राजस्थान रै लोक देवता में केसरिया कंवर ई सुचावा है। गोगाजी री तरै इणां रौ संबंध नागां सूं मानीजै अर अै ई नाग-रूप में पूजीजै। प्रचलित लोक-विसवास मुजब कंवर रै पूजन सूं सरप रौ विस उतर जावै।
आ बात तौ तै है केसरियां कंवर अेक इतियासिक सगस रैया है, जिका लोक-हित में आपरा प्राण निछावर कर'र लोक दैवत हासल करियौ। पम, लोक साहित्य अर लोकगीतां रै अलावा लोक परंपरावां में उणां रौ इतियासिक पगस घुंघलीजग्यौ अर दैवत पगस हावी हुयग्यौ। नतीजन आज उणां रै जीवण-चरित बाबत कोी ठोस अर प्रामाणिक जाणकारी नीं मिलै। फेरूं ई, उणां रै बाबत जिकी जाणकारी मिलै, वा इण भांत है-
कुंवर केसरा व्याब रै पछै आपरै सासरै सूं बावड़ रैया हा। मारग मांय उणां नै पतौ चालियौ के डाकुवां रौ अेक दल गवालियां री गायां लेय'र भागग्यौ है। कुंवर केसरा आ सुणतां पाण ई डाकुवां रौ अेक दल गवालियां री गायां लेय'र भागग्यौ है। कुंवर केसरा आ सुणतां पाण ई डाकुवां रै लारै गायां री वाहर चढिया। वै डाकुवां तांई पुग'र उणां रौ सफायौ कर दियौ, पण खुद ई वीरता रै साथै लड़ता थका जुद्ध में आपरा प्राण देय दिया। उणां रौ सिर घड़ सूं अलग हुयग्यौ हौ। प्रवाद प्रचलित है के कुंवर केसरा रौ घोड़ौ उणां रौ घड़ उणां रौ घड् लेय'र पाछौ सासरै पूगियौ। बाद में जुद्धभूमि सूं पति रौ मस्तक हासल कर'र उणां री पत्नी उणा रै साथै सती हुयगी।
अेक दूजै मत मुजब केसरिया कुंवर गोगाजी रै साथै जुद्ध लड़ण नै गया हा, अर वै गोगाजी सूं पैला दिन इज जुद्ध मांय काम आयग्या हा। केसरियां कुंवरजी रौ अेक स्तवन-गीत लोक मांय प्रचलित है, उण मांय उणां री 'पदमा नागण रा जाया', 'फूलमदे रा वीर', अर 'किस्तूरी रा ढोला' कैय'र वंदना करीजी है। स्तवन-गीत मांय 'मैड़ी' रौ नाम ई आवै, जिणनै ददरेवा छोडियां रै बाद गोगाजी आपरौ रैवास-स्थान बणायौ हौ। इण गीत मुजब केसरिया कुंवर रौ बाजौ, जुद्ध रौ मारू बाजौ, 'धुर मैड़ी' यानी ठैठ 'मैड़ी' मांय इज बाजियौ। उणां री धजा उठै इज फैराई। इण स्तवन-गीत सूं अैड़ौ लखावै कै उण बगत तांी उठीनै नाग वंस रौ अस्तित्व बणियौड़ौ हौ अर केसरिया कुंवर री माता नाग वंस री ही।
भादवा वदी 8 रै दिन केसरिया कुंवरजी रौ पूनम-स्तवन हुवै। मतलब गोगा नम रै अके दिन पैला इणां री नाग-रूप में पूजन-स्तवन हुवै। राजस्थान मांय अणगित गामां मांय केसरिया कुंवर रा थान देखण में आवै, जठै देवता री तरै उणां री पूजा हुवै। इणां रौ थान अमूमन खेजड़ी रै रूंख हेठै हुवै। इणां री मूरती पत्थर री बणियोड़ी हुवै, जिण माथै सरप कुंडली मारियोड़ौ हुवै।
'केसरियां कंवर री छांवली' चावी है जिण मांय सरप रौ विस उतारण री बात कैयीजी है। कैर-करैला बीणती थकी अेक बालकी नै जंगल मांय सरप डस लेवै, तौ उणरा काकाजी गारडू री खोज करण री बात सोचै, जिणसूं कालै सरप रौ विस उतरवा सकै। इण बाबत छावलीरी अै लैणां देखण जोग है-
ओड्याणा में तो केसरौ कंवर अे बालकड़ी,
जात में चेलकड़ी, लैर उतारै कालै नाग री
केसरिया कुंबरजी रौ अेक स्तवन-गीत नमूनै रूप अठै प्रस्तुत है-
तुररौ तुररौ सार रौ तेरै तुररै में हीरा-मोती लाल,
रे नागण रा जाया
भलौ विराज्यौ केसरौ,
रे नागण रा जाया
सूरज सामी खेजड़ी कोई, धजा रै फरूकै असमान,
रे नागण रा जाया
चढै अे चढावै, कोई ऊजलियै चावलियां री खीर,
रे नागण रा जाया
डेरूं तौ आवै बाजता, ढोलां रौ माचै धमसाण,
रे नागण रा जाया
भोपा तौ आवै बाजता, कोी कड़ियां रै लटकता केस,
रे नागण रा जाया
लाल लपेटै ढामकी, कोई मोडै भंवर बंदूक,
रे नागण रा जाया
घोड़ौ विराजलौ नौलखौ कोई, लालां री जड़ी रे लगाम,रो नागण रा जाया