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सोमवार, 24 दिसंबर 2012

लोकनायक का आदर्श स्वरूप दर्शाया, राष्ट्र को दी नई दिशा युगपुरुष पं. मदनमोहन मालवीय




विशेष लेख (संदर्भजयंती 25 दिसम्बर 2012)



लोकनायक का आदर्श स्वरूप दर्शाया, राष्ट्र को दी नई दिशा

युगपुरुष पं. मदनमोहन मालवीय


अनिता महेचा

युगपुरुष पं. मदनमोहन मालवीय राष्ट्र के उन अग्रणी महापुरुषों में से एक थे जिन्होंने देशवासियों का पथ प्रदर्शन किया। उनके विलक्षण और विराट व्यक्तित्व तथा आदर्श कर्मयोग को देश सदा स्मरण करता रहेगा। भारत की तत्कालीन राजनीति को खास दिशा में ालने में मालवीय जी का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। अपनी प्राचीन संस्कृति के प्रति उन्हें विशेष लगाव व आर्कषण था। उसकी अभिवृद्धि के प्रति वे सदैव प्रयत्नशील रहे। वे न किसी भाषा के खिलाफ थे और न किसी मत या सम्प्रदाय के।

सुसंस्कारित किया परिवेश

मालवीयजी के समय मे देश में जो राजनैतिक नेता थे, वे विभिन्न प्रकार के विचारों के वाहक थे। उस काल में भारत वर्ष में अनेक महापुरुष हुए। उनमें से अधिकांश उस समय की एक मात्रा संस्था कांग्रेस की और आकर्षित हुए और उसकी सदस्यता ग्रहण की। यद्यपि कांग्रेस की स्थापना एक सेवानिवृत्त अंग्रेज अधिकारी ए. ओ. ह्युम ने की थी। मालवीय जी जैसे प्रखर विद्वान द्वारा कांग्रेस ग्रहण करने से संस्थान में व्याप्त अंग्रेजीयत धीरेधीरे कम होती चली गई और भारतीयता में ईजाफा होता गया। कांग्रेस के अधिवेशनों में जहां मंगलाचरण के रूप में इंगलैण्ड के सम्राट की सुखसमृद्धि का प्रशस्ति गान होता था, वहीं अब मालवीय जी की वजह से वन्दे मातरम का गान होने लगा था।

क्रिसमसडे को हुआ जन्म

पं. मदनमोहन मालवीय जी का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में 25 दिसम्बर 1861 को हुआ। यह वही महान तिथि है जिसे सारे संसार के इसाई लोग अपने प्रभु ईसा का जन्म दिन मनाते हैं। मालवीय जी के पिता का नाम ब्रजनाथ और माता का नाम मुन्नादेवी था।

मालवीय जी को स्कूल में प्रविष्ट कराने से पूर्व पिता ने उन्हें श्लोक, स्तोत्रा तथा भजन कंठस्थ करा दिये थे। इनकी प्राथमिक शिक्षा पाँच वर्ष की उम्र में आचार्य हरिदेव की धर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला में संस्कृत में शुरू हुई। यहां से शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्हे ’’ विद्या धर्म प्रवर्द्धिनी ’’ पाठशाला में भर्ती किया गया। विद्यालय के आचार्य पं. देवकीनंदन को उनकी वाणी बडी सुमधुर लगी तो उन्हें अपनी इच्छानुसार प्रशिक्षित करना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने विद्यालयी शिक्षा के दौरान ही ’मकरंद’ उपनाम से कविताएं लिखनी प्रारंभ की जो कई पत्रापत्रिकाओ में प्रकाशित हुई। हाई स्कूल परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने म्योर सैन्ट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया।

सांस्कृतिक अभिरुचि ने निखारा व्यक्तित्व

कॉलेज मे प्रविष्ट होने के बाद वे वादविवाद, कविता पाठ, संगीत व नाट्यकला में भी रुचि लेने लगे। उन्होने ’मर्चेन्ट ऑफ वेनिस॔ में स्त्राी पात्रा ’’पोर्शिया ’’ की भूमिका को जीवन्त कर दिया था। इसी प्रकार कालिदास के प्रसिद्ध नाटक ॔अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ में शकुन्तला की भूमिका में खूब प्रशंसा प्राप्त की। इस प्रकार नाटक के क्षेत्रा में भी उन्होंने खूब प्रसिद्धि प्राप्त की।

ओजस्वी वाणी ने हमेशा किया मंत्रामुग्ध

एक बार वे अपने चाचा पं. गदाधर प्रसाद के पास मिर्जापुर गये हुए थे। वहां किसी धार्मिक व्यवस्था के सम्बन्ध में विद्वानों की एक सभा का आयोजन भी हो रहा था। पन्द्रह वर्षीय मदनमोहन बड़े ध्यान से उन वक्ताओं को सुन रहे थे किन्तु उनको कहीं कुछ अखर रहा था। उन्होंने चाचा से अपने विचार प्रकट कराने की इच्छा जाहिर की। आज्ञा प्राप्त होने पर वे बोलने लगे। अपने भाषण में उन्होंने ऐसेऐसे तर्क प्रस्तुत किये कि वहां उपस्थित विद्वान दाँतों तले अंगुली दबाने लगे।

बीस वर्ष की आयु में इनका विवाह मिर्जापुर के पं. नंदराम जी की सुकन्या कुन्दनदेवी के साथ हुआ। मालवीय जी स्नातकोत्तर संस्कृत में करना चाहते थे। उनके पिता चाहते थे कि वे भागवत का अध्यापन करं, परन्तु पारिवारिक परिस्थितियों के कारण जुलाई 1884 में इलाहाबाद जिला विद्यालय में अध्यापक की नौकरी करनी पड़ी।

बह ुभाषी और बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न

मालवीय जी एक सफल शिक्षक भी थे। अध्यापक के पद पर कार्य करते समय वे घर पर अपना विषय पूर्ण रूप से तैयार करने के बाद पॄाया करते थे। उनका न केवल हिन्दी, संस्कृत और अंगे्रजी, बल्कि उर्दू व फारसी का उच्चारण भी बहुत ही शुद्ध और स्पष्ट होता था।

मालवीय जी विद्यालय में अध्यापन तो कराते ही थे, खाली समय में गलीमोहल्ले के निर्धन असहाय छात्राों को भी पॄ़ाते थे। इसके बाद भी वे सामाजिक तथा राजनैतिक कार्यों में ब़चढ़ कर हिस्सा लेते थे। इलाहाबाद की कोई भी सामाजिक व राजनैतिक गतिविधि उनकी उपस्थिति के बिना पूर्ण होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। धीरधीरे उनकी सामाजिक, राजनैतिक जागरूकता इलाहाबाद की सीमा लांघ कर देश व्यापी स्वरूप प्राप्त करती चली गई।

वैचारिक क्रांति के महानायक के रूप में हुए प्रसिद्ध

सन 1886 में कांग्रेस का द्वितीय अधिवेशन मालवीय जी के जीवन की दिशा बदलने में करगर सिद्ध हुआ। उस अधिवेशन ने मालवीय जी को भारत भर में प्रसिद्धि प्रदान की। इसका कारण था अधिवेशन में दिया गया मालवीय जी का ओजस्वी और विचारोत्तेजक भाषण। उन्होंने जोरदार भाषण दिया। चारों ओर से तालियों और वाहवाह की आवाजें गूंजती रहीं। उनके एक ही भाषण ने उन्हें सहसा राष्ट्रीय नेता की पंक्ति में खड़ा कर दिया।

निर्भीक संपादन की धाक जमायी

अपने भाषण से उन्होंने दादाभाई नौरोजी को प्रभावित किया। कालाकांकर के राजा रामपालसिंह मालवीय जी के विद्वतापूर्ण भाषण को सुनकर मंत्रामुग्ध हो गये और उन्होंने हिन्दुस्तान दैनिक के सम्पादक का दायित्व मालवीय जी को सौंप दिया। कालाकांकर से निकलने वाला हिन्दुस्तान दैनिक पंडित मदनमोहन मालवीय के सम्पादकत्व में देश की सेवा करता रहा। इससे न केवल मालवीय जी को लोकप्रियता हासिल हुई, बल्कि हिन्दुस्तान दैनिक देश भर मे लोकप्रिय पत्रा माने जाने लगा। ाई साल बाद मालवीय जी ने पं. अयोध्यानाथ के अंग्रेजी अखबार इंडियन ओपिनियन में सह सम्पादक के पद पर भी कार्य किया। उसके बाद इलाहाबाद से वकालात की डिग्री पूरी की।

वकालात में पायी शोहरत

सन 1891 में उन्होंने वकालात आरम्भ कर दी। पहले तो उन्होंने जिला कोर्ट में ही वकालत करते रहे, वहाँ जब सफलता के शीर्ष पर पहुंचे तो फिर उच्च न्यायालय में वकालत प्रारभ कर दी। वहां भी उसी प्रकार सफल होते गये जिस प्रकार की जिला कोर्ट में हुए। मालवीय जी कोई झूठा मुकदमा नहीं लेते थे। वकालत से खूब पैसा मिल रहा था। वे गरीबों तथा व परिचितों के मामले बिना फीस लिये लड़ते थे। दीवानी मामलों में उनकी वकालत खूब चमक उठी। तब वे इलाहाबाद के चार प्रमुख वकीलों में गिनेलाने लगे। वकालत करना मालवीय जी का उद्देश्य नहीं था। उन्होंने वकालत इसलिए शुरू की कि किसी प्रकार आजीविका अबाध रूप से चलती रहे।

ज्ञान के महासागर का स्वप्न साकार किया

मालवीय जी महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति थे लेकिन खुदगर्ज नहीं। उनकी आकांक्षाएं देश और समाज के कल्याण की थीं। उनकी एक बहुत बड़ी आकांक्षा थी एक यथार्थ भारतीय विश्व विद्यालय की स्थापना करना। उन्होंने इसकी स्थापना का संकल्प लिया और वकालात को तिलांजलि दे दी। जिसने भी यह सुना स्तब्ध रह गया। सन 1911 में उनकी मुलाकात एनी बिसेन्ट से हुई और दोनों ने मिलकर वाराणसी में हिन्दू विश्वविद्यालय को स्थापित करने की अवधारणा पर कार्य किया। इस कार्य को मूर्त रूप 1961 में मिला, जब इनके प्रयासों से हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। इसे स्थापित करने का उनका मूल उद्देश्य यह था कि भारत में आधुनिक वैज्ञानिक, तकनीकी शिक्षा का प्रारम्भ हो। इससे देश की वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति में सहायता मिलेगी।

जब निर्णय बदल कर फिर वकालात का चमत्कार दिखाया

पांच फरवरी 1922 को देश में एक महान घटना घटित हुई। कुछ देशभक्तों ने सरकार के कारनामों से उत्तेजित होकर गोरखपुर जिले के चौराचारा पुलिस थाने को आग लगा दी। इस घटना में 21 पुलिस सिपाही आग में जलकर भस्म हो गये। परिणामस्वरूप उस काण्ड में उस इलाके के 225 लोगों को बन्दी बनाकर उन पर अभियोग चलाया गया। इनमें 170 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई। सत्रा न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील की गई। कांग्रेस की तरफ से पं. मोतीलाल नेहरू को अभियोग में दंडितों की पैरवी करने को कहा गया। मोतीलाल नेहरू ने कागजात देखे और कहा कि इस अपील में उच्च न्यायालय में यदि कोई भी लाभ इन दण्डितों को दिला सकता है। तो वह एक मात्रा पं. मदन मोहन मालवीय ही हो सकते हैं। मालवीय जी ने न्याय दिलाने की खातिर अभियुक्तों की ओर से पैरवी करतें हुए 150 लोगों को फांसी का दंड रद्द करवा दिया। मानवता के नाते देश हित में बिना पारिश्रमिक लिए ही उन्होंने यह मुकदमा लड़ा।

अस्पृश्यता निवारण को बनाया जनान्दोलन

मालवीय जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1909, 1918,1930 व 1932 में अध्यक्ष रहे। मालवीय जी बड़े ही हरिजन पे्रमी थे। उन्होंने जाति प्रथा व छूआछूत का जमकर विरोध किया तथा दलितों के उत्थान के लिए भी कार्य किया। इसके लिए उन्हें अपने समाज के लोगों प्रतिरोध सहना पड़ा लेकिन जल्दी ही लोगों ने उनके कार्य के महत्त्व को समझ लिया। उन्होंने कई दिनों तक सुबह से शाम तक हरिजनों को केवल ॔ओम नमो नारायण’ का मन्त्रा देकर शुद्ध किया और मन्दिर में प्रवेश भी दिलवाया। इतने उदार हृदय थे मालवीय जी।

आहत का कराया राहत का अहसास

मालवीय जी का स्वास्थ निरन्तर गिरता जा रहा था। तभी 15 जनवरी 1934 को आए भयंकर भूकंप ने सारे बिहार को तहसनहस कर दिया। इससे हजारों व्यक्ति मारे गये, हजारों घर नष्ट हो गए, लाखों बेघर, बेरोजगार हो गये। इस विनाश लीला से बिहार का एक भूभाग ही नष्ट हो गया। मालवीय जी अपने स्वास्थ्य की चिन्ता किये बिना बिहार चले गये। और जितना उनसे हो सकता था उतना उन्होने वहाँ के पीड़ितों को सहायता देने का सत्कार्य किया।

मानवता की पाठशाला ही था उनका व्यक्तित्व

मालवीय जी एक उच्च कोटि के विद्वान महान शिक्षाविद्, निर्भीक पत्राकार, समाजसेवक, न्यायप्रिय वकील, क्रियाशील राजनीतिज्ञ और हिन्दूमुस्लिम एकता के पक्षधर ही नहीं बल्कि शुचिता, पवित्राता, देशभक्ति, धर्मनिष्ठ, आत्मत्याग आदि के पुण्यों के फलस्वरूप ही किसी राष्ट्र को प्राप्त होते हैं।

मालवीय जी चौरासी वर्ष दस माह और सत्राह दिन की आयु में 12 नवम्बर 1946 को देवलोकगमन कर गये। मालवीय जी महामानव थे। वे अजात शत्राु थे। वे उन लोगों में थे, जिन्होंने आधुनिक भारतीय राष्ट्रीयता की नीेंव रखी।

निस्पृह देशभक्त को पीयिं भुला न पाएंगी

आइये हम ऐसे महापुरुष के प्रति श्रद्घांजलि अर्पित करें जिन्होंने वर्तमान भारत की नींव स्थापित करने में इतना महान कार्य किया। भारत के लोकनायकों में पंडित मदनमोहन मालवीय का स्थान सर्वोपरि रहेगा।

मालवीय जी न केवल सम्मान के साथ जिये बल्कि उन्होंने अपने देशवासियों को सम्मान भरा जीवन जीने की कला सिखाई। पत्राकार के रूप में जो गरिमा अर्जित की, वकील के रूप में भी उसी गरिमा को स्थायी रखा और राजनीति में भी जल कमलवत ही रहे। उनका समग्र जीवन निस्पृह कर्मयोग का सागर था। युगों तक महामानव मालवीयजी देशवासियों के लिए प्रेरणा के स्रोत बने रहेंगे।

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( अनिता महेचा )

कलाकार कॉलोनी जैसलमेर345001

मो.9414391179