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शनिवार, 22 दिसंबर 2018

BSF जवानों के लिए आस्था का केंद्र है बनासकांठा के नाडेश्वरी माता का मंदिर

BSF जवानों के लिए आस्था का केंद्र है बनासकांठा के नाडेश्वरी माता का मंदिर
नाडेश्वरी माता का मंदिर

नाडेश्वरी माता का मंदिर गुजरात के बनासकांठा के बॉर्डर पर बना है. यह मंदिर आम लोगों के साथ-साथ सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवानों के लिए भी आस्था और श्रद्धा का बहुत बड़ा धर्मस्थल बना हुआ है.

बनासकांठा बॉर्डर पर जब भी किसी जवान की ड्यूटी लगती है तो वह ड्यूटी देने से पहले मंदिर में माथा टेक कर ही जाता है. ऐसी मान्यता है कि मां नाडेश्वरी खुद यहां जवानों की जिंदगी की रक्षा करती हैं.

दरअसल, पहले यहां पर कोई मंदिर नहीं था, एक छोटा सा मां का स्थान था, लेकिन 1971 के युद्ध के बाद उस वक्त के कमान्डेंट ने इस मंदिर का निर्माण कराया. इस मंदिर कि खास बात यह भी है कि बीएसएफ का एक जवान यहां पुजारी के तौर पर ही अपनी ड्यूटी करता है.

बनासकांठा का सुई गांव जो भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर आखिरी गांव है जहां यह मंदिर स्थित है. यहां से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर पाकिस्तान की सीमा शुरू हो जाती है. यह क्षेत्र बीएसएफ के निगरानी में ही रहता है.

मंदिर के निर्माण की कहानी भी बेहद दिलचस्प है. 1971 में पाकिस्तान के साथ लड़ाई के वक्त भारतीय सेना की एक टुकड़ी पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर गई और इसके बाद वह रास्ता भटक गई क्योंकि रन का इलाका होने की वजह से उन्हें रास्ता भी नहीं मिल रहा था.

कहा जाता है कि खुद कमान्डेंट ने मां नाडेश्वरी से मदद की गुहार लगाई और सकुशल सही जगह पहुंचाने की विनती की तो खुद मां ने दिये की रोशनी के जरिये भारतीय सेना की टुकड़ी की मदद की और उन्हें वापस अपने बेस कैंप तक लेकर आई. इस दौरान किसी भी जवान को खरोंच तक नहीं आई.

वहां ऐसी मान्यता है कि जब तक इस बॉर्डर पर मां नाडेश्वरी देवी विराजमान हैं किसी भी जवान को कुछ नहीं हो सकता. इस मंदिर के ट्रस्टी खेंगाभाई सोलंकी का कहना है कि 1971 में जब जवान अपना रास्ता भटक गए और पाकिस्तान की सीमा में पहंच गए थे, तब खुद मां ने ही उन्हें रास्ता दिखाया था, तब से यहां पर आने वाले हर एक जवान के लिए मां अस्था और श्रद्धा का सब से बड़ा केंद्र बना हुआ है.

गुरुवार, 26 जून 2014

राजस्थान की भव्यता का प्रतीक है माता श्री चामुंडा देवी का 500 वर्ष प्राचीन मंदिर



राजस्थान की भव्यता का प्रतीक जोधपुर शहर अपनी बेमिसाल हवेलियों की भवन निर्माण कला,मूर्ति कला तथा वास्तु शैली के लिए दूर-दूर तक विख्यात है। इसी शहर के लगभग 400 फुट ऊंचे शैल के पठार पर स्थित है, भारत के सबसे विशाल किलों में से एक मेहरानगढ़ का भव्य किला।यह किला वर्तमान नरेश महाराजा गज सिंह के राजपरिवार का निवास स्थान तो है ही, वहीं इसी किले में एक भव्यता का प्रतीक उत्कृष्ट म्यूजियम तथा मां जगदम्बा चामुंडा का मंदिर भी स्थित है, जो किले के दक्षिणी भाग में सबसे ऊंची प्राचीर पर स्थित है। श्री चामुंडा देवी का यह मंदिर जोधपुर राज परिवार का इष्ट देवी मंदिर तो है ही, बल्कि लगभग सारा जोधपुर ही इस मंदिर की देवी को अपनी इष्ट अथवा कुल देवी मानता है। इस मंदिर में देवी की मूर्ति 1460 ई. में चामुंडा देवी के एक परमभक्त मंडोर के तत्कालीन राजपूत शासक राव जोधा द्वारा अपनी नवनिर्मित राजधानी जोधपुर में बनाए गए किले में ही स्थापित की गई।किले की छत पर विराजमान यह मंदिर अपनी मूर्ति कला तथा उत्तम भवन निर्माण कला की एक अनूठी मिसाल है, जहां से सारे शहर का विहंगम दृश्य साफ नजर आता है। 


मेहरानगढ़ किले में प्रवेश मार्ग से सूर्य की आभा का आभास देते श्री चामुंडा देवी मंदिर में प्रवेश करने का मार्ग आसपास बनी आकर्षक मूर्तियों से सुसज्जित है। मंदिर में स्थापित मां भवानी की मूर्ति मगन बैठी मुद्रा की बजाय चलने की मुद्रा में नजर आती है।शत्रुओं से अपने भक्तों की रक्षा करने वाली देवी का यह रौद्र रूप है जो सांसारिक शत्रुओं से उनकी रक्षा के साथ-साथ उनके भौतिक (शारीरिक) दुखों तथा मानसिक त्रासदियों को दूर करके उनमें आत्मविश्वास एवं वीरता का संचार कर जीवन को एक गति प्रदान करता है। नवरात्रों में तो सारे प्रदेश से यहां भक्तों का आवागमन होता है। श्री मत्स्य पुराण तथा श्री मार्कंडेय पुराण में विशेष तौर पर भगवती चामुंडा देवी के प्रताप व वैभव का वर्णन है। महाभारत के वन पर्व तथा श्री विष्णु पुराण के धर्मोत्तर में भी आदिशक्ति की स्तुति की गई है।एक पौराणिक मान्यता के अनुसार देवासुर संग्राम में जब शिवा (मां शक्ति) ने राक्षस सेनापति चंड तथा मुंड नामक दो शक्तिशाली असुरों का वध कर दिया तो मां दुर्गा द्वारा देवी के इस ‘शत्रु नाशिनी’ रूप को चामुंडा का नाम दिया गया। जैन धर्म में भी देवी मां चामुंडा को मान्यता प्राप्त है तथा मां देवी का यह रूप पूर्णत: सात्विक रूप में पूजा जाता है।

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

चुंधि गणेशजी की एक छोटी सी पूजा से सच हो सकता है घर का सपना.



चमत्कारी और आस्था का प्रतिक हें चुंधि गणेशजी का मंदिर
चुंधि गणेशजी की एक छोटी सी पूजा से सच हो सकता है घर का सपना.

चन्दन सिंह भाटी 

जैसलमेर संस्कृति और परम्पराव के निर्वहन को लेकर अपनी खास पहचान रखने वाले जैसलमेर जिले में अदभूत गणेशजी की बड़ी मान्यता ,हें जैसलमेर के लोगो की इस गणेश के प्रति आस्था देखते बनती हें ,जिला से बारह किलोमीटर दूर चुंधि स्थान पर गणेश जी मंदिर हें ,कोई एक सड़ी से अधिक इस पुराने मंदिर के प्रति लोगो को अगाध श्रधा हें ,चुंधि गणेश के नाम से मशहूर यह स्थान रमणीक स्थान हें ,बुधवार को पूरा शहर दर्शनार्थ आता हें चुंधि गणेश को ना केवल चमत्कारी माना जाता हें अपितु इस गणेश की आराधना करने वालो की मनोकामनाए भी शीघ्र पूर्ण होती हें ,गणेश मंदीर स्थानीय नदी के बहाव क्षेत्र में ,स्थित हें बरसात के दिनों में यह मंदिर पानी से डूब जाता हें ,इस मंदिर के आस पास नदी क्षेत्र के पत्थर हें .गणेशजी का छोटा सा मंदिर हें जहां गणेश की मूर्ति विद्यमान हें .मूर्ति के सामने मूषक की मूर्ति हें ,बेहद आकर्षक चुंधि गणेश की मूर्ति अनायास ही अपनी और आकर्षित , हें श्रदलुओ का लगा रहता हें ,प्रतिदिन सेकड़ो की में लोग आते हें ,यहाँ दर्शन करने वाला हर शख्स मंदिर के आस पास बिखरे पत्थरो से अपना मकान घर बनता हें इस कमाना के साथ की उसका स्वयं का मकान  जल्द बने .गणेशजी माकन बनामने वालो की कामना जल्द पूर्ण करते हें ,मंदिर नदी के बहाव क्षेत्र में हें ,मंदीर के दोनों और दो कुँए बने हे बारे में मान्यता हें की इन कुओं में गंगा हरिद्वार का पानी आता हें ,किदंवती हें की एक शरादालू के रिश्तेदार हरिद्वार में गंगा स्नान कर रहे थे खुद चुंधि के इस कुए के पास तपस्या कर रहा ,था उसकी रिश्तेदार के हाथ का कंगन गंगा में बह ,गया यह कंगन श्रदालु को तपस्या के दौरान चुंधि में . मान्यता हें की साल में एक बार इन कुओं में गंगा का पानी आता हें . एक छोटे से पत्थर से आपको मिल सकता है अपना मकान. एक छोटी सी पूजा से सच हो सकता है घर का सपना. जैसलमेर में गणपति का परम धाम है जहां आप अगर पत्थर से छोटा सा मकान बना दें तो आपको अपना मकान मिलते देर नहीं लगेगी.


रामदरबार ....चुंधि में रामदरबार का बेहद सुन्दर मंदिर ,स्थापित हें , इस मंदिर में ठीक सामने राम दरबार का मंदीर हें जिसमे राम ,,लक्षमण सीता और हनुमान विराज रहे हें ,इस मंदिर के बाईं और हनुमानजी की मूर्ति स्थापित हें तो और बाल कान्हा की लाडू गोपाल अवस्था की बेहद आकर्षक मूर्ति हें पालने में विराजमान लाडू गोपाल को आने वाला हर श्रद्धालु झूला देता हें ,इस मंदिर में ठीक सामने शिव लिंग स्थापित हें ,कांच से निर्मित यह मंदिर सिर्फ , देखने से मतलब रखता हें ,चुंधि गणेशजी के प्रति अगाध श्रद्धा इस मंदिर को ख़ास बनाता हें .शहरवासी पारिवारिक गोठ सामूहिक भोजन अक्सर चुंधि में करते हें .