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रविवार, 27 सितंबर 2015

महान भारतीय अमर शहीद स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह

महान भारतीय अमर शहीद स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह

भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में (अब पाकिस्तान में) हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलाँ है जो पंजाब, भारत में है। उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था। भगत सिंह का परिवार एक आर्य-समाजी सिख परिवार था। भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्याधिक प्रभावित रहे।




13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। उनका मन इस अमानवीय कृत्य को देख देश को स्वतंत्र करवाने की सोचने लगा। भगत सिंह ने चंद्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर क्रांतिकारी संगठन तैयार किया।




लाहौर षड़यंत्र मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फाँसी की सज़ा सुनाई गई व बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास दिया गया।




भगत सिंह को 23 मार्च, 1931 की शाम सात बजे सुखदेव और राजगुरू के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। तीनों ने हँसते-हँसते देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया



भगत सिंह एक अच्छे वक्ता, पाठक व लेखक भी थे। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखा व संपादन भी किया।




उनकी मुख्य कृतियां हैं, 'एक शहीद की जेल नोटबुक (संपादन: भूपेंद्र हूजा), सरदार भगत सिंह : पत्र और दस्तावेज (संकलन : वीरेंद्र संधू), भगत सिंह के संपूर्ण दस्तावेज (




मैं नास्तिक क्यों हूँ




यह आलेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था जो लाहौर से प्रकाशित समाचारपत्र "द पीपल" में 27 सितम्बर 1931 के अंक में प्रकाशित हुआ था। भगतसिंह ने अपने इस आलेख में ईश्वर के बारे में अनेक तर्क किए हैं। इसमें सामाजिक परिस्थितियों का भी विश्लेषण किया गया है।

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गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे अशफाक उल्ला खां

फैजाबाद। देश सेवा को सर्वोच्च मानने वाले अमर शहीद अशफाक उल्लाह खां हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल पक्षधर थे। काकोरी काण्ड के सिलसिले में 19 दिसम्बर 1927 को फैजाबाद जेल में फांसी पर चढ़ाए गए अशफाक उल्लाह खां ने समय समय पर ऎसे उदाहरण पेश किये जिनसे यह स्पष्ट होता था कि वह हिन्दू मुस्लिम एकता के न केवल प्रबल समर्थक थे बल्कि इस दिशा में रचनात्मक कार्य भी करते थे।
दिल्ली में गिरफ्तार किये जाने के बाद काकोरी काण्ड के विशेष न्यायाधीश सैय्यद एनुद्दीन ने जब उन्हें समझाने की कोशिश की तो उन्होंने कहा कि इस मामले में वह अकेले मुस्लिम हैं इसलिए उनकी और भी जिम्मेदारी है। जेल में उनसे मिलने आये एक मित्र ने जब जेल से भागने की बात की तो उन्होंने जवाब दिया, "भाई किसी मुसलमान को भी तो फांसी पर चढ़ने दो।"

काकोरी काण्ड के नायक शहीद रामप्रसाद बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा में लिखा, कु छ साथी अशफाक उल्लाह के मुसलमान होने के कारण उन्हें घृणा की दृष्टि से देखते थे और हिन्दू मुस्लिम झगड़ा होने पर सजातीय लोग उन्हें गालियां देते थे और काफिर कहते थे, लेकिन अशफाक उल्लाह बिना हिचक अपने रास्ते पर बढ़ते गये। अशफाक उल्लाह खां के क्रातिकांरी आन्दोलन में दिये गये सहयोग को अपनी उपलब्धि मानते हुए बिस्मिल ने लिखा है कि लोगों के फांसी पर चढ़ने से जनता को एक संदेश मिलेगा जो भाईचारे को बढ़ाते हुए देश की आजादी और तरक्की के लिए काम करेगा। राष्ट्रीयता प्रबल समर्थक अशफाक उल्लाह एक अच्छे शायर भी थे। वह हजरत वारसी के नाम से शायरी किया करते थे। उनकी शायरी में ओज और माधुर्य के साथ राष्ट्रीय भावना थी। उनकी शायरी से झलकता था कि उनके मन में गुलामी और सामाजिक वैमनस्यता को लेकर कितनी पीड़ा थी।

स्वतन्त्रता के लिए आशावादी रहे इन क्रांतिकारियों में सदैव स्वतंत्रता की दृढ इच्छाशक्ति। उनका मानना था मरते बिस्मिल, रोशन, लाहिणी, अशफाक अत्याचार से, होंगे सैकड़ों पैदा इनके रूधिर की धार से.. पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जिला जेल में, अशफाक उल्लाह खां को फैजाबाद जिला जेल में और ठाकुर रोशन सिंह को इलाहाबाद जिला जेल में 19 दिसम्बर 1927 को फांसी दी गयी थी। फैजाबाद जेल में अशफाक उल्लाह खां की जब अन्तिम इच्छा पूछी गयी तो उन्होंने रेशम के नये कपड़े और इत्र मांगा। जेल वालों ने उनकी इच्छा तुरन्त पूरी कर दी। फैजाबाद जेल स्थित फांसीघर अब शहीद कक्ष के नाम से जाना जाता है।

इस अमर शहीद की याद में कई कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं जिनमें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा उनके परिजन आते हैं। शहीद की याद में फैजाबाद में मुशायरा एवं कवि सम्मेलन आयोजित किया जायेगा और अशपकाक उल्लाह मेमोरियल शहीद शोध संस्थान द्वारा (माटी रतन) सम्मान दिया जायेगा।

रविवार, 9 सितंबर 2012

अमर शहीद पूनम सिंह भाटी के 55 वें बलिदान दिवस पर विशेष जान की बाजी लगा कर की भुट्टेवाला चौकी की रक्षा


अमर शहीद पूनम सिंह भाटी के 55 वें बलिदान दिवस पर विशेष


जान की बाजी लगा कर की भुट्टेवाला चौकी की रक्षा

पाक रेंजरों पर भारी पड़ा जैसाणा का सपूत


 जैसलमेर 9 सितंबर 1965 के दिन भुट्ïटोवाला चौकी पर एक हैड कांस्टेबल की अगुवाई में मात्र 8-9पुलिस के जवान अपना नियमित चौकसी का कार्य कर रहे थे। घास-फूस से बनी चौकी में उनकी बंदूक जंग लगी पड़ी थी। अचानक करीब 60 पाकिस्तान रेंजरों ने पुलिस चौकी को घेर लिया। उनके पास युद्ध करने की पूरी तैयारी थी। सूर्यास्त के बाद यद्यपि सैनिक हथियारों का इस्तेमाल नहीं करते हैं, लेकिन पाकिस्तानी रेंजरों ने युद्ध तमाम मर्यादाएं तोड़कर भुट्ïटोवाला चौकी पर कब्जा करने के लिए धावा बोल दिया। रेंजरों की ओर से आई गोलियों की आवाज से पुलिस के जवान चौकस हो गए। चौकी के हवालदार लूण सिंह रावलोत व अन्य सिपाहियों ने राष्ट्र रक्षा के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया। इस चौकी पर ही उस समय एक सिपाही भाटी पूनम सिंह भी मुकाबले में सबसे आगे था। एक तरफ रात पड़ जाने से पुलिस जवानों को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। वहीं दूसरी ओर चारों ओर से पाक रेंजरों ने इन्हें घेर रखा था। लेकिन उसके बावजूद हवालदार लूण सिंह ने दुश्मन को घेरने की जोरदार योजना तैयार कर ली। उन्होंने अपने अल्प साथियों को निर्देश दिया कि अब घबराने की कोई बात नहीं है। सभी जवान चारों दिशाओं से अपने मोर्चे खोलकर वार करने शुरू कर दें। ऐसा चमत्कार हुआ कि चंद ही क्षणों में पाक के पांच रेंजर रेत के धोरों में धराशायी हो गए।

पुलिस के जवानों ने जोश भरे पाक रेंजरों के हौसले पस्त कर दिए लेकिन दूसरी ओर पुलिस जवानों के सामने कारतूसों के खाली स्टॉक का संकट खड़ा हो गया। इस संकट पूर्ण स्थिति में शहीद पूनम सिंह ने हिम्मत के साथ काम लिया। वे रेंगकर मरे हुए पाक रेंजरों के पास पहुंचे तथा उनके हथियार व बंदूक लाकर अपने साथियों को देकर एक बार युद्ध का माहौल बदल दिया। इसी दरम्यान पूनम सिंह भाटी के हाथों पाक के दो और रेंजर शिकार हो गए। कुल मिलाकर शहीद भाटी ने पाक कमांडर अफजल खां सहित आठ रेंजरों को मौत के घाट उतार दिया। इस बीच उधर से आई एक गोली पूनम सिंह को शहीद चिता पर ले गई। शेष त्न पेज १२

मरणोपरांत पुलिस अग्नि सेवा पदक दिया गया: गौरतलब है कि शहीद भाटी हाबूर गांव के निवासी जयसिंह भाटी की दूसरी संतान थे। उनकी माता का नाम श्रीमती धाय कंवर था। अपने देश के लिए जब भाटी ने प्राण न्यौछावर किए तब उनकी आयु मात्र 25 वर्ष ही थी। वह अविवाहित थे। सीमा के सपूत व शहीद भाटी को 26 जनवरी 1966 को गणतंत्र दिवस समारोह में तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा पुलिस अग्नि सेवा पदक द्वारा सम्मानित किया था। शहीद की यादगार में पुलिस अधीक्षक कार्यालय के सामने तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरो सिंह शेखावत ने शहीद की प्रतिमा का अनावरण कर उनकी याद चिर स्थाई की है।