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शुक्रवार, 22 नवंबर 2019

जैसलमेर सभापति चुनाव सचिन गहलोत की मूंछ की लड़ाई बनी


जैसलमेर सभापति चुनाव  सचिन गहलोत की मूंछ की लड़ाई बनी 

जैसलमेर जैसलमेर नगर परिषद चुनावो में बहुमत से दूर रही कांग्रेस और भाजपा अपने अपने सभापति बनाने के दांव  हैं कोंग्रस के चार तो भाजपा का एक प्रत्यासी मैदान में हे ,कांग्रेस की लड़ाई विधायक रूपाराम धंदे और फ़क़ीर परिवार से निकल सचिन पायलट और अशोक गहलोत की मूंछ की लड़ाई बन गयी हैं ,सचिन पायलट गट के विधायक रूपाराम धंदे अपने आदमी को सचिन से टिकट दिला पहली बाज़ी जीत ली. तो फ़क़ीर गुट  ने पूर्व विधायक दिवंगत गोवर्धन कल्ला के परिवार के हरिवल्लभ कल्ला पर दांव खेलते हुए उन्हें सभापति का दावेदार बनाते हुए फार्म दाखिल करवा दिया , इधर सूत्रानुसार विधायक खेमे में दस तो फ़क़ीर गुट के पास तीन निर्दलीय सहित 16 पार्षद होने का दावा किया जा रहा हैं ,इधर भाजपा द्वारा पहली बार राजपूत उम्मीदवार उतारने के बाद भाजपा में धड़ेबंदी हो गई ,भाजपा में तोड़फोड़ की सम्भावना इंकार नहीं किया जा सकता ,कांग्रेस ने सामान्य चेहरा कमलेश छंगाणी को उतरा जिस पर  विवाद उभर आया ,कांग्रेस के अधिकांश लोग हरिवल्ल्भ कल्ला को बनाने के पक्ष में हैं ,सभापति की इस जंग को सचिन गहलोत की लड़ाई के रूप में देखि जा रही हैं ,सूत्रानुसार अशोक गहलोत की इच्छा हे हरिवलभ कल्ला सभापति बने ,उनके इसारे पर ही कल्ला को मैदान में उतारा गया हैं   ,जैसलमेर की राजनीती में चाणक्य माने जाने वाले धुरंधर फ़क़ीर गुट खुलकर कल्ला का साथ दे रहे हैं ,इस गुट मे पूर्व सभापति अशोक तंवर ,प्रधान अमरदीन फ़क़ीर ने कमान संभल रखी हैं ,तो कांग्रेस प्रत्यासी के पक्ष में विधायक रूपाराम धंदे अपनी ताकत लगा रहे हैं ,भाजपा द्वारा शहर की दो प्रमुख जातियों ब्राह्मण और हज़ूरी के उम्मीदवारों को किनारे कर राजपूत उम्मीदवार विक्रम सिंह को उतारा हे जिसे अधिकांश भाजपाई पचा नहीं पा रहे ,विधायक खेमे के दो पार्षद  फ़क़ीर के साथ हे फ़क़ीर गट ने तीन निर्दलीय और भाजपा के कुछ पार्षदों का समर्थन हासिल करने का दावा किया हैं ,चुनाव में तीन दिन बाकि हैं,एक बार फिर वर्चस्व की इस लड़ाई में कौन आगे रहेगा यह समय के गर्भ में हैं,कांग्रेस के ही दो पार्षद प्रवीण सुदा और खीम सिंह भी सभापति पद के लिए ताल ठोक  चुके हैं , सम्भावना हे ये दोनों फ़क़ीर गुट  के समर्थन में फार्म वापिस लेंगे,सभापति चुनाव को विधायक और फ़क़ीर गुट अपनी अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना बैठे हैं , भाजपा कांग्रेस की गुटबाज़ी का फायदा उठा  कांग्रेस से जीते राजपूत उम्मीदवारों को समाज के नाम पर तोड़ने का दांव खेल रही हैं,

मंगलवार, 12 नवंबर 2019

नगर परिषद चुनाव बाडमेर* *सोसल इंजीनियरिंग के जरिये विधायक की कांग्रेस बोर्ड बनाने की कवायद*

नगर परिषद चुनाव बाडमेर*

*सोसल इंजीनियरिंग के जरिये विधायक की कांग्रेस बोर्ड बनाने की कवायद*

*भाजपा दे रही कड़ी टक्कर,अयोध्या फैसले से बढ़त की उम्मीद*

*BNT खास*

*सरहदी जिला मुख्यालय बाडमेर में नगर परिषद चुनावो में कांग्रेस भाजपा आमने सामने है तो कहीं कही निर्दलीय घुसपैठ साफ झलक रही है।इस चुनावो में दोनो दलों ने युवाओ को प्राथमिकता दी है ।।लम्बे समय बाद राजनीति की बिसात पर नए युवा चेहरे सामने आये है।।कांग्रेस का टिकट वितरण पूर्णत विधायक मेवाराम जैन पर आधारित है ।जैन में बेहतरीन सोसल इंजीनियरिंग कर उम्मीदवार उतारे।।मगर कुछ स्थानों पर अपनो से निजात नहीं पा सके।कांग्रेस की यही कमज़ोर कड़ी है।।विधायक खुद प्रत्येक उम्मीदवार पर अपनी नजर रखे है।।पूरी ताकत झोंकी है।।एक प्रत्यासी कांग्रेस का निर्विरोध आ चुका है।।कांग्रेस की रणनीति विधायक खुद बनाते है।।उनकी टीम इसको अंजाम देती है।मगर कुछ जगह उम्मीदवारों का चयन न्याय संगत नही लगता।।कुल मिलाकर कांग्रेस अभी ठीक ठाक स्थति में है।।इधर भाजपा के टिकट वितरण में लंबी खींचतान गुटबाज़ी चली।।डॉ प्रियंका चौधरी और अध्यक्ष दिलीप पालीवाल के बीच खींचतान जगजाहिर है।इसी का नतीजा है कि उमीदवारों के चयन में एक रूपता नहीं।।कुछ वार्डो में भाजपा के उम्मीदवार डमी नजर आ रहे है।।मसलन 15 वार्ड से सशक्त दावेदार छगन सिंह ने टिकट मांगी थी।।यह युवा हमेशा सर्व समाज के हित मे कार्य करते रहे है।जैन बाहुल्य इस वार्ड में छगन सिंह प्रभावी थे सामने सभापति के प्रबल दावेदार दमाराम माली थे।।दमाराम के प्रति कोई ज्यादा अच्छी प्रतिक्रिया नहीं आ रही।भाजपा के पास मौका था दमदार उमीदवार को हराने का भाजपा यहां गच्चा खा गई।।निष्प्रभावी प्रत्यासी उतार कांग्रेस को मौका दे दिया।।अलबत्ता कई वार्डो में गुटबाजी का असर दिख रहा है।।भाजपा आने वाले दिनों में कुछ वार्डों में अपनी स्थति सुधार ले तो कोई आश्चर्य नहीं।।अयोधया मन्दिर फैसला कोई चमत्कार कर जाए।।इसी बीच बड़ी संख्या में निर्दलीय दोनो दलों के तोते उड़ा चुके है।यह तय है इस बार अच्छी संख्या में आने की संभावना है।।कांग्रेस तय रणनीति,भाजपा तय गुटबाज़ी के सहारे चुनाव लड़ रही है।बाज़ी कौन मारेगा यह समय के गर्भ में है।।फिलहाल विधायक की सोसल इनजंयरिंग भारी उड़ती दिख रही है।।अभी आने वाले 4 दिनों में दोनो दल पूरी ताकत झोंकेंगे।।फिलहाल कांग्रेस के पास बहुमत की संभावना की किरण दिखी है।।

शनिवार, 20 अक्तूबर 2018

हनुमान बेनीवाल की पार्टी बाड़मेर में पांच उम्मीदवार उतारेगी, जिसमे बाड़मेर के दिग्गज नेता भी शामिल*

*हनुमान बेनीवाल की पार्टी बाड़मेर में पांच उम्मीदवार उतारेगी, जिसमे बाड़मेर के दिग्गज नेता भी शामिल*




बाड़मेर 29 अक्टूबर को जयपुर में हुंकार रैली में नई पार्टी की घोषणा कर राजस्थान की राजनीति में हनुमान बेनीवाल भूचाल लाएंगे।।इस पार्टी के गठन की घोषणा के साथ तीसरे मोर्चे के भी उदय होने की संभावना है।

हनुमान बेनीवाल की राजनीति का केंद्र बाड़मेर,नागौर,बीकानेर,चूरू,गंगानगर,सीकर,चूरू,झँझुनू, जोधपुर,अजमेर ,हनुमान गढ़ रहने वाला है।बाड़मेर में बेनिवल कई पार्टी पांच विधासनसभ क्षेत्रो बाड़मेर,शिव,सिवाना, बायतु,,और चोहटन में अपने उम्मीदवार उतार रही है।इन उम्मीदवारों में एक दिग्गज नेता का भी नाम है।।बाकी नाम भी पूर्व में ही तय कर लिए गए है।।।बेनिवल कि पार्टी यहां भाजपा और कांग्रेस दोनो के चुनावी गणित बिगड़ेंगे ऐसी संभावना से इनकार नही किया जा सकता।।कुछ नाम चोंकाने वाले भी आने वाले है।

*थार की चुनाव रणभेरी 2018* *चुनावी चौपालो पर जमने लगेगी अफीम डोडा पोस्त की रंगत* *क्विंटलों अफीम कि खफत हो होगी बाड़मेर के विधानसभा चुनावो में*


*थार की चुनाव रणभेरी 2018*

*चुनावी चौपालो पर जमने लगेगी अफीम डोडा पोस्त की रंगत*

*क्विंटलों अफीम कि खफत हो होगी बाड़मेर के विधानसभा चुनावो में*




बाड़मेर आगामी एक दिसंबर को होने वाले सात विधानसभा क्षेत्रो में चुनावी चौपालो पर अफीम और डोडा कि रंगत नज़र आने लगी हें। अब तक बाड़मेर जिले के सात और जैसलमेर जिले कि   विधानसभा क्षेत्रो में सैकड़ों क्विंटल अफीम और डोडा पोस्त उठ चुका हें। जो उम्मीदवार जितना अधिक अफीम चुनावों में फेंकेगा उसका उतना ही अधिक माहौल बनेगा। चुनाव आयोग के आचार संहिता कि सरे आम धज्जिया उड़ाते विभिन दलो के सभी प्रत्यासी मतदाताओ और कार्यकर्ताओ को लुभाने के लिए अफीम का इस्तेमाल कर रहे हें।


*चुनावी चौपालों में अफीम डोडा पोस्त की होगी रंगत।*

 प्रत्यासियो के लिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्रो में आयोजित की जाने वाली सभाओ से पहले कार्यकर्ता बड़े बुजुर्गो के साथ जम कर अफीम का सेवन करते हें। अफीम का सुरूर होने पर अधिक भागदौड़ करते हें ,बड़ी बड़ी बैठको के आयोजन कि जिम्मेदारी निभाते हें। टिकट मिलने से लेकर नामांकन भरने तक ही प्रत्यासियो कि एक एक क्विंटल अफीम का उठाव हो जाता हें। फिर प्रत्यासियो के खुलने वाले कार्यालयो में भी जमकर अफीम का उपयोग होता हें प्रत्येक बूथ पर एक पाव भर से आधा किलो अफीम मतदान के दिन भेजी जाती हें। राजनितिक दलों द्वारा आयोजित होने वाली सभाओ में भी अफीम और डोडा पोस्त का छककर इस्तेमाल होता हें। बाड़मेर जिले में सामान्यतः अफीम का सेवन अत्यधिक होता हें , चुनावो के समय उपयोग सामान्य से तीन गुना अधिक हो जाता हें

*तस्करी से आता हें।*

बाड़मेर जिले में डोडा पोस्त की अधिकृत बिक्री नही है।।राज्य सरकार द्वारा डोडा पोस्त की बिक्री बन्द कर दी गई।।बावजूद इसके जिले में धड़ले से डोडा पोस्त बिकता है।अफीम का दूध भी खुले आम बिकता है।।हज़ारो क्विंटल डोडा पोस्त और सेकड़ो किलो अफीम का उठाव चुनाव के दौरान होता है।

 चुनावो के दौरान अफीम तस्कर , उम्मीदवार से अफीम और डोडा का लेते हें। पुलिस कि आँखों में आसानी से धूल झोंक कर  अफीम कि तस्करी मध्यप्रदेश और राजस्थान के चित्तोड़ जिले से कि जाती हें ,अफीम माफियो के लिए सीजन का समय होता है चुनावी वक़्त। अफीम का दूध भी खूब लाया जा रहा हें।




*आचार संहिता धज्जिया*

।चुनावों के दौरान उठने वाले सेकड़ो क्विंटल अफीम और डोडा पोस्त सामान्यतः तस्करी के जरिये आता हें ,डोडा पोस्त पर पूर्णत प्रतिबन्ध है।।चुनाव आयोग ने वैसे किसी भी चुनावी कार्यक्रम में नशा प्रवर्ति को बढ़ावा देने पर आयोग कि आचार संहिता कि रोज धज्जिया उड़ती हें।


*पुलिस चुनाव पूर्व हुई सक्रिय  शराब और डोडा पोस्त बड़ी मात्रा में बरामद*

*एक किलो अफीम भी बरामद नहीं हुई*

चुनावो में अफीम के बांटने कि जानकारी पुलिस विभाग को होती हें ,उन्हें यह भी पता हें कि अफीम माफिया इन दिनों दिन रात। जरिये तस्करी अफीम ला रहे हे।इस बार पुलिस काफी सक्रिय है।।।चुनावव से पूर्व पुलिस अधीक्षक मनीष अग्रवाल ने विशेष अभियान मादक और नशीले पदार्थो के खिलाफ चला रखा है जिसमे उसको उल्लेखनिय सफलता मिली है।।बड़ी मात्रा में अवैध शराब और डोडा पोस्त बरामद किए   मगर अब तक बाड़मेर पुलिस अफीम  बरामद करने में सफल नहीं हो पाये। पुलिस शिकायत का इंतज़ार करती है शिकायते होती नही।।चुनाव में जो प्रत्यासी सबसे ज्यादा अफीम कार्यकर्ताओ में बांटेगा उसे ही विजेता माना जाता हैं।।


*चुनावो में रियाणं का महत्व*

 चुनावो के दौरानअक्सर नाराज कार्यकर्ताओ को मनाने गाँवों में पहुँचाने वाले प्रत्यासी अफीम कि मनुहार से ही कार्यकर्ता कि नाराजगी दूर करते हें। इस दरें गाँवों में रियान का आयोजन कर गांव के वरिस्थ लोगो कि उपस्थिति में राजी नामा होता हें ,राजीनामे के बाद जमती हें रियान इसके लिए गाँव में रियान का आयोजन होता हें जिसमे गांव के वरिष्ठ लोग शिरकत करते हें ,फिर शुरू होता हें अफीम कि मनुहार का दौर। एक रियान में पचास किलो तक अफीम का उठाव हो जाता हें।


*प्रचार में अफीम का उपयोग।*

प्रत्यासियो के प्रचार में जाने वाले कार्यकर्ता अपने साथ मन मनुहार कि समस्त वस्तुए अफीम ,डोडा ,सुपारी ,बीड़ी ,सिगरेट ,पान मसला ,गुटखा आदि का पेकेट बना कर साथ रखते हें।

सोमवार, 15 अक्तूबर 2018

मानवेन्द्र सिंह राष्ट्रीय राजनीति में तो चित्रा सिंह सूबे की सियासत संभालेगी,चुनाव लड़ने की संभावना

मानवेन्द्र सिंह राष्ट्रीय राजनीति में तो चित्रा सिंह सूबे की सियासत संभालेगी,चुनाव लड़ने की संभावना


राजस्थान में चुनावी जंग अब टिकट वितरण तक पहुंच गई है. भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों ही मैराथन बैठकों के जरिए दावेदारों के नाम पर रायशुमारी कर रही हैं. इस बीच बीजेपी का साथ छोड़ चुके मानवेंद्र सिंहद्वारा कांग्रेस का हाथ थामने की प्रक्रिया भी अंतिम दौर में पहुंचती नजर आ रही है. मीडिया रिपोर्ट्स में दावा है कि मानवेंद्र 17 अक्टूबर को लाव-लश्कर के साथ कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. हालांकि, ये बात अलग है कि वो खुद प्रदेश की जगह राष्ट्रीय राजनीति में हाथ आजमाएंगे.

बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पू्र्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंहके बेटे मानवेंद्र सिंह फिलहाल शिव विधानसभा सीट से विधायक हैं. राजपूत समाज से आने वाले मानवेंद्र के कांग्रेस में शामिल होने से पश्चिमी राजस्थान की राजनीति में बड़ा बदलाव होने की उम्मीद है. इस इलाके में राजपूत परंपरागत रूप से बीजेपी के वोटर रहे हैं, ऐसे में राजपूत वोटर बड़ी संख्या में कांग्रेस से जुड़ सकते हैं.
पत्नी चित्रा सिंह लड़ सकती हैं चुनावबाड़मेर में मानवेंद्र सिंह के परिवार का प्रभुत्व रहा है. वो खुद बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुए हैं. 1999 में मानवेंद्र ने पहली बार लोकसभा चुनाव इसी सीट से लड़ा था, हालांकि वो जीत नहीं पाए थे. इसके बाद 2004 में शाइनिंग इंडिया का नारा फेल होने के बावजूद मानवेंद्र सिंह बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से चुनाव जीत गए.

2013 के विधानसभा चुनाव में मानवेंद्र सिंह ने बाड़मेर की शिव सीट से बीजेपी के टिकट पर किस्मत आजमाई और वो जीत गए. लेकिन 2014 लोकसभा चुनाव में जब उनके पिता जसवंत सिंह को बीजेपी से टिकट नहीं मिला तो उनकी दूरी बीजेपी से बढ़ गई. अब जबकि मानवेंद्र सिंह कांग्रेस में जाना तय माना जा रहा है, ऐसे में चर्चा ये है कि पत्नी चित्रा सिंह बाड़मेर की पचपदरा सीट से चुनाव लड़ेगी।।

एक्टिव हुईं चित्रा सिंह

बाड़मेर के पचपदरा में 22 सितंबर को बुलाई 'स्वाभिमान रैली' मानवेंद्र सिंह ने बीजेपी को बड़ी भूल बताते हुए सब कुछ स्पष्ट कर दिया था. लेकिन इस रैली से पहले ही मानवेंद्र की पत्नी चित्रा सिंह सार्वजनिक तौर पर एक्टिव नजर आने लगी थीं.

स्वाभिमान रैली से पहले बाड़मेर में युवा आक्रोश रैली के दौरान चित्रा सिंह ने घूंघट के पीछे से कहा था कि ऐसी सरकार को उखाड़ फेंको, जो स्वाभिमान की रक्षा नहीं करती है. उन्होंने वसुंधरा राजे की राजस्थान गौरव यात्रा पर तंज किया था. इसके अलावा भी चित्रा सिंह कई मोर्चों पर खुलकर अपने विचार रख रही हैं.

मानवेंद्र के पिता रहे केंद्रीय मंत्री

मानवेंद्र सिंह के पिता जसवंत सिंह बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में रहे हैं. जसवंत सिंह सबसे ज्यादा सांसद रहने वाले नेताओं में शुमार किए जाते हैं. वो चार बार लोकसभा सांसद रहे हैं, जबकि पांच बार राज्यसभा सांसद के बतौर उन्होंने सेवाएं दी हैं. लेकिन 2014 के चुनाव में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया, जिसके पीछे वसुंधरा राजे को वजह माना गया.

हालांकि, जसवंत सिंह और सीएम वसुंधरा राजे के बीच पहले काफी अच्छे संबंध थे, लेकिन पिछले सात-आठ साल में दोनों के बीच दूरी पैदा हो गई. इसी का नतीजा था कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बाड़मेर से जसंवत सिंह को टिकट देने के बजाय कर्नल सोनाराम चौधरी को मैदान में उतारा.

बीजेपी से टिकट न मिलने के बाद जसवंत सिंह निर्दलीय तौर पर चुनाव लड़े थे. मोदी लहर के बावजूद जसवंत सिंह 4 लाख से ज्यादा वोट पाने में कामयाब रहे थे, हालांकि वह जीत नहीं पाए थे. मानवेंद्र ने इस चुनाव में अपने पिता के खिलाफ और बीजेपी प्रत्याशी सोनाराम चौधरी के पक्ष में प्रचार करने से मना कर दिया था. जिसका नतीजा उन्हें पार्टी से साइड लाइन करने के रूप में झेलना पड़ा.

अब यह चर्चा है कि मानवेंद्र सिंह विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे बल्कि बाड़मेर से अगले साल लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं. अब तक मानवेंद्र सिंह के ग्रुप को पांच सीटों के आवंटन के दावे किए जा रहे हैं. इनमें उनकी पत्नी चित्रा के शिव सीट से लड़ने की उम्मीद है. जबकि राष्ट्रीय राजनीति की पिता कि विरासत को मानवेंद्र सिंह आगे बढ़ाएंगे.



मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

जैसलमेर विधानसभा क्षेत्र सियासत के डोर राजपूतो के पास गाजी फ़क़ीर के पास नहीं


जैसलमेर विधानसभा क्षेत्र चुनाव पूर्व सर्वे रिपोर्ट 


राजपूतो के बीच घमाशान होने के प्रबल आसार 

सियासत के डोर राजपूतो के पास गाजी फ़क़ीर के पास नहीं

- दुनिया के सबसे बड़े विधानसभा चुनाव क्षेत्र के रूप में जैसलमेर की छठा निराली है।गोवा, त्रिपुरा, नगालैंड, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, दिल्ली, अंडमान-निकोबार, दादर, नगर हवेली और लक्षद्वीप वगैरह से भी बड़ा है यह विधानसभा चुनाव क्षेत्र।


इसका क्षेत्रफल 28 हजार 875 वर्ग किलोमीटर है, जिसका करीब साढ़े चार सौ किलोमीटर भाग भारत पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटा है।जैसलमेर विधानसभा क्षेत्र में राजपूतो का दबदबा रहा हें। अब तक हुए तेरह विधानसभा चुनावो में ग्यारह राजपूत उम्मीदवार विधायक बने एक एक बार ब्राहमण और मेघवाल जाती से विधायक बने। राजपूत बाहुल्य इस विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस चार बार तो भाजपा तीन बार चुनाव जीती चार बार निर्दलीय ,एक एक बार जनता पार्टी ,जनता दल और स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार जीते।

जातिगत समीकरण। जैसलमेर विधानसभा क्षेत्र में राजपूत बाहुल्य तीन क्षेत्र खडाल ,सोढाण और बसिया हें जन्हा उनसितर हज़ार राजपूत बसते हें वाही 37 हज़ार सिन्धी मुस्लिम ,छबीस हज़ार अनुसूचित जाती ,तेरह हज़ार अनुसूचित जन जाती बीस हज़ार रवाना राजपूत और हजुरी,तेरह हज़ार अनुसूचित जनजाति ,अन्य बड़े समाजो में ब्राहमण ,माली ,शामिल हें। इस बार करीब बीस हज़ार नए युवा मतदाता जुड़े हें। मुस्लिम और अनुसूचित जाती कांग्रेस के साथ रहे हें वाही राजपूत भाजपा के हें ,गैर कांग्रेसी विचारधारा के राजपूत इस सीट से जीते हें। कुछ राजपूत कांग्रेस में भी हें।


गत चुनाव। । गत चुनावों में भाजपा के छोटू सिंह भाटी और कांग्रेस की श्रीमती सुनीता भाटी के बीच मुकाबला था मगर कांग्रेस के बागी गोवर्धन कल्ला ,रेशमाराम ,भाजपा के किशन सिंह भाटी भी मैदान में थे ,जिसके कारन भाजपा यह सीट निकलने में कामयाब हुई


इस बार विधानसभा चुनावो में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर होने की संभावना हें कांग्रेस के दावेदारों की फेहरिस्त में सुनीता भाटी के आलावा रुपाराम धनदे ,उम्मेद सिंह तंवर ,दिनेश्पल सिंह ,अशोक तंवर ,जनक सिंह ने भी दावेदारी कर राखी हें ,संभावना बलवंती हें की पुराने प्रतिद्वंदियों सुनीता बहती और छोटू सिंह के बीच मुकाबला होना तय हें। शहरी क्षेत्र के मतदाताओं पर परिणाम निर्भर हें जो शहर के अधिक से अधिक मत लेगा विजय उसी की होगी। कांग्रेस के इस फरमान के बाद की बाहरी प्रत्यासी को मैदान उतरा जायेगा के बाद सुनीता पर फिर तलवार लटक सकती हें। हालांकि वो पिछला चुनाव जैसलमेर से लड़ी थी। साले मोहम्मद विधायक पोकरण भी बाहरी प्रत्यासी हें। वो खुद जैसलमेर हें।

वर्तमान विधायक। गत पांच सालो में वर्तमान विधायक छोटू सिंह हर मोर्चे पर सक्रीय रहे ,विकास के काम ज्यादा नहीं हुए क्यूंकि सत्ता उनके विरोधी दल की हें फिर भी उन्होंने सक्रियता दिखाई लोगो की समस्याओ के समाधान के लिए उनके साथ खड़े नज़र आये। विधायक कोष की राशी का भी उन्होंने पूरा उपयोग जन हित में किया ,उन पर भेदभाव या भरष्टाचार का कोई आरोप नहीं हें। साफ़ छवि के कारन उन्हें पार्टी दुबारा मौका दे सकती हें हालांकि पूर्व विधायक संघ सिंह उन्हें कड़ी चुनौती दे रहे हें ,सांग सिंह भी पांच सालो तक किसानो की समस्याओ के निदान के लिए उनके साथ तत्परता से खड़े रहे।

गाजी फ़क़ीर का हौवा। ज़ब जब चुनाव आते हें अल्पसंख्यक धर्म गुरु फक्लिर को रहनुमा बताकर जैसलमेर की राजनीती उनके इशारे पर चलने की बात कही जाती हें मगर पिछले तरह चुनावो में गाजी फ़क़ीर का एक मात्र उम्मीदवार मुल्तानाराम बारुपाल ही जीत पाए ,गाजी का भाई भी विधानसभा चुनाव लड़ा मगर सफल नहीं हुआ ,एक बार भी जैसलमेर से अल्पसंख्यक विधायन नहीं बना। गाजी फ़क़ीर के वोटो की राजनीती इस बार कितना सारा दिखाएगी यह समय के गर्भ में हें ,फ़क़ीर परिवार और सुनीता भाटी के बीच राजनीती मतभेद जग जाहिर हें ऐसे में फ़क़ीर के अनुयायी सुनीता भाटी के साथ खड़े रहेंगे पर संशय बरकरार हें। गत चुनावो में कांग्रेस के उम्मीदवार की हार का कारन फ़क़ीर परिवार था।

गाजी परिवार की रणनीति। । गाजी फ़क़ीर परिवार मुस्लिम मेघवाल गठजोड़ को फिर आजमाने के लिए प्रयासरत हें इसके लिए उन्होंने रुपाराम धनदे को चुना हें ,फ़क़ीर परिवार उन्हें टिकट दिलाने के लिए पूरा जोर लगा रहे हें। इसमे वो सफल होते नज़र आ रहे थे मगर सुनीता भाटी ने आलाकमान को स्पष्ट कहा की वो चुनावो में निष्क्रिय रहेगी ,सुनीता बहती का दबदबा अछ ख़ासा हें। पार्टी ने रुपाराम की जीत की जिम्मेदारी पोकरण विधायक साले मोहम्मद को लेने को कहा तो वो पीछे खिसक गए। गाजी फ़क़ीर परिवार पिछले चार माह से विवादों में घिरा हें। पुलिस द्वारा गाजी फ़क़ीर की हिस्ट्रीशीट खोलने ,विधायक साले मोहम्मद पर पाक जासूस को पनाह देने ,और छोटे पुत्र पर भर्ष्टाचार के आरोप लगने से फ़क़ीर परिवार की राजनितिक पायदान निचे गिरी हें। जैसलमेर शहर में फ़क़ीर परिवार समर्थको का दबदबा हें। सरकारी विभागों में इनके हसक्षेप के कारण अन्य समाज अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहे हें।

भाजपा और कांग्रेस के पास अपनी प्रतिष्ठा बचने के अवसर हें इस बार। कांग्रेस हमेशा राजपूत उम्मीदवारों के सहारे ही चुनाव जीती हें एक बार ब्राहमण उम्मीदवार गोर्धन कल्ला चुनाव जीते।

राजपरिवार का दखल। । राजपरिवार का जैसलमेर की राजनीती में कोई विशेष दखल नहीं हें। लम्बे समय तक जैसलमेर की राजनीती राजपरिवार के इर्द गिर्द घुमि बाद में लगातार हारो के कारन इनका मोहभंग हो गया। सीधे तौर पर राजघराने के सदस्य स्वर्गीय चंद्रवीर सिंह की पत्नी श्रीमती रेणुका भाटी भाजपा के साथ जुडी हें सक्रीय भी हें। मगर अब चुनावो में राजपरिवार के दबदबे जैसी बात नहीं हें।


भितरघात। …. भीतरघात का डर दोनों दलों को सता रहा हें। सांग सिंह भाटी सशक्त दावेदार हें उन्हें टिकट नहीं मिलती तो उनका रुख भाजपा का कांग्रेस में सुनीता भाटी के उम्मीदवार होने की स्थति में गाजी फक्लिर परिवार पर निगाहें रहेगी। जैसलमेर के उभरते राजनितिक सितारे सुनीता भाटी को जीता कर अपने राजनितिक भविष्य पर ग्रहण लगेंगे ऐसा नहीं लगता।

शनिवार, 19 अक्तूबर 2013

बाड़मेर विधानसभा चुनाव तब से अब तक राजनीती के कई रंग दिखे बाड़मेर के अब तक के चुनावो में

बाड़मेर विधानसभा चुनाव तब से अब तक 

राजनीती के कई रंग दिखे बाड़मेर के अब तक के चुनावो में 


सरहदी बाड़मेर जिले में विधानसभा चुनाव पहले चुनाव 1952 से आरम्भ हो गए थे। बाड़मेर जिले की राजनीती आज़ादी के बाद हर पांच साल बाद करवटें बदलती रही। कांग्रेस और गैर कांग्रेस के कई बार दिलचस्प मुकाबले हुए। तेरह बार हुए विधानसभा चुनावो में छ बार कांग्रेस और सात बार गैर कांग्रेस फ़तेह हासिल कर चुकी हें। जिसमें विरधी चंद जैन चार बार सर्वाधिक बाड़मेर से विधायक रहे ,वाही तन सिंह महेचा दो बार गंगा राम चौधरी तीन बार ,रावत उम्मेद सिंह ,तगाराम चौधरी ,पंडित देवदत्त तिवारी ,मेवाराम जैन एक एक बार विधायक रहे। जातिगत आंकड़ो की राह पर चली हें बाड़मेर की राजनीती। बाड़मेर विधानसभा चुनावो में अब तक सिर्फ तीन महिलाओ ने चुनाव लड़ा जिसमे किसी को सफलता ना मिली। 


प्रथम चुनाव 1952 

राजस्थान विधान सभा के लिए प्रथम चुनाव चार से चौबीस जनवरी 1952 तक यानि बीस दिन तक चला था। बाड़मेर ऐ विधानसभा क्षेत्र से राम राज्य परिषद् के तन सिंह महेचा ने कांग्रेस के विरधी चंद जैन को 1655 मतों से हरा पहले विधायक बनाने का इतिहास रच विधानसभा पहुंचे।


दूसरा विधानसभा चुनाव 1957


दुसरे चुनावो में बाड़मेर विधानसभा सीट स्वतंत्र रूप से अलग हो चुकी थी। दुसरे चुनावो में राम राज्य परिषद् के तन सिंह महेचा दूसरी बार लगातार मैदान में उतारे तथा कांग्रेस की महिला प्रत्यासी रुख्मानी देवी को हराया। तन सिंह को 9866 ,रुख्मानी देवी को 5507 तथा निर्दलीय अचलाराम को 498 मत मिले। तन सिंह ने 4359 मतों से चुनाव जीता।

तीसरा चुनाव 1962 

तीसरे विधान सभा के लिए चुनाव उनीस फरवरी को हुआ जिसमे बाड़मेर विधानसभा के 63502 मतदाताओं में से 27813 ने मत डाले ,राम राज्य परिषद् के रावत उम्मेद सिंह को 13254 कांग्रेस के विरधी चंद जैन को 11936 ,निर्दलीय जोधारण को 1130 मत मिले। इस प्रकार निर्दलीय उम्मेद सिंह विधायक बन विधानसभा पहुंचे

चौथा चुनाव 1967 

चौथी विधानसभा के लिए हुए चुनावो में कांग्रेस के विरधी चंद जैन ने रावत उम्मेद सिंह को सोलह हज़ार से अधिक मतों से हरा कर विधानसभा पहुंचे


पांचवा चुनाव 1972 

पांचवी विधान सभा के चुनाव छ मार्च को आयोजित हुए जिसमे बाड़मेर विधानसभा क्षेत्र के ७९१५० मतदाताओ में से 45765 मतदाताओं ने वोट डाले जिसमे कांग्रेस के विरधी चंद जैन को 22141 स्वतंत्र पार्टी के रावत उम्मेदसिंह को 14026 ,अमराराम को 7749 हरिराम को 678 मत मिले इस प्रकार कांग्रेस के विरधी चंद जैन पहली बार 8837 ,मतों से विजयी बन कर विधायक बने

छठा चुनाव 1977 

छठी विधानसभा के लिए इकतीस जून को चुनाव हुए जिसमे बाड़मेर के 80908 मतदाताओं में से 46703 मतदाताओ ने 96 मतदान केन्द्रों पर वोट डाले। इन चुनावो में कांग्रेस के विरधी चंद जैन को 26729 जनता पार्टी के रावत उमेदसिंह को 17892 कवेंद्र कुमार को 1168 मत मिले। विरधी चंद तिसरी बार 8837 मतो से जीत कर विधायक बने

सातवाँ चुनाव 1980


सातवी विधानसभा के लिए इकतीस मई को चुनाव हुए जिसमे बाड़मेर के 93773 मतदाताओ में से 54848 मतदाताओ ने 111 मतदान केन्द्रों पर वोट डाले इन चुनावो में कांग्रेस ने पंडित देव दत्त तिवाड़ी को मैदान में उतारा तो भाजपा ने पहली बार अपना उम्मीदवार रतन लाल बोहरा को उतरा। इन चुनावो में पंडित को 23320 रतनलाल को 15682 पुनमचंद को 5058 अग्रेन्द्र कुमार को 116 मत मिले। कांग्रेस के देव डट तिवाड़ी 7638 मतो से विजयी रहे


आठवां चुनाव 1985 

आठवीं विधानसभा चुनावो के लिए पांच मार्च को वोट पड़े जिसमे बाड़मेर के 118871 मतदाताओ में से 63098 मतदाताओ ने 143 मतदान केन्द्रों पर वोट डाले। इन चुनावो में लोकदल के गंगाराम चौधरी को 29134 ,कांग्रेस के रिखबदास जैन को 25718 अग्रेन्द्र कुमार को 2311 द्वारकेश को 1984 सफी को 1052 मोहम्मद अयूब को 344 और अन्य सात उम्मीदवारों को तिहाई अंको में तीन सौ और उससे कम मत मिले। इन चुनावो में लोकदल के गंगाराम ने 3416 मतों से विजय हासिल की


नवा चुनाव 1990 

नवी विधानसभा के गठन के लिए राजस्थान में सत्ताईस फरवरी को चुनाव रखे गए ,इन चुनावो में बाड़मेर के 141885 मतदाताओ में से 78285 मतदाताओ ने 162 मतदान केंडो पर वोट डाले। इन चुनावो में रिकार्ड तेबिस उम्मीदवार मैदान में थे ,जिनमे जनता दल के गंगाराम चौधरी को 34371 कांग्रेस के हेमाराम चौधरी को 21363 हरी सिंह राठोड को 15062 मत मिले शेष उम्मीदवारों को चार सौ से कम मत मिले। गंगाराम ने यह चुनाव 13008 मतों से जीता


दशवाँ चुनाव 1995

 दशवीं विधानसभा के लिए राजस्थान में हुए चुनावो में बाड़मेर के 151091 मतदाताओ में से 82888 मतदाताओ ने भाग लिया। १७० मतदान केन्द्रों पर वोट पड़े। इन चुनावो में उनीस उम्मीदवार मैडम में उतरे जिसमे भाजपा समर्थित निर्दलीय गंगाराम चौधरी को 36578 कांग्रेस के विरधी चंद जैन को 33101 मत मिले। निर्दलीय फुसाराम को 8335 अन्य उन्न्निद्वारो को सात सौ और उससे कम मत मिले। गंगाराम ने लगातार तीसरी बार चुनाव जीत तिकड़ी बनाई ,विशेषता रही की तीनो चुनाव अलग अलद दलों से लड़े


ग्याहरवी विधानसभा चुनाव 1998


ग्यारहवी विधानसभा के लिए हुए मध्यावधि चुनाव पच्चीस नवम्बर को हुए जिसमे बाड़मेर के 168541 मतदाताओ में से 100994 मतदाताओ ने वोट डाले। २७४ मतदान केन्द्रों पर पड़े मतों में कांग्रेस के विरधी चंद जैन को 66616 भाजपा के तगाराम चौधरी को 33005 मत मिले सीधे मुकाबले में विरधी चंद जैन को 33111 मतो से जीत हासिल हुई।


बहरावी विधानसभा 2003 

बहरावी विधानसभा के लिए एक दिसंबर को चुनाव हुए जिसमे बाड़मेर के 193536 मतदाताओ में से 119036 मतदाताओ ने मत डाले जिसमे भाजपा के तगाराम को 65780 कांग्रेस के विरधी चंद जैन को 35252 इनेलो के उम्मेदाराम को 7528 मत श्रवण चन्देल को 5156 मत राजेंद्र को 2436 नानक दास को 1456 पप्पू देवी को 1029 मत मिले। इस प्रकार भाजपा के तगाराम में पिछली हार का बदला लेते हुए विस्धि चंद जैन को 30523 मतो से हराया


तेरहवी विधानसभा 2008 

तेरहवीं विधानसभा के लिए चार दिसंबर को मतदान हुआ जिसमे बाड़मेर के 180127 मतदाताओ में से 118085 मत पड़े। इन चुनावो में कांग्रेस के मेवाराम जैन को 62219 भाजपा की मृदुरेखा चौधरी को 38125 बसपा के कंवराज सिंह को 6908 लूनाराम को 3626 सवाई सिंह को 2945 सफी मोहम्मद को 1796 ,हरखाराम मेघवाल को 1703 नानकदास को 1666 मत मिले। कांग्रेस के मेवाराम जैन 24044 मतों से विजयी रहे