दुनिया का एकमात्र गणेश मंदिर, जहां परिवार संग विराजमान हैं गणपति बप्पा
भक्त यहां अपने लड़का-लड़की के विवाह का प्रथम निमंत्रण भगवान गणेश जी को देते हैं। पहले यहां पर निमंत्रण के रूप में पीले चावल दिए जाते थे। भक्तों द्वारा भेजे पत्रों को प्रतिदिन पुजारी श्रीगणेश के सामने पढ़ता है। डाकिया इन दुर्गम रास्तों से होता हुआ प्रतिदिन मंदिर में पत्र पहुंचाता है। मंदिर में हिंदी या अंग्रेजी पत्रों को पुजारी पढ़ता है। इसके अतिरिक्त अन्य भाषा में आए पत्रों को खोलकर गणेश जी के सामने रख दिया जाता है। भक्तों का मानना है कि गणेश जी पत्रों द्वारा उनकी व्यथा को सुनते हैं अौर उनके कष्टों को दूर करते हैं।
कहा जाता है कि जब श्रीकृष्ण अौर देवी रुक्मणी का विवाह निश्चित हुआ तो भूलवश श्रीगणेश को निमंत्रण नहीं भेजा गया। जिससे उनके वाहन मूषक को गुस्सा आ गया। मूषक सेना ने बारात के पूरे रास्ते को ऐसा कुतर दिया कि उस पर चल पाना असंभव हो गया। इस रुकावट को दूर करने के लिए भगवान गणेश से प्रार्थना की गई अौर उनके खुश होने के बाद ही विवाह संपन्न हुआ। कहा जाता है कि तब से ही गणेश जी को प्रथम निमंत्रण भेजने की प्रथा चली आ रही है। प्रतिदिन आने वाले हजारों पत्रों को नष्ट नहीं किया जाता। वर्ष भर इन पत्रों को संभालकर रखा जाता है। बाद में उनकी लुगदी बनाकर विभिन्न क्रियाओं से गुजार कर फिर कागज बना लिया जाता है।