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मंगलवार, 20 अगस्त 2013

रेशमा को भाई तो नाथू को बहना का इंतज़ार चालीस वर्षों से

सरहदे बनी दीवारें। . सुनी हें कलाईयाँ सीमा के उस पार और इस पार 

रेशमा को भाई तो नाथू को बहना का इंतज़ार चालीस वर्षों से 

 सिकंदर शेख 

जैसलमेर आज सुबह के समय जैसलमेर में पाक विस्थापितों की भील बस्ती की रेशमा के घर में चुल्हा जल रहा है. रेशमा अपने परिवार के पेट की भूख मिटाने की तैयारी कर रही है साथ ही में उसका छोटा बेटा उसके साथ खेल रहा है, आँखों में एक सूनापन साफ़ देखा जा सकता है की वो किसी अपने का इंतज़ार कर रही है, चूल्हे पर रोटियाँ बनाती रेशमा को जलती लकड़ी के धुंए से नहीं वरन अपनी आत्मा के अन्दर की जलन से उठी हुक के धुंए से आँखों में जलन हो रही है, आज के दिन अपने भाइयों के इंतज़ार में अपनी आँखें पथराये बैठी रेशमा का पूरा परिवार पाकिस्तान में रहता है,, लेकिन सीमाओं के पहरे की वजह से पिछले कई सालों से इनका मिलना नहीं हुआ,रेशमा के भाइयों की कलाई हर साल आज ही के दिन रेशमा का इंतज़ार कर रही है ,,,ये इंतज़ार कब ख़त्म होगा,ये तो वक़्त ही बताएगा, मगर भारत पाक बॉर्डर पर रहने वाले लोगों को विभाजन के साथ ही ये तो पता था की हम लोग अलग हो रहे हैं मगर ये नहीं पता था की इतने अलग हो जायेंगे की सूरत देखने को तरस जायेंगे,,हुक्मरानों के तालूकात पर निर्भर रहने वाले ये दिलों के रिश्ते ,,,आज आंसूं बहा रहे हैं ,,सरकार के कड़े वीसा नियमों से सरहद तो मजबूत हो रही है ,,मगर दिलों के रिश्ते तार तार हो रहे हैं ,,,
जैसलमेर में बसे भील परिवारों में ये केवल एक उदाहरण नहीं है जो अपने भाईयों के लिये आंसू बहा रही है। इसी बस्ती के नाथूराम भील की कहानी भी ऐसी ही है जिसकी बहिन की शादी पाकिस्तान में की हुई है और वीजा और अन्य अनुमतियों के पचडे के चलते न तो ये भाई पिछले कई वर्षों से अपनी बहिन से मिल पाये है और न ही वो बहिन अपने भाईयों के पास भारत आ पाई है। ऐसे में रक्षा के बंधन के त्यौहार पर बहिन की तस्वीर देख कर आंखे नम करते भाईयों के लिये यह त्यौहार किसी पीडा से कम नहीं है। रंग बिरंगी राखियों से सजी कलाईयां देख कर बचपन की यादों के सहारे इस त्यौहार को मनाने को मजबूर ये परिवार ही असल में पीडा भोग रहे हैं सीमाओं पर खींची दरारों की और उम्मीद भर नजर से देख रहे हैं कि कोई तो दिन ऐसा अवश्य ही आयेगा जब ये दरारें भरेंगी और प्यार के रंग इन सीमाओं पर भारी पडेंगे और भाई बहिनों से व बहिनें भाईयों बेखौफ मिल सकेंगी और त्यौहारों के रंग इनकी दुनियां में भी खुशियां बिखेरने वाले हो सकेंगे
त्यौहार रिश्तों की खूबसूरती को बनाये रखने का एक बहाना होते हैं। यूं तो हर रिश्ते की अपनी एक महकती पहचान होती है लेकिन भाई बहिन का रिश्ता एक भावुक अहसास होता है जिस पर रक्षाबंधन के त्यौहार के छींटे पडते ही एक ऐसी सौंधी सुगंधित बयार लाता है जो मन के साथ साथ पोर पोर को महका देती है लेकिन भील बस्ती के इन परिवारों की पीडा देख कर ये शब्द बेकार से लगते हैं जहां भाई बहिन के प्यास पर सीमाओं का पहरा लगा है और मजबूर है ये भाई और बहिन राखी पर राखी बांधने व बंधवाने के लिये अपने पाकिस्तान में निवास कर रहे भाई बहिनों से..