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मंगलवार, 2 सितंबर 2014

राधाष्टमी का विशेष उपाय: सांवरा संवारेंगे आपका भाग्य

राधारानी श्रीकृष्ण की प्राणसखी हैं। शास्त्रों में इन्हें ब्रज धाम की रानी और वृषभानु की पुत्री बताया गया है। भारतीय दार्शनिक तथा धार्मिक शास्त्रों में राधारानी और श्रीकृष्ण को शाश्वत प्रेम का प्रतीक माना जाता हैं। शास्त्रों में राधा की माता का नाम कीर्ति बाताया जाता है तथा इन्हें 'वृषभानु पत्नी' कहकर भी संबोधित किया जाता है। राधारानी को कृष्ण की सखी, प्रेमिका और कहीं-कहीं कृष्ण की शक्ति के रूप में माना जाता हैं।राधाष्टमी का विशेष उपाय: सांवरा संवारेंगे आपका भाग्य
राधाष्टमी पर्व: शास्त्रानुसार राधाष्टमी का पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाने का विधान है। कृष्ण जन्माष्टमी के पन्द्रह दिन बाद अर्थात शुक्लपक्ष की अष्टमी को ही राधा जी का जन्मोत्सव मनाया जाता हैं। शास्त्रों में ऐसी मान्यता है के इस दिन भगवान श्री कृष्ण की बाल सखी, जगजननी भगवती शक्ति राधाजी का जन्म हुआ। शास्त्रों में ब्रजमंडल का बरसाना क्षेत्र राधा जी की जन्मस्थली माना जाता है। अतः राधाष्टमी पर्व ब्रजमंडल के बरसाना क्षेत्र में राधा का जन्मोत्सव मनाने के लिए अनंत भक्तगण एकत्र होते हैं। इस दिन भक्तगण पहाड़ी स्थित राधाजी के मंदिर में पूजन करते हैं तथा गहवर वन की परिक्रमा करते हैं। ब्रजमंडल ही भगवान कृष्ण की जन्मभूमि है तथा यहीं पर उन्होंने राधा संग अपना यौवन बिताया था। इस दिन राधा जी का विशिष्ट पूजन और व्रत किया जाता है।

कृष्ण शक्ति राधारानी: श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व राधा के बिना अपूर्ण है क्योंकि राधा जी ही कृष्ण की मूल शक्ति कही गई है। शास्त्रों में कृष्ण को सर्वेश्वर कहकर संबोधित किया गया है। कृष्ण का यह स्वरुप शास्त्रों में माधुर्य को दर्शाता है। यदि सर्वेश्वर कृष्ण के साथ से राधाजी को हटा दिया जाए तो सर्वेश्वर कृष्ण का व्यक्तित्व माधुर्यहीन हो जाएगा। राधा के ही कारण श्रीकृष्ण रासेश्वर और सर्वेश्वर हैं। तभी कृष्ण को राधारमण कहकर बुलाया जाता है और यही कारण है की राधा का नाम सैदेव कृष्ण से पहले आता है। इसीलिए सैदेव राधेश्याम राधेकृष्ण यां राधेकांत कहकर बुलाया जाता है ना के कृष्ण-राधा, कांत-राधा अथवा श्याम-राधा।

राधाष्टमी पूजन व उपाय: दैनिकृत से निवृत्त होकर ठीक मध्यान के समय राधाकृष्ण का पूजन करें। घर की उत्तर दिशा में लाल रंग का कपड़ा बिछाएं तथा मध्यभाग में चौकी पर मिट्टी या तांबे का कलश स्थापित करें। चौकी पर राधा और कृष्ण की मूर्ति यां चित्र स्थापित करें राधाकृष्ण जी को पंचामृत से स्नान कराएं। राधा जी को सोलह श्रृंगार आर्पित करें। तत्पश्चात राधाकृष्ण का पंचोउपचार पूजन करें। धूप, दीप, पुष्प चंदन और मिश्री अर्पित करें तथा इस मंत्र का सामर्थ्यानुसार जाप करें।

मंत्र: ममः राधासर्वेश्वर शरणं।।

मंत्र जाप पूरा होने के बाद यथासंभव पूजन पश्चात उपवास करें अथवा एक समय भोजन करें और व्रत करें। पूजन पूरा होने के बाद ब्राहमण सुहागिनों स्त्रियों को भोजन कराकर आशीर्वाद लें तथा राधा जी को अर्पित सोलह श्रृंगार ब्राहमण सुहागिनों स्त्रियों को भेंट करें। श्रद्धा और विधिपूर्वक यह व्रत करने पर मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है व इस लोक और परलोक के सुख भोगता है। मनुष्य ब्रज का रहस्य जान लेता है।