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गुरुवार, 2 जनवरी 2014

वैश्या की बेटी पर आया बादशाह का दिल, पाने के लिए खेला खूनी खेल

कोटा. राजस्थान में अनेकों प्रेम कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन उनमे से कुछ ही ऐसी है जो इतिहास के पन्नों पर अपना नाम लिखवाने में सफल हो पाई। ऐसी ही एक कहानी है मारवाड़ के एक वैश्या की बेटी की जिसने राजा के आदेश की अवहेलना की। उसे अपने प्रेम में इतना विश्वास था कि उसने सजा की परवाह किए बिना राजा के प्रेम का प्रस्ताव ठुकरा दिया था।




ये प्रेम कहानी पूरे राजस्थान में बहुत मशहूर है। गुजरात के बादशाह महमूद शाह का दिल मारवाड़ से आई जवाहर पातुर की बेटी कंवल पर आ गया। उसने कवंल को समझाने की कोशिश की और कहा, " मेरी बात मान ले, मेरी रखैल बन जा। मैं तुझे दो लाख रूपये सालाना की जागीर दे दूंगा और तेरे सामने पड़े ये हीरे-जवाहरात भी तेरे। जिद मत कर मेरा कहना मान और मेरी रखैल बनना स्वीकार करले। इतना कहकर राजा ने हीरों का हार कंवल के गले में पहनाने की कोशिश की।



राजा के इस बर्ताव से खुश होने के बजाए कवंल ने नाराजगी दर्ज की और राजा की बात ठुकराते हुए कंवल ने हीरों का हार तोड़कर फैंक दिया। उसकी मां एक वैश्या थी जिसका नाम जवाहर पातुर था। उसने बेटी की हरकत पर बादशाह से मांफी मांगी। मां ने कंवल को बहुत समझाया कि बादशाह की बात मान ले और उसकी रखैल बन जा तू पुरे गुजरात पर राज करेगी। पर कंवल ने मां से साफ मना कर दिया। उसने मां से कहा कि वह "केहर" को प्यार करती है। दुनिया का कोई भी राजा उसके किस काम का नहीं।

कंवर केहर सिंह चौहान महमूद शाह के अधीन एक छोटी सी जागीर "बारिया" का जागीरदार था और कंवल उसे प्यार करती थी। उसकी मां ने खूब समझाया कि तू एक वेश्या की बेटी है, तु किसी एक की घरवाली नहीं बन सकती। लेकिन कंवल ने साफ कह दिया कि "केहर जैसे शेर के गले में बांह डालने वाली उस गीदड़ महमूद के गले कैसे लग सकती है |" यह बात जब बादशाह को पता चला
तो वह आग बबूला हो गया। उसने कंवल को कैद करने के आदेश दे दिए और कहा कि अब तू देखना तेरे शेर को तेरे आगे ही पिंजरे में मैं कैसे कैद करके रखूंगा।

बादशाह ने एलान किया कि केहर को कैद करने वाले को उसकी जागीर जब्त कर दे दी जाएगी पर केहर जैसे राजपूत योद्धा से कौन टक्कर ले। दरबार में उपस्थित उसके सामन्तो में से एक जलाल आगे आया उसके पास छोटी सी जागीर थी सो लालच में उसने यह बीड़ा उठा ही लिया। योजना अनुसार साबरमती नदी के तट पर मेले के दिन महमूद शाह ने जाल बिछाया। जलाल एक तैराक योद्धा आरबखां को जल क्रीड़ा के समय केहर को मारने हेतु ले आया।




केहर भी तैराकी व जल युद्ध में कम न था सो उसने आरबखां को इस युद्ध में मार डाला। केहर द्वारा आरबखां को मारने के बाद राजा ने केहर को शाबासी के साथ मोतियों की माला पहना शिवगढ़ की जागीर भी दी। लोगों को ये बात गले नहीं उतरी। वो समझ गए कि बादशाह कोई षड्यंत्र रच रहा है उन्होंने केहर को आगाह भी कर दिया, लेकिन केहर को बादशाह ने यह कह कर रोक लिया कि दस दिन बाद होली खेलेंगे। इसी बहाने उसने केहर को महल में बुलाकर षड्यंत्र पूर्वक उसे कैद कर कंवल के महल के पास रखवा दिया ताकि वह अपने प्रेमी की दयनीय हालत देख दुखी होती रहे।कंवल रोज पिंजरे में कैद केहर को खाना खिलाने आती। एक दिन कंवल ने एक कटारी व एक छोटी आरी केहर को लाकर दी व उसी समय केहर की दासी टुन्ना ने वहां सुरक्षा के लिए तैनात फालूदा खां को जहर मिली भांग पिला बेहोश कर दिया इस बीच मौका पाकर केहर पिंजरे के दरवाजे को काट आजाद हो गया और किसी तरह महल से बाहर निकल अपने साथियों सांगजी व खेतजी के साथ अहमदाबाद से बाहर निकल आया।

उसकी जागीर बारिया तो बादशाह ने जब्त कर जलाल को दे दी थी सो केहर मेवाड़ के एक सीमावर्ती गांव बठूण में आ गया और गांव के मुखिया गंगो भील से मिलकर आपबीती सुनाई। गंगो भील ने अपने अधीन साठ गांवों के भीलों का पूरा समर्थन केहर को देने का वायदा किया। अब केहर बठूण के भीलों की सहायता से गुजरात के शाही थानों को लुटने लगा, सारा इलाका केहर के नाम से कांपने लगा।

बादशाह ने कई योद्धा भेजे केहर को मारने के लिए पर हर मुटभेड में बादशाह के योद्धा ही मारे जाते, राजा रोज जलाल को खत लिखता कि केहर को ख़त्म करे पर एक दिन बादशाह को समाचार मिला कि केहर की तलवार के एक बार से जलाल के टुकड़े टुकड़े हो गए। कंवल केहर की जितनी किस्से सुनती, उतनी ही खुश होती और उसे खुश देख बादशाह को उतना ही गुस्सा आता पर वह क्या करे बेचारा बेबस था। केहर को पकड़ने या मारने की हिम्मत उसके किसी सामंत व योद्धा में नहीं थी।कंवल महमूद शाह के किले में तो रहती पर उसका मन हमेशा केहर के साथ होता वह महमूद शाह से बात तो करती पर उपरी मन से। छगना नाई की बहन कंवल की नौकरानी थी एक दिन कंवल ने एक पत्र लिख छगना नाई के हाथ केहर को भिजवाया। केहर ने कंवल का सन्देश पढ़ा- " मारवाड़ के व्यापारी मुंधड़ा की बारात अजमेर से अहमदाबाद आ रही है रास्ते में आप उसे लूटना मत और उसी बारात के साथ वेष बदलकर अहमदाबाद आ जाना। पहुंचने पर मैं दूसरा सन्देश आपको भेजूंगी।"

अजमेर अहमदाबाद मार्ग पर बारात में केहर व उसके चार साथी बारात के साथ हो लिए केहर जोगी के वेष में था उसके चारों राजपूत साथी हथियारों से लैस थे। केहर को चिट्ठी लिखने के बाद कंवल ने बादशाह के प्रति अपना रवैया बदल लिया वह उससे कभी मजाक करती कभी कभार तो केहर की बुराई भी कर देती पर महमूद शाह को अपना शरीर छूने ना देती। कंवल ने अपनी दासी को बारात देखने के बहाने भेज केहर को सारी योजना समझा दी।बारात पहुंचने से पहले ही कंवल ने राजा से कहा - "हजरत केहर का तो कोई अता-पता नहीं आखिर आपसे कहां बच पाया होगा, उसका इंतजार करते करते मैं भी थक गई हूं अब तो मेरी जगह आपके चरणों में ही है। लेकिन हुजुर मैं आपकी रखैल, आपकी बांदी बनकर नहीं रहूंगी अगर आप मुझे वाकई चाहते है तो आपको मेरे साथ विवाह करना होगा और विवाह के बारे में मेरी कुछ शर्तें है वह आपको माननी होगी।"
1- शादी मुंधड़ा जी की बारात के दिन ही हों।
2- विवाह हिन्दू रितिरिवाजानुसार हो। विनायक बैठे, मंगल गीत गाये जाए, सारी रात नौबत बाजे।
3- शादी के दिन मेरा डेरा बुलंद गुम्बज में हों।
4- आप बुलंद गुम्बज पधारें तो आतिशबाजी चले, तोपें छूटें, ढोल बजें।
5- मेरी शादी देखने वालों के लिए किसी तरह की रोक टोक ना हो और मेरी मां जवाहर पातुर पालकी में बैठकर बुलन्द गुम्बज के अन्दर आ सके।





उसकी खुबसूरती में पागल राजा ने उसकी सारी शर्तें मान ली। शादी के दिन सांझ ढले कंवल की दासी टुन्ना पालकी ले जवाहर पातुर को लेने उसके डेरे पर पहुंची वहां योजनानुसार केहर शस्त्रों से सुसज्जित हो पहले ही तैयार बैठा था टुन्ना ने पालकी के कहारों को किसी बहाने इधर उधर कर दिया और उसमे चुपके से केहर को बिठा पालकी के परदे लगा दिए। पालकी के बुलन्द गुम्बज पहुंचने पर सारे मर्दों को वहां से हटवाकर कंवल ने केहर को वहां छिपा दिया।



थोड़ी ही देर में राजा हाथी पर बैठ सजधज कर बुलंद गुम्बज पहुंचा। महमूद शाह के बुलंद गुम्बज में प्रवेश करते ही बाहर आतिशबाजी होने लगी और ढोल पर जोरदार थाप की गडगडाहट से बुलंद गुम्बज थरथराने लगी। तभी केहर बाहर निकल आया और उसने बादशाह को ललकारा -" आज देखतें है शेर कौन है और गीदड़ कौन ? तुने मेरे साथ बहुत छल कपट किया सो आज तुझे मारकर मैं अपना वचन पूरा करूंगा।"दोनों योद्धा भीड़ गए, दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। दोनों में मल्ल-युद्ध होने लगा। उनके पैरों के धमाकों से बुलंद गुम्बज थरथराने लगा पर बाहर हो रही आतिशबाजी के चलते अन्दर क्या हो रहा है किसी को पता न चल सका। चूंकि केहर मल्ल युद्ध में भी प्रवीण था इसलिए महमूद शाह को उसने थोड़ी देर में अपने मजबूत घुटनों से कुचल दिया बादशाह के मुंह से खून का फव्वारा छुट पड़ा और कुछ ही देर में उसकी जीवन लीला समाप्त हो गयी।


दासी टुन्ना ने केहर व कंवल को पालकी में बैठा पर्दा लगाया और कहारों और सैनिकों को हुक्म दिया कि - जवाहरबाई की पालकी तैयार है उसे उनके डेरे पर पहुंचा दो और बादशाह आज रात यही बुलंद गुम्बज में कंवल के साथ विराजेंगे। कहार और सैनिक पालकी ले जवाहरबाई के डेरे पहुंचे वहां केहर का साथी सांगजी घोड़ों पर जीन कस कर तैयार था। केहर ने कंवल को व सांगजी ने टुन्ना को अपने साथ घोड़ों पर बैठाया और चल पड़े। जवाहरबाई को छोड़ने आये कहार और शाही सिपाही एक दुसरे का मुंह ताकते रह गए।