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मंगलवार, 17 सितंबर 2019

जोधपुर राष्ट्रीय प्रगतिशील लेखक संघ ने राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किये जाने की मांग को फिर से दोहराया

 जोधपुर  राष्ट्रीय प्रगतिशील  लेखक संघ ने  राजस्थानी भाषा को  संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किये जाने की मांग को फिर से दोहराया 

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जोधपुर ।राष्ट्रीय प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से जयपुर में आयोजित 17वें  राष्ट्रीय सम्मेलन  के समापन  समारोह के अवसर पर  राजस्थानी को  स्वतन्त्र, समृद्ध  एवं वैज्ञानिक भाषा मानते  हुए भारत  सरकार से राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देकर  संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग को फिर से दोहराया  है ।


राजस्थान  प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष मंडल के सदस्य एवं  राजस्थानी व  हिन्दी के साहित्यकार मीठेश निर्मोही के द्वारा राजस्थानी लेखकों की भावनाओं के अनुरूप यह प्रस्ताव रखा गया था जिसे  सर्व सम्मति से स्वीकार  करते हुए  राष्ट्रीय प्रगतिशील लेखक संघ ने यह निर्णय लिया । इससे पहले  प्रलेस की ओर से 1982 में जयपुर में  आयोजित नवें  राष्ट्रीय सम्मेलन में साहित्यकार विजयदान देथा, मरुधर मृदुल एवं वेद व्यास  के प्रस्ताव पर भारत सरकार   से यह मांग की गई थी।


राजस्थानी देश के सबसे बड़े भूभाग वाले प्रांत राजस्थान के दस करोड़ राजस्थानियों की मातृभाषा है। प्रदेश में राजस्थानी  भाषा,साहित्य एवं संस्कृति के  संवर्द्धन  के लिए राजस्थान सरकार की ओर से बीकानेर में भाषा,साहित्य एवं संस्कृति अकादमी स्थापित है।इसके अतिरिक्त विश्व भाषाओं में  उपलब्ध शब्द कोशों में  पद्मश्री सीताराम लालस द्वारा  संपादित  राजस्थानी - हिन्दी  शब्दकोश  सबसे बड़ा कोश माना जाता है जिसमें  लगभग  सवा दो लाख शब्द संग्रहीत हैं ।राजस्थानी भाषा का प्राचीन एवं आधुनिक साहित्य विपुल मात्रा में उपलब्ध है । राजस्थानी भाषा के विभिन्न विद्वानों द्वारा तैयार किये व्याकरण एवं  अन्य कोश भी उपलब्ध हैं।राज्य के अनेक विश्व विद्यालयों  में राजस्थानी के स्वतंत्रत विभाग संचालित हैं जहां  स्नातकोत्तर तक का शिक्षण एवं शोध कार्य  सम्पन्न  होता है।


ज्ञातव्य रहे कि पिछले दिनों राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने  प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर राजस्थानी भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने और इसे संवैधानिक मान्यता देने का अनुरोध किया था।

उन्होंने अपने पत्र में लिखा था  कि मेरे पिछले कार्यकाल में राजस्थान विधानसभा द्वारा वर्ष 2003 में सर्वसम्मति से एक संकल्प पारित कर केन्द्र सरकार को भेजा गया था, जिसमें राजस्थानी को संविधान की 8वीं अनुसूची में सम्मिलित करने का अनुरोध किया गया था। इसके बाद भी कई बार राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने के लिए राज्य सरकार की ओर से अनुरोध किया जाता रहा है।

राजस्थानी देश की समृद्धतम स्वतंत्र भाषाओं में से एक है जिसका अपना इतिहास है। राजस्थानी के बारे में लगभग 1000 ई. से 1500 ई. के कालखंड को ध्यान में रखकर गुजराती भाषा एवं साहित्य के मर्मज्ञ स्व. श्री झवेरचंद मेघाणी ने भी लिखा है कि राजस्थानी व्यापक बोलचाल की भाषा है और इसी की पुत्रियां बाद में ब्रजभाषा, गुजराती का नाम धारण कर स्वतंत्र भाषाएं बनी। अन्य भाषाओं की तरह ही राजस्थानी की भी मारवाड़ी, मेवाड़ी, ढूंढ़ाड़ी, वागड़ी आदि कई बोलियां हैं। ये बोलियां इसे वैसे ही समृद्ध करती हैं जैसे पेड़ को उसकी शाखाएं।

संविधान में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि एक भूभाग की अगर कोई भाषा है तो उसे बचाया और संरक्षित किया जाए। राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलना हमारी संस्कृति और समृद्ध परम्पराओं से नई पीढ़ी को अवगत करवाने के साथ ही भावी पीढ़ियों के मानवीय अधिकारों के संरक्षण की दिशा में एक सराहनीय कदम होगा।

संविधान की 8वीं अनुसूची में सम्मिलित भाषाओं के अलावा दूसरी भाषाओं को इसमें शामिल करने एवं इसके लिए वस्तुनिष्ठ मानदंड तैयार करने के लिए श्री सीताकांत महापात्र की अध्यक्षता में गठित समिति ने भी अपनी सिफारिशों में राजस्थानी को संवैधानिक भाषा के दर्जे के लिए पात्र बताया था। यह विडम्बना है कि इतना समय गुजरने के बाद भी समिति की सिफारिशें केन्द्रीय गृह मंत्रालय में विचाराधीन हैं और अभी तक राजस्थानी को संवैधानिक भाषा का दर्जा नहीं मिल पाया है।

प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि राजस्थान विधानसभा द्वारा वर्ष 2003 में भेजे गये राजस्थानी को संविधान की 8वीं अनुसूची में सम्मिलित करने संबंधी संकल्प का सम्मान करते हुए राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता देने के संबंध में यथोचित आदेश प्रसारित करावें।

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मीठेश निर्मोही