संस्मरण : बाड़मेर। दो दिन गडरारोड रूके थे अटलजी- वरिष्ठ पत्रकार गोली
लम्बी बीमारी के बाद गुरूवार देर शाम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी शुन्य में विलीन हो गए। अपने इस महान नेता के शोक में पूरा देश गमगीन है। देश की राजधानी दिल्ली से सरहद के इस कोने तक हर शख्स अपने इस महान नेता को श्रद्धासुमन अर्पित कर रहा है।
बाड़मेर निवासी और वरिष्ठ पत्रकार शंकरलाल गोली बताते है कि साल 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद शिमला समझौते के विरोध में अटलजी गडरारोड आए थे। उस दौरान वाजपेयी पूरे दो दिन गडरारोड रूके थे और इस दौरान वें भी पूरे समय उनके साथ रहे थे। वाजपेयी ने गडरारोड में रात भी बिताई थी।
(फोटू - वरिष्ठ पत्रकार शंकरलाल गोली )
गोली बताते है कि भारतीय जनसंघ साल 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद हुए शिमला समझौते का विरोध कर रहा था। विरोध स्वरूप हर प्रांत के जनसंघ के बड़े नेता अपने जत्थे के साथ सरहद पर जाकर शिमला समझौते के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करवा रहे थे। इसी क्रम में जनसंघ के बड़े नेता पाकिस्तान से लगती सीमा पर विरोध दर्ज करवाने गडरारोड आये थे।
गोली के मुताबिक पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत भी उस समय जनसंघ के बड़े नेता थे और बाड़मेर में उस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। जनसंघ के युवा नेता के रूप में गोली को गडरारोड का प्रभार सौंपा गया था। वाजपेयी जी उस समय जनसंघ के वरिष्ठ बड़े नेता थे और शिमला समझौते का विरोध करने सीमावर्ती गांव गडरारोड आए थे। गोली ने बताया कि तब अटलजी अपने पूरे जत्थे के साथ गडरारोड पहुंचे थे। वहां से अपने जत्थे के साथ दो-ढाई किलोमीटर पैदल चलकर अंर्तराष्ट्रीय सीमा रेखा पर भारत के अंतिम स्तंभ तक जाकर उन्होनें अपना विरोध दर्ज करवाया था।
लम्बी बीमारी के बाद गुरूवार देर शाम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी शुन्य में विलीन हो गए। अपने इस महान नेता के शोक में पूरा देश गमगीन है। देश की राजधानी दिल्ली से सरहद के इस कोने तक हर शख्स अपने इस महान नेता को श्रद्धासुमन अर्पित कर रहा है।
बाड़मेर निवासी और वरिष्ठ पत्रकार शंकरलाल गोली बताते है कि साल 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद शिमला समझौते के विरोध में अटलजी गडरारोड आए थे। उस दौरान वाजपेयी पूरे दो दिन गडरारोड रूके थे और इस दौरान वें भी पूरे समय उनके साथ रहे थे। वाजपेयी ने गडरारोड में रात भी बिताई थी।
(फोटू - वरिष्ठ पत्रकार शंकरलाल गोली )
गोली बताते है कि भारतीय जनसंघ साल 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद हुए शिमला समझौते का विरोध कर रहा था। विरोध स्वरूप हर प्रांत के जनसंघ के बड़े नेता अपने जत्थे के साथ सरहद पर जाकर शिमला समझौते के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करवा रहे थे। इसी क्रम में जनसंघ के बड़े नेता पाकिस्तान से लगती सीमा पर विरोध दर्ज करवाने गडरारोड आये थे।
गोली के मुताबिक पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत भी उस समय जनसंघ के बड़े नेता थे और बाड़मेर में उस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। जनसंघ के युवा नेता के रूप में गोली को गडरारोड का प्रभार सौंपा गया था। वाजपेयी जी उस समय जनसंघ के वरिष्ठ बड़े नेता थे और शिमला समझौते का विरोध करने सीमावर्ती गांव गडरारोड आए थे। गोली ने बताया कि तब अटलजी अपने पूरे जत्थे के साथ गडरारोड पहुंचे थे। वहां से अपने जत्थे के साथ दो-ढाई किलोमीटर पैदल चलकर अंर्तराष्ट्रीय सीमा रेखा पर भारत के अंतिम स्तंभ तक जाकर उन्होनें अपना विरोध दर्ज करवाया था।
गोली ने बताया कि अटलजी ने वहां की मिट़टी को अपने मस्तक पर लगाया और भारत माता की जय हो के नारों का उद़घोष किया। इतना ही नहीं अंर्तराष्ट्रीय सीमा रेखा पर अटलजी अपने जत्थे के कार्यकर्ताओं के साथ बैठ गए और कविता पाठ किया।
इस आंदोलन में भारतीय जनसंघ के बाड़मेर के नेता वैघ श्री वल्लभ शास्त्री, चर्तुभुज गुप्ता, झामनदास राठी, उदवदास सिंधी, टीकमदास सिंधी, रामस्वरूप अग्रवाल एवं गडरारोड के कोजराज राठी, कल्याणसिंह तामलोर, हिंगलाजदान देथा, इन्द्रदान बारहट, बालचंद माहेश्वरी, भोमजीमल जोशी ने सक्रिय भुमिका निभाई।
प्रधानमंत्री रहते कोजराज राठी से मिले थे वाजपेयी
गोली बताते है कि वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के बाद गडरारोड के कोजराज राठी उनसे मिलने दिल्ली गए थे। जब कोजराज प्रधानमंत्री निवास पर पहुंचे, उस समय अटलजी किसी व्यस्त कार्यक्रम होने के बावजूद जैसे ही उन्हें कोजराज राठी के आने का संदेश मिला, वे तुरंत उनसे मिलने पहुंचे। अटलजी बड़ी ही आत्मीयता से उनसे मिले और उनकी आवभगत भी की।
इस आंदोलन में भारतीय जनसंघ के बाड़मेर के नेता वैघ श्री वल्लभ शास्त्री, चर्तुभुज गुप्ता, झामनदास राठी, उदवदास सिंधी, टीकमदास सिंधी, रामस्वरूप अग्रवाल एवं गडरारोड के कोजराज राठी, कल्याणसिंह तामलोर, हिंगलाजदान देथा, इन्द्रदान बारहट, बालचंद माहेश्वरी, भोमजीमल जोशी ने सक्रिय भुमिका निभाई।
प्रधानमंत्री रहते कोजराज राठी से मिले थे वाजपेयी
गोली बताते है कि वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के बाद गडरारोड के कोजराज राठी उनसे मिलने दिल्ली गए थे। जब कोजराज प्रधानमंत्री निवास पर पहुंचे, उस समय अटलजी किसी व्यस्त कार्यक्रम होने के बावजूद जैसे ही उन्हें कोजराज राठी के आने का संदेश मिला, वे तुरंत उनसे मिलने पहुंचे। अटलजी बड़ी ही आत्मीयता से उनसे मिले और उनकी आवभगत भी की।