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रविवार, 7 सितंबर 2014

रंगीलो राजस्थान : राठौड़ राजाओं का समाधि स्थल जोधपुर का जसवंत थड़ा (Jaswant Thada)


रंगीलो राजस्थान : राठौड़ राजाओं का समाधि स्थल जोधपुर का जसवंत थड़ा (Jaswant Thada)

जोधपुर मेहरानगढ़ किले से निकलने के बाद हमारा अगला पड़ाव था जसवंत थड़ा (Jaswant Thada) यानि राजा जसवंत सिंह का समाधि स्थल। पर इससे पहले कि हम किले से बाहर निकलते, किले के प्रांगण में एक महिला कठपुतलियों को गढ़ती नज़र आई। चटक रंग के परिधानों से सजी इन कठपुतलियों को अगर ध्यान से देखेंगे तो पाएँगे कि स्त्रियों की बड़ी बड़ी आँखों और पुरुषों की लहरीदार मूँछों से सुसज्जित इन कठपुतलियों के पैर नहीं होते। राजस्थामी संस्कृति में कठपुतलियों का इतिहास हजार वर्ष पुराना बताया जाता है। कठपुतलियों के इस खेल को आरंभ करने का श्रेय राजस्थानी भट्ट समुदाय को दिया जाता है। राजपूत राजाओं ने भी इस कला को संरक्षण दिया। इसी वज़ह से लोक कथाओं , किवदंतियों के साथ साथ राजपूत राजाओं के पराक्रम की कहानियाँ भी इस खेल का हिस्सा बन गयीं।









मेहरानगढ़ से निकल कर थोड़ी दूर बायीं दिशा में चलने पर ही जसवंत थड़ा का मुख्य द्वार आ जाता है। पर यहाँ से समाधि स्थल हरे भरे पेड़ों की सघनता की वज़ह से दिखाई नहीं देता। मुख्य इमारत तक पहुँचने के पहले फिर राजस्थानी लोकगायक अतिथियों का मनोरंजन करते दिखे। राजस्थानी संगीत का आनंद लेने के बाद जब मैं राजा सरदार सिंह द्वारा अपने पिता की स्मृति में बनाए गए इस समाधि स्थल के सामने पहुँचा तो दोपहर की धूप में नहाई संगमरमर की इस इमारत को देख कर मन प्रसन्न हो गया। सफेद संगमरमर की चमक बारह बजे की धूप और पार्श्व के गहरे नीले आसमान के परिदृश्य में बेहद भव्य प्रतीत हो रही थी।


जसवत थड़ा के मुख्य अहाते में घुसने के लिए दो बार सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। इसका शिल्प राजस्थानी और मुगल कालीन स्थापत्य का मिश्रण है। सामने की ओर निकले बरामदे का स्थापत्य जहाँ मुगलों से प्रभावित है वहीं ऊपरी ढाँचा बीच में मंदिर की शक़्ल लिए है और दोनों ओर से छोटी बड़ी छतरियों से घिरा है।


समाधि स्थल के अंदर एक बड़ा सा हॉल है जो दो भागों में बँटा है। पहले कक्ष में जोधपुर का राठौड़ शासकों की तसवीरे है्। हॉल के दूसरे सिरे पर राजा जसवंत सिंह की समाधि है। जसवंत थड़ा की हर मुंडेर पर कबूतरों का वास है। चित्र में देखिए किस तरह हर कबूतर ने अपने लिए एक एक खोली आबंटित कर रखी है। पर इनके द्वारा त्याग किए अवशेषों की अम्लीयता से जगह जगह संगमरमर की दीवारें काली होती दिखाई पड़ीं।



जसवंत थड़ा का यूँ तो निर्माण 1899 में राजा जसवंत सिंह के समाधिस्थल के रूप में हुआ पर यहाँ राठौड़ वंश के अन्य शासकों की समाधियाँ भी हैं जो बाद में मुख्य इमारत की बगल में बनाई गयी हैं।


जसवंत थड़ा से मेहरानगढ़ को आप अपनी संपूर्णता में देख सकते हैं । वहीं मेहरानगढ़ से पूरे जसवंत थड़ा के आहाते का रमणीक दृश्य दिखाई देता है। अलग अलग तलों पर बने बागों और छोटी सी एक झील से घिरा जसवंत थड़ा मुसाफ़िरों को अपनी संगमरमरी दूधिया चमक से सहज ही आकर्षित करता है।


जसवंत थड़ा से निकलते निकलते दिन का एक बज गया था। भोजन के लिए हम On The Rock रेस्ट्राँ में गए। रेस्ट्राँ की साज सज्जा इस तरह की गई है कि आपको लगे कि आप हरे भरे पंराकृतिक वातावरण के बीच भोजन कर रहे हैं।


 साभार। http://travelwithmanish.blogspot.in/2013/03/jaswant-thada.html