बाड़मेर का लाल लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
बाड़मेर का लाल लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 9 नवंबर 2016

बाड़मेर। जम्मू-कश्मीर में शहीद हुआ बाड़मेर का लाल

बाड़मेर। जम्मू-कश्मीर में शहीद हुआ बाड़मेर का लाल


बाड़मेर। जम्मू-कश्मीर में दहशतगर्दों से मुकाबला करते हुए बाड़मेर के बायतू उपखंड के शहर गांव का जवान शहीद हो गया। कश्मीर के पुंछ सेक्टर में तैनात बीएसएफ का जवान प्रेम चौधरी एलओसी पर तैनात था। एलओसी पर पाकिस्तान की गोलीबारी के चलते प्रेम चौधरी वीरगति को प्राप्त हो गए। प्रेम चौधरी के शहीद होने की खबर इलाके में आग की तरह फैल गई और लोगों ने शहीद के घर का रुख कर लिया है। प्रेम चौधरी का विवाह एक साल पहले ही हुआ था और उनके कोई संतान नहीं है। शहीद का शव गुरुवार को उतरलाई वायुसेना क्षेत्र पहुंचेगा।

son of barmer martyred on border - News in Hindi

शनिवार, 23 मार्च 2013

बाड़मेर का लाल कभी कपड़ा मिलों में करते थे मजदूरी, आज राजस्थान के गौरव बने आई पी एस गुमनाराम!

बाड़मेर का लाल

कभी कपड़ा मिलों में करते थे मजदूरी, आज राजस्थान के गौरव बने आई पी एस गुमनाराम!

--
बाड़मेर की रामसर तहसील के १क्क्क् लोगों की आबादी वाले आंटा गांव के आरपीएस गुमनाराम चौधरी परिवार व गांव के गौरव बन गए हैं। शुक्रवार को आरपीए में आयोजित दीक्षांत परेड समारोह में शामिल होने के लिए माता-पिता, पत्नी भूरी देवी व बेटा दुर्गेश बाड़मेर से यहां पहुंचे।
कभी कपड़ा मिलों में करते थे मजदूरी, आज गांव का गौरव बने IPS गुमनाराम!
गुमनाराम के पिता भीमाराम ने सफेद धोती कुर्ते पर ऊनी कोर्ट व सिर पर पगड़ी पहन रखी थी, तो मां मूली देवी ने दोनों हाथों में लाख के चूड़े व घाघरा लूगड़ी ओढ़ रखी थी। पासिंग परेड पूरी होने के बाद गुमनाराम ने माता-पिता के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। उसके बाद डीजीपी हरिश्चंद्र मीना व आरपीए डायरेक्टर बीएल सोनी समेत अन्य उच्चाधिकारियों से परिजनों की मुलाकात कराई।

गुमनाराम ने बताया कि पढ़ाई के लिए मुझे गांव से कई किलोमीटर दूर पैदल जाना पड़ता था। गांव में लाइटें नहीं होती थी। पिता मजदूरी करते थे। आठवीं से 12 वीं कक्षा तक स्कूल में छुट्टियों के दौरान अहमदाबाद जाकर कपड़े की मिलों में प्रिंटिंग व धुलाई का काम करता था। 12वीं करने के बाद बीएसटीसी की परीक्षा में पास हो गया।
गुमनाराम ने 1999 में ग्रेजुएशन किया।
कभी कपड़ा मिलों में करते थे मजदूरी, आज गांव का गौरव बने IPS गुमनाराम!
इससे पहले कभी प्रशासनिक नौकरी के बारे में बताने वाला कोई नहीं था। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान अधिकारी बनने का ख्वाब गरीबी की वजह से मुश्किल लगा। कोचिंग के लिए फीस नहीं थी इसलिए स्कूलों में टीचिंग के दौरान ही आरएएस की तैयारी में जुट गया। वर्ष 2000 में आरएएस की परीक्षा दी। उसके बाद 2006 में राजस्थान राज्य बीमा सेवा में चयन हुआ। फिर 2011 में आरपीएस के लिए चयन हुआ।