जोधपुर। जोधपुर में छापेमारी के भय से बाजार हुए बंद
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शनिवार, 12 नवंबर 2016
जोधपुर। जोधपुर में छापेमारी के भय से बाजार हुए बंद
सोमवार, 7 नवंबर 2016
जोधपुर । लडक़ी की शिकायत पर हवालात पहुंचा सिरफिरा
जोधपुर । लडक़ी की शिकायत पर हवालात पहुंचा सिरफिरा
जोधपुर । एक मनचला जोधपुर की युवती के पीछे हाथ धोकर पड़ गया। पीडि़ता ने उसे लाख समझाया लेकिन, मोहब्बत के नाम पर उसने सारी हदें पार कर दी। मसुरिया क्षेत्र की निवासी मधुरिमा (बदला हुआ नाम) ने प्रतापनगर पुलिस थाने तीन बार लिखित में शिकायत भी की लेकिन, पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया। फिर मधुरिमा ने एफआईआर दर्ज कराने की गुहार की लेकिन, पुलिस ने मामले को नजरअंदाज कर दिया। थकी-हारी पीडि़ता ने आरोपी विमल ओझा, निवासी बाली को फोन कर पूछा कि वो चाहता क्या है। इस पर आरोपी ने फिर वही सनक दोहराई। तब पीडि़ता ने उससे मिलने की बात कही और पुलिस को साथ ले जाकर सनकी को पकड़वा दिया। जोधपुर पुलिस ने इसके बावजूद आरोपी को शांतिभंग के आरोप में पकडक़र कोर्ट में पेश कर दिया।
जोधपुर । एक मनचला जोधपुर की युवती के पीछे हाथ धोकर पड़ गया। पीडि़ता ने उसे लाख समझाया लेकिन, मोहब्बत के नाम पर उसने सारी हदें पार कर दी। मसुरिया क्षेत्र की निवासी मधुरिमा (बदला हुआ नाम) ने प्रतापनगर पुलिस थाने तीन बार लिखित में शिकायत भी की लेकिन, पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया। फिर मधुरिमा ने एफआईआर दर्ज कराने की गुहार की लेकिन, पुलिस ने मामले को नजरअंदाज कर दिया। थकी-हारी पीडि़ता ने आरोपी विमल ओझा, निवासी बाली को फोन कर पूछा कि वो चाहता क्या है। इस पर आरोपी ने फिर वही सनक दोहराई। तब पीडि़ता ने उससे मिलने की बात कही और पुलिस को साथ ले जाकर सनकी को पकड़वा दिया। जोधपुर पुलिस ने इसके बावजूद आरोपी को शांतिभंग के आरोप में पकडक़र कोर्ट में पेश कर दिया।
जोधपुर। पेड़ों के नीचे लगती हैं कक्षाएं, सुविधाओं का भी टोटा
जोधपुर। पेड़ों के नीचे लगती हैं कक्षाएं, सुविधाओं का भी टोटा
जोधपुर। एक ओर सरकार आरटीई के तहत स्कूलों को सम्पूर्ण सुविधाएं उपलब्ध कराने का दावा कर रही है, लेकिन कई ऐसे भी स्कूल है जहां विद्यार्थियों के पास बैठने के लिए पर्याप्त कमरे तक नहीं हैं। ऐसा ही एक स्कूल है गिलाकोर गांव का राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय। इस स्कूल में 312 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं, लेकिन इन विद्यार्थियों के पढऩे के लिए महज 4 कमरों की व्यवस्था है। इस वजह से शिक्षण कार्य के लिए कई कक्षाएं पेड़ों के नीचे संचालित करनी पड़ रही हैं। ग्रामीणों ने बताया कि विद्यालय को क्रमोन्नत तो कर दिया गया है लेकिन, यहां सुविधाएं अभी भी प्राथमिक स्तर की हैं। विद्यालय में 19 पद स्वीकृत हैं, लेकिन 8 पदों पर कार्मिक कार्यरत हैं। ग्रामीणों ने बताया कि अंग्रेजी, हिन्दी सहित कई महत्वपूर्ण विषयों के शिक्षकों के पद खाली है। विद्यालय में कनिष्ठ लिपिक तथा चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के भी सभी पद रिक्त हैं। गिलाकोर सरपंच किशनसिंह राठौड़ ने कहा कि विद्यालय में कक्षा-कक्षों की कमी होने के कारण कक्षाएं पेड़ों के नीचे संचालित हो रही हैं, जिससे विद्यार्थियों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। मेरा प्रयास रहेगा कि किसी भी योजना के तहत विद्यालय में जल्दी से जल्दी नए कमरों का निर्माण कराया जाए।
जोधपुर। एक ओर सरकार आरटीई के तहत स्कूलों को सम्पूर्ण सुविधाएं उपलब्ध कराने का दावा कर रही है, लेकिन कई ऐसे भी स्कूल है जहां विद्यार्थियों के पास बैठने के लिए पर्याप्त कमरे तक नहीं हैं। ऐसा ही एक स्कूल है गिलाकोर गांव का राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय। इस स्कूल में 312 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं, लेकिन इन विद्यार्थियों के पढऩे के लिए महज 4 कमरों की व्यवस्था है। इस वजह से शिक्षण कार्य के लिए कई कक्षाएं पेड़ों के नीचे संचालित करनी पड़ रही हैं। ग्रामीणों ने बताया कि विद्यालय को क्रमोन्नत तो कर दिया गया है लेकिन, यहां सुविधाएं अभी भी प्राथमिक स्तर की हैं। विद्यालय में 19 पद स्वीकृत हैं, लेकिन 8 पदों पर कार्मिक कार्यरत हैं। ग्रामीणों ने बताया कि अंग्रेजी, हिन्दी सहित कई महत्वपूर्ण विषयों के शिक्षकों के पद खाली है। विद्यालय में कनिष्ठ लिपिक तथा चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के भी सभी पद रिक्त हैं। गिलाकोर सरपंच किशनसिंह राठौड़ ने कहा कि विद्यालय में कक्षा-कक्षों की कमी होने के कारण कक्षाएं पेड़ों के नीचे संचालित हो रही हैं, जिससे विद्यार्थियों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। मेरा प्रयास रहेगा कि किसी भी योजना के तहत विद्यालय में जल्दी से जल्दी नए कमरों का निर्माण कराया जाए।
रविवार, 7 सितंबर 2014
रंगीलो राजस्थान : राठौड़ राजाओं का समाधि स्थल जोधपुर का जसवंत थड़ा (Jaswant Thada)
रंगीलो राजस्थान : राठौड़ राजाओं का समाधि स्थल जोधपुर का जसवंत थड़ा (Jaswant Thada)
जोधपुर मेहरानगढ़ किले से निकलने के बाद हमारा अगला पड़ाव था जसवंत थड़ा (Jaswant Thada) यानि राजा जसवंत सिंह का समाधि स्थल। पर इससे पहले कि हम किले से बाहर निकलते, किले के प्रांगण में एक महिला कठपुतलियों को गढ़ती नज़र आई। चटक रंग के परिधानों से सजी इन कठपुतलियों को अगर ध्यान से देखेंगे तो पाएँगे कि स्त्रियों की बड़ी बड़ी आँखों और पुरुषों की लहरीदार मूँछों से सुसज्जित इन कठपुतलियों के पैर नहीं होते। राजस्थामी संस्कृति में कठपुतलियों का इतिहास हजार वर्ष पुराना बताया जाता है। कठपुतलियों के इस खेल को आरंभ करने का श्रेय राजस्थानी भट्ट समुदाय को दिया जाता है। राजपूत राजाओं ने भी इस कला को संरक्षण दिया। इसी वज़ह से लोक कथाओं , किवदंतियों के साथ साथ राजपूत राजाओं के पराक्रम की कहानियाँ भी इस खेल का हिस्सा बन गयीं।
मेहरानगढ़ से निकल कर थोड़ी दूर बायीं दिशा में चलने पर ही जसवंत थड़ा का मुख्य द्वार आ जाता है। पर यहाँ से समाधि स्थल हरे भरे पेड़ों की सघनता की वज़ह से दिखाई नहीं देता। मुख्य इमारत तक पहुँचने के पहले फिर राजस्थानी लोकगायक अतिथियों का मनोरंजन करते दिखे। राजस्थानी संगीत का आनंद लेने के बाद जब मैं राजा सरदार सिंह द्वारा अपने पिता की स्मृति में बनाए गए इस समाधि स्थल के सामने पहुँचा तो दोपहर की धूप में नहाई संगमरमर की इस इमारत को देख कर मन प्रसन्न हो गया। सफेद संगमरमर की चमक बारह बजे की धूप और पार्श्व के गहरे नीले आसमान के परिदृश्य में बेहद भव्य प्रतीत हो रही थी।
जसवत थड़ा के मुख्य अहाते में घुसने के लिए दो बार सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। इसका शिल्प राजस्थानी और मुगल कालीन स्थापत्य का मिश्रण है। सामने की ओर निकले बरामदे का स्थापत्य जहाँ मुगलों से प्रभावित है वहीं ऊपरी ढाँचा बीच में मंदिर की शक़्ल लिए है और दोनों ओर से छोटी बड़ी छतरियों से घिरा है।
समाधि स्थल के अंदर एक बड़ा सा हॉल है जो दो भागों में बँटा है। पहले कक्ष में जोधपुर का राठौड़ शासकों की तसवीरे है्। हॉल के दूसरे सिरे पर राजा जसवंत सिंह की समाधि है। जसवंत थड़ा की हर मुंडेर पर कबूतरों का वास है। चित्र में देखिए किस तरह हर कबूतर ने अपने लिए एक एक खोली आबंटित कर रखी है। पर इनके द्वारा त्याग किए अवशेषों की अम्लीयता से जगह जगह संगमरमर की दीवारें काली होती दिखाई पड़ीं।
जसवंत थड़ा का यूँ तो निर्माण 1899 में राजा जसवंत सिंह के समाधिस्थल के रूप में हुआ पर यहाँ राठौड़ वंश के अन्य शासकों की समाधियाँ भी हैं जो बाद में मुख्य इमारत की बगल में बनाई गयी हैं।
जसवंत थड़ा से मेहरानगढ़ को आप अपनी संपूर्णता में देख सकते हैं । वहीं मेहरानगढ़ से पूरे जसवंत थड़ा के आहाते का रमणीक दृश्य दिखाई देता है। अलग अलग तलों पर बने बागों और छोटी सी एक झील से घिरा जसवंत थड़ा मुसाफ़िरों को अपनी संगमरमरी दूधिया चमक से सहज ही आकर्षित करता है।
जसवंत थड़ा से निकलते निकलते दिन का एक बज गया था। भोजन के लिए हम On The Rock रेस्ट्राँ में गए। रेस्ट्राँ की साज सज्जा इस तरह की गई है कि आपको लगे कि आप हरे भरे पंराकृतिक वातावरण के बीच भोजन कर रहे हैं।
साभार। http://travelwithmanish.blogspot.in/2013/03/jaswant-thada.html
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