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बुधवार, 1 अप्रैल 2020

जैसलमेर शहर में लॉक डाउन की स्थिति में 12 ऑटो रिक्शों की व्यवस्था, अनुमति जारी अति आवश्यक सेवाओं के परिवहन के लिए उपयोग लिया जा सकेगा

जैसलमेर शहर में लॉक डाउन की स्थिति में 12 ऑटो रिक्शों की व्यवस्था, अनुमति जारी

अति आवश्यक सेवाओं के परिवहन के लिए उपयोग लिया जा सकेगा

जैसलमेर, 31 मार्च/जिला कलक्टर नमित मेहता के निर्देशों की पालना में जिला परिवहन कार्यालय जैसलमेर द्वारा लॉक डाउन की स्थिति में अति आवश्यक सेवाओं के लिए स्वास्थ्य केन्द्रों एवं अन्य प्रमुख स्थानों पर जैसलमेर शहर में 12 ऑटो रिक्शा के सुचारु प्रबंधन की व्यवस्था की गई है ताकि आवश्यक सेवाओं के लिए अनुबंध किए गए इन ऑटो रिक्शा से जरूरतमंद व्यक्ति परिवहन कर सके।

जिला परिवहन अधिकारी टीकूराम पूनड़ ने एक आदेश जारी कर हनुमान चौराहा पर 3, राजकीय अस्पताल, गांधी कॉलोनी, गोपा चौक व गड़ीसर चौराहा पर 2-2 ऑटो रिक्शा वाहनों के संचालन की अनुमति प्रदान की है। इन ऑटो रिक्शा का संचालन नगर परिषद क्षेत्र जैसलमेर में ही किया जाएगा एवं इन्हें 14 अप्रैल तक के लिए परमिट जारी किया गया है।

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जैसलमेर में कोरोना बचाव में कोरोन्टाईन व आईसोलशन उपयोग के लिए

4 निजी अस्पताल आरक्षित,

जिला मजिस्ट्रेट नमित  मेहता ने जारी किए आदेश

जैसलमेर, 31 मार्च/जिला कलक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट नमित मेहता ने एक आदेश जारी कर कोरोना वायरस के बचाव व उपचार तथा आईसोलेशन व कोरोन्टाईन केन्द्रों के रूप में उपयोग किए जाने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम व राजस्थान एपीडेमिक डीजीजेज एक्ट के तहत जैसलमेर शहर में संचालित निजी अस्पतालों के भवनों को आरक्षित किया है।

जिला कलक्टर द्वारा जारी आदेश के अनुसार जैसलमेर शहर में संचालित निजी चिकित्सालय माहेश्वरी हॉस्पिटल एवं रिसर्च सेन्टर, न्यू राजस्थान हॉस्पिटल एवं फर्टीलिटी सेन्टर, गोल्डन सिटी हॉस्पिटल व आर.एल. मेमोरियल हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेन्टर जैसलमेर को आरक्षित किया गया है। इसमें माहेश्वरी हॉस्पिटल में 50, न्यू राजस्थान हॉस्पिटल एवं फर्टीलिटी सेन्टर व आर.एल. मेमोरियल हॉस्पिटल में 25-25 तथा गोल्डन सिटी हॉस्पिटल में 30 बेड्स् की व्यवस्था है।

आदेश के अनुसार ये निजी चिकित्सालय जिला प्रशासन की मांग पर 2 घण्टों के अन्दर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, उपखण्ड अधिकारी व तहसीलदार को सौंप देंगे।

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ग्राम पंचायत रामदेवरा के सभी राजकीय एवं निजी विद्यालयों को किया अधिग्रहित

जैसलमेर, 31 मार्च/जिला कलक्टर नमित मेहता के आदेशों की पालना में पोकरण उपखण्ड मजिस्ट्रेट अजय ने ग्राम पंचायत रामदेवरा क्षेत्र की समस्त राजकीय /निजी(प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च माध्यमिक व मदरसा) विद्यालयों को कोविड़-19 की परिस्थितियों के मद्देनज़र अधिग्रहित किया है। इसके साथ ही उन्होंने संबंधित विद्यालयों में कार्यरत समस्त स्टॉफ को आगामी आदेश तक अपने-अपने विद्यालय में उपस्थित रहने के लिए पाबंद भी किया  है।

उपखण्ड मजिस्टे्रट अजय ने प्रधानाचार्य राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय रामदेवरा को इस बारे में निर्देशित किया है। समस्त विद्यालयों एवं उनके स्टॉफ के प्रभारी के रूप में उगमसिंह प्रधानाचार्य राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय को नियुक्त किया गया है।

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शुक्रवार, 27 मार्च 2020

कोरोना लॉक डाउन का असर सरहदी सैन्य शक्ति और भक्ती आस्था केंद्र तनोट माता मंदिर में सन्नाटा ,पुजारी के आलावा कोई नहीं

कोरोना लॉक डाउन का असर

सरहदी सैन्य शक्ति और भक्ती आस्था केंद्र तनोट माता मंदिर में सन्नाटा ,पुजारी के  आलावा कोई नहीं

जैसलमेर सदियों में पहली बार सैन्य भक्ति और शक्ति आस्था केंद्र तनोट माता मंदिर में कोरोना संक्रमण के चलते  लॉक डाउन के कारन सन्नाटा पसरा हैं ,जबकि आम नवरात्रि में हज़ारो की तादाद में श्रद्धालु दर्शार्थ स्थानीय और बहरी प्रांतो से आते हैं ,खासकर सैनिक परिवारों की इस मंदिर के प्रति प्रगाढ़ आस्था हैं ,इस बार करोनाबन्दी के चलते मंदिर व्यवस्थापक ने मंदिर 31 मार्च तक आमजन के लिए  बंद रखने की घोषणा की थी ,तब से मंदिर में सिर्फ पुजारी द्वारा ही पूजा अर्चना करवाई जा रही हैं ,


तनोट राय माता  मंदिर का इतिहास

जैसलमेर से करीब 130 किमी दूर स्थि‍त माता तनोट राय (आवड़ माता) का मंदिर है। तनोट माता को देवी हिंगलाज माता का एक रूप माना जाता है। हिंगलाज माता शक्तिपीठ वर्तमान में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के लासवेला जिले में स्थित है।

भाटी राजपूत नरेश तणुराव ने तनोट को अपनी राजधानी बनाया था। उन्होंने विक्रम संवत 828 में माता तनोट राय का मंदिर बनाकर मूर्ति को स्थापित किया था। भाटी राजवंशी और जैसलमेर के आसपास के इलाके के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी तनोट माता की अगाध श्रद्धा के साथ उपासना करते रहे। कालांतर में भाटी राजपूतों ने अपनी राजधानी तनोट से हटाकर जैसलमेर ले गए परंतु मंदिर तनोट में ही रहा।

तनोट माता का य‍ह मंदिर यहाँ के स्थानीय निवासियों का एक पूज्यनीय स्थान हमेशा से रहा परंतु 1965 को भारत-पाक युद्ध के दौरान जो चमत्कार देवी ने दिखाए उसके बाद तो भारतीय सैनिकों और सीमा सुरक्षा बल के जवानों की श्रद्धा का विशेष केन्द्र बन गई।

सितम्बर 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हुआ। तनोट पर आक्रमण से पहले श‍त्रु (पाक) पूर्व में किशनगढ़ से 74 किमी दूर बुइली तक पश्चिम में साधेवाला से शाहगढ़ और उत्तर में अछरी टीबा से 6 किमी दूर तक कब्जा कर चुका था। तनोट तीन दिशाओं से घिरा हुआ था। यदि श‍‍त्रु तनोट पर कब्जा कर लेता तो वह रामगढ़ से लेकर शाहगढ़ तक के इलाके पर अपना दावा कर सकता था। अत: तनोट पर अधिकार जमाना दोनों सेनाओं के लिए महत्वपूर्ण बन गया था।

17 से 19 नवंबर 1965 को श‍त्रु ने तीन अलग-अलग दिशाओं से तनोट पर भारी आक्रमण किया। दुश्मन के तोपखाने जबर्दस्त आग उगलते रहे। तनोट की रक्षा के लिए मेजर जय सिंह की कमांड में 13 ग्रेनेडियर की एक कंपनी और सीमा सुरक्षा बल की दो कंपनियाँ दुश्मन की पूरी ब्रिगेड का सामना कर रही थी। शत्रु ने जैसलमेर से तनोट जाने वाले मार्ग को घंटाली देवी के मंदिर के समीप एंटी पर्सनल और एंटी टैंक माइन्स लगाकर सप्लाई चैन को काट दिया था।

दुश्मन ने तनोट माता के मंदिर के आसपास के क्षेत्र में करीब 3 हजार गोले बरसाएँ पंरतु अधिकांश गोले अपना लक्ष्य चूक गए। अकेले मंदिर को निशाना बनाकर करीब 450 गोले दागे गए परंतु चमत्कारी रूप से एक भी गोला अपने निशाने पर नहीं लगा और मंदिर परिसर में गिरे गोलों में से एक भी नहीं फटा और मंदिर को खरोंच तक नहीं आई।

सैनिकों ने यह मानकर कि माता अपने साथ है, कम संख्या में होने के बावजूद पूरे आत्मविश्वास के साथ दुश्मन के हमलों का करारा जवाब दिया और उसके सैकड़ों सैनिकों को मार गिराया। दुश्मन सेना भागने को मजबूर हो गई। कहते हैं सैनिकों को माता ने स्वप्न में आकर कहा था कि जब तक तुम मेरे मंदिर के परिसर में हो मैं तुम्हारी रक्षा करूँगी।

सैनिकों की तनोट की इस शानदार विजय को देश के तमाम अखबारों ने अपनी हेडलाइन बनाया।

एक बार फिर 4 दिसम्बर 1971 की रात को पंजाब रेजीमेंट की एक कंपनी और सीसुब की एक कंपनी ने माँ के आशीर्वाद से लोंगेवाला में विश्व की महानतम लड़ाइयों में से एक में पाकिस्तान की पूरी टैंक रेजीमेंट को धूल चटा दी थी। लोंगेवाला को पाकिस्तान टैंकों का कब्रिस्तान बना दिया था।

1965 के युद्ध के बाद सीमा सुरक्षा बल ने यहाँ अपनी चौकी स्थापित कर इस मंदिर की पूजा-अर्चना व व्यवस्था का कार्यभार संभाला तथा वर्तमान में मंदिर का प्रबंधन और संचालन सीसुब की एक ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है। मंदिर में एक छोटा संग्रहालय भी है जहाँ पाकिस्तान सेना द्वारा मंदिर परिसर में गिराए गए वे बम रखे हैं जो नहीं फटे थे।

लोंगेवाला विजय के बाद माता तनोट राय के परिसर में एक विजय स्तंभ का निर्माण किया, जहाँ हर वर्ष 16 दिसम्बर को महान सैनिकों की याद में उत्सव मनाया जाता है।

हर वर्ष आश्विन और चै‍त्र नवरात्र में यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। अपनी दिनोंदिन बढ़ती प्रसिद्धि के कारण तनोट एक पर्यटन स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध होता जा रहा है।

इतिहास: मंदिर के वर्तमान पुजारी सीसुब में हेड काँस्टेबल कमलेश्वर मिश्रा ने मंदिर के इतिहास के बारे में बताया कि बहुत पहले मामडि़या नाम के एक चारण थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्त करने की लालसा में उन्होंने हिंगलाज शक्तिपीठ की सात बार पैदल यात्रा की। एक बार माता ने स्वप्न में आकर उनकी इच्छा पूछी तो चारण ने कहा कि आप मेरे यहाँ जन्म लें।

माता कि कृपा से चारण के यहाँ 7 पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया। उन्हीं सात पुत्रियों में से एक आवड़ ने विक्रम संवत 808 में चारण के यहाँ जन्म लिया और अपने चमत्कार दिखाना शुरू किया। सातों पुत्रियाँ देवीय चमत्कारों से युक्त थी। उन्होंने हूणों के आक्रमण से माड़ प्रदेश की रक्षा की।



माड़ प्रदेश में आवड़ माता की कृपा से भाटी राजपूतों का सुदृढ़ राज्य स्थापित हो गया। राजा तणुराव भाटी ने इस स्थान को अपनी राजधानी बनाया और आवड़ माता को स्वर्ण सिंहासन भेंट किया। विक्रम संवत 828 ईस्वी में आवड़ माता ने अपने भौतिक शरीर के रहते हुए यहाँ अपनी स्थापना की।

विक्रम संवत 999 में सातों बहनों ने तणुराव के पौत्र सिद्ध देवराज, भक्तों, ब्राह्मणों, चारणों, राजपूतों और माड़ प्रदेश के अन्य लोगों को बुलाकर कहा कि आप सभी लोग सुख शांति से आनंदपूर्वक अपना जीवन बिता रहे हैं अत: हमारे अवतार लेने का उद्देश्य पूर्ण हुआ। इतना कहकर सभी बहनों ने पश्चिम में हिंगलाज माता की ओर देखते हुए अदृश्य हो गईं। पहले माता की पूजा साकल दीपी ब्राह्मण किया करते थे। 1965 से माता की पूजा सीसुब द्वारा नियुक्त पुजारी करता है।