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रविवार, 20 अक्टूबर 2019

जैसलमेर साढ़े तीन सौ साल पुराना हे धार्मिक आस्था का प्रतिक रामकुंड स्थित श्रीराम मंदिर

जैसलमेर साढ़े तीन सौ साल पुराना हे धार्मिक आस्था का प्रतिक रामकुंड स्थित श्रीराम मंदिर

चंदन सिंह भाटी
















जैसलमेर शहर से 11 किमी की दूरी पर काक नदी के किनारे पर स्थित है। इस जगह का प्रमुख आकर्षण महाराजा अमर सिंह की रानी मनसुखी देवी द्वारा निर्मित एक प्राचीन श्री राम मंदिर है,मंदिर में श्री राम दरबार का सचित्र वर्णन हे तो मंदिर के बाहर स्तम्भों पर श्री हनुमान की मूर्तियां दोनों और स्थापित हैं ,। यह मंदिर हिंदू देवता श्री राम को समर्पित है, हालांकि पर्यटक यहां गणेश, महिषासुर, और भैरव की मूर्तियों को भी देख सकते हैं। मंदिर की दीवारें शिलालेखों से सजी हैं। मंदिर के बाहर एक गोवर्धन स्तंभ है जो 18वीं सदी का माना जाता है। यात्री यहां ऊंट की सवारी का भी आनंद ले सकते हैं।

रामकुंड में महारावल अमरसिंह द्वारा १६९९ ई. में निर्मित वैष्णव मंदिर है। यहाँ के शिलालेख के अनुसार अमरसिंह की रानी सोधी मानसुखदे ने यह मंदिर का निर्माण सीताराम के लिए करवाया था। इस शिलालेख को महारावल जसवंतसिंह द्वारा १७०३ ई. में स्थापित किया गया था। मुख्य मंदिर के बाहरी भाग में कुछ भित्ति-चित्र तथा पुरुष की रेखीय रचना है।राम कुण्ड को बेहद पवित्र मन जाता हें। इस कुण्ड में स्नान करने 
में इस  आस्था का ज्वर उमड़ता हें। इस कुण्ड से स्थानीय लोगो की धार्मिक भावनाए जुडी हें। चुंधि गणेश मंदिर के बाद इस कुण्ड के दर्शन कर लोग अपने आप को धन्य  मानते हें।

जैसलमेर के भाटी शासकों की जनहिताय की भावना, कला प्रियता एवं सौंदर्य प्रेम की अभिव्यक्ति स्वरुप जैसलमेर व उसके आसपास के क्षेत्र में अनेक सरोवर, बाग-बगीचे, महल व छत्रियों का निर्माण हुआ। वे स्थापत्य कला के अनूठे उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। जैसलमेर नगर के पूर्व में घङ्सीसर सरोवर का निर्माण महारावल, झङ्सी ने आरंभ करवाया था। यहाँ बङ्े सुंदर घाट, मंदिर व बगीचियाँ बनी हुई हैं। जब घ्ड.सीसर पूरा भर जाता है तो यह एक सुंदर झील का रुप ले लेती है। इस तालाब के मध्य में बनी इमारतें व छत्रियाँ पानी में तैरती हुई दिखाई देती हैं।

रामकुंडा में 1717 ईस्वी से 1760  पीठाधीस अनंतराम जी महाराज गद्दीनसीन रहे ,राममंदिर के बाहर  पहाड़ी पर अनंतराम जी की आज भी पीठ विद्यमान हैं ,अनंतराम जी वैष्णव धर्म से जुड़े संत थे जो दिल्ली के यमुना किनारे रहते थे ,इसी दौराम जैसलमेर के महारावल अमर सिंह अकबर के दरबार में , यमुना किनारे ही  की मुलाकात अनंत राम जी हुई ,उन्हें जैसलमेर आने का न्योता दिया ,महारावल  के न्योते पर ही  अनंत राम जी जैसलमेर आये ,आते ही अनंतराम जी  दरबार की  नाथ संप्रदाय की पीठ आसरी मठ पहुंचे तो नाथ संप्रदाय के संतो  धक्के देकर बाहर निकला ,उसके बाद शहर स्थित सूली  गए वहां भी उन्हें टिकने नहीं  डेडानसर तालाब किनारे उन्होंने अपनी धूणी जमा दी मगर सूली डूंगर मठ के   पांचो मठाधीश  पहुंचे ,अनंतराम को डेडानसर से जाने का बोला तब अनंतराम जी  शेर का रूप धारण कर उन्हें चमत्कार दिखाया तो पांचो मठाधीशों ने भैंसों का रूप धारण कर ,लिया तब अनंतराम ने उन पांचो को गधो के रूप में बदल दिया , महारावल  पहुंची तो अनंतराम  सम्मान के साथ साथ रामकुंडा में  250 बीघा जमीन देकर मंदिर उन्हें सुपुर्द कर  दिया ,अनंतराम की ख्याति सिंध प्रान्त तक फेल गयी ,रामकुंड में स्नान बहुत पवित्र माना जाता हैं ,कार्तिक पूर्णिमा को रामकुंडा में बहुत बड़ा मेला भी प्रति वर्ष लगता हैं जिसमे लाखो श्रद्धालु आस्था के साथ शिरकत करते हैं ,


मंगलवार, 27 अगस्त 2013

धार्मिक आस्था का प्रतिक रामकुंड, जैसलमेर


धार्मिक आस्था का प्रतिक रामकुंड, जैसलमेर


राम कुंड, जैसलमेर शहर से 11 किमी की दूरी पर काक नदी के किनारे पर स्थित है। इस जगह का प्रमुख आकर्षण महाराजा अमर सिंह की रानी मनसुखी देवी द्वारा निर्मित एक प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर हिंदू देवता राम को समर्पित है, हालांकि पर्यटक यहां गणेश, महिषासुर, और भैरव की मूर्तियों को भी देख सकते हैं। मंदिर की दीवारें शिलालेखों से सजी हैं। मंदिर के बाहर एक गोवर्धन स्तंभ है जो 18वीं सदी का माना जाता है। यात्री यहां ऊंट की सवारी का भी आनंद ले सकते हैं।
रामकुंड में महारावल अमरसिंह द्वारा १६९९ ई. में निर्मित वैष्णव मंदिर है। यहाँ के शिलालेख के अनुसार अमरसिंह की रानी सोधी मानसुखदे ने यह मंदिर का निर्माण सीताराम के लिए करवाया था। इस शिलालेख को महारावल जसवंतसिंह द्वारा १७०३ ई. में स्थापित किया गया था। मुख्य मंदिर के बाहरी भाग में कुछ भित्ति-चित्र तथा पुरुष की रेखीय रचना है।राम कुण्ड को बेहद पवित्र मन जाता हें। इस कुण्ड में स्नान करने    में इस  आस्था का ज्वर उमड़ता हें। इस कुण्ड से स्थानीय लोगो की धार्मिक भावनाए जुडी हें। चुंधि गणेश मंदिर के बाद इस कुण्ड के दर्शन कर लोग अपने आप को धन्य  मानते हें। 

जैसलमेर के भाटी शासकों की जनहिताय की भावना, कला प्रियता एवं सौंदर्य प्रेम की अभिव्यक्ति स्वरुप जैसलमेर व उसके आसपास के क्षेत्र में अनेक सरोवर, बाग-बगीचे, महल व छत्रियों का निर्माण हुआ। वे स्थापत्य कला के अनूठे उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। जैसलमेर नगर के पूर्व में घङ्सीसर सरोवर का निर्माण महारावल, झङ्सी ने आरंभ करवाया था। यहाँ बङ्े सुंदर घाट, मंदिर व बगीचियाँ बनी हुई हैं। जब घ्ड.सीसर पूरा भर जाता है तो यह एक सुंदर झील का रुप ले लेती है। इस तालाब के मध्य में बनी इमारतें व छत्रियाँ पानी में तैरती हुई दिखाई देती हैं। 


घ्ङ्सीसर तालाब का प्रवेश-द्वार, जो टीलों की पोल के नाम से विख्यात है, तालाब की शोभा को बढ़ाने के साथ-साथ जैसलमेर केस्थापत्य का एक अनुपम नमूना भी प्रस्तुत करता है। घङ्सीसर के आलावा यहाँ अमर सागर, मूल सागर, गजरुप सागर आदि अन्य सरोवर का निर्माण भी करवाया गया था। अमरसागर के तालाब का बांध व उस पर बने महल, हिम्मतराम पटुआ के बाग एवं बगीचे की बनावट तथा अनुबाब का दृश्य काफी सुंदर है तथा स्थापत्य व कला के उत्कृष्ट नमूने हैं। मूलसागर व उसके मध्य में निर्मित महल और झालरा वास्तव में दर्शनीय हैं।

जैसलमेर से पॉचमील दूर बङ्े बाग का सुदृढ़तम जैतबंध अपने स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध है। यह विशाल अनगड़ित बङ्े-बङ्े पत्थरों को जुङ्वा कर निर्मित करवाया गया है। इस बांध के आगे बने सरोवर को जैतसर कहते हैं। इस बांध के ऊपर बने भारी राजाओं की समाधि स्थल भी उल्लेखनीय है। रावल बैरीशाल के मंडप की जाली एवं पीले पत्थर की पालिशदार चौकी कला के उत्कृष्ट नमूने हैं। बांध की दूसरी तरु एक मनोहर बाग है, जो आम, अमरुद, अनार आदि के पेङ्, फूल-पौधों व लताओं से अच्छादित है। इसके अलावा गजरुप सागर का बांध व पहाड़ के बीच में से बनाई गई पानी की बांध व पहा के बीच में से बनाई गई पानी की नहर और ऊँचे पर्वत पर बना देवी का मंदिर व आश्रम देदानसर आदि शहरी तालाब पर निर्मित व बांध एवं बगिचियाँ आदि मजबूत, कलात्मक एवं सुंदर हैं।