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शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

बाड़मेर सीमा सुरक्षा बल के जवानों द्वारा शोक शस्त्र करके और मौन धारण करके जवानों की शहादत को याद किया गया और श्रंद्धाजलि प्रकट की।

बाड़मेर सीमा सुरक्षा बल के जवानों द्वारा शोक शस्त्र करके और मौन धारण करके जवानों की शहादत को याद किया गया   और श्रंद्धाजलि प्रकट की।  

बाड़मेर कारगिल विजय दिवस " सप्ताह जिसे सीमा सुरक्षा बल द्वारा 20 से 27 जुलाई 2019 तक बड़ी ही  उत्साह और जोश के साथ मनाया जा रहा है । उसी कार्यक्रम की श्रृंखला में  आज दिनांक 26 जुलाई 2019 को कारगिल विजय दिवस के 20 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में  115 वी  वाहिनी सीमा सुरक्षा बल के तत्वाधान में सिणधरी चौराहें पर स्थित शहीद स्मारक पर श्री शाम कपूर, कार्यवाहक उप महानिरीक्षक, श्री नरेश चतुर्वेदी, कमांडेंट 50 वी वाहिनी सीमा सुरक्षा बल, श्री खीम सिंह भाटी, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, लेफ्टिनेंट आदर्श किसोर, एन सी सी अधिकारी, केप्टन हीर सिंह भाटी, यूथ आइकन रघुवीर सिंह तामलोर, सीमा सुरक्षा बल के 25 अधिकारी गण, 70 अधिनस्त अधिकारी गण, 150 अन्य कार्मिक, शहीदों के परिजन, वीरता पुरस्कार विजेता, एन सी सी के कैडेट्स, 300 से अधिक स्कूल के छात्र एवं छात्रायें की उपस्थिति में शहीद सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम की शुरूआत श्री शाम कपूर द्वारा शहीद स्मारक पर बनी शहीदो की प्रतिमा पर फूलों का हार अर्पित करके की। बाद में
सीमा सुरक्षा बल के जवानों द्वारा शोक शस्त्र करके और मौन धारण करके जवानों की शहादत को याद किया गया   और श्रंद्धाजलि प्रकट की।  

 कार्यक्रम के दौरान केप्टन हीर सिंह भाटी और   रघुवीर सिंह तामलोर  तथा हरीश जांगिड़ ने भारतीय सेना द्वारा कारगिल युद्ध में प्राप्त हुयी विजय का बखान किया, लोगो को सेना द्वारा की गई इस बहादुरी पूर्वक लड़ाई से लोगो को रुबरु कराया। लोगो को  कप्तान हीर सिंह भाटी ने कप्तान विक्रम बत्रा और सौरभ कालिया की बहादुरी के किस्से सुनाए और बताया कि इन्होंने किस तरह अपनी बहादुरी का प्रदर्शन किया था। कार्यक्रम के दौरान बताया गया कि 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद भी कई सैन्य संघर्ष होता रहा। दोनों देशों द्वारा परमाणु परीक्षण के कारण तनाव और बढ़ गया था। स्थिति को शांत करने के लिए दोनों देशों ने फरवरी 1999 में लाहौर में घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए। जिसमें कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय वार्ता द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से हल करने का वादा किया गया था। लेकिन पाकिस्तान ने अपने सैनिकों और अर्ध-सैनिक बलों को छिपाकर नियंत्रण रेखा के पार भेजने लगा और इस घुसपैठ का नाम "ऑपरेशन बद्र" रखा था। इसका मुख्य उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के बीच की कड़ी को तोड़ना और भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटाना था। पाकिस्तान यह भी मानता है कि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार के तनाव से कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने में मदद मिलेगी।
प्रारम्भ में इसे घुसपैठ मान लिया था और दावा किया गया कि इन्हें कुछ ही दिनों में बाहर कर दिया जाएगा। लेकिन नियंत्रण रेखा में खोज के बाद और इन घुसपैठियों के नियोजित रणनीति में अंतर का पता चलने के बाद भारतीय सेना को अहसास हो गया कि हमले की योजना बहुत बड़े पैमाने पर किया गया है। इसके बाद भारत सरकार ने "ऑपरेशन विजय" नाम से 2,00,000 सैनिकों को भेजा। यह युद्ध आधिकारिक रूप से 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ और भारतीय सेना को विजय प्राप्त हुयी। इस युद्ध के दौरान 527 सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान दिया।
कार्यक्रम के अंत में शहीदो के परिजनों को उनकी शहादत और सम्मान स्वरूप शॉल वितरण किये गए। इस दौरान 50 वी वाहिनी के मुख्य आरक्षक अश्वनी कुमार एवं 115 वी वाहिनी के आरक्षक टी वीनू को उनकी द्वारा विभिन्न अवसरों पर प्रदर्शित की गई  बहादुरी को लोगो को बताया गया जिसके लिए इनको शौर्य पुलिस पदक भी दिए गए थे आज उनकी बहादुरी को पुनः याद करते हुए सम्मान स्वरूप इन्हें शॉल  प्रदान किये गए। उपस्थित सेना के जवानों, अन्य सम्मानित लोगो और अन्य उपस्थित सभी लोगो द्वारा सीमा सुरक्षा बल द्वारा आयोजित किए  गए इस जोशीले कार्यक्रम की भरपूर प्रंशसा की और वादा किया गया कि भविष्य में दुश्मनो को नाको चने चबाने के लिये शहर के सभी नागरिक सीमा सुरक्षा बल के साथ कंधे से कंधे मिलाकर चलने के लिए तैयार रहेंगे।