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मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

पाकिस्तान सिंध के ख्याति प्राप्त राजस्थानी मांगणियार लोक कलाकार

पाकिस्तानी लोक गायक सफी फ़क़ीर के साथ बाड़मेर के सूफी गायक फकीरा खान 

पाकिस्तान सिंध के ख्याति प्राप्त राजस्थानी मांगणियार लोक कलाकार

पाकिस्तान में मांगणियार जाति के लोक कलाकारों ने अपनी गायकी से अलग पहचान बना रखी हैं।पाक के सिन्ध प्रान्त के मिटठी,रोहड़ी,गढरा,थारपारकर,उमरकोट,खिंपरो,सांगड़ आदि जिलों में मांगणियार जाति के लोग निवास करते हैं।पाक में रह रहे मांगणियार मूलतःबाड़मेर-जैसलमेर जिलों के हैं,जो भारत-पाक युद्ध 1965 और 1971 में पलायन कर पाक चले गए।थार संस्कृति और परम्परा को लोक गीतों के माध्यम से अपनी छटा बिखेरने वाले मांगणियार कलाकारों की पाक में सम्मान जनक स्थिति नहीं थी।पाक के मांगणियार भी राजपूत जाति के यॅहा यजमानी कर अपना पालन पोषण करते थे।सोढा राजपूतों का सिन्ध में बाहुल्य हैं।सोढा राजपूतों की सिन्ध में जागीरदारी होने के कारण कई मांगणियार परिवार भारत-पाक विभाजन के दौरान पाक में रह गए तो कई परिवार युद्ध के दौरान पाक चले गए।बाड़मेर से गये एक परिवार में सन1961 में संगीत के कोहिनूर ने जन्म लिया।इस कोहिनूर जिसे पाकिस्तान और विदेशों में उस्ताद सफी मोहम्मद फकीर के नाम से जाना जाता हैं,ने मोगणियार गायकी को पाक में अलग पहचान और ख्याति दिलाई।उनके अलावा अनाब खान,शोकत खान,हयात खान,मोहम्मद रफीक,सच्चु खान,सगीर खान ढोली, ने मांगणियार संस्कृति को पाक में नई पहचान दी हैं।इसके अलावा बाड़मेर-जैसलमेर सीमा पर स्थित देवीकोट के मूल निवासी फिरोज गुल ने पाक में लुप्त हो चुके हारमोनियम कला को पुर्नजीवित कर काफी नाम कमाया,पाक में आज फिरोज गुल का हारमोनियम बजाने में कोई सानी नहीं हैं।पाक की मशहूर लोक गायिका आबदा परवीन के दल के साथ फिरोज देश-विदेशों में ख्याति अर्जित कर रहे हैं।पाक में मारवाड़ी लोक गीतों की जबरदस्त मांग को मांगणियार लोक कलाकार पूरा कर रहे हैं।वहीं पाक में मांगणियार गायकी को नया आयाम प्रदान किया तथा मारवाड़ी लोक गीत संगीत को पाक में मान-सम्मान दिलाया।इसके अलावा पाक में कृष्ण भील,सुमार भीलमोहन भगत,जरीना,माई नूरी,माईडडोली,माई सोहनी,सबीरा सुल्तान,दिलबर खान,फरमान अली,आमिर अली असलम खान,लाॅग खान सुमार खानमोहम्मद इकबाल जैसे मांगणियार लोक गीत संगीत के पहरुओं ने राजस्थान की लोक कला ,गीत संगीत,संस्कृति और परम्परा को पाक में जिन्दा रखा तथा मान सम्मान दिला रहे हैं।सिन्ध और थार की लोक संस्कृति ,परम्पराओं गीत संगीत ,कला में महज देश का फर्क हैं।मांगणियार लोक गायकों ने लोक गीत संगीत के जरिए दोनों देशों की सीमाऐं तोड़ दी।इसके अलावा ख्यातनाम गायिका रेशमा राजस्थान के बीकानेर की पैदाईश हैं।रेशमा ने पाक की लोक गायिकी को नई पहचान दी।ंजेसलमेर के हाजी भुटिका पाक की जेल में सरहद पार के जुम्र में सजायाप्ता था।हाजी भुटिका की सुरीली आवाज सुन कर हाजी की सजा पाक प्रशासक ने माफ कर नया जीवन दिया था।दी।पाकिस्तान गए भारतीय मांगणियार परिवारों नें थार शैली के लोक गीत-संगीत कों पाकिस्तान में ना केवल जिन्दा रखा अपितु उसे देनिया भर में नई उॅचाईयाॅ दी।पाकिस्तान में एक वक्त हारमेानियम समाप्त सा हो गया था।ऐसे में फिरोज मांगणियार नें हारमोनियम को नया जन्म देकर पाकिस्तान में हारमोनियम को लोकप्रियता के षिखर पर पहुॅचाया।फिरोज मांगणियार आज पाकिस्तान की मषहूर लोक गायिका आबिदा परवीन कें दल में ष्षामिल हो कर नयें आयाम छू रहे हैं।पाकिस्तान की मषहूर लोक गायिका रेषमा जिन्होंने देष विदेषों में अपनी अलग गायन ष्षैली सें अपना अलग मुकाम बनाया।रेषमा मूलतः राजस्थान के बीकानेर क्षैत्र की निवासी थी,रेषमा का परिवार विभाजन के दौरान पाकिस्तान चला गया।बिना लिखी पढी रेषमा नें विष्व भरमेंअपनी खास पहचान बनाई।दोनों देषों की सरहदें लोक गीत संगीत की सौंधी महक को बांट नहीं सकी।लोक गीत संगीत कें माध्यम सें दोनो देषों की अवाम अपने रिष्ते कायम रखे हुए हैं। श्



रविवार, 9 मार्च 2014

मरूधर रो अगनबोट ऊंट.....प्रो. जहूरखां मेहर

मरूधर रो अगनबोट ऊंट

प्रो. जहूरखां मेहर



रेगिस्तानी बातां सारू राजस्थानी री मरोड़ अर ठरको ई न्यारो। सबदां सूं लड़ालूंब घणी राती-माती भासा है राजस्थानी। इण लेख में मरुखेतर रै एक जीव ऊंट सूं जुड़ियोड़े रो लेखो करता थकां आ बात जतावण री खप्पत करी है कै थळी रै जीवां अर बातां सारू राजस्थानी भासा री मरोड़ अर ठरको ई न्यारो।
ऊंट मरुखेतर रो अगनबोट कैईजै अर इण सारू राजस्थानी साहित, इतिहास अर बातां में इतरा बखाण लाधै कै इचरज सूं बाको फाड़णो पड़ै। दूजी भासावां में तो 'ऊंट' अर 'कैमल' सूं आगै काळी-पीळी भींत। मादा ऊंट सारू 'ऊंटनी' अर 'सी कैमल' या 'कैमलैस' सूं धाको धिकाणो पड़ै। पण आपणी भासा में इण जीव रा कितरा-कितरा नांव! कीं तो म्हे अंवेरनै लाया हां। बांच्यां ई ठा पड़ै-
जाखोड़ो, जकसेस, रातळो, रवण, जमाद, जमीकरवत, वैत, मईयो, मरुद्विप, बारगीर, मय, बेहटो, मदधर, भूरो, विडंगक, माकड़ाझाड़, भूमिगम, पींडाढाळ, धैंधीगर, अणियाळ, रवणक, फीणनांखतो, करसलो, अलहैरी, डाचाळ, पटाल, मयंद, पाकेट, कंठाळक, ओठारू, पांगळ, कछो, आखरातंबर, टोरड़ो, कंटकअसण, करसो, घघ, संडो, करहो, कुळनारू, सरढो, सरडो, हड़बचियो, हड़बचाळो, सरसैयो, गघराव, करेलड़ो, करह, सरभ, करसलियो, गय, जूंग, नेहटू, समाज, कुळनास, गिडंग, तोड़, दुरंतक, भुणकमलो, वरहास, दरक, वासंत, लंबोस्ट, सिंधु, ओठो, विडंग, कंठाळ, करहलो, टोड, भूणमत्थो, सढ़ढो, दासेरक, सळ, सांढियो, सुतर, लोहतड़ो, फफिंडाळो, हाथीमोलो, सुपंथ, जोडरो, नसलंबड़, मोलघण, भोळि, दुरग, करभ, करवळो, भूतहन, ढागो, गडंक, करहास, दोयककुत, मरुप्रिय, महाअंग, सिसुनामी, क्रमेलक, उस्ट्र, प्रचंड, वक्रग्रीव, महाग्रीव, जंगळतणोजत्ती, पट्टाझर, सींधड़ो, गिड़कंध, गूंघलो, कमाल, भड्डो, महागात, नेसारू, सुतराकस अर हटाळ।
मादा ऊंट रा ई मोकळा नांव। बूढी, ग्याबण, जापायती, बांझड़ी, कागबांझड़ी अर भळै के ठा कित्ती भांत री सांढां सारू न्यारा-न्यारा नांव। मादा ऊंट नै सांढ, टोडड़ी, सांयड, सारहली, टोडकी, सांड, सांईड, क्रमाळी, सरढी, ऊंटड़ी, रातळ, करसोड़ी, रातल, करहेलड़ी, कछी अर जैसलमेर में डाची कैवै। सांढ जे ढळती उमर री व्है तो डाग, रोर, डागी, रोड़ो, खोर, डागड़ जै़डै नांवां सूं ओळखीजै। सांढ जे बांझ व्है तो ठांठी, फिरड़ी, फांडर अर ठांठर कहीजै। लुगायां ज्यूं कागबांझड़ी व्है अर एकर जणियां पछै पाछी कदैई आंख पड़ै इज कोयनी। ज्यूं सांढ ई एकर ब्यायां पछै दोजीवायती नीं व्है तो बांवड़ कहीजै। बांवड़ नै कठैई-कठैई खांखर अर खांखी ई कैवै। पेट में बचियो व्है जकी सांढ सुबर कहीजै। जिण सांढ रै साथै साव चिन्योक कुरियो व्है वा सलवार रै नांव सूं ओळखीजै। कदैई जे कुरियो हूवतां ई मर जावै तो बिना कुरियै री आ सांढ हतवार कुहावै।
ऊंट रो साव नान्हो बचियो कुरियो कुहावै। कुरियो तर-तर मोटो व्है ज्यूं उणरा नांव ई बदळता जावै। पूरो ऊंट बणण सूं पैलां कुरियो, भरियो, भरगत, करह, कलभ, करियो अर टोडियो या टोरड़ो अर तोरड़ो कहीजै।
राजस्थानी संस्कृति में ऊंट सागे़डो रळियोड़ो, एकमेक हुयोड़ो। लोक-साहित इणरी साख भरै। ऊंट सूं जुड़ियोडा अलेखूं ओखाणा अर आडियां मिनखां मूंडै याद। लोकगीतां रो लेखो ई कमती नीं।
जगत री बीजी कोई जोरावर सूं जोरावर भासा में ई एक चीज रा इत्ता नांव नीं लाधै। कोई तूमार लै तो ठा पड़ै कै कठै तो राजस्थानी रै सबदां रो हिमाळै अर कठै बीजी फदाक में डाकीजण जोग टेकरियां। कठै भोज रो पोथीखानो, कठै गंगू री घाणी!

साभार आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख१४//२००९

सन १९४१ में जोधपुर में जाया-जलम्या प्रो. जहूरखां मेहर राजस्थानी रा विरला लेखकां में सूं एक। जिणां री भासा में ठेठ राजस्थानी रो ठाठ देखणनै मिलै। राजस्थान रै इतिहास, संस्कृति अर भासा-साहित्य पेटै आपरा निबंध लगोलग छपता रैवै। मोकळा पुरस्कार-सनमान मिल्या है। आज बांचो आं रो ओ खास लेख।

शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

छठे जिफ 2014 का उदघाटन राजस्थान, राजस्थानी, कला और संस्कृति से जुडे लोगों ने किया


छठे जिफ 2014 का उदघाटन राजस्थान, राजस्थानी, कला और संस्कृति से जुडे लोगों ने किया



जयपुर 1 फ़रवरी:

छ्ठे जयपुर अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह-जिफ का उद्घाटन राजमन्दिर सिनेमा हाल में हुआ. इस साल जिफ का उद्घाटन सत्र राजस्थान, राजस्थानी, कला और संस्कृति को समर्पित किया गया है.

जिफ इस साल किसानों को भी समर्पित है. जिफ में इस साल खर्च हुये रुपये किसानों से जुटाये गये हैं. एक बार फीर से किसानों के इस सपोर्ट ने जय जवान जय किसान क नारा याद दिला दिया है. याद दिलाय है कि किसान स्बसे और सब्से आगे हैं.

इस समय राजस्थानी फिल्म मेकर मोहन सिंह राठौर, विख्यात कव्वाली गायक सईद फरीद अमीन साबरी, लेट विजय दान देथा के सूपुत्र कैलास कबीर, राजश्री प्रोडक्शन से राजश्री सरावगी, वरिष्ठ फिल्म वितरक श्याम सुन्दर जलानी, पुर्व आई. पी. एस. अधिकारी और सुविख्यात लेखक हरीराम मीना, सुविख्यात गीतकार् और संस्कृत विद्वान हरीराम आचार्य, विख्यात साहित्यकार और लेखक इकराम राजस्थानी, फिल्म मेकर राकेश गोगना, एन आर आई फिल्म प्रोड्यूसर ए वी शंकरदास और साथ में जिफ सलाहकार और आयोजन समिति के सदस्य आदि भी मौजुद थे



उद्घाटन सत्र में राजश्री प्रोडक्शनस को हिन्दी सिनेमा और उसमें राजस्थान की कला और संस्कृति को नई पहचान देने के लिये लाईफ टाईम अचिवमेंट अवार्ड से नवाजा गया.

ट्रीब्युट लेट श्री विजय दान देथा को दिया गया.



समारोह के उद्घाटन सत्र में ओपनिंग फिल्म पाकिस्तान से ऑस्कर में ऑफिसियल एंट्री जिन्दा भाग की स्क्रिनिंग की गई. जयपुर से बडी ताडदाअत मे इस फिल्म को देखने लोग पहुंचे.



हनु रोज ने कह की जिफ पिछ्ले 5 साल से जयपुर में सफलतपुर्वक हो रहा है. हम विश्वाश दिलाते हैं की जिफ हर साल हर तरह के हालातों को पार करते हुये आयोजित होता रहेगा. फिल्म मेकर्स की लगातर भागिदारी ने हमें और उत्साहीत किय है.



अगले चार् दिनों में गोलछा सिनेम और चेमबर भवन में 90 से ज्यादा देशों से चयनित कुल 155 फिल्मों का प्रदर्शन समारोह में सुबह 10 बजे से रात 9 बजे तक लगातार जारी रहेगा. इनमे 40 फिचर फिल्में, 83 शॉर्ट फिक्शन, 18 डाक्युमेंट्री, 15 एनिमेशन शॉर्ट फिल्में शामिल है.

राजस्थान से कुल 14 फिल्मों की स्किर्निग की जायेगी इनमें से 7 फिल्में गैर-प्रतियोगिता की श्रेणी में है.



90 देशों से चयनित कुल 156 फिल्मों में से कुल 121 फिल्में है प्रतियोगिता के श्रेणी में हैं.



इस साल जिफ 2014 में 13 देशों से चयनित 13 उम्दा फिल्मों का प्रदर्शन होने जा रहा है. ये सभी 13 फिल्में ऑस्कर 2014 में बतौर ऑफिसियल एंट्री अलग अलग देशों से भेजी गई है. आप देख सकेंगे कैसे अलग-अलग देशों का सिनेमा ऑस्कर तक पहुंचता है.

शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

खुला ख़त सिरोही कलेक्टर के नाम कलेक्टर के स्थानीय भाषा मुद्दे पर बयान कि निंदा


सिरोही कलेक्टर के स्थानीय भाषा मुद्दे पर बयान कि निंदा खुला ख़त सिरोही कलेक्टर के नाम


सिरोही जिला कलेक्टर खुद स्थानीय भाषा सीखने कि बजाय पुरे जिले को हिंदी भाषा बोलने को मजबूर करने वाले हें। उनके द्वारा सर्व शिक्षा अभियान के तहत सम्बलन कार्यक्रम के तहत कुछ विद्यालयो का निरिक्षण किया गया। निरिक्षण के से अपनी भाषा में प्रश्न पूछे तो छात्र समझ नहीं पाये मगर जब छात्रो को स्थानीय भाषा राजस्थानी में उन प्रशनो का अनुवाद करके बताया तो उन्होंने तुरंत प्रश्न हल कर दिए ,जिला कलेक्टर रघुवीर सिंह मीना ने छात्रो द्वारा स्थानीय भाषा में उत्तर देने और हिंदी भाषा समझ में नहीं आने पर खीज उठे। उन्होंने यह बयान दे दिया कि स्थानीय भाषा के कारण छात्रो को पढाई में दिक्कत होगी इसीलिए हिंदी भाषा पर जोर देने के लिए कार्य योजना बनाई जायेगी। तो कलेक्टर साब एक मछली तलब को गन्दा करती हें तो तालाब के पानी को खाली नहीं कराया जता गन्दी मछली को फेंका जाता हें। आपको स्थानीय भाषा राजस्थानी को सीखना चाहिए फिर छात्रो से बात करनी थी आपको राजस्थानी नहीं आती इसका मतलब आप सभी को हिंदी सिखाएंगे यह तो हमारी मायड़ भाषा का अपमान हें। आप खुद पहले राजस्थानी सीखिए क्यूंकि बात सिर्फ छात्रो कि नहीं आपके पास आने वाले स्थानीय फरियादी भी अपनी फ़रियाद स्थानीय भाषा में सुनाएंगे ,किन किन को हिंदी सिखाओगे ,आपको चाहिए था कि आप स्थानीय भाषा राजस्थानी को प्राथमिक शिक्षा से लागू करने कि बात पर जोर देते। स्थानीय भाषा के सम्बलन पर जोर देते ,आपका पड़ौसी गुजरात राज्य में तक स्थानीय भाषा का इस्तेमाल करते हें ,आपको भी करनी चाहिए ,


राज्य सरकार से आग्रह हें भाषा के नाम पर पार्टी कि छवि धूमिल करने वाले ऐसे अधिकारियो को तुरंत प्रभाव से हटाया जाए ,राजस्थानी भाषा के मुद्दे पर अधिकारियो कि सोच सकारात्मक होना जरुरी हें ,अधिकारी किसी भी नागरिक पर भाषा को थोप नहीं सकते

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

म्हनै रमतां ने काजल टीकी लाधी ऐ मां। …… कोरो काजलियो

म्हनै रमतां ने काजल टीकी  लाधी ऐ मां। …… कोरो काजलियो












पूरे राजस्थानी में जनजीवन में काजल को विशेष महत्व है। यह यहाँ के लोगों की दैनिक श्रृंगार का हिस्सा है। इसे अंजण, कज्जल, दीय- सुत, नैनसनेह, पाटणमुखी, मोहणगती आदि कई नामों से भी जाना जाता है। जिस दीये से गृहणियां काजल बनाती हैं, उसे "काजलकर' कहा जाता है। साथ- साथ अपने आप में एक बहुत बड़ा सांकेतिक अर्थ भी रखना है। राजस्थानी लोक गीतों में भी काजल की कई बार चर्चा आ जाती है :-

काली काली काजरिया री रेखज्यूं भूरोड़े भाख्र में चमके बीजली

ढ़ोले री मूभल हाले तो ले चालू मुरधर देश, कोई विरहिगी अपने प्रियतम को गीत के माध्यम से समझाती है कि किस स्थिति में काजल सुखदायी होता है :-

काजल भरियो कूंपालो जी कोई पड़यो पिलंग अध बीचउनाला री रुत बुरी, थांनै खेलत गरभी होम कोरो काजलियोचौमासा री रुत बुरी, खेलत रल गावे काजरियोकाजरियो मत सार चौमासे - कोरो का जलियोनैणों नें समायो रे सियाला री रात का जलियो थांने आणन्द छाय- कोरो काजलियो

नायिका जब अपने प्रेमी से रुठ जाती है, तो बिना कुछ बोले अपने व्यथा का प्रदर्शन अपने काजलभरे नयनों से कर देती है :-

ना वे गावै ना हँसै, मुख बोले बोल।नैणां काजल ना दियो, ना गल पऋयों हार।।

एक नवविवाहिता, जो घूंघट की ओट से तिरछी नजरों से देखती हैं, के लिए एक कवि ने लिखा है:-

बेसर बणी मांग सिर ऊपर, मोत्यां बिंदी झलकै।काजल रेख नैणां में, घूंघट मच्छियां पलकै।।

मारवाड़ क्षेत्र में घर- घर में "घूमर' गीत गाया जाता है। जसोल वाले भटियाणी जी का एक घूमर इस प्रकार है :-

म्हनै रमतां ने काजल टोकी लाधी ऐ मांम्हारी घूमर है नखराली है ऐ मांम्हनै राठौड़ा रै घर भल दीजो ऐ मांम्हनै राठौड़ां रो पेय प्यारो लागे ऐ मां

भक्त कवयित्री मीरां ने काजल के संदर्भ में कहा है :-

गैणा गांठा राणा हम सब त्याग्या,लाग्यो कर रो चूड़ो।काजल टीकी हम सब त्याग्या,त्याग्यो बांधणा जूड़ो।।

इसका तात्पर्य यह है कि मीरा ने कृष्ण विरह में सारे सांसारिक श्रृंगारों का त्याग कर दिया है। काजल इसलिए त्यागा कि श्री कृष्ण का श्याम- सलोना रुप नयनों में रच- बस गया है।वैसे तो काजल सौभाग्यवती स्रियों का श्रृंगार है, परंतु इतिहास गवाह है कि कई बार मृत पति के शव के पास बैठकर यहाँ की वीरांगनाओं ने एक प्रतिज्ञा के ओज के साथ काजल की रेख का अंजन किया। सती का श्रृंगार भी काजल के बिना अधुरा माना जाता था।काजल के साथ-साथ काजलिया रंग भी महत्वपूर्ण है। मारवाड़ क्षेत्र में "काजली तीज' सुहागिनों का त्योहार है। इस दिन सुहागिन स्रियाँ व्रत - उपवास रखती है और सुहाग के प्रतीक के रुप में कागज, टीकी, चूड़ियाँ, मेंहदी और मजीठ आदि का दान करती है। काजल के बिना कई धार्मिक व सामाजिक कृत्य अधूरे माने जाते हैं।

शनिवार, 8 जून 2013

मालाणी धरा पर शुरू हुआ राजस्थानी महोत्सव

मालाणी धरा पर शुरू हुआ  राजस्थानी महोत्सव

वोट पर चोट करने का आह्वान 


 
  बाड़मेर. राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता की मांग को लेकर शनिवार   को बाड़मेर के महात्मा ईसरदास चारण छात्रावास परिसर में राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति महोत्सव के पहले दिन संघर्ष और सम्मान सत्र का आयोजन हुआ .  ।इस महोत्सव के सम्मान तथा संघर्ष सत्र की अध्यक्षता पूर्व विधायक तथा पूर्व आईएएस सीडी देवल ने की । वहीं राज्यसभा के पूर्व सांसद तथा वर्तमान में भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष ओंकारसिंह लखावत, राज्य वित्त आयोग अध्यक्ष बी. डी. कल्ला,  राजस्थानी साहित्यकार तथा शिक्षाविद् प्रो. भंवरसिंह सामौर, पद्मश्री सूर्यदेवसिंह,   तथा संघर्ष समिति के संस्थापक लक्ष्मन दान  कविया ,संभाग उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी पूर्व विधायक शिव हरी सिंह सोढा शिव पूर्व प्रधान गिरधारिदान ,मुरारदान भीनमाल ,अमिता चौधरी ,वरिष्ठ पत्रकार पदम् मेहता ,मुराद अली अबडा विशिष्ठ अतिथि के रूप में उपस्थित थे  । शनिवार प्रातः दस बजे महोत्सव का आगाज़  किया गया  .महोत्सव में हज़ारो की तादाद में राजस्थानी भाषा प्रेमी उपस्थित थे.भीषण गर्मी की परवाह किये बिना लोगो का हुजूम उमड़ पडा .



  महोत्सव में बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, पाली, जालौर, सिरोही, नागौर, बीकानेर चुरू ,अलवर ,उदयपुर जिलों सहित राज्य के अन्य हिस्सों एवं सीमावर्ती राज्यों से भी हजारों की तादाद में लोग जुटें  तथा राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता के लिए आर-पार की लड़ाई का आगाज 'कह दो आ डंकै री चोट, पैली भाषा - पछै वोट', 'जो राजस्थानी री बात करैला, वो राजस्थान पै राज करैला' तथा 'मायड़भाषा रो अपमान, नहीं सहैला राजस्थान' नारों के साथ किया । 

 संघर्ष सत्र को संबोधित करते हुए समारोह के मुख्य वक्ता राज्य वित् आयोग के अध्यक्ष डॉ बी डी कल्ला ने कहा कि राजस्थानी महज़ भाषा नहीं हमारी संस्कृति और पहचान हें ,उन्होंने कहा की राजस्थानी भाषा को मान्यता के लिये राज्य सरकार द्वारा दो हज़ार तीन में ही विधानसभा से संकल्प प्रस्ताव पारित करा संसद तक भिजवा दिया तब से अब तक प्रस्ताव संसद में ही हिचकोले खा रहा हें ,उन्होंने कहा की राजस्थानी भाषा की मान्यता कमेटियों में उलझ कर रह गयी हें ,उन्होंने कहा की मान्यता के लिए दिल्ली चलन पड़े तो हम पीछे नहीं हटेंगे उन्होंने कहा की प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति से मिल कर राजस्थानी भाषा की मान्यता के प्रयास किये जाए ,राजस्थानी भाषा की मान्यता के मुद्दे पर हम सब एक हें .इसके लिए जो भी करना पड़े करेंगे लेकिन मान्यता हर हाल में लेकर रहेंगे .सम्मलेन को संबोधित करते हुए पूर्व विधायक तथा पूर्व आईएएस सीडी देवल ने कहा की राज्य के मुख्य मंत्री अशोक गहलोत बाड़मेर में रिफायनरी ला सकते हें तो राजस्थानी भाषा को मान्यता भी दिला सकते हें .उन्होंने कहा की अब समय आ गया हें राजनेताओं को उनकी भास्झा में जनता जवाब दे ,जो राजस्थानी को मान्यता दिलाएगा वोट भी उसी को देंगे ,उन्होंने कहा की राजस्थानी भाषा की मान्यता का  रास्ता दस जनपथ पर हें और दस जनपथ अशोक गहलोत की जेब में हें .उन्होंने कहा अब सभी का एक ही मकसद हें राजस्थानी भाषा को मान्यता . भी मिले हम लेकर रहेंगे .जिस भाषा में सरकारें समझेगी उसी भाषा में समझायेंगे . इस अवसर पर भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष और पूर्व सांसद ओंकार सिंह लखावत ने कहा की राजस्थानी भाषा समिति को नेताओ पर दबाव बनाये .उन्होंने कहा की नेता  वोट की चोट को ही समझती हें .चुनाव आने वाले हें .हर घर के आगे बोर्ड टांग दो पैली भाषा पच्छै वोट .उन्होंर कहा की राजस्थानी भाषा समिति जनता की भागीदारी का दायरा और अधिक बढ़ा कर नेताओं में वोट का डर  पैदा करे ,उन्होंने कहा की कांग्रेस में श्रीमती इंदरा गांधी ,भाजपा में अटल बिहारी वाजपई ,एल के  अडवानी सहित समस्त नेता समय समय पर राजस्थानी भाषा को मान्यता के समर्थन में वक्तव्य दे चुके हें .फिर समस्या कान्हा आ रही हें ,उन्होंने कहा की राजस्थान की सत्ता शासन एवं संसाधन पर जिन बाहरी लोगो ने कब्ज़ा कर रखा हें वो राजस्थानी भाषा को लेकर कुतर्क करते हें जिसका कोई औचित्य नहीं हें .उन्होंने कहा अब दिली पर चडाई करनी पड़ेगी मान्यता के लिए .उन्होंने कहा की राज्य सरकार चाहे तो राजस्थान लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में राजस्थानी का प्रश्न पत्र शुरू करा राजस्थानी युवाओं की राह आसन कर सकती हें .कार्यक्रम संयोजक अर्जुन दान देथा ने कहा की राजस्थानी भाषा को मान्यता के लिए सामूहिक प्रयासों की जरुरत को देखते हुए इस आयोजन की रूप रेखा तय की गयी थी .उन्होंने कहा की इस आयोजन में प्रदेश के विभिन अंचलो से आये लोगो की सलाह से आगे की रन निति तय की ,जायेगी उन्होंने कहा की सरकार जनता के धेर्य की परीक्षा ना ले .यह अच्छा नहीं हें ,राजस्थान के लोग भले हें सज्जन हें सहज हें इसका नाजायज़ फ़ायदा सरकार ना उठाए .उन्होंने कहा की मायद भाषा की  मान्यता के बगेर हमारी संस्कृति ख़त्म हो रही हें .हमारा रोजगार छीन रहा हें .हमारी भाषा को मान्यता की मांग को अनदेखा किया जा रहा हें जो  के बाहर हें .कार्यक्रम का सञ्चालन करते हुए प्रदेश महा मंत्री राजेन्द्र सिंह बारहट ने कहा की राजस्थानी भाषा की मान्यता से कम कुछ भी स्वीकार्य नहीं हें ,देश विदेश में राजस्थानी समाज को इस मुद्दे के साथ जोड़ा जा रहा हें .इस तरह सम्पूर्ण राजस्थानी समाज अपमानित महसूस कर रहा हें .प्रदेश एवं प्रवास में राजस्थानी वोट पर चोट करेंगे .इस अवसर पर राजस्थानी साहित्यकार और पद्म श्री सूर्यदेव सिंह ने कहा की राजस्थानी रो हेलों बाड़मेर से अलवर तक पहुँच गया हें इस आयोजन के बाद दिल्ली तक पहुँच जाएगा ,उन्होंने कहा की राजस्थानी भाषा प्रेमी अपनी शक्ति को कम नहीं आंके भाषा को मान्यता मिलनी ही हें ,मगर हमें तुरंत चाहिए  .राजस्थान दिल ,दिमाग और ईमान से एक हें उन्होंने कहा की बच्चों से उनका बचपन ना चीने भाषा छिनते ही बच्चो का बचपन स्वत छीन जाएगा ,उन्होंने कहा की देश की संसद में राजस्थान की संस्कृति एयर सभ्यता भाषा के रूप में तिल तिल  कर मर रही हें ,उन्होंने कहा की चौदह करोड़ राजस्थानी अपनी संस्कृति को मरने नहीं देंगे ,उन्होंने कहा की अपनी भाषा के लिए हमें मरना भी पड़े तो पीछे नहीं हटेंगे .सम्मलेन को संबोधित करते हुए  राजस्थानी साहित्यकार तथा शिक्षाविद् प्रो. भंवरसिंह सामौरने राजस्थानी भाषा के अनूठे इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा की भाषा को ज़िंदा रखेंगे तभी हमारी संस्कृति और साहित्य ज़िंदा रहेगा ,उन्होंने कहा की असली आज़ादी भाषा में ही हें इस संवेदना को राजनेताओं को समझना होगा .सम्मलेन को राजस्थानी पत्रिका माणक के सम्पादक पदम् मेहता ने कहा कि राजस्थानी भाषा को मान्यता की समस्त   हो चुकी हें .जन दबाव  हें .,मुराद अली अबडा ,डॉ लक्षमण दान कविया ,पूर्व प्रधान मुरारदान भीनमाल ,अमिता चौधरी ,हरी सिंह सोढा ,उदय राज देथा ,गिरधारी दान देथा ,चन्दन सिंह भाटी ने भी संबोधित किया .सम्मलेन में उद्घाटन भाषण उदय राज देथा ने तथा आभार और धन्यवाद भाषण डॉ अखेदान देथा ने दिया .कार्यक्रम का ओजस्वी सञ्चालन राजेंद्र सिंह बारहट ने किया 

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

विशाला में राजस्थानी रो हेल्लो जनजागरण और पोस्टकार्ड अभियान आयोजित




विशाला में राजस्थानी रो हेल्लो जनजागरण और पोस्टकार्ड अभियान आयोजित

राजस्थानी में हो शुरुआती प्राथमिक शिक्षा