आर ऐ एस की परीक्षा के राजस्थानी भाषा के प्रश्न पत्र को बहार करने के विरोध में
आर पी एस सी का जलाया पुतला .मुख्यमंत्री को राजस्थानियों के साथ किये अन्याय के खिलाफ दिया ज्ञापन
बाड़मेर आर ऐ एस मुख्या परीक्षा के लिए राजस्थान लोक सेवा आयोग के नए पैटर्न में राजस्थानी भाषा ,साहित्य और संस्कृति को दरकिनार करने के विरोध में अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति ,बाड़मेर के बेनर टेल राजस्थानी मोटियार परिषद् ,राजस्थानी छात्र परिषद् के तत्वाधान में गुरूवार को जिला कलेक्ट्रेट कर्यल्के के समक्ष आर पी एस सी का पुतला जलाया गया तह मुख्यमंत्री तथा राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के नाम जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा गया .जोधपुर संभाग उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी ने बताया राजस्थान लोक सेवा आयोग के नए पैटर्न में राजस्थानी भाषा ,साहित्य और संस्कृति को दरकिनार करने से बाहरी प्रान्तों के लोग राजस्थान में आसानी से सरकारी ओहदा पाएंगे .और राजस्थानी लोग अपने ही घर में बेघर हो जायेंगे.यह राजस्थान के लिए आत्मघाती हें .राजस्थान के शिक्षित बेरोजगारों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हें .यह अन्याय बर्दास्त नहीं किया जाएगा .सरकार के इस आत्मघाती कदम के विरोध में आज आर पी एस सी का पुतला जला राजस्थानी भाषा के प्रश्न पत्र को पुनः शामिल करने की मांग की ,कार्यक्रम में बाड़मेर जैसलमेर प्रभारी चन्दन सिंह भाटी जिला पाटवी रिड़मल सिंह दांता ,महासचिव विजय कुमार ,अनिल सुखानी ,मोटियार परिषद् के पाटवी और छात्र संघ अध्यक्ष रघुवीर सिंह तामलोर ,हिन्दू सिंह तामलोर ,राजस्थानी छात्र परिषद् के अध्यक्ष अशोक सारला ,नगर अध्यक्ष रमेश सिंह इन्दा ,अवाड़ सिंह सोढ़ा ,विजय सिंह खारा शिवराज सिंह धान्धू ,तरुण मुखी ,जीतेन्द्र फुलवारिया ,विजय सिंह तारातरा ,तेजाराम हुड्डा ,दिनेशपाल सिंह ,दिग्विजय सिंह चुली ,रतन सिंह आगोर ,किशोर सिंह बीजू ,दिलीप चारण संतोष माहेश्वरी ,तनवीर सिंह ,लक्ष्मण सिंह लुणु ,सूर्यदेव सिंह बालासर ,अवतार सिंह ,मुराद जायडू ,ओम प्रकाश जांगिड ,लोकेन्द्र सिंह देवड़ा,सहित कई कार्यकर्ता और पदाधिकारी उपस्थित थे .भाटी ने बताया की मुख्यमंत्री के नाम जिला कलेक्टर को सौंपे ज्ञापन में लिखा की पधारौ म्हारे देस का जुमला पर्यटन के नजरिये से तो आकर्षक है, लेकिन नौकरियों में यह जुमला हमारी अपनी राह में रोड़ा है। पहले आरएएस के पाठ्यक्रम में राजस्थानी का सौ नंबर का पेपर हुआ करता था, वह क्यों हट गया? कैसे हटा? इस बहस में पड़े बगैर इस तर्क में ज्यादा दम है कि सरकार चुनने वाले 70 फीसदी लोग राजस्थानी ही बोलते हैं। वे चाहे पढ़-लिखकर विदेश चले गए हों, पर मिले हैं तो पूछते यही है -कीकर हो सा। आज राजस्थानी को दरकिनार करने पर कोई सरकार से यह पूछे कि हम परीक्षा देने कहां जाएं तो वह खामोश क्यों है ? जब पड़ोसी राज्य अपने प्रदेश के जयकारे लगा रहे हों, ऐसे में हम क्यों जय राजस्थान के उद्घोष में क्षेत्रीयता ढूंढें़। सरकार को लोकभाषा की परिभाषा तो समझनी ही चाहिए। राजस्थानी भाषा आज आठवीं अनुसूची में नहीं है, प्रदेशवासियों की जिद है तो वह कल जरूर होगी, लेकिन प्रदेश सरकार को राजस्थानी का महत्व समझना चाहिए। उन्होंने लिखा हें की सरकार को राजस्थानी भाषा विरोधी सोच को बदल राजस्थानियों की अस्मिता को बचाए रखने का सहयोग करना चाहिए ,मोटियार परिषद् की जिला पाटवी रघुवीर सिंह ने कहा की सरकार अपने निर्णय को तुरंत प्रभाव से वापस लेकर राजस्थानी भाषा के प्रश्न पत्र को आर पी एस सी में शामिल कर लेना चाहिए अन्यथा सरकार को इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ेंगे ,जिला पाटवी रिड़मल सिंह दांता ने कहा की
राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा के पैटर्न में बदलाव प्रदेश के प्रतिभावान छात्रों के लिए एक सदमा है। सरकार ने प्रारूप में 20 नंबर का राजस्थानी का पेपर प्रस्तावित किया था, उसे हटा लिया है। हमने अब इन परीक्षाओं के लिए पूरे देश के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। हम क्षेत्रीयता में यकीन नहीं करते लेकिन प्रदेश की पैरवी में यह कहने का अधिकार तो रखते ही हैं कि अगर बाहरी उम्मीदवारों को राजस्थान की भाषा-संस्कृति का ज्ञान है तो वे इम्तिहान के जरिए यह साबित करें तो किसको आपत्ति हो सकती है, लेकिन इस बात की जांच कौन कर रहा है कि उसे भाषा आती है या नहीं? ऐसे में हमारे होनहारों के राजस्थानी होने का मतलब क्या और प्रिवलेज क्या? यह स्थिति दरअसल तब है, जब विधानसभा में यह संकल्प पास किया जा चुका है कि राजस्थानी को भाषा का दर्जा मिलना चाहिए।
रमेश सिंह इन्दा ने बताया की राजस्थान से यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि पड़ोसी राज्यों ने हमारे प्रतिभावान छात्रों के दरवाजे बंद कर रखे हैं। हम राजस्थान के अलावा किसी दूसरे प्रदेश में परीक्षा दे ही नहीं सकते और हमारे प्रदेश में आयोजित परीक्षाओं में आधे परीक्षार्थी बाहरी होंगे तो किसका हक मारा जाएगा? बाहरी आएं, लेकिन उन्हें यहां की भाषा व संस्कृति का ज्ञान तो होना ही चाहिए। अगर वे लोकभाषा को समझते हैं तो उनका स्वागत है। यक्ष प्रश्न यह है कि जो प्रतियोगी हमारी भाषा, संस्कृति, पहनावा, त्योहार-उत्सव को नहीं समझता, जिसका हमारी समस्याओं और जरूरतों से सरोकार नहीं, वह कैसे यहां लोकसेवक चयनित हो सकता है। प्रदेश के 70 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में राजस्थानी बोली जाती है। जो अधिकारी हमारी लोकभाषा को नहीं समझ सकता, वह कैसे शासकीय अधिकारी का दायित्व निभा सकेगा। जो केवल नौकरी करने के लिए आ रहे हैं और जो प्रदेश को समझते हैं, उस पर गर्व करते हैं- दोनों में फर्क कौन पहचानेगा?
राजस्थानी छात्र परिषद् के जिला अध्यक्ष अशोक सारला ने बताया की प्रशासनिक सेवा में कम्युनिकेशन ही प्रबंधन है। जो हमारी भाषा नहीं समझता और इसी भाषा में किसी को समझा नहीं सकता, वह कैसे यहां प्रशासन चला पाएगा। संघ लोक सेवा आयोग से चयनित होने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के लिए केरल व तमिलनाडु जैसे राज्यों ने नियम बना रखे हैं कि जिन आईएएस व आईपीएस अधिकारियों को कैडर में उनका राज्य मिलता है, उन अधिकारियों को तीन साल में इम्तिहान देकर बताना होगा कि उन्हें स्थानीय भाषा का ज्ञान हो गया है वरना न उनकी नौकरी कन्फर्म होगी और न ही वेतन वृद्धि ही मिलेगी। इसके विपरीत हमारे यहां सब करने की छूट है। भाषा आए न आए, शासन में बने रहेंगे।
अतः दौ सौ अंक के भाषा ज्ञान के प्रश्न पत्र में सौ अंक राजस्थानी भाषा ज्ञान के लिए तथा पचास पचास अंक हिंदी और अंग्रेजी ज्ञान के लिए निर्धारित किये जाये .तभी राजस्थान को सही मायने में न्याय मिल सकेगा .
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