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सोमवार, 13 जनवरी 2020

जैसलमेर लाठी क्षेत्र में दुर्लभ प्रजाति के गिद्धों का दिखा समूह



जैसलमेर लाठी क्षेत्र में दुर्लभ प्रजाति के गिद्धों का दिखा समूह

जैसलमेर वन्यजीव बाहुल्य क्षेत्र से जाने वाले लाठी क्षेत्र से अच्छी खबर आई है। अस्तित्व बचाने में लगे गिद्ध ने लाठी क्षेत्र में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। तेजी से गायब हो रहे गिद्धों की संकट ग्रस्त प्रजातियों को लाठी क्षेत्र के भादरिया गांव में देखा गया है। ये 2000 से अधिक गिद्धों का समूह है। विलुप्त होने के कगार पर पहुंचे 7 प्रजातियों के गिद्ध दिखाई दिए। भादरीया में 7 प्रजातियों के 2000 हजार से अधिक गिद्ध झुंड में दिखे, जो मृत पशु को खा रहे थे। विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके मांसाहारी पक्षी गिद्धों की संख्या 90 से 95 प्रतिशत खत्म हो चुकी है। 2020 और सर्दी की शुरुआत दिनों में पर्यावरण जगत के लिए सुखद खबर है। गिद्धों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यहां की आबोहवा व अनुकूल रहवास स्थानीय गिद्धों के अलावा प्रवासी गिद्धों को भी रास आ रही है।

आईयूसीएन की रेड लिस्ट में गिद्ध, किंग वल्चर, वाइट रंपड वल्चर प्रजाति के गिद्धों के झुंड दिखे

क्षेत्र में लॉंग बिल्डवल्चर, किंग वल्चर, वाइट रंपड वल्चर, यूरेशियन ग्रिफन वल्चर, सिनेरियस वल्चर, हिमालयन ग्रिफन वल्चर और इजिप्शियन वल्चर का झुंड दिखाई दिया। लॉन्ग बिल्डवल्चर, किंग वल्चर, वाइट रंपड वल्चर आईयूसीएन की रेड लिस्ट में क्रिटिकली एनडेन्जर्ड सूची में है। वहीं ग्रिफन वल्चर, हिमालयन वल्चर व सिनेरियस वल्चर, खतरे की सूची में है। इनकी संख्या लगातार घट रही है। बाकी गिद्ध की प्रजातियों भी कम ही दिखाई देती है।


रिचर्स: बीमार व मृत पशुओं से गिद्धों की प्रजनन क्षमता हो रही कम

रिसर्च के अनुसार पेस्टिसाइड व डाइक्लोफैनिक के अधिक इस्तेमाल के चलते गिद्ध प्रजाति संकट में पहुंची है। फसलों में पेस्टीसाइड के अधिक प्रयोग से घरेलू जानवरों में पहुंचता है। वहीं मृत पशु खाने से गिद्धों में पहुंचता है। पेस्टिसाइड से शारीरिक अंग को नुकसान पहुंचता है। इससे इनकी प्रजनन क्षमता खत्म होने के कारण गिद्ध संकटग्रस्त पक्षियों की श्रेणी में पहुंच चुका है। वर्ष 1990 से ही देशभर में गिद्धों की संख्या गिरने लगी। गिद्धों पर यह संकट पशुओं को लगने वाले दर्द निवारक इंजेक्शन डाइक्लोफैनिक की देन थी। मरने के बाद भी पशुओं में इस दवा का असर रहता है। गिद्ध मृत पशुओं को खाते हैं। ऐसे में दवा से गिद्ध मरने लगे। इसे ध्यान में रखकर केंद्र सरकार ने पशुओं को दी जाने वाली डाइक्लोफैनिक की जगह मैलोक्सीकैम दवा का प्रयोग बढ़ाया है। यह गिद्धों को नुकसान नहीं पहुंचाती।

 वन विभाग ने किए सुरक्षा प्रबंध| वन विभाग की ओर से क्षेत्र के लाठी, धोलिया, खेतोलाई, ओढ़ाणिया, भादरिया सहित आसपास क्षेत्र में बढ़ रही दुर्लभ प्रजाति के गिद्धों की संख्या को देखते हुए उनकी सुरक्षा को लेकर कवायद शुरू कर दी गई है। इसी के अंतर्गत गिद्ध बाहुल्य क्षेत्रों में वन विभाग की ओर से गश्त बढ़ा दी गई है तथा सड़कों पर वाहनों की चपेट में आने और रेल पटरियों पर रेल की चपेट में आने से बचाने के लिए वन विभाग की ओर से यहां अपने कार्मिक तैनात कर प्रतिदिन गश्त करने के लिए पाबंद किया है।

 संकटग्रस्त गिद्धों का लाठी क्षेत्र में दिखना सुखद संकेत है। पारिस्थितिकी संतुलन के लिए गिद्ध होना जरूरी है। ये मृत पशुओं के मांस व अवशेष खाकर वातावरण को साफ रखते हैं। इसी वजह से गिद्ध को जंगल का प्राकृतिक सफाईकर्मी कहा जाता है। सिनेरियस वल्चर एवं हिमालयन वल्चर माइग्रेटरी है, जो सर्दी में देशान्तर गमन कर भोजन के लिए पहुंचते हैं। ये हिमालय के उस पार मध्य एशिया, यूरोप, तिब्बत आदि शीत प्रदेश इलाकों से आते हैं। -राधेश्याम पेमाणी,पक्षी प्रेमी लाठी