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सोमवार, 18 जून 2018

बाड़मेर आर सी ए कोषाध्यक्ष आज़ाद के खिलाफ ललित मोदी के इशारे पर भाजपा सरकार का कहर ,फिर राजपूत निशाने पे

बाड़मेर आर सी ए कोषाध्यक्ष आज़ाद के खिलाफ  ललित मोदी  के इशारे पर भाजपा सरकार का कहर ,फिर राजपूत निशाने पे 



श्रवण सिंह राठाैड़ @ नई दिल्ली। 
बाड़मेर के युवा व्यवसायी आजाद  सिंह राठौड़ को आरसीए के  चुनावों में ललित मोदी के समर्थकों से उलझना भारी पड़ गया। वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने आधी रात को बाडमेर कलेक्टर से पुलिस थाने में एक पुराने प्रकरण में मुकदमा दर्ज करा दिया। युवा लेखक और व्यवसायी आजाद सिंह को सरकार के इशारे पर पुलिस ने गिरफ्तार करने की तैयारी कर ली है। दरअसल आर्बिट्रेशन के फैसले पर आजाद सिंह राठौड़ के आरसीए का कोषाध्यक्ष बनना सरकार और ललित मोदी को नागवार गुजरा। सरकार ने अपने पूरे  प्रशासन को आजाद सिंह की जन्म पत्री तैयार करने में लगा दिया गया। फ़ाइलें खंगाली गई। थानों में आपराधिक रिकॉर्ड ढूंढा गया, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। तब सीएमओ के निर्देश पर वहां कलेक्टर आफिस के पास बाड़मेर क्लब ने  9 साल की लीज पर आजाद सिंह को कुछ वर्षों पूर्व किराए पर दी गई ज़मीन को लेकर कलेक्टर ने मुकदमा दर्ज कराया। सब जानते है कि सरकार की निगाह टेढ़ी होने पर मीनमेख निकाल कर कैसे  सलटाया जाता हैं। ये मामला भी प्रथम दृष्टया ऐसा ही नजर आ रहा है। जिस क्लब को लेकर ये मामला बनाया गया है, उस 
बाड़मेर क्लब के अध्यक्ष खुद वहां के कलेक्टर ही है। अचानक कार्यवाही क्यों ?  वजह सब समझते हैं। लीज वाली जमीन एसपी और कलेक्टर आफिस से लगती हुई है। आजाद सिंह ने वहां अपना आफिस बना रखा है। सभी आला अफसरों का वहां लगातार उठना बैठना रहा है। आजाद सिंह राठौड़ पर पहले का कोई मुकदमा नहीं है। साफ सुथरा व्यवसाय है। अब प्रशासन ने अचानक से बिना नोटिस जारी किए आजाद सिंह का आफिस सीज कर दिया है।
जिस कलेक्टर के कार्यकाल में ये लीज हुई, क्या राज्य सरकार उन अफसरों के खिलाफ भी लेक आफ सुपरविजन के तहत मुकदमा दर्ज कर ऐसे ही कार्रवाई करेगी? असल में आधी रात को दर्ज मुकदमे से सरकार की नियत में खोट नजर आ रही है। बाड़मेर में जाति विशेष के व्यक्ति को फंसाने का ये पहला मामला नहीं है। लोगों की मानें तो पिछले लोकसभा चुनावों से ही इस पटकथा की शुरुआत हो चुकी थी। जब बाड़मेर में पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह जी जसोल ने वसुंधरा राजे जी के द्वारा भाजपा का टिकट काटे जाने पर उनके निर्दलीय चुनाव लडने के बाद से लगातार वहां मौजिज लोगों को निशाना बनाकर दुर्भावना पूर्ण कार्यवाही की जा रही है। पिछले दिनों केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री गजेन्द्र सिंह जी शेखावत के खिलाफ भी ऐसे ही जोधपुर में जमीन के एक पुराने मामले में प्रकरण बनाया गया है। एक एक करके सबको जलील किया जा रहा है। 
राजपूत भाजपा में रहकर राजनीति करें, तब आपको (वसुंधरा राजे जी) को तकलीफ़। भाजपा के अध्यक्ष के लिए जब गजेन्द्र सिंह शेखावत का नाम चलें, तब आप दलील देती हो कि राजपूत को अध्यक्ष बनाया गया तो जाट नाराज हो जाएंगे। जब आजाद सिंह राठौड़ जैसा नौजवान कांग्रेस से जुड़कर जाट नेता हेमाराम जी और हरीश चौधरी जी के टीम में काम करते हुए आरसीए चुनाव लड़कर कोर्ट के आदेश से कोषाध्यक्ष बन जाता है तब भी आपको तकलीफ़। सामाजिक समरसता भी आपको मंजूर नहीं। 
मतलब भाजपा में रहने पर दिक्कत, कांग्रेस से राजनीति करने पर दिक्कत ?  जाट से दूर रहें तो बहाना, साथ रहे तो उलाहना! 
राजस्थान सदैव ही सामाजिक समरसता वाला प्रदेश रहा है। यहां कभी भी छोटे मन के लोग नहीं रहे हैं। वसुंधरा राजे सरकार सारी परंपराओं को तोडकर राजस्थान में जो जाति विशेष के खिलाफ दुर्भावना से प्रेरित होकर  बदले की भावना से कार्रवाई कर रही है, उसका नतीजा गंभीर होगा। न खाऊंगा और न खाने दूंगा, के जुमले बोलने वाले नरेंद्र मोदी जी आंखें मूंद कर सब खामोशी से देख रहे हैं। वो भी इस अपराध के लिए उतने ही दोषी है। वसुंधरा राजे जी पानी सर से निकल रहा है। आजाद सिंह हो या फिर गजेन्द्र सिंह जी। जो दोषी हो, उसे आप भले ही फांसी पर लटका दो, लेकिन पहले आप खुद का दामन तो साफ हो।‌
मोहतरमा एक तरफ तो आप की नाक के नीचे बिना लिए दिए कुछ भी काम नहीं हो रहा है, दूसरी तरफ आप गडे मुर्दे उखाड़ कर राजनीति करना चाह रहीं हों, यह मंजूर नहीं है। लाते सहन करने और  अत्याचार देख रहे लोगों को भी समझना होगा, कि ऐसे आंखें बंद करने से कुछ होगा। क्या पता अगला नंबर आपका हो ? फैसला करना सीखों। लोकतंत्र में वोट की चोट ही सबसे बड़ा हथियार है। मन में ठान लो। स्वाभिमान से बढ़कर कुछ नहीं है। दल विशेष की गुलामी छोड़ो। झटका देना सीखों, वरना गुमनामी के अंधेरे में धकेल दिए जाओगे। 
( श्रवण सिंह राठाैड़। )
#हमारा अभियान#जिंदा रहे स्वाभिमान#

सोमवार, 5 मई 2014

ऍन डी ए के बहुमत से दूर रहने रहने समभावना ?नए साथियों की तलाश ?पुराने दिग्गजों की होंगी पुछ ?

ऍन डी ए के बहुमत से दूर रहने रहने समभावना ?नए साथियों की तलाश ?पुराने दिग्गजों की होंगी पुछ ?


देश भर में चल रहे लोकसभा चुनावो में अंतिम दौर जैसे जैसे नजदीक आ रहा हें भाजपानीत ऍन ड़ी ऍ खी चिनता बढ्ती जाए रहि ह। पुरे देश में नरेंद्र मोदी की लहर का दावा करने वाली भाजपा खो संकेत मिल गए हें खी उन्हें पुरण बहमत नही मील रहा ,एस मे भजपा की नैता नयें राजनैतिक साथीयों क़ी जुगाड़ मे लग गाये ह। सूत्रानुसार भाजपा को 212 से 217 और एन डी ए को 230 से 235 सीट मिलाने की संभावनाए अधिक हे। ऐसे में नरेंद्र मोदी खो प्रधानमंत्री बानाना भजपा की लीये दुष्कर होगा भाजपा खो सरक़ार बानाने की लीये ममता बॅनर्जी ,मुलायम सिंह यादव ,जय ललिता ,नितीश कुमार ,नवीन पटनायक ,शरद पंवार ,मायावती जैसे धुरंधर नेताओ की दलोँ की सह्योग खी ज़रूरत पड सकती हेन। चूँकि ऊपर लिखित सभी नरेंद्र मोदी के नाम पर समर्थन नहीं देंगे। ऐसे में भाजपा के सामने सरकार बनाने में दिक्कत हो सकती हैं। राजनाथ सिंह को नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद तक पहुँचाने नही देंगे। ऐसे में पुराने दिग्गज नेता  लाल कृश्णा आडवाणी ,सुषमा स्वराज ,लालजी टंडन ,मुरली मनोहर जोशी ,और जसवंत सिंह खी पार्टीं मे पुछ बढेगी । जोड़ तोड़ खी राजनीती में माहिर समझे जाने वाले जसवंत सिंह खो मुलायम सिंह ,जे ललिता ,नीतीष कूमार ,नविन पटनायक खो साठ लेनी खी जिम्मेदारि दिए जाए सकती हेन। चूँकि जसवंत सिंह अभी भजपा से निष्काशित ह एस मे उन्हें ऍन ड़ी ऍ मे जिम्मदारी क़ी चर्चाए शुरू हो गईं हैं। जसवंत सिंह एन डी ए में बाखूबी ला सकते हैं मगर खी यह दल नरेन्द्रा मोदी खो प्रधनमंत्री पद पार स्वीकार्य नही करेँगे ऐसे मे लाल कृश्न आडवाणी और सुषमा स्वराज खा भाग्य खूल सकते हं। भाजपा को सरकार समझौते करने पड़ेंगे।

रविवार, 6 अप्रैल 2014

जसवंत की बगावत के बाद बाड़मेर में कमल खिलेगा?


जसवंत की बगावत के बाद बाड़मेर में कमल खिलेगा?

आभा शर्मा

साभार बाड़मेर से, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए




रेगिस्तानी इलाकों में रेत के बबूले उठना आम बात है और रेत के धोरों का रातों-रात जगह बदलना भी. पर देश के सबसे बड़े संसदीय क्षेत्र बाड़मेर की राजनीति में जो भँवर इस बार आया है वो अपनी तरह का पहला है.

राजनीतिक जीवन की संध्या में अपना 'आखिरी चुनाव' लड़ने को घर लौटे वरिष्ठ नेता 76 वर्षीय जसवंत सिंह के लिए तो यह अपनी जड़ों से जुड़ने का पहला और आखिरी मौका है. बाड़मेर में इस बार त्रिकोणीय संघर्ष है जिसमें उनका मुख्य मुकाबला कुछ ही दिनों पहले कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए जाट नेता कर्नल सोना राम से है.

यह भी एक विचित्र संयोग ही है कि जसवंत सिंह के पुत्र मानवेन्द्र सिंह ने भी अपना पहला चुनाव 1999 में कर्नल सोना राम के ख़िलाफ़ ही लड़ा था, हालांकि तब मानवेन्द्र जीत नहीं पाए थे. वैसे पांच साल बाद दो लाख से अधिक मतों से जीत दर्ज कर मानवेन्द्र ने इस सरहदी लोकसभा सीट पर पहली बार भाजपा का परचम लहरा दिया था.

अब माहौल कुछ और है. जसवंत सिंह भाजपा से निष्कासन के बाद स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं तो जीवन भर कांग्रेस में रहे कर्नल अब भाजपा में. कांग्रेस की तरफ़ से वर्तमान सांसद हरीश चौधरी प्रत्याशी बनाए गए हैं.
'जातिगत प्रतिष्ठा'


राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए भी यह प्रतिष्ठा की लड़ाई है और वो कर्नल सोनाराम की जीत सुनिश्चित करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही हैं. भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने के लिए बाड़मेर में आगामी 12 अप्रैल को पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की सभा भी आयोजित की गई है.

 
वैसे जसवंत सिंह इस चुनाव को 'जातिगत प्रतिष्ठा' का सवाल नहीं मानते और न ही ये उनके लिए जाट और राजपूत के बीच का संघर्ष है. उनका कहना है, "मैंने अपने राजनीतिक जीवन में कभी जाति आधारित राजनीति नहीं की." हालांकि उनके मन में इसे लेकर बड़ी पीड़ा है कि जो कभी 'पराए' थे अब वो 'अपने' हो गए और जो 'अपने' थे वो 'पराए'.

जिस पार्टी में इतना लम्बा सफ़र तय किया उसमें किसी और के अपना बन जाने और ख़ुद के बेगाना बन जाने का उन्हें बहुत दर्द है. बीबीसी से बातचीत में भाजपा से निकाले जाने पर अपनी कसक और भावना उन्होंने यूँ बयां की, "मैं बैरी सुग्रीव पियारा, अवगुन कौन नाथ मोहि मारा?"

वो यह भी स्वीकार करते हैं कि पार्टी के कांग्रेस से आए व्यक्ति को टिकट देने से बाड़मेर की जनता का अपमान हुआ है. इस संसदीय क्षेत्र के बहुत से लोग भी इस बात से सहमत हैं.
मतदाताओं की सहानुभूति


बाड़मेर शहर में एक चश्मे की दुकान के मालिक गिरीश कुमार सोनी कहते हैं, "जनता का रुझान जसवंत सिंह जी की तरफ़ है. इतने 'सीनियर लीडर को लास्ट प्वॉयंट पर किक आउट' करके भाजपा ने ठीक नहीं किया. मतदाताओं की सहानुभूति जसवंत सिंह जी के साथ है और अभी कोई चुनावी मुद्दा नहीं बल्कि उनकी प्रतिष्ठा की बात ही मुख्य है."

 
इस शहर में एक गन्ने के रस की दुकान चलाने वाले कुम्हार चंद का भी यही मानना है, "निर्दलीय प्रत्याशी ही आगे हैं. उनका ही माहौल है. और कोई मुद्दा फ़िलहाल नहीं है."

बाड़मेर में टैक्सी चलाने वाले किशनराम देवासी का कहना है, "वो जातिवाद के आधार पर वोट नहीं देंगे. वो आदमी और काम देखते हैं, पार्टी नहीं. इसलिए जसवंत सिंह को वोट देंगे. उन्होंने विकास के काम किए हैं और अब भी करेंगे."

वैसे इस सरहदी रेगिस्तानी प्रदेश का विकास सभी चाहते हैं चाहे वो महाबार पीथल गाँव की अनपढ़ महिला हो या गुड़ीसर की पारु. बच्चों के पढ़ने को स्कूल, बिजली और पानी, की कमी हर किसी को खलती है. मोहनलाल जीनगर मनिहारी का ठेला लगाते हैं और उन्हें नेताओं के झूठे वादों पर कोई ऐतबार नहीं.
मरू प्रदेश की आवाज़


'छोटी-मोटी दुकान' चलाने वाले नारायण जोशी को सरहद के नज़दीक होने की वजह से क्षेत्र की सुरक्षा की भी चिंता है तो पानी और शिक्षा की कमी भी इन्हें बहुत सालती है. स्वयं जसवंत सिंह का मन भी मरुभूमि की प्यास बुझाने का है पर अभी तक यह 'अधूरा सपना' ही है.

 
इसके अलावा बाड़मेर की राजस्थान की राजधानी जयपुर से बढ़ती दूरी भी उन्हें बहुत नागवार लगती है. वो पूछते हैं, "न केवल भौगोलिक बल्कि वैचारिक, व्यावहारिक, बोलचाल सब कुछ निरंतर दूर होता जा रहा है. जब छोटे-छोटे नए प्रदेश बनाए जा रहे हैं तो मरू प्रदेश की आवाज़ क्यों नहीं सुनी जाए."

पिछला चुनाव देश के पश्चिमी छोर दार्जीलिंग से जीतने वाले जसवंत सिंह पूरब के अपने रेगिस्तानी अंचल में मिल रहे मान-सम्मान, स्नेह-समर्थन से अभिभूत हैं. वैसे वे इसे अपना सौभाग्य मानते हैं कि चाहे चित्तौड़ हो या जोधपुर या दार्जीलिंग, लोगों ने उन्हें अपार स्नेह दिया है.

उधर भाजपा में भी कर्नल सोना राम को टिकट दिए जाने की वजह से कार्यकर्ताओं में ज्यादा ख़ुशी नहीं है. हालांकि पार्टी अनुशासन से बंधे हुए कोई भी खुलकर अपनी नाराज़गी का इज़हार नहीं करता.
'जातिवाद' की राजनीति


जसवंत सिंह के चुनाव प्रचार की कमान उनकी पुत्रवधु चित्रा सिंह के हाथ में है.

एक स्थानीय कार्यकर्ता ने नाम न बताने की शर्त के साथ कहा कि यह दरअसल जसवंत सिंह और सोना राम के बीच की नहीं बल्कि असली और नकली भाजपा के बीच की लड़ाई है. कुछ और लोग कहते हैं, "कर्नल सोना राम ने सदा जातिवाद की राजनीति की है और उन्हें समूचे बाड़मेर के विकास का नहीं बल्कि अपने बायतु क्षेत्र का ही अधिक ख्याल रहता है."

 
यह भी कहा जा रहा है कि कर्नल सोना राम के आक्रामक तेवरों से दुखी कांग्रेस उनके पाला बदल लेने से राहत की सांस ले रही है. जब मुक़ाबला वाकई असली और नकली भाजपा के बीच दिखाई दे रहा है तो विधान सभा के नतीजों से निराश कांग्रेस अभी भी कोई ख़ास उत्साह के मूड में नहीं है.

पार्टी समर्थक मुकेश माहेश्वरी कहते हैं कि पार्टी कार्यकर्ताओं को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी का इंतज़ार है. यदि उनकी एक बड़ी रैली हो जाए तो निराश कार्यकर्ता सक्रिय हो सकते हैं. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे कर्नल सोना राम को जिताने के लिए पूरी एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं.

जसवंत सिंह के चुनाव प्रचार की कमान संभाल रही उनकी पुत्रवधू चित्रा सिंह का कहना है कि राजपूत नेताओं पर भाजपा की तरफ़ से बहुत दवाब डाला जा रहा है कि वे उनके ससुर का साथ न दें. छोटे-बड़े सभी कार्यकर्ताओं को भी बार-बार चेतावनी दी जा रही है.
धरती पुत्र


भौगोलिक दृष्टिकोण से देश के सबसे बड़े संसदीय निर्वाचन क्षेत्र बाड़मेर संसदीय क्षेत्र में आठ विधान सभा क्षेत्र हैं जिसमे एक जैसलमेर ज़िले का भी है.

चूँकि मानवेन्द्र सिंह वर्तमान में बाड़मेर के ही शिव विधान सभा क्षेत्र से भाजपा विधायक हैं और आधिकारिक रूप से अपने पिता के चुनाव प्रचार में हिस्सा नहीं ले सकते, चित्रा सिंह पूरी मेहनत और समर्पण से अपने ससुर की जीत पक्की करने में लगी है.



उनके मुताबिक, "सिंह को मुस्लिम मतदाताओं का भी पूरा समर्थन मिल रहा है और अन्य जातियों का भी. उनका कहना है "लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं और सब समुदाय के लोग हमारे साथ हैं."

जो लोग अमल (अफीम) के शौक़ीन हैं वो अपने नए सांसद से डोडा पोस्त का सरकारी कोटा बढ़ाने की उम्मीद भी करते हैं. बाड़मेर में 'रियाण' की संस्कृति भी है और कर्नल सोना राम ने जनता की इसी नब्ज़ को पकड़ते हुए अपनी एक सभा में मुख्यमंत्री से डोडा पोस्त की समस्या का ज़िक्र किया और आग्रह किया कि सरकारी कोटा बढ़ाया जाए.

कर्नल सोना राम और जसवंत सिंह दोनों ही बाड़मेर के धरती पुत्र हैं और इत्तेफ़ाकन दोनों पूर्व फौजी भी. दोनों के लिए ही यह चुनाव एक नई पहचान का सवाल भी है. कुल मिलाकर बाड़मेर पर पूरे राजस्थान की निगाहें हैं कि इस दिलचस्प त्रिकोणीय संघर्ष में उलझी सीट पर ऊँट किस करवट बैठेगा?

सोमवार, 18 नवंबर 2013

भाजपा में शामिल हुए कांग्रेस का दामन छोड़ा

भाजपा में शामिल हुए कांग्रेस का दामन छोड़ा


बाड़मेर शिव विधानसभा क्षेत्र के भाजपा प्रत्यासी मानवेन्द्र सिंह के समर्थन में कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने वालो कि तादाद दिन बी दिन बढाती जा रही हें कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने वालो में वीरा राम मेघवाल ,गेमाराम मेघवाल ,खमु मेघवाल ,भगवानाराम ,गेमलाराम ,सभी अक्लि चेतन राम ,राणाराम ,लछाराम मेघवाल ,बाबुराम ,अमृत लाल ,भगवाना राम ,आम्बाराम जैसिंधर स्टेसन ,सचु खान सोना सिंधा ,मेवाराम केरकोरी ,खीमाराम ,हरलाल ,सालक राम ,सुमात्र खान नौपात नवाब खान नौपात ,साकिर खान हाकम खान नौपात ने भाजपा कार्यकर्ता अमर सिंह ,वीर सिंह के नेतृत्व में मानवेन्द्र सिंह से भाजपा कि सदस्यता ग्रहण कि ,