टैट रो सवाल पेट रो सवाल
राजस्थान के बेरोजगार शिक्षकों को उनका वाजिब हक मिले
टैट में राजस्थानी भाषा को शामिल करने की मांग को लेकर दिया ज्ञापन
बाड़मेर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति ,राजस्थानी मोटियार परिषद् ,राजस्थानी छात्रा परिषद् ,के तत्वाधान में प्रदेश समिति के आह्वान पर आर टेट में राजस्थानी भाषा को शामिल करने की मांग को लेकर मुख्यमंत्री के नाम जिला कलेक्टर को ज्ञापन सुपुर्द किया .समिति के संभाग उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी ने बताया की प्रदेश महामंत्री राजेन्द्र बारहट ,राजस्थानी छात्रा मोर्चा के प्रदेश संयोजक गौरी शंकर निमिवाल के निर्देशानुसार सोमवार को टैट रो सवाल ,पेट रो सवाल विषयक राजस्थानी भाषा को टैट में शामिल करने की मांग को लेकर समिति वरिष्ठ उपाध्यक्ष शेर सिंह भुरटिया ,रहमान जायडू, मोटियार परिषद् के जिला पाटवी औरमहाविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रघुवीर सिंह तामलोर ,राजस्थानी चिंतन परिषद् के जिला अध्यक्ष एडवोकेट रमेश गौड़ ,राजस्थानी छात्रा परिषद् के अध्यक्ष अशोक सारला , अनिरुद्ध रतनू ,दिनेश खत्री ,कपिल बालच हेमंत मेघवाल , उम्मेद आचार्य ,मनोज दवे सहित कई कार्यकर्ताओ तथा पदाधिकारियों की उपस्थिति में जिला कलेक्टर को ज्ञापन दिया ,ज्ञापन में लिखा हें की नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत बालक को प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा के माध्यम से शिक्षण करवाए जाने का प्रावधान रखा गया है। इसी संदर्भ में राज्य के शिक्षा विभाग ने हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, गुजराती, सिंधी, पंजाबी और उर्दू को राजस्थान की मातृभाषाएं मानते हुए इन्हें राजस्थान की प्राथमिक शिक्षा के माध्यम के रूप में स्वीकारा है और राजस्थान अध्यापक पात्रता परीक्षा आर टेट भी इन्हें शामिल किया गया है।
ज्ञापन में लिखा हें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कार्यकाल में 25 अगस्त, 2003 को राजस्थान की प्रमुख भाषा राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता की मांग का एक सर्वसम्मत संकल्प प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार को भेजा गया था और आप ही की सरकार इसे राजस्थान की जनता की मातृभाषा के रूप में स्वीकार नहीं कर रही है। फलस्वरूप राजस्थान का बालक अपनी मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने के अधिकार से वंचित तो रहेगा ही, RTET में भी राजस्थान के प्रतिभागियों को उनका वाजिब हक नहीं मिल पाएगा।
भाटी ने बताया की ज्ञापन में लिखा हें की आरटेट में 40 फीसदी अंक उक्त सात माध्यम भाषाओं के ज्ञान के लिए निर्धारित हैं और प्रतिभागी को इनमें से किन्हीं दो भाषाओं को क्रमशः प्रथम तथा द्वितीय भाषा के रूप में चुनना है। राजस्थान मूल के वे प्रतिभागी जिनकी मातृभाषा उक्त भाषा समूह (हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, गुजराती, सिंधी, पंजाबी और उर्दू ) से भिन्न है, वे प्रथम भाषा के रूप में तो हिन्दी का चयन कर रहे हैं, परन्तु द्वितीय भाषा के रूप में उन्हें अंग्रेजी या संस्कृत चुनने को मजबूर होना पड़ रहा है। स्वाभाविकसी बात है कि अपनी मातृभाषा का पेपर हल करना अन्य भाषा की अपेक्षा कहीं अधिक आसान होता है और राजस्थान मूल के वे लोग जिन्होंने अंग्रेजी या संस्कृत को द्वितीय भाषा के रूप में चुना है, पिछड़ जाएंगे। समीपवर्ती प्रांतों से आकर पंजाबी, गुजराती, उर्दू या सिंधी का चयन करने वाले प्रतिभागी बाजी मार जाएंगे और हमारा बेरोजगार तरसता रह जाएगा। चूंकि भर्ती परीक्षाओं में भी इन भाषाओं को शामिल किया जाएगा सो राजस्थान में पात्रता हासिल कर चुके अन्य प्रांतों के ये लोग एक बार फिर राजस्थानियों को ही राजस्थान में मात देने में सक्षम हो जाएंगे।
ज्ञापन में स्पष्ट किया की राजस्थानी भाषा गत 30 वर्षों से माध्यमिक शिक्षा बोर्ड तथा राजस्थान स्थित विश्वविद्यालयों के पाठ्क्रम में वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल है। विश्वविद्यालयों में दशकों से राजस्थानी विभाग भी स्थापित है। राज्य के बीएड पाठयक्रमों में राजस्थानी एक शिक्षण विषय रूप में शामिल है। यूजीसी भी राजस्थानी विषय में वर्ष में दो बार नेट व जओरएफ की परीक्षाएं करवाती हैं और फैलोशिप प्रदान करती है। इस विषय में राजस्थान तथा राजस्थान से बाहर के कई विश्वविद्यालय पीएच.डी भी करवाते हैं। अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों तथा ब्रिटेन की कैम्बि्रज यूनिवर्सिटी सहित देशविदेश के कई विश्वविद्यालयों में यह शोध व शिक्षण विषय के रूप में मान्य है, जिसके अंतर्गत हजारों शोध हुए हैं तथा हो रहे हैं। अमेरिका की लायब्रेरी ऑफ कांग्रेस ने राजस्थानी को विश्व की तेरह समृद्धत्तम भाषाओँ में शामिल किया है। एनसीईआरटी ने इसे मातृभाषाओं की सूची में शामिल किया है। केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ने भी वर्ष 1974 से इस भाषा को मान्यता प्रदान कर रखी है तथा प्रतिवर्ष राजस्थानी साहित्यकारों व अनुवादकों को पुरस्कृत करती है और इस भाषा और साहित्य से संबंधित सेमिनारों का आयोजन करती है। आरटेट में में राजस्थानी को शामिल न करना राजस्थानी जनता के साथ घोर अन्याय है।उक्त भाषा सूची में राजस्थानी को भी शामिल किया जाए, जिससे राजस्थान के बेरोजगार शिक्षकों को उनका वाजिब हक मिल सके।
राजस्थान के बेरोजगार शिक्षकों को उनका वाजिब हक मिले
टैट में राजस्थानी भाषा को शामिल करने की मांग को लेकर दिया ज्ञापन
बाड़मेर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति ,राजस्थानी मोटियार परिषद् ,राजस्थानी छात्रा परिषद् ,के तत्वाधान में प्रदेश समिति के आह्वान पर आर टेट में राजस्थानी भाषा को शामिल करने की मांग को लेकर मुख्यमंत्री के नाम जिला कलेक्टर को ज्ञापन सुपुर्द किया .समिति के संभाग उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी ने बताया की प्रदेश महामंत्री राजेन्द्र बारहट ,राजस्थानी छात्रा मोर्चा के प्रदेश संयोजक गौरी शंकर निमिवाल के निर्देशानुसार सोमवार को टैट रो सवाल ,पेट रो सवाल विषयक राजस्थानी भाषा को टैट में शामिल करने की मांग को लेकर समिति वरिष्ठ उपाध्यक्ष शेर सिंह भुरटिया ,रहमान जायडू, मोटियार परिषद् के जिला पाटवी औरमहाविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रघुवीर सिंह तामलोर ,राजस्थानी चिंतन परिषद् के जिला अध्यक्ष एडवोकेट रमेश गौड़ ,राजस्थानी छात्रा परिषद् के अध्यक्ष अशोक सारला , अनिरुद्ध रतनू ,दिनेश खत्री ,कपिल बालच हेमंत मेघवाल , उम्मेद आचार्य ,मनोज दवे सहित कई कार्यकर्ताओ तथा पदाधिकारियों की उपस्थिति में जिला कलेक्टर को ज्ञापन दिया ,ज्ञापन में लिखा हें की नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत बालक को प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा के माध्यम से शिक्षण करवाए जाने का प्रावधान रखा गया है। इसी संदर्भ में राज्य के शिक्षा विभाग ने हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, गुजराती, सिंधी, पंजाबी और उर्दू को राजस्थान की मातृभाषाएं मानते हुए इन्हें राजस्थान की प्राथमिक शिक्षा के माध्यम के रूप में स्वीकारा है और राजस्थान अध्यापक पात्रता परीक्षा आर टेट भी इन्हें शामिल किया गया है।
ज्ञापन में लिखा हें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कार्यकाल में 25 अगस्त, 2003 को राजस्थान की प्रमुख भाषा राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता की मांग का एक सर्वसम्मत संकल्प प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार को भेजा गया था और आप ही की सरकार इसे राजस्थान की जनता की मातृभाषा के रूप में स्वीकार नहीं कर रही है। फलस्वरूप राजस्थान का बालक अपनी मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने के अधिकार से वंचित तो रहेगा ही, RTET में भी राजस्थान के प्रतिभागियों को उनका वाजिब हक नहीं मिल पाएगा।
भाटी ने बताया की ज्ञापन में लिखा हें की आरटेट में 40 फीसदी अंक उक्त सात माध्यम भाषाओं के ज्ञान के लिए निर्धारित हैं और प्रतिभागी को इनमें से किन्हीं दो भाषाओं को क्रमशः प्रथम तथा द्वितीय भाषा के रूप में चुनना है। राजस्थान मूल के वे प्रतिभागी जिनकी मातृभाषा उक्त भाषा समूह (हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, गुजराती, सिंधी, पंजाबी और उर्दू ) से भिन्न है, वे प्रथम भाषा के रूप में तो हिन्दी का चयन कर रहे हैं, परन्तु द्वितीय भाषा के रूप में उन्हें अंग्रेजी या संस्कृत चुनने को मजबूर होना पड़ रहा है। स्वाभाविकसी बात है कि अपनी मातृभाषा का पेपर हल करना अन्य भाषा की अपेक्षा कहीं अधिक आसान होता है और राजस्थान मूल के वे लोग जिन्होंने अंग्रेजी या संस्कृत को द्वितीय भाषा के रूप में चुना है, पिछड़ जाएंगे। समीपवर्ती प्रांतों से आकर पंजाबी, गुजराती, उर्दू या सिंधी का चयन करने वाले प्रतिभागी बाजी मार जाएंगे और हमारा बेरोजगार तरसता रह जाएगा। चूंकि भर्ती परीक्षाओं में भी इन भाषाओं को शामिल किया जाएगा सो राजस्थान में पात्रता हासिल कर चुके अन्य प्रांतों के ये लोग एक बार फिर राजस्थानियों को ही राजस्थान में मात देने में सक्षम हो जाएंगे।
ज्ञापन में स्पष्ट किया की राजस्थानी भाषा गत 30 वर्षों से माध्यमिक शिक्षा बोर्ड तथा राजस्थान स्थित विश्वविद्यालयों के पाठ्क्रम में वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल है। विश्वविद्यालयों में दशकों से राजस्थानी विभाग भी स्थापित है। राज्य के बीएड पाठयक्रमों में राजस्थानी एक शिक्षण विषय रूप में शामिल है। यूजीसी भी राजस्थानी विषय में वर्ष में दो बार नेट व जओरएफ की परीक्षाएं करवाती हैं और फैलोशिप प्रदान करती है। इस विषय में राजस्थान तथा राजस्थान से बाहर के कई विश्वविद्यालय पीएच.डी भी करवाते हैं। अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों तथा ब्रिटेन की कैम्बि्रज यूनिवर्सिटी सहित देशविदेश के कई विश्वविद्यालयों में यह शोध व शिक्षण विषय के रूप में मान्य है, जिसके अंतर्गत हजारों शोध हुए हैं तथा हो रहे हैं। अमेरिका की लायब्रेरी ऑफ कांग्रेस ने राजस्थानी को विश्व की तेरह समृद्धत्तम भाषाओँ में शामिल किया है। एनसीईआरटी ने इसे मातृभाषाओं की सूची में शामिल किया है। केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ने भी वर्ष 1974 से इस भाषा को मान्यता प्रदान कर रखी है तथा प्रतिवर्ष राजस्थानी साहित्यकारों व अनुवादकों को पुरस्कृत करती है और इस भाषा और साहित्य से संबंधित सेमिनारों का आयोजन करती है। आरटेट में में राजस्थानी को शामिल न करना राजस्थानी जनता के साथ घोर अन्याय है।उक्त भाषा सूची में राजस्थानी को भी शामिल किया जाए, जिससे राजस्थान के बेरोजगार शिक्षकों को उनका वाजिब हक मिल सके।
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