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रविवार, 26 अगस्त 2012

आइये जाने की क्या हें गणेश चतुर्थी(गणेश चोथ)..केसे मनाएं......

आइये जाने की क्या हें गणेश चतुर्थी(गणेश चोथ)..केसे मनाएं........

पंडित दयानन्द शास्त्री


विनायक चतुर्थी व्रत भगवान श्री गणेश का जन्म उत्सव का दिन है. यह दिन गणेशोत्सव के रुप में सारे विश्व में बडे हि हर्ष व श्रद्वा के साथ मनाया जाता है.
इस वर्ष गणेश चतुर्थी 19 सितंबर,2012 को है। यह त्योहार इस बार ‘महाचतुर्थी’ के संयोग में मनेगा। इस दिन रिद्धि-सिद्धि के दाता का प्रिय दिन बुधवार भी है। पं. दयानंद शास्त्री(मोब.---09024390067 ) के अनुसार सामान्य रूप से 2008 में बुधवार को गणेश चतुर्थी आई थी। अब 2022 में ऐसा संयोग बनेगा। भाद्र अधिकमास के बाद आने वाली गणेश चतुर्थी की बात करें तो 152 साल के अंतराल में सिर्फ इसी बार बुधवार को चतुर्थी का विशेष संयोग बनेगा।
19 साल बाद भाद्र अधिकमास आया है। सन् 1936 से लेकर 2088 तक के पंचांगों की गणना करें तो सिर्फ इसी बार यह संयोग बन रहा है। पं. दयानंद शास्त्री(मोब.---09024390067 ) के अनुसार आमतौर पर भाद्र अधिकमास 18 अगस्त से 16 सितंबर के बीच ही आता है। भाद्र अधिकमास के बाद जब-जब गणेश चतुर्थी आती है वह 19 सितंबर के आसपास ही मनाया जाता है। 1955, 1974, 1993 में ऐसी स्थिति बनी। अब 2031, 50 में भी ऐसी स्थिति बनेगी।भगवान श्री गणेश को जीवन की विध्न-बाधाएं हटाने वाला कहा गया है. और श्री गणेश सभी कि मनोकामनाएं पूरी करते है. गणेशजी को सभी देवों में सबसे अधिक महत्व दिया गया है. कोई भी नया कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व भगवान श्री गणेश को याद किया जाता है.
पं. दयानंद शास्त्री(मोब.---09024390067 ) के अनुसार श्रीगणेश चतुर्थी विघ्नराज, मंगल कारक, प्रथम पूज्य, एकदंत भगवान गणपति के प्राकट्य का उत्सव पर्व है। आज के युग में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि मानव जाति को गणेश जी के मार्गदर्शन व कृपा की आज हमें सर्वाधिक आवश्यकता है। आज हर व्यक्ति का अपने जीवन में यही सपना है की रिद्धि सिद्धि, शुभ-लाभ उसे निरंतर प्राप्त होता रहे, जिसके लिए वह इतना अथक परिश्रम करता है। ऐसे में गणपति हमें प्रेरित करते हैं और हमारा मार्गदर्शन करते हैं।
विषय का ज्ञान अर्जन कर विद्या और बुद्धि से एकाग्रचित्त होकर पूरे मनोयोग तथा विवेक के साथ जो भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु परिश्रम करे, निरंतर प्रयासरत रहे तो उसे सफलता अवश्य मिलती है। गणेश पुराण के अनुसार गणपति अपनी छोटी-सी उम्र में ही समस्त देव-गणों के अधिपति इसी कारण बन गए क्योंकि वे किसी भी कार्य को बल से करने की अपेक्षा बुद्धि से करते हैं। बुद्धि के त्वरित व उचित उपयोग के कारण ही उन्होंने पिता महादेव से वरदान लेकर सभी देवताओं से पहले पूजा का अधिकार प्राप्त किया।
पं. दयानंद शास्त्री(मोब.---09024390067 ) के अनुसार भारत में इसकी धूम यूं तो सभी प्रदेशों में होती है. परन्तु विशेष रुप से यह महाराष्ट में किया जाता है. इस उत्सव को महाराष्ट का मुख्य पर्व भी कहा जा सकता है. लोग मौहल्लों, चौराहों पर गणेशजी की स्थापना करते है. आरती और भगवान श्री गणेश के जयकारों से सारा माहौळ गुंज रहा होता है. इस उत्सव का अंत अनंत चतुर्दशी के दिन श्री गणेश की मूर्ति समुद्र में विसर्जित करने के बाद होता है.


क्यों मानती हें गणेश चोथ/चतुर्थी 


पं. दयानंद शास्त्री(मोब.---09024390067 ) के अनुसार हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल चतुर्थी को हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार गणेश चतुर्थी मनाया जाता है. गणेश पुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार इसी दिन समस्त विघ्न बाधाओं को दूर करनेवाले, कृपा के सागर तथा भगवान शंकर और माता पार्वती के पुत्र श्री गणेश का आविर्भाव हुआ था. भगवान विनायक के जन्मदिवस पर मनाया जानेवाला यह महापर्व महाराष्ट्र सहित भारत के सभी राज्यों में हर्सोल्लास पूर्वक और भव्य तरीके से आयोजित किया जाता है. इस महापर्व पर लोग प्रातः काल उठकर सोने, चांदी, तांबे अथवा मिट्टी के गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर षोडशोपचार विधि से उनका पूजन करते हैं. पूजन के पश्चात् नीची नज़र से चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मणों को दक्षिणा देते हैं. इस पूजा में गणपति को 21 लड्डुओं का भोग लगाने का विधान है.
शिवपुराणके अन्तर्गत रुद्रसंहिताके चतुर्थ (कुमार) खण्ड में यह वर्णन है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वारपालबना दिया। शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगणोंने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका। अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सर काट दिया। इससे भगवती शिवा क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षिनारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया। शिवजी के निर्देश पर विष्णुजीउत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गजमुखबालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्यहोने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष हो जा। गणेश्वर!तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अ‌र्घ्यदेकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए। तदोपरांत स्वयं भी मीठा भोजन करे। वर्षपर्यन्तश्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।


सफ़ेद आंकड़े/श्वेतार्क के गणेश जी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं -----


पं. दयानंद शास्त्री(मोब.---09024390067 ) के अनुसार भगवान गणेश के अनेक रुपों में आंकड़े के गणेश पूजा का बहुत महत्व है। आंकड़े के गणेश की पूजा धन, ऐश्वर्य, सफलता के लिए बहुत महत्व है। माना जाता है कि जिस परिवार में आंकड़े के गणेश की रोज पूजा हो वहां दरिद्रता, गरीबी, रोग और कष्टों का कोई स्थान नहीं होता बल्कि सुख और सफलता के साथ ही अपार धन का भण्डार होता है। गणेश उत्सव के दौरान यदि यदि आंकड़े के गणेश की विधि-विधान से पूजा की जाए तो सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इस तरह आंकड़े के गणेश की पूजा-
---सफेद आंकड़े की जड़ मिलने पर उसकी सफाई कर साफ जल से स्नान कराएं। उसे लाल कपड़े पर रखकर लाल चन्दन, अक्षत, लाल फूल, सिन्दूर से पूजा करें। धूप-दीप जलाएं, भोग लगाएं साथ ही एक सिक्का भी चढाएं। इसके बाद कुछ विशेष गणेश मंत्रों की तय संख्या का जप करने के लिए संकल्प लें। इन मंत्रों 10 माला का जप लाल माला, रुद्राक्ष की माला या मूंगे की माला से करें। जप के लिए मंत्र है -
----ऊँ गं गणपतये नम:
----श्री गणेशाय नम:
----ऊँ भालचन्द्राय नम:
--ऊँ एकदन्ताय नम:
-----ऊँ लम्बोदराय नम:
आंकड़े के जड़ रूप में साक्षात गणेश की पूजा करने से विद्या, धन, संतान, प्रॉपर्टी, असुरक्षा के भय का अंत और शांति मिलती है।


------केसे करें श्री गणेश की पूजा---विधि---


1. दीप प्रज्ज्वलन एवं पूजन
2. आचमन
3.पवित्रकरण (मार्जन)
4. आसन पूजा
5. स्वस्तिवाचन
6. संकल्प
Sankalp संकल्प : (दाहिने हाथ में जल अक्षत और द्रव्य लेकर निम्न संकल्प मंत्र बोले-----


‘ऊँ विष्णु र्विष्णुर्विष्णु : श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पै वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारत वर्षे भरत खंडे आर्यावर्तान्तर्गतैकदेशे —— नगरे —— ग्रामे वा बौद्धावतारे विजय नाम संवत्सरे श्री सूर्ये दक्षिणायने वर्षा ऋतौ महामाँगल्यप्रद मासोत्तमे शुभ भाद्रप्रद मासे शुक्ल पक्षे चतुर्थ्याम्‌ तिथौ भृगुवासरे हस्त नक्षत्रे शुभ योगे गर करणे तुला राशि स्थिते चन्द्रे सिंह राशि स्थिते सूर्य वृष राशि स्थिते देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु च यथा यथा राशि स्थान स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुणगण विशेषण विशिष्टायाँ चतुर्थ्याम्‌ शुभ पुण्य तिथौ —- गौत्रः —- अमुक शर्मा दासो ऽहं मम आत्मनः श्रीमन्‌ महागणपति प्रीत्यर्थम्‌ यथालब्धोपचारैस्तदीयं पूजनं करिष्ये।”


इसके पश्चात्‌ हाथ का जल किसी पात्र में छोड़ देवें।
7. श्री गणेश ध्यान
8. आवाहन व प्रतिष्ठापन


आवाहन-----


नागास्यम्‌ नागहारम्‌ त्वाम्‌ गणराजम्‌ चतुर्भुजम्‌। भूषितम्‌ स्व-आयुधै-है पाश-अंकुश परश्वधैहै॥
आवाह-यामि पूजार्थम्‌ रक्षार्थम्‌ च मम क्रतोहो। इह आगत्व गृहाण त्वम्‌ पूजा यागम्‌ च रक्ष मे॥
ॐ भू-हू भुवह स्वह सिद्धि-बुद्धिसहिताय गण-पतये नमह, गणपतिम्‌-आवाह-यामि स्थाप-यामि। (गंधाक्षत अर्पित करें।)


प्रतिष्ठापन-----


आवाहन के पश्चात देवता का प्रतिष्ठापन करें-


अस्यै प्राणाहा प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाह क्षरन्तु च। अस्यै देव-त्वम्‌-अर्चायै माम-हेति च कश्चन॥ ॐ भू-हू भुवह स्वह सिद्धि-बुद्धि-सहित-गणपते सु-प्रतिष्ठितो वरदो भव।


9. स्नान
10. वस्त्र एवं उपवस्त्र
11. गंध व सिन्दूर
12. पुष्प एवं पुष्पमाला
13. दूर्वा
14. धूप
15. दीप
16. नैवेद्य
17. दक्षिणा एवं श्रीफल
18. पुष्पों के सात श्री गणेश पूजा किजि ये – Offer Flowers to lord ganesha


विनायक अश्तोत्ताराम्स 108 names of गणेशा----


श्री गणेश स्तुती , गणेशा अश्तोत्तारा सथानमा स्तोत्रं , श्री गणेशा पंचारातना स्तोत्रं----


18. आरती


19. पुष्पाँजलि


Pushpanjali Mantra पुष्पाञ्जलि समर्पण----


ॐ भूहू-भुवह सिद्धि-बुद्धि-सहिताय महा-गणपतये नमह्‌, मन्त्र-पुष्प-अंजलि समर्पयामि।


20. प्रदक्षिणा


21. प्रार्थना एवं क्षमा प्रार्थना


Pradikshna and Kshama Prarthana प्रदक्षिणा व क्षमाप्रार्थना-----


यानि कानि च पापानि ज्ञात-अज्ञात-कृतानि च। तानि सर्वाणि नश्यन्ति प्रदक्षिण-पदे पदे॥
आवाहनम्‌ न जानामि न जानामि तवार्चनाम्‌ । यत्‌-पूजितम्‌ मया देव परि-पूर्णम्‌ तदस्तु मे ॥
अपराध सहस्त्राणि-क्रियंते अहर्नीशं मया । तत्‌सर्वम्‌ क्षम्यताम्‌ देव प्रसीद परमेश्वर ॥


22. प्रणाम एवं पूजा समर्पण।


गणेश चतुर्थी/चोथ व्रत कथा – Ganesh Chaturthi Vrat Story --------


श्री गणेश चतुर्थी व्रत को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलन में है. कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती नर्मदा नदी के निकट बैठे थें. वहां देवी पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से समय व्यतीत करने के लिये चौपड खेलने को कहा. भगवान शंकर चौपड खेलने के लिये तो तैयार हो गये. परन्तु इस खेल मे हार-जीत का फैसला कौन करेगा?
इसका प्रश्न उठा, इसके जवाब में भगवान भोलेनाथ ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका पुतला बना, उस पुतले की प्राण प्रतिष्ठा कर दी. और पुतले से कहा कि बेटा हम चौपड खेलना चाहते है. परन्तु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है. इसलिये तुम बताना की हम मे से कौन हारा और कौन जीता.
यह कहने के बाद चौपड का खेल शुरु हो गया. खेल तीन बार खेला गया, और संयोग से तीनों बार पार्वती जी जीत गई. खेल के समाप्त होने पर बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिये कहा गया, तो बालक ने महादेव को विजयी बताया. यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गई. और उन्होंने क्रोध में आकर बालक को लंगडा होने व किचड में पडे रहने का श्राप दे दिया. बालक ने माता से माफी मांगी और कहा की मुझसे अज्ञानता वश ऎसा हुआ, मैनें किसी द्वेष में ऎसा नहीं किया. बालक के क्षमा मांगने पर माता ने कहा की, यहां गणेश पूजन के लिये नाग कन्याएं आयेंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऎसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगें, यह कहकर माता, भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई.
ठिक एक वर्ष बाद उस स्थान पर नाग कन्याएं आईं. नाग कन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालुम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया. उसकी श्रद्वा देखकर गणेश जी प्रसन्न हो गए. और श्री गणेश ने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिये कहा. बालक ने कहा की है विनायक मुझमें इतनी शक्ति दीजिए, कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वो यह देख प्रसन्न हों.
बालक को यह वरदान दे, श्री गणेश अन्तर्धान हो गए. बालक इसके बाद कैलाश पर्वत पर पहुंच गया. और अपने कैलाश पर्वत पर पहुंचने की कथा उसने भगवान महादेव को सुनाई. उस दिन से पार्वती जी शिवजी से विमुख हो गई. देवी के रुष्ठ होने पर भगवान शंकर ने भी बालक के बताये अनुसार श्री गणेश का व्रत 21 दिनों तक किया. इसके प्रभाव से माता के मन से भगवान भोलेनाथ के लिये जो नाराजगी थी. वह समाप्त होई.
यह व्रत विधि भगवन शंकर ने माता पार्वती को बताई. यह सुन माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई. माता ने भी 21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया और दुर्वा, पुष्प और लड्डूओं से श्री गणेश जी का पूजन किया. व्रत के 21 वें दिन कार्तिकेय स्वयं पार्वती जी से आ मिलें. उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का व्रत मनोकामना पूरी करने वाला व्रत माना जाता है.


गणेश/विनायक चतुर्थी व्रत विधि (Vinayak Chaturthi Fast Method)----


श्री गणेश का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन हुआ था. इसलिये इनके जन्म दिवस को व्रत कर श्री गणेश जन्मोत्सव के रुप में मनाया जाता है. जिस वर्ष में यह व्रत रविवार और मंगलवार के दिन का होता है. उस वर्ष में इस व्रत को महाचतुर्थी व्रत कहा जाता है.


पं. दयानंद शास्त्री(मोब.---09024390067 ) के अनुसार इस व्रत को करने की विधि भी श्री गणेश के अन्य व्रतों के समान ही सरल है. गणेश चतुर्थी व्रत प्रत्येक मास में कृ्ष्णपक्ष की चतुर्थी में किया जाता है,. पर इस व्रत की यह विशेषता है, कि यह व्रत सिद्धि विनायक श्री गणेश के जन्म दिवस के दिन किया जाता है. सभी 12 चतुर्थियों में माघ, श्रावण, भाद्रपद और मार्गशीर्ष माह में पडने वाली चतुर्थी का व्रत करन विशेष कल्याणकारी रहता है.
व्रत के दिन उपवासक को प्रात:काल में जल्द उठना चाहिए. सूर्योदय से पूर्व उठकर, स्नान और अन्य नित्यकर्म कर, सारे घर को गंगाजल से शुद्ध कर लेना चाहिए. स्नान करने के लिये भी अगर सफेद तिलों के घोल को जल में मिलाकर स्नान किया जाता है. तो शुभ रहता है. प्रात: श्री गणेश की पूजा करने के बाद, दोपहर में गणेश के बीजमंत्र ऊँ गं गणपतये नम: का जाप करना चाहिए.
इसके पश्चात भगवान श्री गणेश धूप, दूर्वा, दीप, पुष्प, नैवेद्ध व जल आदि से पूजन करना चाहिए. और भगवान श्री गणेश को लाल वस्त्र धारण कराने चाहिए. अगर यह संभव न हों, तो लाल वस्त्र का दान करना चाहिए.
पूजा में घी से बने 21 लड्डूओं से पूजा करनी चाहिए. इसमें से दस अपने पास रख कर, शेष सामग्री और गणेश मूर्ति किसी ब्राह्मण को दान-दक्षिणा सहित दान कर देनी चाहिए.


चन्द्र दर्शन निषेध(हमेशा बचिए चतुर्थी का चन्द्रमा देखने से)----
पं. दयानंद शास्त्री(मोब.---09024390067 ) के अनुसार प्रत्येक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को चन्द्रदर्शन के पश्चात्‌ व्रती को आहार लेने का निर्देश है, इसके पूर्व नहीं। किंतु भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन (चन्द्रमा देखने को) निषिद्ध किया गया है।इस दिन चन्द्र दर्शन करने से भगवान श्री कृष्ण को भी मणि चोरी का कलंक लगा था।
जो व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखते हैं उन्हें झूठा-कलंक प्राप्त होता है। ऐसा शास्त्रों का निर्देश है। यह अनुभूत भी है। इस गणेश चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने वाले व्यक्तियों को उक्त परिणाम अनुभूत हुए, इसमें संशय नहीं है। यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाए तो निम्न मंत्र का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए-


'सिहः प्रसेनम्‌ अवधीत्‌, सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्वमन्तकः॥'


----गणेश चतुर्थी पर किन विशेष मंत्रो का करें जाप-
------शास्त्रोक्त वचन अनुसार यह गणेश मंत्र त्वरित, चमत्कारिक, आर्थिक प्रगति व समृध्दिदायक, समस्त बाधाएं दूर करने वाला हैं।
ॐ गं गणपतये नमः।
-----शत्रु द्वारा की गई तांत्रिक क्रिया को नष्ट करने व विविध कामनाओं कि शीघ्र पूर्ति हेतु यह मंत्र लाभकारी है।
ॐ वक्रतुंडाय हुम्‌।
-----आलस्य, निराशा, कलह, विघ्न दूर करने के लिए इस मंत्र का जाप करें।
ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा।
-----मंत्र जाप से कर्म बंधन, रोगनिवारण, समस्त विघ्न, कुबुद्धि, कुसंगत्ति, दूर्भाग्य, से मुक्ति होती हैं व आध्यात्मिक चेतना, धन प्राप्त होता है।
ॐ गं क्षिप्रप्रसादनाय नम:।
----जानिए की इस गणेश चतुर्थी पर आपकी राशी अनुसार क्या करें..??? क्या क्या नहीं करें..???
-----मेषःवाहन प्रयोग में सावधानी अपेक्षित है।
क्या करें-श्री आदित्य ह्रदय स्त्रोत्र का नित्य प्रात: पाठ करें।
क्या न करें-समय व्यर्थ ना गवाएं।
-----वृषभःआज कार्यक्षेत्र में व्यर्थ की भागदौड़ रहेगी।
क्या करें-शिव की अराधना करें।
क्या न करें-कार्य की रूकावट से तनाव ना लें।
-----मिथुनःनए व्यापारिक अनुबंध प्राप्त होंगे।
क्या करें-मुख में मिश्री रखें।
क्या न करें-कार्य की गुप्त बात हर किसी से चर्चा ना करें।
----कर्कःपारिवारिक जीवन सुखमय होगा।
क्या करें-ॐ बुं बुधाय नमः' का जाप करें।
क्या न करें-कार्य की अनदेखी ना करें।
----सिंहःआर्थिक योजनाएं सफल होंगी।
क्या करें-ॐ बम बटुकाय नमःका जाप करें।
क्या न करें-कटु वचन ना बोलें।
----कन्याःआय के नए स्रोत्र बनेंगे। लाभ मजबूत होगा।
क्या करें-काली वस्तु का दान करें।
क्या न करें-किसी की निंदा ना करें।
----तुलाःवाणी पर नियंत्रण रखना आवश्यक है।
क्या करें-लाल वस्तु का दान करें।
क्या न करें-आत्मविश्वास में कमी ना होने दें।
---वृश्चिकःआज परिवार से जुड़ा कोई महत्वपूर्ण निर्णय लें।
क्या करें-ॐ आदित्याय नमःका जाप करें।
क्या न करें-यात्रा से बचें।
----धनुःपरिवार में किसी छोटे बच्चे के स्वास्थ के प्रति सचेत रहें।
क्या करें-शिव चालीसा व अभिषेक लाभकारी होगा।
क्या न करें-गरीब का अनादर ना करें।
----मकरःआज व्यापार के कारण मानसिक उलझनें अधिक रहेगी।
क्या करें-भैरव अराधना करें।
क्या न करें-किसी का दिल ना दुखाएं।
----कुम्भःअपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें।
क्या करें-धनदा स्तोत्र का पाठ करें।
क्या न करें-निवेश से बचें।
----मीनःदांपत्यजीवन में भी शांति और मेल-जोल बना रहेगा।
क्या करें-सफ़ेद वस्तु का दान करें।
क्या न करें-क्रोध नहीं करें।