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शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2018

देखे फोटो *थार की राजनीति शख्शियत गाज़ी फकीर* *सरहद की राजनीति का आज भी सुल्तान है गाज़ी फकीर


देखे फोटो *थार की राजनीति शख्शियत गाज़ी फकीर*

*सरहद की राजनीति का आज भी सुल्तान है गाज़ी फकीर*

*चार लाख से अधिक मुस्लिम मतों पर सीधी पकड़,*







*बाड़मेर न्यूज ट्रैक*


सरहदी जिलों बाड़मेर, जैसलमेर के सिन्धी मुस्लिमों के धर्मगुरु के रूप में ख्याति प्राप्त अस्सी वर्षीय गाजी फ़क़ीर सरहदी जिलों की राजनीति के सुल्तान हैं। पूरे सरहदी क्षेत्र की राजनीति उनके रहमो करम पर चलती है, खासकर कांग्रेस की राजनीति में गाजी फ़क़ीर परिवार के बिना कोई। एक तरह से कांग्रेस का रहनुमा हें गाजी फ़क़ीर। जैसलमेर से बीस किलोमीटर दूर भागु का गाँव गाजी फ़क़ीर की राजधानी है। उनके रहबरों ने उन्हें गाजी की पदवी दे राखी हें। सिन्धी मुसलमान उनके आदेश के बगैर कदम नहीं भरते।

जब जब गाज़ी फकीर कांग्रेस से नाराज हुए कांग्रेस को मात खानी पड़ी।।चुनाव में टिकट वितरण भी फकीर की मर्जी से चलता था।उनकी मर्जी के खिलाफ किसी को टिकट दे दिया तो उसे हारना पड़ा।।

*राजनीति में फकीर की पकड़*

गाजी फ़क़ीर सरहदी क्षेत्र की राजनीति में सक्रिय हैं। उनका एक पुत्र पोकरण से पूर्व विधायक है तो दूसरा जैसलमेर पूर्व जिला प्रमुख राह चुके है। उनका भाई फतेह मोहम्मद भी जिला प्रमुख रहे है।।उनके परिवार से आधा दर्जन लोग जिला परिषद् और पंचायत समितियों के सदस्य भी हैं।अमरदीन फकीर फिल वक़्त जेसलमेर पंचायत समिति के प्रधान है।।तो साले मोहम्मद को इस बार चुनाव कैम्पियन का संयोजक बनाया गया है। सरहदी इलाके के इन दो जिलों में कांग्रेस की राजनीति गाजी फकीर से शुरू होकर उन्हीं के परिवार पर खत्म हो जाती है।

*गाज़ी फ़क़ीर चार  जिलों में प्रभावी ,सिंध के पीर पगारो के अनुयाई हे*

धर्मगुरु गाज़ी फ़क़ीर अल्पसंख्यक मुस्लिम वर्ग के धर्मगुरु हे ,पाकिस्तान के पीर पागारो सबगतुल्लाह और उनके वालिद से उनके बेहतरीन , गाज़ी फ़क़ीर अपना फ़तवा किसी उम्मीदवार के पक्ष में तब तक नहीं देते जब तक पीर जो गाथ के पगारो की सहमति नहीं आती ,चुनावो में पीर पगारो की समर्थन चिट्ठी हमेशा चर्चा में रही हे ,सरहदी इलाको में उनकी राजनितिक और सामाजिक क्षेत्र में तूती बोलती हे ,सामाजिक पर्वो के समय हर छोटा बड़ा नेता किसी भी दल का हो उनकी चौखट चूमने जरूर पहुंचता हैं,गाज़ी फकीर क्षेत्र की सियासत की डोर अपने हाथ में रखे हे,कांग्रेस में उनकी मर्जी के बिना पत्ता नहीं हिलता ,जब जब कांग्रेस उनकी मर्जी के खिलाफ गयी तब तब कांग्रेस को रुखसत होना पड़ा ,१९६२ के चुनावो से फ़क़ीर की कांग्रेस में दखल शुरू हुई जो आज तक चल रही ,कांग्रेस हुकुम सिंह और स्वतंत्र पार्टी से भोपाल सिंह के बीच मुकाबल में हुकुम सिंह को जितने में भूमिका निभाई तो अगले चुनावो में कांग्रेस को मजबूती प्रदान करते रहे क्षेत्र में राजपूत मुस्लिम मेघवाल का गठबंधन बन गया ,1985 में गाज़ी फ़क़ीर ने अपने भाई फ़तेह मोहम्मद के लिए टिकट मांगी कांग्रेस ने टिकट भोपाल सिंह भाटी को दी तो गाज़ी फ़क़ीर ने बगावत कर मेघवाल समाज के मुल्तानाराम को मैदान में उतार दिया मुस्लिम मेघवाल गठबंधन गाज़ी फ़क़ीर की रहनुमाई में जीत गया ,यही से फ़क़ीर परिवार का वर्चस्व जैसलमेर की राजनीती में बढ़ने लगा ,अगले मध्यावधि चुनावो 1993 में कांग्रेस ने राजपरिवार के जीतेन्द्र सिंह को टिकट दिया तो गाज़ी फकीर ने विद्रोह कर छोटे फ़क़ीर फ़तेह मोहम्मद को निर्दलीय चुनाव में उतार  दिया क्षेत्र में पहली बार हिन्दू मुस्लिम के नारे लगे कमज़ोर स्थति में आये कांग्रेस के जीतेन्द्र सिंह ने भाजपा के गुलाब सिंह को समर्थन दे दिया जिसके  भाजपा मजबूत हो गई ,गाज़ी फकीर के भाई फ़तेह मोहम्मद को त्यालीस हज़ार वोट मिले ,गाज़ी फ़क़ीर ने अपनी मुस्लिम मतदाताओं पर पकड़ एक बार फिर साबित की ,अगले चुनावो में भाजपा ने जीतेन्द्र सिंह को मैदान में उतर दिया कांग्रेस ने गोवर्धन कल्ला को टिकट दिया फ़क़ीर ने कल्ला के साथ रहकर जीता कर जीतेन्द्र सिंह को बुरीतरह से हरा दिया,गोरधन कल्ला विधायक बने। फतेह मोहम्मद लगातार जिला प्रमुख रहे ,फ़तेह मोहम्मद के बाद साले मोहम्मद और अब्दुलाह फ़क़ीर जिला प्रमुख रहे ,छोटे पंचायत और जिला परिषद चुनावो में फ़क़ीर परिवार आज भी प्रभावी हे ,बहार हल गाज़ी फ़क़ीर आज भी बाड़मेर जैसलमेर पोकरण ,और बीकानेर फलोदी तक प्रभावी हैं,इसलिये इन्हे सरहद का सुल्तान कहा जाता हैं ,

गाजी फकीर का राजनीतिक रसूख कितना अधिक है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर चुनाव से पहले इलाके के उनके समर्पित अनुयाई उनके फतवे का इंतजार करते हैं। गाजी फकीर का दावा है कि उन्हें सरहद पार से संदेश आता है जिसके बाद ही वे फतवा जारी करते हैं। उनके समर्थक गाजी के फतवे के अनुरूप ही किसी पार्टी के पक्ष में एकमुश्त मत डालते हें। गाजी फकीर की यही राजनीतिक ताकत उनके दुश्मन भी पैदा कर चुकी है।

गत विधानसभा चुनावों से पूर्व में एक गुट ने गाजी फकीर की ताकत को खत्म करने की कोशिश शुरू की है, और समझा जा रहा है कि गाजी फकीर की बंद पड़ी हिस्ट्रीशीट खोलना भी उसी कोशिश का हिस्सा है। नहीं तो इलाके में रहनेवाले लोग जानते हैं कि नेता ही नहीं अधिकारी भी गाजी के दर पर सलाम बजाने पहुंचते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सरहदी इलाके के पांच लाख सिन्धी मुसलमानों के मन पर गाजी की सल्तनत चलती है।

पुलिस अधीक्षक पंकज चौधरी ने यह आरोप लगाते हुए उनकी हिस्ट्रीशीट खोली की गाजी फ़क़ीर राष्ट्रविरोधी गतिविधिओं में शामिल रहे हें .उनके पाकिस्तान के तस्करों के साथ तालुकात रहे हें . उनकी हिस्ट्रीशीट खोलने के आदेश उच्च अधिकारियो द्वारा ही दिए गए थे . बावजूद इसके गाज़ी फकीर के खिलाफ कोई सबूत नही मिले।।जो मुकदमे फकीर के खिलाफ थे उनमें एफ आर लगी तो कईयों में आरोप मुक्त भी हुए।।

*।।गाजी फ़क़ीर धर्मगुरु  हें ।।*

 मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से लेकर श्रीमती सोनिया गाँधी तक उनके रसूखात हें .कांग्रेस के साथ साथ उनकी चौखट पर भाजपा के नेता भी जाते रहे हें .तत्कालीन पंकज चौधरी  ने गाजी फ़क़ीर की आज़ादी के बाद सरहद पर निर्विवाद चली आरही सल्तनत को चुनौती दे डाली .जिसके बाद से पंकज चौधरी प्रशासनिक अमले में कहां है कहने की जरूरत नही।।

*धर्म गुरु गाजी फ़क़ीर के राजनितिक रसूख किसी राष्ट्राध्यक्ष से कम नहीं हें*.

शनिवार, 13 अक्टूबर 2018

ऐसे थे हमारे सांसद बाड़मेर के वाटरमैन सच्चे और ईमानदार जननेता विरधी चंद जैन*

ऐसे थे हमारे सांसद
*थार की राजनीतिक शख्सियत  *

*ऐसे थे हमारे सांसद बाड़मेर के वाटरमैन सच्चे और ईमानदार जननेता विरधी चंद जैन*

*दो बार सांसद और तीन बार विधायक रहकर भी सादा जीवन जीते*

*बाड़मेर न्यूज़ ट्रैक*

बाड़मेर थार की राजनीति में कई नेता अमर हो गए। उनका कृतित्व आज भी बोल रहा। नेता बनना और नेता बन लोगो के दिलोदिमाग पे छा जाने बहुत कम नेताओ को नसीब होता है।।।
बाड़मेर जिले की राजनीति में विरधी चंद जैन का बड़ा नाम था।।ईमानदार और सच्चे व्यक्ति।।दो बार सांसद और तीन बार विधायक बनने के बावजूद साधारण जिंदगी जीते थे।।खागल मोहले में वही पुराना मकान जो लम्बे समय से मरम्मत मांग रहा था मगर वो भी नही हो पा रही थी।।जिला प्रमुख ,नगर पालिका अध्यक्ष भी रहे। लोगो से मेलमिलाप और सम्पर्क निरन्तर था। सबसे बड़ी विशेषता की गलत का कभी साथ नही देते।।जाति आधारित इस चुनावी क्षेत्र में विरधी चंद जैन जाट बाहुल्य बाड़मेर विधानसभा से तीन मर्तबा विधायक बने।।उस वक़्त बायतु क्षेत्र बाड़मेर विधानसभा का हिस्सा था।।दो बार सांसद पहुंचे।संसद में बाड़मेर की पेयजल समस्या को लेकर वो लगातार मुद्दे उठाते रहे। जब तक रहे बाड़मेर को पेयजल योजनाओं से जोड़ने की जोरदार पैरवी करते रहे।।बाड़मेर जिले में आज जो पेयजल योजनाए दिख रही है वो अधिकांस विरधी चंद जैन की देन है।।बाड़मेर के विकास कार्यो के लिए वो हमेशा अपनी पार्टी के बड़े नेताओ से झगड़ लेते थे।।इसी बात के बड़े नेता उनके मुरीद थे।।श्रीमती इंदिरा गांधी ,और राजीव गांधी उन्हें व्यक्तिगत जानते थे।।उनके आग्रह पर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी बाड़मेर जैसलमेर के दौरे पे आये थे।।जैन होते हुए भी जाट मतदाता उनके भक्त थे।।

उन्होंने जागीरदारी प्रथा और सामन्तशाही का ताउम्र विरोध किया। उनके सामने उम्मीदवार भी क्षत्रिय होते थे ।उनकी राजनीति का यही सबसे बड़ा आधार था।वो सामन्तशाही को जमकर कोसते।।उनको दो बार हार का भी सामना करना पड़ा।।सिद्धांतो की लड़ाई में वो कभी पीछे नही सरकते।।कांग्रेस के सच्चेसिपाही थे।निडर और दबंग थे।।

*राजनीतिक कैरियर*

जैन 1980 से 1984 और 1984 से 1989 तक सांसद रहे।।तो 1972,1977 और 2003 में विधानसभा के सदस्य रहे।1950 से 53 तक नगर पालिक अध्यक्ष रहे।1959 से 1964 तक जिला प्रमुख रहे।अपने कार्यकाल में उन्होंने जनहित के बहुत से कार्य कारित किये।अब्दुल हादी उनके मित्र थे।।कानपुर के कॉलेज से एल एल बी की हुई थी वकालत की हुई थी।।उस वक़्त  एल एल बी करना बहुत मायने रखता था।।जैन विभिन से सामाजिक संगठनों से जुड़े रहे।।भारत सेवक समाज, होम्योपैथिक हॉस्पिटल, नेहरू युवा केन्द्र से जुड़ आम जन  की सेवा में जुटे रहते।

*ईमानदार और सच्चे इंसान*

जैन अपने जीवन मे बहुत ईमानदार रहे।उन्होंने स्वच्छ राजनीति की बिना किसी लाग  लपेट के। अपने समर्थकों के लिए वो किसी से भी अड़ जाते।।उन्होंने जातिवाद की राजनीति नही की।।जातिवाद के खिलाफ थे।।निस्वार्थ राजनीति के चलते ही वो अपना उत्तराधिकारी नही चुन पाए।।अपने परिवार में किसी को राजनीति में नही आने दिया।।कांग्रेस के सच्चे सिपाही के रूप में बो हमेशा याद किये जाते रहेंगे।।उनके नाम से बाड़मेर जिला मुख्यालय पर विरधी चंद जैन केंद्रीय बस स्टेंड बना हुआ है।।

बुधवार, 10 अक्टूबर 2018

थार चुनावी रणभेरी 2019 राजनितिक शख्शियत - बाड़मेर जैसलमेर के सांसद रहे धुरंधर राजनेता रामनिवास मिर्धा

हमारे सांसद।।थार चुनावी रणभेरी 2019 राजनितिक शख्शियत - बाड़मेर जैसलमेर के सांसद रहे धुरंधर राजनेता रामनिवास मिर्धा


थार की  धरा ने कई राजनेताओं को अपने यहां पनाह दी।।देश के ख्यातनाम राजनीतिज्ञ रामनिवास मिर्धा भी बाड़मेर जेसलमेर का प्रतिनिधित्व कर चुके है।1991 के मध्यावधि चुनावव में कांग्रेस ने रामनिवास मिर्धा को बाड़मेर से उतारा।।मिर्धा ने उप चुनाव जीत कर सांनसड में प्रवेश किया।।हालांकि उनका अपने कार्यकाल में कोई खास योगदान बाड़मेर के विकास को लेकर नही रहा।मगर उनके कद का व्यक्ति बाड़मेर के सांसद रहे यह बड़ी बात थी।।


जीवन परिचय :
कांग्रेस के कद्दावर नेता रामनिवास मिर्धा इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकारों में वर्षो तक विभिन्न मंत्रालयों में मंत्री रहे। उनका जन्म 24 अगस्त 1924 को नागौर जिले के कुचेरा ग्राम में तत्कालीन जोधपुर रियासत के पुलिस महानिरीक्षक बलदेवराम मिर्धा के यहां हुआ। उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में एमए तथा लखनऊ विश्वविद्यालय से विधि स्त्रातक किया। मिर्धा ने कुछ दिनों तक जिनेवा में भी अध्ययन किया। मिर्धा राजस्थान प्रशासनिक सेवा के भी अधिकारी रहे।

राजनीतिक परिचय :
मिर्धा ने 1953 में राज्य सेवा से इस्तीफा दिया और जायल क्षेत्र से उपचुनाव में कांग्रेस टिकट पर विधायक चुने गए। वो 13 नवम्बर 1954 से मार्च 1957 तक सुखाडिया मंत्रिमंडल में कृषि, सिंचाई और परिवहन आदि विभागों में मंत्री रहे। 1957 के चुनाव में वो लाडनूं और 1962 में नागौर से फिर विधायक चुने गए।

मिर्धा लगातार 25 मार्च 1957 से 2 मई 1967 तक राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष रहे। 1970 में पहली बार इंदिरा गांधी की सरकार में गृहराज्य मंत्री नियुक्त हुए और 1977 तक आपूर्ति एवं पुनर्वास राज्यमंत्री रहे। 1977 से 80 तक राज्यसभा के उपाध्यक्ष रहे। मिर्धा ने 1983 में सिंचाई राज्य मंत्री और 1984 में विदेश राज्यमंत्री का पद ग्रहण किया।

राजीव गांधी सरकार में उन्होंने केबिनेट मंत्री के रूप में पदोन्नत होकर वस्त्र मंत्रालय का भी कार्यभार संभाला। दिसंबर 1984 में मिर्धा ने पहली बार नागौर से लोकसभा चुनाव लडा और नाथूराम मिर्धा को पराजित किया। उसके बाद वो 1991 के मध्यावधि चुनाव में बाडमेर लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए। मिर्धा कई सालों तक राजस्थान ललित कला अकादमी के अध्यक्ष भी रहे। उनके छोटे बेटे हरेन्द्र मिर्धा भी पिछली अशोक गहलोत के मंत्री मंडल में मंत्री थे। हरेन्द्र मिर्धा कुशल राजनेता हें।
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शनिवार, 6 अक्टूबर 2018

बाड़मेर थार का चुनावी रणक्षेत्र ,थार की राजनितिक शख्सियत रावळ उम्मेद सिंह

बाड़मेर थार का चुनावी रणक्षेत्र ,थार की राजनितिक शख्सियत  उम्मेद सिंह रावळ

सबसे कम उम्र में  विधायक बनने का कीर्तिमान आज भी आपके नाम 

बाड़मेर के पहले राजनितिक शख्स जिले से बाहर जाकर चुनाव लड़े और जीते 

बाड़मेर थार के तपते धोरो में राजनीती करना पचास और साठ के दशक में बहुत मुश्किल था ,इस  थार की थळी ने राजस्थान की राजनीती में नायब हीरे दिए ,चाहे वो तन सिंह महेचा हो या रमदान चौधरी हो या वृद्धि चंद जैन या अब्दुल हादी ,बहुत से नाम हे जो राजस्थान की राजनीती में लम्बे समय तक ध्रुव टारे की तरह चमकते रहे ,ऐसे ही एक राजनीती सितारे का उदय हुआ ,उस वक़्त बाड़मेर की जनता ने जागीरदार घरानो के प्रति अटूट आस्था थी ,उन घरानो का जबरदस्त सामान था। 1962 के विधानसभा चुनाव थे ,राम राज्य परिषद का जोरदार बोलबाला था ,इससे पूर्व रामराज्य परिषद से तन सिंह महेचा चुनाव लड़ चुके थे ,बाद में वो सांसद बन गए तो नए चेहरे की तलाश आरम्भ हुई,ज्यादा कोई मशक्क्त किये बाड़मेर फोर्ट के रावळ उम्मेद सिंह को चुनाव लड़ने का न्योता जनता की तरफ से गया ,उस वक़्त रावळ सा की उम्र पच्चीस साल से कुछ दिन कम थी ,पर फार्म भरने तक उम्र पच्चीस हो रही थी ,उस वक़्क़त रावळ साब के प्रति आमजन में खूब मान सम्मान था ,जनता का स्नेह देख वो राम राज्य परिषद की और से चुनाव मैदान में उत्तर गए उनका मुकाबला कांग्रेस के वृद्धि चंद  , वृद्धि चंद जैन जागीरदारी प्रथा के खिलाफ बोलने और आंदोलन चलने वाले चर्चित वकील थे ,बड़ा कड़ा मुकाबला लग रहा था ,लेकिन चुनाव का दौर चलते चलते रावळ सा काफी बढ़त ले चुके थे ,उन्होंने चुनाव और जनता का दिल दोनों जीते ,बेहद सहज सरल और मृदुभाषी उम्मेद सिंह के प्रति लोगो में दीवानगी थी ,उन्होंने जब अपना पहला चुनाव जीता तब वे पूर्ण पच्चीस साल और कुछ दिन के थे ,सबसे क उम्र में चुनाव जीत कर विधानसभा में पहुंचने का उनका कीर्तिमान आज भी कायम हे ,अगला १९८० का चुनाव उनको डीडवाना से लड़ाया गया ,वे पहले शख्स हे थार के जिन्होंने अपने गृह जिले से बाहर जाकर चुनाव लड़ा और जीते दूसरी बार विधायक बने ,ये उनके व्यक्तित्व का  कमाल था की बाहरी जिले की विधानसभा से चुनाव लड़े और जीत क्र विधानसभा पहुंचे ,तीसरा चुनाव उन्होंने शिव विधानसभा क्षेत्र से १९८५ में लड़ा ,उनका मुकाबला कांग्रेस के तेज तर्रार अमिन खान से था ,अपनी मतदाताओं में अच्छी पकड़ और सीधा संपर्क होने के कारन उन्होंने अमिन खान को ग्यारह हजार से अधिक मतो से हराकर विधानसभा पहुंचे ,

बाड़मेर की जागीर के रावळ उम्मेद सिंह 87 गाँवो के जागीरदार थे उस वक़्क़त उनकी जागीर का राजस्व 1891 से सत्तर हजार था ,उनका व्यक्तित्व विशाल था ,उच्च शिक्षित होने के साथ आमजन से सीधा जुड़ाव उन्हें खास बनता था ,सर्व समाज में बहुत लोकप्रिय थे ,उनका आदर मान लोग दिल से करते ,आम लोगो की मदद करना उन्होंने अपना धर्म बना रखा था ,उनके द्वार से कोई खाली नहीं जाता ,२९ सितंबर 2006 को जब उन्होंने अंतिम साँस ली मनो पुरे बाड़मेर पर दुखो का पहाड़ टूट पड़ा हो ,उनकी शव यात्रा में हज़ारो लोग पहुंचे ,जो उनकी शख्सियत को ब्यान करती हे ,उन्होंने बाड़मेर जिले की जनता के लिए विकास के कार्य खूब किये ,सकारात्मक सोच के साथ वे अंत तक विकास में जुटे रहे ,