मुरादें पूरी करती हैं माता आशापूर्णी जी
उत्तर भारत का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पठानकोट स्थित मंदिर माता आशापूर्णी जी लगभग 200 वर्ष पूर्व पंडित जल्ला भक्त ने बनवाया था। एक रात माता जी उन्हें स्वप्न में आई और कहा कि मेरी मूर्ति यहां से एक किलोमीटर दूर दबी पड़ी है। उसे लेकर आओ और उसकी स्थापना इस स्थान पर करो। सुबह होते ही वह अपने भाई बंधुओं के साथ उस स्थान पर गए। खुदवाई करने पर माता जी की मूर्ति चक्की नदी से निकालकर बैंडबाजों के साथ बड़ी धूमधाम से बाजार के बीचों बीच उगे पीपल के वृक्ष के नीचे विधी विधान से उसकी स्थापना कर दी गई। चार दिवारी का र्निमाण करके उसे मंदिर का रूप दे दिया गया। एक वारहदारी पिछले हिस्से में तथा एक कुआ भी खुदवाया गया। उस समय पठानकोट एक मामूली सा कस्बा था। मंदिर की देखभाल ठीक समय पर न हो सकने के कारण यह खंडर बन गया।
अचानक एक चमत्कार हुआ। अमृतसर से एक सेल्समैन किसी काम से पठानकोट आया उसने खंडर रूपी मंदिर को देखा और मन ही मन बहुत दुखी हुआ कि यह कैसा शहर है। यहां के लोगों ने माता के मंदिर का क्या हाल बना रखा है। उसने मंदिर के भीतर प्रवेश किया उसे महसूस हुआ कि कोई अदृश्य शक्ति उसे कह रही है कि हे प्रिय भक्त यह मंदिर अब तेरे हवाले है। इसका पुर्न निर्माण करवा। सेल्समैन को यह सब अपने मन का वहम लगा और वह वापिस अपने शहर लौट गया।
कुछ माह उपरांत वह फिर से पठानकोट आया और उसे अदृश्य शक्ति का वही संदेश फिर से सुनाई दिया। उसने अपने मन में प्रार्थना करी हे मां यदि आपकी एसी ही इच्छा है तो सदा के लिए मुझे इस शहर में बसा दो। जब वह वापिस अपने शहर गया तो उसे जाते ही नौकरी से निकाल दिया गया। मां का आर्शिवाद जान वह पठानकोट आ गया और यहां आकर चाय की पत्ती का थोक का काम आरंभ कर दिया। उसे व्यापार में बहुत नुकसान हुआ मगर उसने हिम्मत नहीं हारी और दिन रात मेहनत करता रहा। माता जी की कृपा से व्यापार में सफलता मिलने लगी।
जब उसके पांव जम गए तो उन्होंने मंदिर के संस्थापक से इस संबंध में बातचीत की तो उन्होंने खुशी खुशी स्वीकृति दे दी। मां की कपा से जल्द ही निर्माण कार्य आरंभ हो गया। इसी बीच बहुत से भक्त तन, मन और धन से योगदान देने लगे। जल्द ही खूबसूरत मंदिर का र्निमाण हो गया। प्रत्येक मंगलवार को यहां प्रशाद बनने तथा बंटने की प्रथा भी आरंभ हो गई, जागरण पार्टीयों द्वारा माता जी का गुनगान आरंभ हो गया। भक्तों द्वारा चढ़ाए चढ़ावें से मंदिर की आमदनी में बढ़ौतरी होने लगी। जिससे हर प्रकार की उसारी का काम होने लगा।
इसी दौरान मंदिर कमेटी का भी गठन किया गया जो शहर वासियों से चंदा इकट्ठा करती और मंदिर के अधूरे काम पूर्ण करवाए जाते साथ ही वार्षिक जागरण का भी आयोजन होने लगा। धीरे धीरे मंदिर प्रगती की तरफ अग्रसर होने लगा। कमेटी द्वारा मंदिर में चांदी के दरवाजे, सिंहासन, शीशे की मीनाकारी, परिसर में संगमरमर, गणेश जी, हनुमान जी तथा माता जी की प्रतिमाएं इत्यादि स्थापित करवाए गए।
प्राचीन एवंम ऐताहिसक माता आशापूर्णी जी के मंदिर में जो भक्त सच्चे मन से मन्नत मांगता है उसकी मुरादें माता जी अवश्य पूरी करती है। दूर दराज से लोग मां की पूजा अर्चना के लिए यहां पहुंचते हैं।
उत्तर भारत का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पठानकोट स्थित मंदिर माता आशापूर्णी जी लगभग 200 वर्ष पूर्व पंडित जल्ला भक्त ने बनवाया था। एक रात माता जी उन्हें स्वप्न में आई और कहा कि मेरी मूर्ति यहां से एक किलोमीटर दूर दबी पड़ी है। उसे लेकर आओ और उसकी स्थापना इस स्थान पर करो। सुबह होते ही वह अपने भाई बंधुओं के साथ उस स्थान पर गए। खुदवाई करने पर माता जी की मूर्ति चक्की नदी से निकालकर बैंडबाजों के साथ बड़ी धूमधाम से बाजार के बीचों बीच उगे पीपल के वृक्ष के नीचे विधी विधान से उसकी स्थापना कर दी गई। चार दिवारी का र्निमाण करके उसे मंदिर का रूप दे दिया गया। एक वारहदारी पिछले हिस्से में तथा एक कुआ भी खुदवाया गया। उस समय पठानकोट एक मामूली सा कस्बा था। मंदिर की देखभाल ठीक समय पर न हो सकने के कारण यह खंडर बन गया।
अचानक एक चमत्कार हुआ। अमृतसर से एक सेल्समैन किसी काम से पठानकोट आया उसने खंडर रूपी मंदिर को देखा और मन ही मन बहुत दुखी हुआ कि यह कैसा शहर है। यहां के लोगों ने माता के मंदिर का क्या हाल बना रखा है। उसने मंदिर के भीतर प्रवेश किया उसे महसूस हुआ कि कोई अदृश्य शक्ति उसे कह रही है कि हे प्रिय भक्त यह मंदिर अब तेरे हवाले है। इसका पुर्न निर्माण करवा। सेल्समैन को यह सब अपने मन का वहम लगा और वह वापिस अपने शहर लौट गया।
कुछ माह उपरांत वह फिर से पठानकोट आया और उसे अदृश्य शक्ति का वही संदेश फिर से सुनाई दिया। उसने अपने मन में प्रार्थना करी हे मां यदि आपकी एसी ही इच्छा है तो सदा के लिए मुझे इस शहर में बसा दो। जब वह वापिस अपने शहर गया तो उसे जाते ही नौकरी से निकाल दिया गया। मां का आर्शिवाद जान वह पठानकोट आ गया और यहां आकर चाय की पत्ती का थोक का काम आरंभ कर दिया। उसे व्यापार में बहुत नुकसान हुआ मगर उसने हिम्मत नहीं हारी और दिन रात मेहनत करता रहा। माता जी की कृपा से व्यापार में सफलता मिलने लगी।
जब उसके पांव जम गए तो उन्होंने मंदिर के संस्थापक से इस संबंध में बातचीत की तो उन्होंने खुशी खुशी स्वीकृति दे दी। मां की कपा से जल्द ही निर्माण कार्य आरंभ हो गया। इसी बीच बहुत से भक्त तन, मन और धन से योगदान देने लगे। जल्द ही खूबसूरत मंदिर का र्निमाण हो गया। प्रत्येक मंगलवार को यहां प्रशाद बनने तथा बंटने की प्रथा भी आरंभ हो गई, जागरण पार्टीयों द्वारा माता जी का गुनगान आरंभ हो गया। भक्तों द्वारा चढ़ाए चढ़ावें से मंदिर की आमदनी में बढ़ौतरी होने लगी। जिससे हर प्रकार की उसारी का काम होने लगा।
इसी दौरान मंदिर कमेटी का भी गठन किया गया जो शहर वासियों से चंदा इकट्ठा करती और मंदिर के अधूरे काम पूर्ण करवाए जाते साथ ही वार्षिक जागरण का भी आयोजन होने लगा। धीरे धीरे मंदिर प्रगती की तरफ अग्रसर होने लगा। कमेटी द्वारा मंदिर में चांदी के दरवाजे, सिंहासन, शीशे की मीनाकारी, परिसर में संगमरमर, गणेश जी, हनुमान जी तथा माता जी की प्रतिमाएं इत्यादि स्थापित करवाए गए।
प्राचीन एवंम ऐताहिसक माता आशापूर्णी जी के मंदिर में जो भक्त सच्चे मन से मन्नत मांगता है उसकी मुरादें माता जी अवश्य पूरी करती है। दूर दराज से लोग मां की पूजा अर्चना के लिए यहां पहुंचते हैं।