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रविवार, 9 जून 2019

खान महाघूसकांड खनि अभियंता जैसलमेर के 29 प्रस्ताव बारमेर के तीन थे जिनकी रजिस्टर में प्रविष्टि नहीं की गई

खान महाघूसकांड खनि अभियंता जैसलमेर के 29 प्रस्ताव बारमेर के तीन थे जिनकी रजिस्टर में प्रविष्टि नहीं की गई


: खान महाघूसकांड की लोकायुक्त जांच में लगातार नए खुलासे हो रहे हैं. बड़ा खुलासा यह भी हुआ है कि खान विभाग के अधिकारियों ने अपने हितों को साधने के लिए विभाग के ऑफिस कल्चर को ही खत्म कर दिया था. दूसरे कार्यालयों से आने वाली डाक न तो रिसीव की जाती थी, न ही आने वाले प्रस्ताव पुट अप किए जाते थे. ऐसा लगातार करीब डेढ माह तक हुआ. इस दौरान अधीनस्थ कार्यालयों से आने वाले प्रस्तावों को बिना रिकॉर्ड पर लिए ही डंप कर दिया जाता था. स्थिति यह है कि ये प्रस्ताव अभी तक खान निदेशालय में रिसीव नहीं हुए हैं.   एक्सक्लूसिव रिपोर्ट-

केवल चहेते लोगों के प्रस्तावों को किया जाता था पुट अप:
खान विभाग में 12 जनवरी 2015 से लागू हुए नए खान अधिनियम के दौरान खान आंवटन में बड़ा घोटाला हुआ है. लोकायुक्त सचिवालय द्वारा की गई जांच में इसे लेकर एक बड़ा खुलासा यह भी हुआ है कि खान विभाग के अधिकारियों ने अपने चहेते लोगों को खान आवंटित करने के लिए ऑफिस के एक पूरे प्राेसीजर को ही खत्म कर दिया था. किसी भी विभाग में प्रशासनिक सुधार विभाग की ओर से जारी कार्यालय कार्य विधि पुस्तिका आर्टिकल 1 के नियमों के तहत ही कार्य होता है. खान विभाग के लिए निदेशालय के 9 मई 2012 के आदेशों के तहत प्रधान शाखा के अधिकांश स्वीकृति प्रस्ताव केन्द्रीयकृत रिसीप्ट रिजस्टर में दर्ज किए जाते थे और इसके बाद अनुभाग अधिकारी के पास जाता था. जो डाक अपनी डायरी में दर्ज कर मुख्यालय के प्रधान खनिज अनुभाग के अधीक्षण अभियंता से मार्क करवाकर प्रस्ताव को सम्बंधित लिपिकों को देते थे. सम्बंधित लिपिक भी अपनी डायरी में इन प्रस्तावों को दर्ज करते थे. लेकिन खान विभाग में 24 नवंबर 2014 से 12 जनवरी 2015 तक यह पूरी प्रक्रिया ही खत्म कर दी गई. इस अवधि में जो भी प्रस्ताव अमल में लाए गए, उन्हें सीधे अधीक्षण खनि अभियंता या कार्यालय अधीक्षक को सीधे दस्ती पेश किया जाता था. जिसमें यह भी दर्ज नहीं किया जाता था, कि प्रस्ताव किसके मार्फत विभाग को प्राप्त हुआ. लोकायुक्त सचिवालय ने जांच में माना है कि रिसीप्ट रजिस्टर और डायरी में प्रस्तावों को दर्ज नहीं करना अधिकारियों की सोची समझी साजिश थी. इससे जो प्रस्ताव अधिकारियों की पसंद के होते थे, उन्हें ही रिकॉर्ड पर लिया जाता था. अन्य प्रस्तावों को रद्दी में डंप कर दिया जाता था।

किस तरह ऑफिस सिस्टम को किया 'कॉलेप्स':
—नवंबर 2014 में केन्द्रीयकृत डिस्पैच, रिसीप्ट रजिस्टर में प्रस्तावों की प्रविष्टि बंद कर दी
—इस कारण विभिन्न खनि अभियंता के 43 प्रस्तावों को रिकॉर्ड पर ही नहीं लिया गया
—खनि अभियंता जैसलमेर के 29 प्रस्ताव थे जिनकी रजिस्टर में प्रविष्टि नहीं की गई
—निदेशालय के मुताबिक ये प्रस्ताव आज दिनांक तक प्राप्त ही नहीं हुए हैं
—बीकानेर खनि अभियंता के 4, सिरोही खनि अभियंता के 1 प्रस्ताव को रिकॉर्ड पर नहीं लिया
—ब्यावर खनि अभियंता के 2, अजमेर खनि अभियंता के 3 प्रस्तावों की प्रविष्टि नहीं की गई
—प्रतापगढ़ के 1, बाड़मेर खनि अभियंता के 3 प्रस्तावों को रिकॉर्ड पर नहीं लिया
—लोकायुक्त जांच में बताया कि ये प्रस्ताव निदेशालय को प्राप्त ही नहीं हुए
—जबकि सम्बंधित खनि अभियंता कार्यालयों से सभी प्रस्ताव भिजवाए गए थे

डिस्पैच-रिसीप्ट रजिस्टर की प्रक्रिया को किया बंद:
24 नवंबर 2014 से 12 जनवरी 2015 की जिस अवधि में डिस्पैच-रिसीप्ट रजिस्टर की प्रक्रिया को बंद किया गया था, उसमें बड़ी बात यह है कि जो प्रस्ताव प्राप्त होते थे, उन्हें इकट्ठा कर लिया जाता था. उन्हें रिकॉर्ड पर नहीं लिया जाता था, उन पर कोई प्रष्ठांकन भी नहीं किया जाता था. यदि प्रस्तावों को देखने से यह लगता था कि यह उच्च पदस्थ अधिकारियों से सिफारिश प्राप्त है, या फिर खान आवेदक ने अधिकारियों से मिलीभगत की हुई है, तो ऐसे प्रस्तावों को रिकॉर्ड पर लेकर तत्काल कमियां पूरी करवा ली जाती थीं. यदि कमी रह भी जाती थी तो ऐसे प्रस्तावों पर सशर्त खनन पट्टे जारी कर दिए जाते थे. जबकि वे प्रस्ताव जो पिछले 1 साल से या उससे पहले से भी खान निदेशालय में पड़े हुए थे और उनके लिए कोई सिफारिश नहीं आती थी, उन पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गई.

गड़बड़ी कैसी-कैसी ?
—जैसलमेर के खान पट्टा संख्या 586 से 589/2014 के प्रस्ताव को ओएस ने पुट अप किया
—प्रष्ठांकन में लिखा, मेरे द्वारा निदेशालय खान के ऑफिस में 30 अक्टूबर 2014 को प्रस्तुत किए हैं
—जबकि ये प्रस्ताव ओएस शंकरलाल को क्लर्क गणपत संह ने नहीं, एक अज्ञात व्यक्ति ने प्रस्तुत किए
—पट्टा संख्या 369, 435, 448, और 482/13 में भी अज्ञात व्यक्ति ने प्रष्ठांकन के साथ प्रस्ताव दिए
—अधिकारियों ने यह भी नहीं पूछा कि 10 माह पुराने प्रस्ताव किसने प्रस्तुत किए, प्रष्ठांकन किसने किया
—12 जनवरी 2015 को खनि अभियंता भीलवाड़ा ने 39 स्वीकृति प्रस्ताव प्रेषित किए
—दस्ती आवेदकों के साथ प्रस्ताव भेजने पर भी इनमें से एक भी प्रस्ताव निदेशालय नहीं पहुंचा

खान विभाग में गड़बड़ियों को लेकर लोकायुक्त सचिवालय की ओर से जो जांच की गई है उसमें आरोप के नोटिस सम्बंधित अधिकारियों को तो जारी किए ही गए थे, साथ ही इनकी प्रतियां खान मंत्री, प्रमुख खान सचिव को भी प्रेषित की गई थीं. इन गम्भीर आरोपों के बावजूद ये अधिकारी लोकायुक्त सचिवालय में अभी भी कार्यरत हैं और विभाग के मंत्री या प्रमुख सचिव ने इन अधिकारियों पर अभी तक कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की गई है।