जानें इस अनूठे मंदिर के बारे में यहां प्रसाद में मिलता है रज से भीगा कपड़ा -
भारत के अनूठे मंदिरों में शुमार है कामख्या मंदिर। यह मंदिर कामाख्या माता तांत्रिकों की देवी कामाख्या देवी की पूजा भगवान शिव के नववधू के रूप में की जाती है, जो कि मुक्ति को स्वीकार करती है और सभी इच्छाएं पूर्ण करती है। कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर से 7 किलोमीटर दूर कामाख्या मे है। कामाख्या से भी 10 किलोमीटर दूर नीलाचंल पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर शक्ति की देवी सती का है और इसका तांत्रिक महत्व भी है। यहां के बारे में कई ऐसी बाते हैं, जिनसे हम आज तक अंजान हैं।
असम के शहर गुवाहाटी के पास सती का ये मंदिर 52 शक्ति पीठों में से एक है। इस मंदिर में देवी सती या दुर्गा की एक भी मूर्ति आपको देखने को नहीं मिलेगी। इस मंदिर के बाहरी परिसर में आपको कई देवी-देवताओं की आकृति देखने को मिल जाएगी। ये मंदिर तीन हिस्सों में बना हुआ है पहला हिस्सा सबसे बड़ा है इसमें हर व्यक्ति को नहीं जाने दिया जाता, वहीं दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं जहां एक पत्थर से हर वक्त पानी निकलता रहता है। कहा जाता है कि महीने में एक बार इस पत्थर से खून निकलता है।
देवी सती के कटे शरीर के हिस्से जहां-जहां गिरे वो आज शक्ति पीठ के रूप में जाने जाते हैं। इस जगह देवी सती की योनि गिरी थी। इसी कारण इस मंदिर को कामाख्या कहा जाता है। इस मंदिर से एक कहानी और जुड़ी है। कहा जाता है कि नराका नाम के एक दानव को कामाख्या देवी से प्यार हो गया था और उसने शादी का प्रस्ताव दे डाला लेकिन देवी ने इसके लिए एक शर्त रखी कि अगर वो निलांचल पर्वत पर सीढ़ियां बना देगा तो वो उससे शादी कर लेंगी। नराका ने इस शर्त को मान लिया और अपने काम में लग गया। आधी रात तक उसने काफ़ी ज़्यादा काम खत्म कर दिया। जब देवी ने उस राक्षस को जीतते देखा तो एक चाल चली. देवी ने एक मुर्गे का रूप लिया और बोलने लगी राक्षस को लगा कि सुबह हो गई और वो हार गया, लेकिन जब उसे इस चाल का पता चला तो उसने मुर्गे को मार दिया जिस जगह उस मुर्गे को मारा गया उसे कुरकुराता कहते हैं, साथ ही उस आधी बनी सीढ़ियों को मेखेलौजा पथ कहते हैं इस मंदिर में वैसे तो हर वक़्त भक्तों की भीड़ लगी होती है, लेकिन दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादेऊल, वसंती पूजा, मदानदेऊल, अम्बुवासी और मनासा पूजा पर इस मंदिर का महत्व और बढ़ जाता है
मंदिर में निवास करने वाली देवी को मासिक धर्म भी होता है। जो 3 दिन तक रहता है और भक्तों का मंदिर में जाना मना होता है। मंदिर से लाल रक्त के समान तरल द्रव्य निकलता है। इस दौरान अम्बुवासी मेला चलता है। मंदिर में अवस्थित देवी की अनुमानित योनि के समीप पंडित जी नया साफ-स्वच्छ कपड़ा रखते हैं। जो मासिक धर्म के दौरान ‘खून’ से भीग जाता है। फिर यह कपड़ा भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। मां के रज से भीगा कपड़ा प्रसाद में मिलना किस्मत वालों को नसीब होता है।
साभार - See more at: http://www.jagran.com/spiritual/mukhye-dharmik-sthal-kamakhya-devi-temple-15656585.html?src=JAG-NAV-REL-ART#sthash. .dpuf
भारत के अनूठे मंदिरों में शुमार है कामख्या मंदिर। यह मंदिर कामाख्या माता तांत्रिकों की देवी कामाख्या देवी की पूजा भगवान शिव के नववधू के रूप में की जाती है, जो कि मुक्ति को स्वीकार करती है और सभी इच्छाएं पूर्ण करती है। कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर से 7 किलोमीटर दूर कामाख्या मे है। कामाख्या से भी 10 किलोमीटर दूर नीलाचंल पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर शक्ति की देवी सती का है और इसका तांत्रिक महत्व भी है। यहां के बारे में कई ऐसी बाते हैं, जिनसे हम आज तक अंजान हैं।
असम के शहर गुवाहाटी के पास सती का ये मंदिर 52 शक्ति पीठों में से एक है। इस मंदिर में देवी सती या दुर्गा की एक भी मूर्ति आपको देखने को नहीं मिलेगी। इस मंदिर के बाहरी परिसर में आपको कई देवी-देवताओं की आकृति देखने को मिल जाएगी। ये मंदिर तीन हिस्सों में बना हुआ है पहला हिस्सा सबसे बड़ा है इसमें हर व्यक्ति को नहीं जाने दिया जाता, वहीं दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं जहां एक पत्थर से हर वक्त पानी निकलता रहता है। कहा जाता है कि महीने में एक बार इस पत्थर से खून निकलता है।
देवी सती के कटे शरीर के हिस्से जहां-जहां गिरे वो आज शक्ति पीठ के रूप में जाने जाते हैं। इस जगह देवी सती की योनि गिरी थी। इसी कारण इस मंदिर को कामाख्या कहा जाता है। इस मंदिर से एक कहानी और जुड़ी है। कहा जाता है कि नराका नाम के एक दानव को कामाख्या देवी से प्यार हो गया था और उसने शादी का प्रस्ताव दे डाला लेकिन देवी ने इसके लिए एक शर्त रखी कि अगर वो निलांचल पर्वत पर सीढ़ियां बना देगा तो वो उससे शादी कर लेंगी। नराका ने इस शर्त को मान लिया और अपने काम में लग गया। आधी रात तक उसने काफ़ी ज़्यादा काम खत्म कर दिया। जब देवी ने उस राक्षस को जीतते देखा तो एक चाल चली. देवी ने एक मुर्गे का रूप लिया और बोलने लगी राक्षस को लगा कि सुबह हो गई और वो हार गया, लेकिन जब उसे इस चाल का पता चला तो उसने मुर्गे को मार दिया जिस जगह उस मुर्गे को मारा गया उसे कुरकुराता कहते हैं, साथ ही उस आधी बनी सीढ़ियों को मेखेलौजा पथ कहते हैं इस मंदिर में वैसे तो हर वक़्त भक्तों की भीड़ लगी होती है, लेकिन दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादेऊल, वसंती पूजा, मदानदेऊल, अम्बुवासी और मनासा पूजा पर इस मंदिर का महत्व और बढ़ जाता है
मंदिर में निवास करने वाली देवी को मासिक धर्म भी होता है। जो 3 दिन तक रहता है और भक्तों का मंदिर में जाना मना होता है। मंदिर से लाल रक्त के समान तरल द्रव्य निकलता है। इस दौरान अम्बुवासी मेला चलता है। मंदिर में अवस्थित देवी की अनुमानित योनि के समीप पंडित जी नया साफ-स्वच्छ कपड़ा रखते हैं। जो मासिक धर्म के दौरान ‘खून’ से भीग जाता है। फिर यह कपड़ा भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। मां के रज से भीगा कपड़ा प्रसाद में मिलना किस्मत वालों को नसीब होता है।
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