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सोमवार, 9 सितंबर 2019

बाड़मेर 1965 के रेलवे के युद्ध वीर शहीदों के नाम रिकार्ड में 53 बाद भी सम्मानजनक नाम दर्ज नहीं*

 *गडरारोड शहीद मेला 9 सितंबर विशेष*

*शहीदों की चिताओं पे लगेंगे हर वर्ष मेले,यही उनका आखरी निशाँ होगा*

*बाड़मेर 1965 के रेलवे के युद्ध वीर शहीदों के नाम रिकार्ड में 53 बाद भी सम्मानजनक नाम दर्ज नहीं*

*बाडमेर न्यूज़ ट्रैक खास खबर*

बाड़मेर भारत पाकिस्तान के मध्य 1965 और 1971 में हुए युद्ध के दौरान शहीद हुए 17 रेलवे कार्मिक शहीदों के नाम रिकॉर्ड में 53 साल बाद भी सम्मानजनक नाम दर्ज नही।।शहीदों के नाम रिकॉर्ड में अब भी अपमानजनक रूप से दर्ज है।शहीदों के नामो को सम्मानजनक करने को लेकर ग्रुप फ़ॉर पीपल ने दो साल पहले मुहिम चलाई थी मगर कोई नतीजा नही निकल।।एक बार फिर ग्रुप फ़ॉर पीपल शहीदों के नामो के संसोधन कर सम्मानजनक नाम दर्ज करने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखेगा तथा स्थानीय प्रतिनिधि सांसद मंत्री कैलाश चौधरी को भी ज्ञापन सौंपेगा।

ग्रुप द्वारा देश के प्रधानमंत्री को इस बारे में अवगत कराने के साथ मुद्दा उच्च स्तर पर उठाया जाएगा।

ग्रुप फ़ॉर पीपल अध्यक्ष आज़ाद सिंह राठौड़ ने बतायाकि देश की रक्षार्थ अपने प्राण न्योछावर करने वाले बाड़मेर जिले के शहीदों के नाम रिकॉर्ड में अपमानजनक रूप से दर्ज हैं।उन्होंने बताया कि देश की रक्षा करते हुए शहीदों को भी अगर हम सम्मान नही दे सकते तो यह दुर्भाग्यपूर्ण ह्योग।उन्होंने बताया कि बाड़मेर जिले में भारत पाक युद्ध के दौरान बम बारी और रेल पटरियां ठीक करते शहीद हुए 17 शहीदों के नाम रिकॉर्ड में सम्मानजनक रूप से दर्ज नही हैं।

: युद्ध मे पाकिस्तानी बमबारी से शहीद हुए शहीदों के नाम निम्न प्रकार अपमानजनक रूप से दर्ज है।इनमे शहीद माला पुत्र रूपा, भंवरिया पुत्र जोरा, मघा पुत्र उम्मेदा,हुकमा पुत्र जगमाल,चीमा पुत्र प्रह्लाद,करना पुत्र गुल्ला,रावत पुत्र हिमता, लाला पुत्र अनदा ,जेहा पुत्र खंगार इन नामो का दुरुस्तीकरण कर सम्मानजनक रूप से दर्ज करने तथा शहीद चुन्नीलाल,माधो सिंह,चिमन सिंह के पिता का नाम साथ दर्ज नही है।उन्होंने बताया कि शहीद के प्रति आमजन की आस्था और श्रद्धा जुड़ी हैं।लम्बे समय से शहीदों के परिजन शहीदों के नामो के दुरुस्तीकरण की मांग कर रहे हैं। शहीदों का अपमान सहन नही होगा।

*बाडमेर मुख्यालय पर शहीदों की याद में स्मृति वन*

ग्रुप द्वारा रेलवे के 17 शहीदों की यादों को सहेजने के लिए जिला मुख्यालय पर स्मृति वन और एक चौराहे के नाम इन शहीदों की याद में रखने की मांग करेगा।।

*शहीद दर्जा और आश्रितों को सुविधाए उपलब्ध कराने की मांग*

सरकारी रिकॉर्ड में रेलवे के इन 17 युद्ध वीरों को शहीद का दर्जा प्राप्त नही है।नही इनके आश्रितों को कोई सरकारी सुविधाए मिली।।इन युद्धवीरों को शहीद का दर्जा देने और आश्रितों को शहीद परिवारों को मिलने वाली समस्त सुविधाए उपलब्ध कराने की मांग भी रखी जायेगी।

ग्रुप संयोजक चन्दन सिंह भाटी ने बताया कि जल्द प्रधानमंत्री,रक्षा मंत्री,ग्रह मंत्री सहित मुख्यमंत्री को इस बारे में अवगत कराया जाएगा।ग्रुप सदस्य शहीदों के नामो के दुरुस्तीकरण को लेकर प्रधानमंत्री के नाम जिला कलेक्टर को ज्ञापन सुपुर्द करेगा।

सोमवार, 9 सितंबर 2013

माटी खातिर मिट गया थार के लाल ...गडरा में शहीद मेलाशहीदों को दी श्रद्धांजलि

माटी खातिर मिट गया थार के लाल ...गडरा में शहीद मेला शहीदों को दी श्रद्धांजलि
बाड़मेर देश के खातिर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले 17 रेलवे कर्मचारियों की याद में सोम वार को गडरारोड स्थित शहीद स्मारक पर हर साल शहीद मेले का आयोजन हुआ  । भले ही वे शहीद आज इस दुनिया में न हो लेकिन पूरा देश ने उनके बलिदान को नमन किया गया । हर वर्ष गडरारोड स्थित शहीद स्मारक पर नौ सितंबर को शहीद मेले का आयोजन किया गया । रेलवे की ओर से आयोजित इस मेले में सैकड़ों देशवासी शरीक हुए और शहीद स्मारक पर माल्यार्पण और पुष्प चढ़ाकर श्रद्धांजलि दी

शादी के सत्रह दिन बाद हुए शहीद

हालांकि किसी भी शहीद की शहादत को भुलाया नहीं जा सकता लेकिन जिले के एक नौजवान ऐसे भी थे जिन्होंने शादी के केवल 17 दिन बाद मातृभूमि के लिए कुर्बानी दे दी। 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान शहीद हुए माधोसिंह गहलोत का जन्म 1 जून 1947 को गुंदीवाला घर हमीरपुरा बाड़मेर में हुआ था। उनकी माता जमना देवी गृहिणी और पिता रेलवे में स्पे. ए ग्रेड ड्राइवर थे। 31 अगस्त 1962 को उनकी नियुक्ति उत्तर रेलवे में द्वितीय एफएम पद पर हुई। गहलोत का विवाह मात्र सत्रह दिन पहले ही हुआ था। छुट्टी पर होने के बावजूद जब कॉल मैन घर पर ड्यूटी का संदेश लेकर आया तो उन्होंने बिना पल गंवाए ड्यूटी ज्वॉइन कर ली। पाकिस्तान की लगातार बम बारी के बीच माधोसिंह अपने सहकर्मियों के साथ रेल लेकर बाड़मेर से गडरारोड के लिए रवाना हुए। वे गडरारोड में जवानों के लिए रसद सामग्री ले जा रहे थे। पाक की बमबारी के चलते रास्ते की लाइनें तथा टेलीफोन खराब थे। गडरारोड से तीन किलोमीटर पहले दोनों माल गाडिय़ां आपस में टकरा गईं। जिसमें सत्रह रेलवे कर्मचारियों के साथ माधोसिंह भी शहीद हो गए।


रेलवे कर्मचारी ने श्रद्धांजलि अर्पित:की... नार्थ वेस्टर्न रेलवे एम्पलॉयज यूनियन शाखा बाड़मेर की ओर से गडरारोड में शुक्रवार शहीद मेले का आयोजन किया गया । शाखा अध्यक्ष मुकेश श्रीवास्तव ने बताया कि शहीद मेला उन 17 बहादुर रेल कर्मचारियों की याद में लगता है जिन्होंने सितंबर 1965 में भारत-पाक युद्ध के समय अपना कत्र्तव्य निभाते हुए मातृभूमि की सेवा में अपने प्राण न्योछावर कर दिए। हर साल रेल कर्मचारी एकत्रित होकर अपने बहादुर साथियों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

पाक की बमबारी के चलते रास्ते की लाइनें तथा टेलीफोन खराब थे। गडरारोड से तीन किलोमीटर पहले दोनों माल गाडिय़ां आपस में टकरा गईं। जिसमें सत्रह रेलवे कर्मचारियों के साथ माधोसिंह भी शहीद हो गए।

रेलवे कर्मचारी श्रद्धांजलि: अर्पित की


नार्थ वेस्टर्न रेलवे एम्पलॉयज यूनियन शाखा बाड़मेर की ओर से गडरारोड में सोम वार सुबह 9.30 बजे से शहीद मेले का आयोजन किया जाएगा।  शहीद मेला उन 17 बहादुर रेल कर्मचारियों की याद में लगता है जिन्होंने सितंबर 1965 में भारत-पाक युद्ध के समय अपना कत्र्तव्य निभाते हुए मातृभूमि की सेवा में अपने प्राण न्योछावर कर दिए। हर साल रेल कर्मचारी एकत्रित होकर अपने बहादुर साथियों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की ।


शनिवार, 8 सितंबर 2012

युद्ध के दौरान रेल लाइन ठी करते हुए शहीद हुए थे रेलकर्मी



युद्ध के  दौरान रेल लाइन ठी करते हुए शहीद हुए थे रेलकर्मी

शहीदों की चिताओं  पर ,हर वर्ष लगेंगे मेले

बाड़मेर। भारतपाक 1965 के  युद्ध में टैंकों की गर्जना,लड़ाकू विमानों की बमबारी के धमाको  और चारों ओर गोलियों की बौछारें,सैनिकों की रेलमपेल का दृश्य रोंगटे खड़े करने वाला था। ऐसे में वीर सपूतों का हौंसला कम होने े बजाय दुगुना हो गया था। क्षतिग्रस्त रेल लाइन की मरम्मत करने की समस्या आई तो कई रेलकर्मी ेसरिया साफा पहनकर आगे आए। इनमें से 17 रेलकर्मी शहीद हुए। इनकी याद में सालाना गडरारोड़ कस्ब्ो में शहीद मेला लगता है।

भारतपाक युद्ध े दौरान पाकिस्तानी सेना ने कच्छ े नगरपार इलो में अपना दावा पेश किया। बदले में भारत ने पाक सेना को खदेड़ने तथा बाड़मेर से पाक कूच करने े लिए सिन्ध से मोर्चा खोलने े आदेश दिए। विकट परिस्थितियों में सैनिकों ने बहादूरी का परिचय देते हुए गडरासिटी में प्रवेश कर 8 सितंबर 1965 को तिरंगा फहरा दिया। भारतीय सेना की इस कार्रवाई से हतप्रत पाक ने भविष्य े संदर्भ में आंलन कर गडरारोड़ कस्ब्ो की रेल लाईन को बम वर्षा से क्षतिग्रस्त कर दिया। इससे परिणामस्वरूप अग्रिम मोर्चो पर डटी भारतीय सेना े लिए आवश्यक वस्तुओं और सामग्री का संकट खड़ा हो गया। इसे बावजूद शौर्य,साहस,संयम और अनुशासन पर टिकी भारतीय सेना का मनोबल कायम रहा। भारत े अनेक सपूत विकट परिस्थिति में भी अग्रिम मोर्चो पर शत्रुओं से भिड़ते रहे। हमारे शुरवीरों का मनोबल बनाए रखने और युद्ध जीतने े लिए गडरारोड़ की रेलवे लाईन अर्थान जीवन रेखा को दुरुस्त करने की आवश्यकता को पहली प्राथमिकता दी गई। सैनिकों को आवश्यक वस्तुएं एवं युद्ध सामग्री पहुंचाने की रेल ले जाने े लिए रेलवे े साहसी कर्मचारी आगे आए। किसी कवि े शब्दों में......

जननी ऐसो जन्म दे का दाता या शूर।

नहीं तो रहीजे बांजणी मत गवाईजे नूर॥

राजस्थान की इस मरुभूमि में ऐसे वीरों की कोई कमी नहीं थी। देश पर मरमिटने का ऐसा सुनहरा अवसर पाकर रेलवे कर्मचारी तत्काल रेलवे लाईन को दुरुस्त करने े लिए ेसरिया साफा बांधकर एवं देश भिक्त े गीत गाते हुए गडरा रोड़ पहुंचे। हवाई हमलों एवं गोलाबारी े सिहरन भरे माहौल में अपने काम पर जुट गए। यह वह क्षण था जब हर कर्मचारी अपने आप को गौरवांवित महसूस कर रहा था। पाक को अपने घुसपैठियों की मदद से रेलवे लाईन ठीक करने की सूचना मिल चूकी थी। भारत े लिए जीवन रेखा पाकिस्तान े लिए मृत्यु रेखा साबित होगी। यह सोचकर पाकिस्तान ने इस मरम्मत कार्य को निशाना बनवाने का आदेश दिया। उधर हवाई हमलों से बेखबर रेलवेकर्मियों ने भारत माता े उद्घोष े साथ काफी तेजी से कार्य करते हुए रेलवे लाईन को ठीक कर दिया। जब ये रेलवे कर्मचारी काम खत्म करे वापिस रवाना हो रहे थे, इस दौरान पाक े विमानों ने बमबारी करना शुरू कर दी। इस अप्रत्याशित हमले में रेलवे े 14 बहादूर कर्मचारी मातृभूमि की वेदी पर बलिदान हो गए। शहीद होने वालों में मुल्तानाराम खलासी,भंवरिया कांटेवाला, करना ट्रालीमेन, नंदराम गेंगमेन, हेमाराम खलासी, माला गैंगमेन, मघा गेंगमेन, हुकमा गेंगमेन, रावता गैंगमेन, चीमा, खीमराज गैंगमेन, लाला गैंगमेन, जेहा गैंगमेन तथा देवीसिंह खलासी शामिल थे। इस दौरान सैनिकों को खाद्य सामग्री एवं युद्ध सामग्री पहुंचाने े लिए रेल ले जाना अति आवश्यक था। ऐसे माहौल में वीर सपूत चालक चुन्नीलाल, फायरमैन चिमनसिंह तथा माधोसिंह ने देश सेवा का बीड़ा उठाया। ये सीमा पर रेल े जरिए सामग्री पहुंचाने े लिए स्वेच्छा से आगे आए। जब ये गडरारोड़ पहुंचने े बाद वापिस बाड़मेर े लिए रवाना हुए तो दुश्मन ने चालबाजी से संचार व्यवस्था कट कर दी। पाकिस्तानी घुसपैठिए े गलत सिगनल देने से बाड़मेर की तरफ से आने वाली मालगाड़ी गडरारोड़ से आने वाले इंजन से टकरा गई। इससे सवार रेल तीन रेल कर्मचारी देश की खातिर शहीद हो गए। रेलवे लाईन साफ हो जाने े बाद सेना े आयुध एवं आवश्यक सामग्री गडरारोड़ स्टेशन पर पहुंची तो शहीद रेलवे कर्मचारियों की निष्ठा और बलिदान को याद कर सैन्य अधिकारियों े गले रूंध गए। भारत माता की जय एवं अमर शहीदों की जय जयकार से गडरारोड़ स्टेशन गूंज उठा। गैर सैनिकों की कुर्बानी की खबर जब मोर्चे पर डटे सैनिकों को मिली तो वे दुगुने जोश से दुश्मनों पर टूट पड़े। इसमें से शहीद माधोसिंह की शादी हुए महज 15 दिन ही हुए थे। विभाग को आवश्यकता होने पर वे अपनी छुट्टियां निरस्त कर डयूटी पर आए थे। रेलवे विभाग ने इन शहीदों की याद में सालाना 9 सितंबर को शहीद दिवस मनाने का निर्णय लिया। इसे अलावा गडरारोड़ से बाड़मेर की ओर करीब आधाआधा किमी की दूरी पर अविस्थत शहीद घटनास्थलों पर रेलवे लाइन े पास स्मारक बनाने का भी निर्णय लिया गया। तब से प्रतिवर्ष इस शहादत स्थल पर हजारों लोग एकत्रित होकर शहीदों को याद करते है। गडरारोड़ रेलवे स्टेशन भवन की दीवार पर संगमरमर े एक शिलाखंड पर भी इन 17 अमरशहीदों का सामूहिक नामपट्ट स्थापित है। इसे सम्मुख प्रति वर्ष श्रद्घाजंलि अर्पित की जाती है।