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मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

जिंक घोटाला: 60 हजार करोड़ का तो खनिज ही था, 1500 करोड़ में सौंप दी कंपनी



जोधपुर. एनडीए शासनकाल में हुई हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड डील के मामले में नया तथ्य सामने आया है। विनिवेश की गड़बडिय़ों की जांच कर रही सीबीआई को कंपनी ने जवाब भेजकर माना कि डील के वक्त 117 मिलियन टन खनिज रिजर्व में था।






लंदन मैटल एक्सचेंज ने 117 टन खनिज की कीमत 60 हजार करोड़ आंकी है। जबकि पूरी कंपनी सिर्फ 1500 करोड़ रुपए के विनिवेश पर स्टरलाइट कंपनी को सौंप दी गई। सीबीआई को कंपनी की ओर से रिकॉर्ड उपलब्ध कराया जा रहा है। उसका मिलान कंपनी की पुरानी बैंलेंस शीट से मिलान किया जाएगा। सीबीआई के पास रिजर्व 140-150 मिलियन टन होने के रिकॉर्ड मौजूद हैं।

बामनिया कला माइंस व कायड़ प्रोजेक्ट भी छुपाए

40 हजार करोड़ रुपए की सिंदेसर माइंस की तरह उदयपुर के पास बामनिया कला माइंस और अजमेर के पास कायड़ प्रोजेक्ट भी टेंडर डॉक्युमेंट में नहीं थे। डील से पहले की बैलेंस शीट बताती हैं कि ये दोनों असेट्स भी कंपनी की थी, जिनकी कीमत नहीं लगाई गई। इनमें से कायड़ प्रोजेक्टर में तो 2002 में ड्रिलिंग भी चल रही थी और बामनिया कला माइंस में स्टरलाइट ने बाद में काम शुरू किया।

175 करोड़ के चेक भी थे आयकर विभाग में
सीबीआई सूत्रों के अनुसार जब कंपनी का पुराना रिकॉर्ड खंगाला गया तो पता चला कि डील से पहले ही हिंदुस्तान जिंक लि. की ओर से आयकर विभाग में 175 करोड़ रुपए के चेक जमा कराए गए थे। ये विवादास्पद चेक थे, जो अलग-अलग वर्षों में जमा कराए थे। स्टरलाइट ने इस कंपनी की मालिक बनने के बाद से अब तक 65 करोड़ के चेक सैटल करवा दिए हैं। अब 110 करोड़ के लिए वह इनकम टैक्स ट्रिब्युनल व हाईकोर्ट में अपनी लड़ाई जारी रखे हुए है।
डील के लिए संसद की अनुमति जरूरी थी, नहीं लीहिंदुस्तान जिंक लिमिटेड में विनिवेश ही गैरकानूनी ढंग से किया गया। इस फैसले को अमल में लाने के लिए एनडीए सरकार ने संसद की मंजूरी नहीं ली। हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड 22 अक्टूबर 1965 तक मैटल इंडिया के नाम से कामकाज करती थी। यह निजी कंपनी सेना के आयुध बनाने का काम करती थी। तत्कालीन सरकार ने संसद में ऑर्डिनेंस पारित कर अधिग्रहित किया और फिर इससे जुड़ा एक कानून पास किया। इस कानून और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक कंपनी को बेचने से पहले संसद की अनुमति जरूरी थी। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। उल्टे सेबी एक्ट में बदलाव कर स्टरलाइट कंपनी की हिस्सेदारी दिनों-दिन बढ़ाई गई। सुप्रीम कोर्ट हिंदुस्तान पेट्रोलियम और भारत पेट्रोलियम से जुड़े मामले में पहले ही कह चुका था कि ऑर्डिनेंस और एक्ट के जरिए अधिग्रहित कंपनियों में विनिवेश न किया जाए।