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रविवार, 4 मई 2014

बाड़मेर:अनूठी है कौड़ी कला की हस्तशिल्प विरासत

अनूठी है कौड़ी कला की हस्तशिल्प विरासत
: चंदन भाटी
 


बाड़मेर: एक जमाने में मुद्रा के रूप में उपयोग की जाने वाली कौड़ियों को वर्तमान में बहुत उपयोगी नहीं माना जाता। आज ‘कौड़ियों के भाव’ मुहावरे का अर्थ किसी चीज को बहुत सस्ते में खरीदना या बेचना माना जाता हैं। कभी मूल्यवान रहीं ये कौड़ियां धीरे-धीरे घर-परिवारों से लुप्त होती जा रही हैं, लेकिन राजस्थातन के बाड़मेर जिले के हस्तशिल्पियों ने अपनी सृजनात्मक ऊर्जा के बल पर कौड़ियों को साज-सज्जा के एक अद्भुत साधन का रूप प्रदान करने का सफल प्रयास किया है।

बाड़मेर जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर दूर स्थित देरासर गांव की रामदियों की बस्ती की हस्तशिल्पी श्रीमती भाणी, मिश्री खां व उनके साथियों ने कौड़ियों का नया संसार रच डाला है। कौड़ियों को रंग-बिरंगे धागों, झालरों को बारीक कसीदे और गोटों से खूबसूरती से गूंथकर पशुओं के श्रृंगार तथा घरेलू सौन्दर्य को बढ़ाने के लिए इस्ते माल किया जाता रहा है। लेकिन, आधुनिक जरूरतों को देखते हुए हस्तशिल्प को विस्तांर देने और उसके लिए बाजार बनाने का प्रयास हो रहा है।

इस गांव के ज्यादातर हस्तशिल्पी मुसलमान (रामदिया) हैं तथा पशुपालन व विक्रय धंधा करते हैं। 95 घरों वाले इस गांव में पच्चीस घर रामदिया मुसलमानों के हैं, जो गुजरात और महाराष्ट्र के विभिन्न पशु मेलों में शरीक होकर पशु क्रय-विक्रय का धंधा करते हैं। ऐसे ही एक मेले में मिश्री खां अपनी पत्नी भाणी के साथ गुजरात गए, जहां ऊंट और घोड़ों के श्रृंगार को देखकर बेहद प्रभावित हुए। बैलों के श्रृंगार के लिए कौड़ियों की बनी मोर कलिया, गेठिये, घोडी के श्रृंगार के लिए मृणी लगाम, गोडिए, त्रिशाला और ऊंटो के लिए बने पऊछी गोरबन्ध मुहार, मोर आदि कौड़ी कला को देखकर आधुनिक नमूने तैयार करने के विषय में पूछताछ कर यहीं से इस दम्पति ने नई जिन्दगी की शुरूआत की।

भाणी का पुश्तैनी कार्य कांच-कसीदाकारी का तो था ही, साथ ही भाणी ने इसी दौरान कौड़ी काम भी सीख लिया। पशु श्रृंगार की सामग्री के साथ-साथ भाणी ने गुडाल तथा अन्य झोपडों के लिए तोरण-तोरणिएं तथा अपाण के पलों पर कडों कौड़ी, खीलण कांच और भरत का कार्य करने में भी महारत हासिल कर ली। मुसलमान, मेघवाल आदि जातियों की शादियों पर कौड़ियों वाले मोर पर तो आज भी गांव वाले मोहित हैं। भाणी ने परम्परागत कौड़ी कला कार्य इण्डाणी गोरबन्ध के साथ-साथ इसी कला के थैले, पर्स बनाने आरम्भ कर दिए।

हस्तशिल्पी बताते हैं कि कौड़ी कला युक्त इण्डाणियों की मांग शहर में बहुत हैं। शहर वाले परम्परागत इण्डानियों को देखकर मोहित हो जाते हैं। भाणी झालर वाली, बिना झालर वाली और बिना फुन्दी वाली इण्डाणी बनाती हैं। झालर वाली इण्डाणी बीस इंच लम्बी होती हैं, जिसके कारण शिल्पकार को इसे तैयार करने में तीन दिन लग जाते हैं। इस इण्डाणी में आधा किलो कौड़ी और लगभग डेढ़ सौ ग्राम ऊन लग जाता है। बिना झालर व फुन्दे वाली इण्डाणी एक ही दिन में तैयार हो जाती हैं। इसमें 100-125 ग्राम कौड़ी का उपयोग होता हैं। बिना झालर व फुन्दी वाली इण्डानी बनाने में एक दिन का समय लगता हैं।

झालर वाली इण्डाणी में मूंजवाली रस्सी को गोलकर कपड़े से सिलाई कर दी जाती है और कौड़ी में बंद करके उसे कपड़े पर सील दिया जाता है। कौड़ी कला के कद्रदान आज कम बचे हैं। सरकारी स्तर पर इन हस्तशिल्पियों को सरंक्षण नहीं मिलने के कारण ये फाकाकशी में दिन गुजार रहे हैं। कौड़ी कला के हस्तशिल्पी देश भर में कम ही बचे हैं। मिश्री खान को दाद तो खूब मिलती है, मगर दो जून की रोटी का जुगाड़ करने में कोई मदद नहीं करता।



गुरुवार, 17 मार्च 2011

थार महोत्सव 2011 अक्षुण्ण सांस्कृतिक परम्परा होगी उजागरथार थार की




थार महोत्सव 2011
अक्षुण्ण सांस्कृतिक परम्परा होगी उजागरथार थार  की

बाडमेर, 17 मार्च। होली के बाद आयोजित होने वाले तीन दिवसीय थार महोत्सव के दौरान बाडमेर की अक्षुण्ण सांस्कृतिक परम्परा को साक्षात उजागर किया जाएगा। महोत्सव के समापन पर सीतला सप्तमी को कनाना में आयोजित विख्यात परम्परागत गैर थार की अनमोल कला की कहानी कहेगी। गुरूवार को कलेक्ट्रेट सभागार में आयोजित बैठक में जिला कलेक्टर गौरव गोयल ने महोत्सव के दौरान कार्यक्रमों में सांस्कृतिक परम्परा की झलक के साथ साथ भरपूर रोचकता एवं मनोरंजन को भी समाहित करने के निर्दो दिए है।
इस मौके पर जिला कलेक्टर गोयल ने कहा कि थार महोत्सव में रोचक एवं मनोरंजक कार्यक्रमों के जरिये अधिकाधिक लोगों को भामिल किया जाए। उन्होने 23 से 25 मार्च तक आयोजित किए जाने वाले तीन दिवसीय थार महोत्सव के संबंध में आयोजित विभिन्न व्यवस्थाओें से जुडे अधिकारियों से अब तक की तैयारियों की समीक्षा की।
इस अवसर पर जिला कलेक्टर गोयल ने कहा कि बाडमेर जिले की कला, संस्कृति, हस्तिल्प को जग जाहिर करने तथा पर्यटन विकास के मकसद से आयोजित किए जाने वाले थार महोत्सव में सभी की भागीदारी जरूरी है। उन्होने कहा कि कार्यक्रमों को रोचक एवं मनोरंजन रूप प्रदान किया जाए तथा अधिकाधिक दोी विदोी पर्यटकों को महोत्सव में आमन्ति्रत करने के प्रयास किए जाए। इस सबंध में उन्होने व्यापक प्रचार प्रसार करने के संबंधित अधिकारियों को निर्दो दिए।
उन्होने बताया कि तीन दिवसीय थार महोत्सव का आगाज 23 मार्च को प्रातः 830 बजे निकाली जाने वाली भव्य भाोभा यात्रा के साथ होगा। भाोभा यात्रा गांधी चौक से प्रारम्भ होकर भाहर के प्रमुख मार्गो से गुजरती हुई आदार स्टेडियम पहुचेगी जहां पर विभिन्न प्रकार की विचित्र एवं रोचक प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाएगा। इसी दिन सायं को महाबार में पतंग प्रतियोगिता, कैमल सफारी, सांस्कृतिक संध्या एवं आतिबाजी के कार्यक्रम आयोजित किए जाएगे। वहीं 24 मार्च को प्रातः 9 से 12.00 बजे तक किराडू में सांस्कृतिक यात्रा आयोजित होगी। इसी दिन साय काल में आदार स्टेडियम में ख्यातनाम कलाकार राजा हसन द्वारा आकशर्क कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाएगा। थार महोत्सव के आखिरी दिन 25 मार्च को बालोतरा में भाोभा यात्रा एवं विभिन्न प्रतियोगिताओं के अलावा भगत सिंह स्टेडियम में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। इसी दिन कनाना में गैर नृत्य का भी आयोजन किया जाएगा।
थार श्री तथा थार सुन्दरी के प्रतियोगिताओं के पंजीयन के लिए आवेदन उपखण्ड अधिकारी गुडामालानी मुख्यालय बाडमेर में प्रस्तुत करने होंगे। इससे पूर्व जिला कलेक्टर ने थार महोत्सव के पोस्टर का विमोचन किया।