेर की बजे जोधपुर को अधिक मिले .वक्ताओं ने गहलोत पर अपने वक्तव्यों से जैम कर आरोप लगाये वाही स्थानीय और सांसद के रवैये पर भी जमकर प्रहार किये .बहरहाल बाड़मेर की जनता ने रिफायनरी पचपदरा की बजे लीलाना में लगे को जमकर समर्थन दे कर गहलोत की मुश्किलें बढ़ा दी .कर्नल सोना राम के नेतृत्व में जिला कलेक्टर को ज्ञापन भी सौंपा गया जिसमे रिफायनरी लीलाना को वापस देने की मांग राखी हें .

सोमवार, 1 जुलाई 2013

exclusiv news पचपदरा रिफायनरी ..पर चन्दन सिंह भाटी की खास रिपोर्ट

लूण की खान पर तेल का तालाब

जिस पचपदरा में तेल रिफाइनरी स्थापित की जा रही है वह साइबेरियाई पक्षियों की सबसे बड़ी सैरगाह है।

exclusiv news   पचपदरा रिफायनरी ..पर चन्दन सिंह भाटी की खास रिपोर्ट 


तब भी ब्रिटिश हुकुमत ही इसके पीछे थी, अब एक ब्रिटिश कंपनी इसके पीछे है। पचपदरा के धुंधले इतिहास और सुनहरे भविष्य के बीच संतुलन साधने के लिए बिना ब्रिटेन को बीच में लाये बात पूरी नहीं हो सकती। उस वक्त जब देश में गांधी जी का नमक आंदोलन नहीं हुआ था तब से पहले की बात है। बाड़मेर का यह पचपदरा इलाका एक असफल नमक आंदोलन चला चुका था। बंगाल को शुद्ध नमक खिलाने के नाम पर जब अंग्रेजी हुकूमत ने ब्रिटिश नमक का बाजार खोलने की शुरूआत की तो वे पचपदरा के इसी सांभर इलाके में आये थे, भारी मशीनरी के साथ। उनकी भारी मशीनरी और नमक के भारी उत्पादन दोनों की ही उस वक्त सफल नहीं हो पाये तो उसका कारण यह था कि मशीन से पैदा किये गये सांभर नमक को पचपदरा की खुदरा खानों से निकला नमक चुनौती दे रहा था। स्वाभाविक था कि अंग्रेजों ने पचदरा की 'पड़तल' खानों को बंद करने की कोशिश की। इसके जवाब में यहां के नमक उत्पादकों ने कलकत्ते जाकर अंग्रेजी हुकुमूत को असफल चुनौती दी थी, नमक के साथ। लेकिन न कलकत्ते में यहां के नमक कारोबारी सफल हो सके और न पचपदरा में अंग्रेजी हुकूमत।
गांधी जी से भी पहले नमक का यह पहला 'संघर्ष' इतिहास की किताबों में भी ठीक से भले ही कलमबंद नहीं हो पाया, लेकिन आज भी आप पचपदरा आयें तो धुंधले रूप में ही सही इतिहास के इस अनोखे संघर्ष के अवशेष मौजूद हैं। चारों तरफ दूर-दूर तक बियाबान के बीच बसे सांभरा में अंग्रेजों के जमाने में एक टीले पर बनाया गया नमक विभाग का दफ्तर और कॉलोनी आज भी मौजूद है। तब अंग्रेजों का हाकम यहां बैठता था। नमक की पहरेदारी करने के लिए चौकियां बनी हुई थीं। घोड़ों पर पहरेदारी होती थी। भैरोसिंह शेखावत मुख्यमंत्री बने तो 1992 में नमक की खदानों में काम करने वाले 'खारवालों' को सरकार ने पट्टे देकर मालिक बना दिया और विभाग का दफ्तर भी शिफ्ट कर दिया। तब से आलीशान दफ्तर का भवन, डाक बंगला और करीब 70 क्वार्टर वाली कॉलोनी वीरान पड़ी है। इनमें भी 35 ठीक-ठाक हैं, बाकी खंडहर हो चुके हैं। यहीं पर एक खजाना कक्ष बना हुआ है। इसमें सलाखों के भीतर एक तहखाने में यह खजाना आज भी इतिहास का गवाह बना हुआ है। लोहे की मोटी चद्दर से बना है भारी भरकम दरवाजा। इस पर आज भी इंग्लैंड का बना ताला ही लटक रहा है। खजाना खाली है यहा भरा, यह तो पता नहीं लेकिन मकड़ियों के जाल ने इन्हें पुरातन अवशेष में जरूर तब्दील कर दिया है।
लेकिन इतिहास में अवशेष हो जाने के बाद भी पचपदरा की पड़तल खानों (नमक की वे खान जिसमें एक बार नमक निकाल लेने के बाद उन्हें बंद कर दिया जाता है।) से निकलनेवाले नमक की गुंजाइश ही कायम नहीं है, जिस सांभर में अंग्रेजी हुकूमत अपने मशीनों का अवशेष पीछे छोड़ गई थी, उस सांभर में मशीनों के वे अवशेष भी जंग लगे हथियारों की तरह आज भी देखे जा सकते हैं। सिर्भ सांभरा माता का भव्य मंदिर ही नमक की समृद्धि से ही समृद्ध नहीं हुआ था, बाड़मेर का यह पूरा इलाका कभी राजसी वैभव लिए था तो उसका कारण कुछ और नहीं बल्कि सांभर नमक ही था।
आश्चर्यजनक रूप से पचपदरा में रिफाइनरी का स्वागत वे तीन हजार खारवाल भी कर रहे हैं जो नमक के कारोबारी है, यह जानते हुए कि रिफाइनरी आने से सांभर नमक का कारोबार बर्बाद हो जाएगा। सांभरा के गणपत खारवाल कहते हैं, नमक के काम में तो मुश्किल से दो सौ रुपए दिहाड़ी मिलती है, वह भी साल में आठ माह से ज्यादा नहीं। रिफाइनरी लगने से गांव वालों को कम से कम रोज अच्छी मजदूरी तो मिलेगी।
सांभर नमक अपनी विशिष्टता के लिए जाना जाता है। सांभर नमक वह नमक है जो नमक होते भी नमक नहीं होता है। हिन्दू समाज में सांभर नमक को इतना पवित्र माना जाता है कि व्रत त्यौहार में इस नमक को इस्तेमाल किया जाता है। जोधपुर के पास नमक की सांभर झील अगर अपने सांभर नमक के लिए दुनियाभर में विख्यात है तो बाड़मेर का सांभरा इलाका भी अपने नमक के उत्पादन और कारोबार के लिए ही जाना जाता है। सांभरा गांव और पचपदरा क्षेत्र में पानी को सुखाकर नमक नहीं तैयार किया जाता बल्कि यह देश का संभवत: एकमात्र ऐसा इलाका है जहां खदानों से खोदकर नमक निकाला जाता है। जमीन से निकले इस नमक को शायद इसीलिए विशिष्ट नमक माना जाता है। लेकिन नमक की इस विशिष्टता पर अब जल्द ही तेल का तालाब तैर जाएगा और तेल की धार बह निकलेगी।
परियोजना से जुड़ी हर बात पूरी हो चुकी है। घोषणा भी हो चुकी है और अतीत में खो चुके पचपदरा इलाके में प्रापर्टी डीलर अभी से सक्रिय हो गये हैं। इसी जून महीने में राजस्थान सरकार की 26 फीसदी हिस्सेदारी वाली इस परियोजना को हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कारपोरेशन द्वारा लगाने की योजना को मंजूरी मिल चुकी है। संभावना है कि जुलाई महीने में किसी भी वक्त कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इस इलाके का दौरा करके परियोजना की आधारशिला रख देंगी। हालांकि अभी भी स्पष्ट तौर पर यह तो पता नहीं चल पाया है कि इस परियोजना में ब्रिटिश कंपनी केयर्न की कितनी हिस्सेदारी है लेकिन इस बात की संभावना बताई जा रही है कि एचपीसीएल की सहयोगी कंपनी एमआरपीएल में राजस्थान सरकार के अलावा केयर्न की भी हिस्सेदारी है। वैसे इस परियोजना को पचपदरा लाने के पीछे केयर्न का बड़ा अहम रोल है। इस रिफाइनरी के लिए जो कच्चे तेल की सप्लाई है उसमें बड़ी हिस्सेदारी केयर्न की ही होगी। केयर्न अपने दो तेल पाइपलाइनों मंगला और भाग्यम के जरिए जामनगर में रिलायंस की रिफाइनरी के अलावा इस परियोजना को भी कच्चा तेल सप्लाई करेगी।
बाड़मेर में पचपदरा से पहले 37,230 करोड़ रूपये की यह परियोजना यहां से करीब चालीस किलोमीटर दूर लगनेवाली थी। लेकिन जमीन के विवाद के चलते आखिरकार कंपनी ने अपना इरादा बदल दिया और वह रिफाइनरी परियोजना को पचपदरा के पास ले आई। परियोजना के लिए कंपनी को 3700 एकड़ जमीन की जरूरत है जो उसे आराम से पचपदरा में मिल रही है। पहले के परियजना स्थल लीलारा से उलट यहां परियोजना मुख्य बस्ती से छह किलोमीटर दूर बनाई जा रही है जिससे कम से कम इंसानों के विस्थापित होने का कोई खतरा नहीं है। शायद इसीलिए यहां के लोग चाहते हैं कि रिफाइनरी की परियोजना यहीं लगे ताकि इस इलाके में राजसी ठाट बाट दोबारा लौट आये। राजसी ठाट बाट जब आयेगा तब लेकिन जिस तरह से इलाके में प्रापर्टी के कारोबारी सक्रिय दिखाई दे रहे हैं उससे इतना तो साफ दिख रहा है सरहदी जिले का उपेक्षित सा यह नमक उत्पादक इलाका अचानक ही चर्चा में आ गया है। शाम होते ही पचपदरा में जगह जगह प्रापर्टी डीलर जमा हो जाते हैं और जमीन के सौदों को अंजाम देने लगते हैं।
लेकिन प्रापर्टी के इस संभावित कारोबार में क्या सचमुच पचपदरा को इस रिफाइनरी से सिर्फ फायदा ही फायदा होनेवाला है। शायद ऐसा नहीं है। भले ही नमक के कारोबार की उपेक्षा के कारण लंबे समय से उपेक्षित इस इलाके में रिफाइनरी के कारण रूपये की रौनक लौट आई है लेकिन रिफाइनरी के कारण इस इलाके की जैव विविधता और सबसे अधिक साइबेरियाई पक्षियों को बड़ा खतरा पैदा हो गया है। पचपदरा क्षेत्र में प्रति वर्ष हज़ारों की तादाद में प्रवासी पक्षी साइबेरियन क्रेन जिसे स्थानीय भाषा में कुरजां कहते हैं, वे आती हैं। इस क्षेत्र को कुरजां के लिए सरंक्षित क्षेत्र घोषित करने की कार्यवाही चल रही थी। सँभारा, नवोड़ा बेरा, रेवाडा गाँवों के तालाबों पर कुरजां अपना प्रवासकाल व्यतीत करते हैं। और केवल साइबेरियाई पक्षियों की ही बात नहीं है। पचपदरा में वन्यजीवों की भरमार है, विशेषकर चिंकारा और कृष्णा मृग बहुतायत में पाये जाते हैं. इसीलिए पचपदरा से आगे कल्यानपुर डोली को आखेट निषेध क्षेत्र घोषित कर रखा हैं। तेल रिफाइनरी के आने के बाद इन वन्यजीवों और दुर्लभ पक्षियों की क्या दशा या दुर्दशा होगी इसके बारे में सोचने की फुर्सत न तो सरकार को है, न कंपनी को और न ही प्रापर्टी डीलरों को।
वन्यजीव, दुर्लभ साइबेरियाई पक्षियों से ज्यादा इस वक्त इस पूरे इलाके में दुकान, मकान, होटल बनाने की चिंता है। रियल एस्टेट और ट्रांसपोर्ट में उभर रही संभावनाओं के कारण हर आदमी की आंख में अपने लिए वैभवशाली भविष्य की चमक साफ दिखाई दे रही है। शायद यही कारण है कि पचपदरा से लेकर बागुन्दी और जोधपुर तक जमीनों की कीमतों में उछाल आ गया है। इस उछाल का फायदा जिन्हें मिलेगा वे उछल रहे हैं लेकिन उन मूक पशु पक्षियों का भविष्य संकट में है जो न तो अपने लिए खुद कोई आंदोलन कर सकते हैं और जिनके लिए यहां आंदोलन करनेवाला कोई दिखाई नहीं दे रहा। सब सांभर नमक पर की खान पर तेल का तालाब बनाने में व्यस्त हैं।
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chandan singh bhati 

nehru nagar barmer rajasthan

9413307897 

शनिवार, 29 जून 2013

रिफायनरी फिर लौटेगा पुराना वैभव ...फिर कहलाएगी पचपदरा सिटी





रिफायनरी फिर लौटेगा पुराना वैभव ...फिर कहलाएगी पचपदरा सिटी
नमक की धरती से फूटेगी तेल की धार
चन्दन सिंह भाटी

बाड़मेर सरहदी जिले बाड़मेर के रियासतकालीन पचपदरा से ८ किमी दूर सांभरा गांव। रिफाइनरी की मुख्य साइट। राजस्थान की नमक की सबसे बड़ी सांभर झील से ही पचपदरा का साल्ट एरिया डवलप हुआ और इसका नाम सांभरा रखा गया। रिफाइनरी लगने के बाद चंद घरों वाले इस गांव का रियासतकालीन वैभव लौट आएगा। उस वक्त यह एरिया जोधपुर रियासत का हिस्सा था। अब रिफाइनरी से भी जोधपुर का कारोबार बढ़ेगा।

चारों तरफ दूर-दूर तक बियाबान के बीच बसे सांभरा में अंग्रेजों के जमाने में एक टीले पर नमक विभाग का दफ्तर और कॉलोनी बनाई गई थी। तब अंग्रेजों का हाकम यहां बैठता था। नमक की पहरेदारी करने के लिए चौकियां बनी हुई थीं। घोड़ों पर पहरेदारी होती थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत के वक्त 1992 में नमक की खदानों में काम करने वाले खारवालों को सरकार ने पट्टे देकर मालिक बना दिया और विभाग का दफ्तर भी शिफ्ट कर दिया। तब से आलीशान दफ्तर का भवन, डाक बंगला और करीब 70 क्वार्टर वाली कॉलोनी वीरान पड़ी है। इनमें भी 35 ठीक-ठाक हैं, बाकी खंडहर हो चुके हैं। यहीं पर एक खजाना कक्ष बना हुआ है।

इसमें सलाखों के भीतर एक तहखाने में यह खजाना आज भी इतिहास का गवाह बना हुआ है। लोहे की मोटी चद्दर से बना है भारी भरकम दरवाजा। इस पर इंग्लैंड का ताला लटक रहा है। आज यह खजाना भी मकडिय़ों के जाल से धुंधला नजर आता है।

रिफाइनरी लौटाएगी सांभरा का रियासतकालीन वैभव

जब हम इस बियाबान बस्ती में पहुंचे तो नमक विभाग के एकमात्र चौकीदार फूलचंद मिले। दफ्तर खोला और बोले- कुछ दिन पहले कलेक्टर और दूसरे अफसर आए थे। इस भवन को साफ करने की बात कह गए हैं। अब यह ऐतिहासिक भवन और कॉलोनी रिफाइनरी वालों को दे दी है। फूलचंद बताते हैं कि ४० साल हो गए यहां नौकरी करते हुए। अब तो रिटायरमेंट में एक साल बचा है, रिफाइनरी आने से पुराना वैभव तो लौटेगा, लेकिन वे यहां नहीं होंगे। अपने गांव बांसवाड़ा चले जाएंगे।


रिफाइनरी तो कर्नल के एरिया में ही रही:

बायतु के लीलाला में रिफाइनरी लगनी थी, लेकिन नहीं लगी। बायतु विधायक कर्नल सोनाराम हालांकि शिफ्टिंग से खफा है, लेकिन सांभरा व साजियाली गांव की नई साइट भी कहने को भले ही पचपदरा में हो, मगर ये गांव भी बायतु विधानसभा क्षेत्र में हैं और विधायक कर्नल ही है। विधानसभा क्षेत्रों नए सीमांकन से ये गांव भी बायतु में शामिल हो गए थे। पचपदरा की सरहद लगती है और कस्बा पास होने से विधायक मदन प्रजापत भी उत्साहित हैं। वे कहते हैं, पचपदरा का आने वाला कल चमकते रेगिस्तान की तरह सुनहरा है।

हर जाति के लोगों को होगा फायदा:

पचपदरा में रिफाइनरी लगने का फायदा हर जाति के लोगों को होगा। करीब पंद्रह हजार की आबादी वाले पचपदरा में खारवाल (नमक व्यवसाय से जुड़े लोग) की संख्या लगभग 3 हजार है। दूसरे नंबर पर 2 हजार जैन है। फिर कुम्हार, रेबारी, सुथार व अजा-जजा व अल्पसंख्यक आबादी है। पचपदरा के भंवर सिंह बताते हैं कि जैन व्यापारी कौम है और बालोतरा व्यावसायिक केंद्र हैं इसलिए उद्योग विकास में वे बड़ी भूमिका निभाएंगे। दूसरी जातियां हाथ का काम करने वाली है, उन्हें कंस्ट्रक्शन फेज और शहर बढऩे के साथ इंफ्रास्ट्रक्चर के काम में रोजगार मिल सकेगा। सांभराके गणपत खारवाल कहते हैं, नमक के काम में तो मुश्किल से दो सौ रुपए दिहाड़ी मिलती है, वह भी साल में आठ माह से ज्यादा नहीं। रिफाइनरी लगने से गांव वालों को मजदूरी तो मिलेगी।

रियल एस्टेट, होटल और ट्रांसपोट्र्स को तत्काल फायदा:

पचपदरा तिराहे पर बड़ी होटलों और रेस्टोरेंट के बाहर मंगलवार को लोगों की भीड़ लगी थी। इनमें से नब्बे फीसदी जमीन के कारोबार के सिलसिले में बातचीत कर रहे थे। कोई साइट बता रहा था तो कोई जमीनों के भाव। सोमवार को ही रिफाइनरी पचपदरा में तय हुई थी इसलिए जमीनों के भाव रातों-रात बढ़ गए। जब काम शुरू हो जाएगा, तो होटल-रेस्टोरेंट व ट्रांसपोर्टर्स का काम भी बढ़ जाएगा। पचपदरा बागुन्दी से लेकर जोधपुर तक जमीनों के भाव आसमान छूने लगे हें ,भाजपा की प्रदेशाध्यक्षा वसुंधरा राजे ने इसी इलाके में सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा की जमीने होने के आरोप लगाए थे


आशापूर्ण और नाग्नेशिया माता की आशीष


पचपदरा के विजय सिंह कहते हें की पचपदरा पर रिफायनरी की मेहर नागानेशिया माता और आशापूर्ण माता ने की हें .पचपदर फिर पचपदरा सिटी कहालाय्रेगा .पुराना वैभव लौटेगा .साम्भर में साम्भारा माता का भव्य मंदिर बना हें .


कुरजां की कलरव ख़त्म हो जायेगी


पचपदरा क्षेत्र में प्रति वर्ष हज़ारो की तादाद में प्रवासी पक्षी साइबेरियन क्रेन जिसे स्थानीय भाषा में कुरजां कहते हें आती हें .इस क्षेत्र को कुरजां के लिए सरंक्षित क्षेत्र घोषित करने की कार्यवाही चल रही थी .सँभारा ,नवोड़ा बेरा ,रेवाडा गाँवो के तालाबों पर कुरजां अपना प्रवासकाल व्यतीत करते हें .पचपदरा में वन्यजीवों की भरमार हें विशेषकर चिंकारा और कृष्णा मृग बहुतायत में हें .इसीलिए पचपदरा से आगे कल्यानपुर डोली को आखेट निषेध क्षेत्र घोषित कर रखा हें






विदेशी नमक के खिलाफ पचपदरा से छिड़ी थी जंग


-महात्मा गांधी के नमक आंदोलन से पहले पचपदरा से आयातित नमक के खिलाफ जंग छिड़ी थी। जब अंग्रेजों ने इस बात पर जोर दिया कि पचपदरा के नमक की मांग नहीं है। इसे बंद कर दिया जाना चाहिए। ऐसी स्थिति में पचपदरा से नमक के कुछ वैगनों को कराची बंदरगाह से लदान करवाने के बाद कलकत्ता भेजा गया। हालांकि यह बात अलग है कि अंग्रेजों की सुनियोजित स्पद्घार के कारण भारी नुकसान उठाना पड़ा था।
यह बात उस जमाने की है जब अंगे्रजों ने यह दावा किया था कि भारत बंगाल की जनता के पसंद का नमक पैदा नहीं कर सकता। इसकी आड़ में वे यहां विलायत से नमक लाने की मंशा रखते थे। क्योंकि बंगाल भारत में स्वच्छ नमक खाने वाला क्षेत्र माना जाता है। इसे अलावा आमतौर पर अंग्रेज लोग जहाजों के संतुलन के लिए उसमें पत्थर भरकर लाते थे। उनका मानना था कि उसे स्थान पर अगर नमक लाया जाए तो अतिरिक्त आय हो सकती है। उस समय सांभर नमक उत्पादन क्षेत्र में मशीनरी पर बि्रटिश सरकार ने भारी खर्चा किया। बावजूद इसे उत्पादन व्यय के मुकाबले कम प्राप्त हुआ। सांभर से भारी नुकसान उठाने के बाद उनका ध्यान पचपदरा के नमक उद्योग को बंद करने की तरफ गया। जब पचपदरा का नमक उद्योग संकट में पड़ने लगा तो सेठ गुलाबचंद ने नमक के कुछ वैगनों को कराची बंदरगाह से लदान करवाया। इसे अलावा कराची की नमक उत्पादन की फर्म नोशेखांजी कपनी से नमक खरीदकर नमक के एक जहाज का लदान कलकत्ता के लिए करवाया। जब यह नमक कलकत्ता के नमक बाजार में हड़ंप मच गया। उस जमाने में आयातित नमक की बि्रटिश नकंपियों का एक संगठन बना हुआ था। इसने दलालों के माफर्त पता करवाया कि पचपदरा का नमक किस भाव से बिकेगा? उस समय नमक के भाव 250 रुपए प्रति टन चल रहे थे। सेठ गुलाबचंद ने पचपदरा के नमक की विक्रय दर 175 रुपए प्रति टन बताई। लेकिन उन कंपनियों ने पचपदरा का नमक नहीं बिके इसके लिए दूसरे नमक की दर घटाकर 145 रुपए प्रति टन कर दी। इस दरिम्यान करीब दस माह तक भाव ऊपर चढ़ने के इंतजार के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला। ऐसे में मजबूरन भारी नुकसान में यह नमक बेचना पड़ा। इस तरह से पचपदरा नमक का यह आंदोलन सफल नहीं हो सका। परंतु पचपदरा उद्योग को चालू रखने का एक प्रयास था। इसी का नतीजा था कि टेरिक बोर्ड आन साल्ट इंडस्ट्री की स्थापना के बाद पचपदरा के खारवालों एवं मजदूरों ने हड़ताल के जरिए अंग्रेज सरकार का विरोध किया। सरकारी विरोध का नतीजा यह निकला कि सरकार ने यहां अधिक नमक की खाने खोदने की अनुमति दी।


अजब-गजब
झील नहीं,फिर भी होता है नमक उत्पादन
बाड़मेर। नमक उत्पादन स्थलों पर तकरीबन हर जगह एक झील होती है। लेकिन पचपदरा में ऐसी कोई झील नहीं है। इसे बावजूद यहां नमक का उत्पादन होता है।
पचपदरा नमक उत्पादन स्थल की एक विशेषता यह भी है कि अन्य सब स्थानों पर पानी को क्यारियों में सुखाया जाता है। परंतु पचपदरा में नमक के लिए खाने खोदी जाती है। इस समय तकरीबन 700 के करीब नमक की खाने चालू हैं। हालांकि पड़तल खानों की तादाद हजारों में है। पड़तल खान उसको कहा जाता है जिसको नमक उत्पादन बंद हो जाने के बाद दुबारा नहीं खुदवाया जाता। पचपदरा में प्रारंभिक अवस्था में पानी का घनत्व 13 से 14 डिग्री के तकरीबन रहता है। वहीं समुद्री पानी का यह घनत्व प्रारंभिक अवस्था में महज 3 डिग्री होता है। पानी का घनत्व मापने के लिए हाइड्रोमीटर का इस्तेमाल किया जाता है।