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सोमवार, 18 मार्च 2013

युगपुरुष प्रो. करणसिंह डिण्डोर युगों तक महसूस की जाती रहेगी महक उनके व्यक्तित्व की



संदर्भ ः पुण्य तिथि 19 मार्च 2013

छठी पुण्यतिथि पर विशेष

युगपुरुष प्रो. करणसिंह डिण्डोर

युगों तक महसूस की जाती रहेगी महक उनके व्यक्तित्व की


- कल्पना डिण्डोर



दुनिया में कई हस्तियां ऎसी जन्म लेती हैं जो अपने अनूठे और प्रेरक व्यक्तित्व की गंध से जमाने भर को महका जाती हैं और उनकी गंध अर्से तक महसूस की जाती है। वागड़ अंचल से लेकर प्रदेश भर में उच्च शिक्षा जगत, जनजाति कल्याण और लोक सेवा के तमाम आयामों में श्री करणसिंह डिण्डोर ने जिस विशिष्ट कर्मयोग का परिचय दिया है वह अपने आपमें विलक्षण और प्रेरणा जगाने वाला है।

अमर हैं उनका लोक स्पर्शी व्यक्तित्व

करणसिंह डिण्डोर....एक मशहूर शख्सियत जिसने शिक्षा, समाज सेवा और राजनीति के क्षेत्र में अपने अनूठे कर्मयोग और सर्वस्पर्शी व्यक्तित्व की गंध बिखेरी और अमर हो गए। डिण्डोर साहब के नाम से प्रसिद्ध यह हस्ती सादा जीवन और उच्च विचार की प्रतिमूत्रि्त थी। वागड़ अंचल की पावन धरा में जन्म लेने वाली विभूतियों में प्रो. करणसिंह डिण्डोर का नाम अग्रणी पंक्ति में लिया जाता है जिन्होंने शून्य से शिखर तक की यात्रा पूर्ण कर यह अच्छी तरह जता दिया कि बुद्धि और विवेक की बदौलत संघर्षों के पहाड़ों से लोहा लेते हुए व्यक्ति यदि चाह ले तो सफलता के शिखरों को छू लेना कोई कठिन कार्य नहीं।

आज यद्यपि उनकी स्मृति शेष है किन्तु शिक्षा जगत को दी गई उनकी सेवाएं आज भी हर किसी को उनके प्रति सम्मान और श्रृद्धा से नतमस्तक होने को प्रेरित करती हैं। स्वर्गीय डिण्डोर ने जनजाति क्षेत्र में शैक्षणिक जागृति लाने तथा राज्य स्तर पर एक कुशल शिक्षा प्रशासक के रूप में अमिट छाप छोडी है।

उन्होंने संघर्षमयी जीवन से सफलता के शिखर तक पहुंच कर यह भी साबित किया है कि गुदड़ी का लाल भले ही अभावों में जन्मा और पला-बढ़ा हो किन्तु बाधाएं उसकी प्रतिभा को रोक नहीं सकती। डिंडोर ने उच्च शिक्षा क्षेत्र में सर्वोच्च पद पहुंच कर यह भी साबित किया कि बांसवाड़ा की वसुधा को रत्नगर्भा की उपाधि क्यों दी जाती है।

स्व. डिण्डोर का जन्म बांसवाड़ा तहसील के लोधा गांव में 24 नवम्बर 1939 को हुआ। आदर्श कर्मयोगी श्री डिण्डोर का महाप्रयाण 19 मार्च 2007 को हुआ। वागड़ अंचल आज उनकी छठी पुण्यतिथि मना रहा है।

शैक्षिक विकास के भगीरथ

प्रदेश में उच्च शिक्षा के निदेशक पद पर रहते हुए राजस्थान के राजकीय एवं अनुदान प्राप्त महाविद्यालयों के प्राचार्यों एवं संकाय सदस्यों का शैक्षणिक एवं प्रशासनिक दृष्टि से सक्रिय एवं श्रेष्ठ मार्गदर्शन देने में वे कभी पीछे नहीं रहे। प्रदेश के महाविद्यालयों में शैक्षिक उन्नयन की दृष्टि से शैक्षणिक कलेण्डर में आवश्यक सुधार, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर, महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय अजमेर, वद्र्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय कोटा की सिण्डीकेट्स में सदस्य के रूप में आपकी सहभागिता रही।

शैक्षिक विकास का सफर

सृजनात्मक एवं गुणात्मक दृष्टि से ख्याति प्राप्त सार्वजनिक शिक्षण संस्था विद्याभवन उच्च माध्यमिक विद्यालय उदयपुर से सन् 1959 में नियमित छात्रावासी विद्यार्थी के रूप में आपने हायर सैकण्डरी उत्तीर्ण की और राजस्थान कॉलेज, राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से नियमित विद्यार्थी के रूप में सन् 1962 में बी.ए. की डिग्री प्राप्त की। राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से सन् 1964 में एम.ए. राजनीति विज्ञान की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद एम.ए. के विद्यार्थी के रूप में विविध संगोष्ठियों, पत्रवाचनों, परिचर्चाओं, वाद विवाद प्रतियोगिताओं आदि गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी अदा की श्री डिण्डोर को जनजाति बहुल बांसवाड़ा जिले से जनजाति के सर्वप्रथम एम.ए. होने का गौरव प्राप्त है।

अध्यापन अनुभव

राजस्थान के विभिन्न राजकीय महाविद्यालयों में कला संकाय के अंतर्गत समाज विज्ञान/ राजनीति विज्ञान विषयाध्यापन का सन् 1964 से दीर्घ अनुभव प्राप्त किया और 31अगस्त 1976 से राजनीति विज्ञान के वरिष्ठ प्राध्यापक के रूप में प्रोन्नत हुए। राजकीय महाविद्यालय बांसवाड़ा में राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्षरूप में कार्य करने का आपको विशिष्ट अनुभव रहा। राजस्थान शिक्षा सेवा केडर में प्रथम जनजाति प्राध्यापक के रूप में समग्रतः स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षाओं के अध्यापन का श्रेष्ठ अनुभव श्री डिण्डोर के खाते में ही रहा है।

प्रशासनिक अनुभव

राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में दिसम्बर 1993 से जून 1994 तक प्राचार्य पद का श्रेष्ठ कार्यानुभव होने के साथ ही विश्वविद्यालयों, बैंक एवं अन्य सहायक प्रतियोगी परीक्षाओं में केन्द्राधीक्षक के रूप में परीक्षाएं आयोजित कराने तथा कई वर्षों तक परीक्षाओं के दौरान सहायक केन्द्र अधीक्षक, अतिरिक्त केन्द्र अधीक्षक का अनुभव उन्हें प्राप्त हुआ। राजकीय महाविद्यालय बांसवाड़ा एवं डूंगरपुर में 4 वर्षों तक छात्र कल्याण अधिष्ठाता का अनुभव उन्होंने हासिल किया। सन् 1964 से 1971 और 1982 से 1986 तक लगभग 13 वर्षों तक वे हॉस्टल वार्डन भी रहे। राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय बांसवाड़ा में उपाचार्य पद का दायित्व निभाने के साथ-साथ शैक्षणिक एवं वित्तीय कार्यवाही के सुसंचालक के रूप में आपको आज भी आदर के साथ याद किया जाता है।

आपने राजकीय महाविद्यालय बांसवाड़ा में संचालित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय खुला विश्वविद्यालय शाखा में समन्वयक के रूप में कार्य करते हुए वागड़ अंचल के दलित समाज की महती आवश्यकता की पूर्ति कर अपना दायित्व निभाया। सन् 1990 में समाज कल्याण विभाग, बांसवाड़ा द्वारा अनुसुचित जाति/जनजाति के प्रतियोगियों के संचालित परीक्षा पूर्व कक्षाओं के पाठ्यक्रम निदेशक के रूप में अपनी सेवाएं दीं। 30 जून 1994 से जनवरी 1996 तक संयुक्त निदेशक कॉलेज शिक्षा के पद पर तथा एक फरवरी 96 से नवम्बर 97 तक निदेशक कॉलेज शिक्षा राजस्थान के रूप में अपनी सेवाएं आपने प्रदान कर बांसवाड़ा और आदिवासी अंचल को गौरवान्वित किया।

रचनात्मक कर्मयोग

राजकीय महाविद्यालय डूंगरपुर एवं बांसवाड़ा में क्रमशः 1965 से 1971 व 1972 से 1977 तक छात्र संघ सलाहकार का अनुभव आपको रहा। राजकीय महाविद्यालय, डूंगरपुर में सन् 1968 से 1970 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी नेतृत्व प्रोजेक्ट में सहयोगी के रूप में कार्य किया तथा छात्र नेतृत्व शिविर आयोजित किया जिसमें कई प्राचार्यों, विविध छात्र संघों के अध्यक्षों, सचिवों, एनएसएस, रोवर्स एवं पर्यावरण फोरम के स्वयं सेवकों/सदस्यों एवं अधिकारियों ने भाग लिया। राजकीय महाविद्यालय, बांसवाड़ा व डूंगरपुर में खेल अधीक्षक का दीर्घ कार्यानुभव रहा। छात्रों हेतु छात्रवृत्ति समिति के अध्यक्ष के रूप में अच्छे मार्गदर्शन के रूप में काम करने के साथ ही राजकीय महाविद्यालय डूंगरपुर में 1964 से 1971 तक तथा राजकीय महाविद्यालय बांसवाड़ा में 1971 से 1990 तक उन्होंने मागर्दशन किया। राजकीय महाविद्यालय बांसवाड़ा से अनुशासन समिति के संयोजक के रूप में सेवाएं दीं। राजस्थान विश्विद्यालय जयपुर की समाजविज्ञान संकाय की सन् 1972 से सदस्यता तथा स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर की कक्षाओं के नये पाठ्यक्रम निर्माण में सहयोग दिया। दिसम्बर 1994एवं फरवरी 1997 में आपने प्रिंसिपल कांफ्रेंस का बखूबी संयोजन किया। दिसम्बर 1994 में मीरा गल्र्स कॉलेज उदयपुर में तथा सितम्बर 1996 में पंचायत राज संस्थान जयपुर में वीर बालिका कॉलेज की सहभागिता में महिला कार्यशाला का संयोजन।

बहुआयामी व्यक्तित्व

बांसवाड़ा की सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक आदि गतिविधियों में आपकी सहभागिता किसी न किसी रूप में रही है। कई संस्थाओं के वे सदस्य रहे । यथा -सदस्य लायन्स क्लब बांसवाड़ा। अनुसूचित जाति/जनजाति नियोजन संघ, जिला बांसवाड़ा की अध्यक्षता। दयानन्द आश्रम की संस्था, वेद मंदिर के सदस्य के रूप में सहयोग। सदस्य विचार परिषद बांसवाड़ा। अध्यक्ष राती तलाई कॉलोनी विकास समिति बांसवाड़ा। सदस्य कानूनी सहायता समिति बांसवाड़ा। लोक अदालत जागृति मंच बांसवाड़ा से सम्बन्ध आदि।

सक्रिय सहभागिता

विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं में गौरवशाली पदों पर रहते हुए स्व. डिण्डोर ने जो काम किए वे समाज सेवा के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के लिए प्रेरणा संचरित करने में समर्थ हैं। उन्होंने वागड़ विकास संस्थान के अध्यक्ष, राजस्थान रेजीडेन्शीयल एजुकेशनल इन्स्टीट्यूशन सोसायटी जयपुर के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के सदस्य के रूप में कार्य किया। इसी प्रकार राजस्थान सरकार के समाज कल्याण विभाग की बाल कल्याण समिति के सदस्य रहे। पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की मौजूदगी में स्व. श्री राजसिंह जी डूंगरपुर ने उन्हें सम्मानित किया।

सन् 2003 के राजस्थान विधान सभा चुनाव के दौरान पूर्ण लगन के साथ आपने काम किया। राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी के बौद्धिक प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष के रूप में श्री डिण्डोर ने सेवाएं दीं। भले ही वे बाद में किसी भी विचारधारा से बंध गए हों लेकिन उनका समग्र व्यक्तित्व विचारधारा पर प्रभावी रहा। इसके साथ ही उदारमना श्री डिण्डोर वह अज़ीम शखि़्सयत थे जो हर क्षेत्र में और हर वर्ग में लोकप्रिय थे। दलों की सीमाओं से ऊपर उठकर जनता की सेवा करने वाले बिरले लोगों में स्व. डिण्डोर का नाम गर्व से लिया जाता है।

आज वे हमारे बीच नहीं है मगर जीवट कर्मयोग के साथ निभाया गया उनका जीवन-सफर नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ सदियों तक प्रेरणा के स्वर गुंजाता रहेगा। उनकी पाँचवीं पुण्यतिथि पर शत शत नमन एवं भावभीनी श्रद्धांजलि....। (लेखिका राजस्थान के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में अधिकारी हैं।)