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शनिवार, 1 जून 2013

कामना पूरी करें.रुद्राक्ष की माला से.....

कामना पूरी करें.रुद्राक्ष की माला से.....

पंडित दयानन्द शास्त्री




देवाधिदेव भगवान भोलेनाथ की उपासना में रुद्राक्ष का अत्यन्त महत्व
है...रुद्राक्ष शब्द की विवेचना से यह स्पष्ट हो जाता है कि इसकी
उत्पत्ति महादेव जी के अश्रुओं से हुई है- रुद्रस्य अक्षि रुद्राक्ष:,
अक्ष्युपलक्षितम्अश्रु, तज्जन्य: वृक्ष:... शिव महापुराण की
विद्येश्वरसंहिता तथा श्रीमद्देवीभागवत में इस संदर्भ में कथाएं मिलती
हैं... उनका सारांश यह है कि अनेक वर्षो की समाधि के बाद जब सदाशिव ने
अपने नेत्र खोले, तब उनके नेत्रों से कुछ आँसू पृथ्वी पर गिरे...और उनके
उन्हीं अश्रुबिन्दुओं से रुद्राक्ष के महान वृक्ष उत्पन्न हुए...
रुद्राक्ष धारण करने से तन-मन में पवित्रता का संचार होता है...
रुद्राक्ष पापों के बडे से बडे समूह को भी भेद देते हैं... चार वर्णो के
अनुरूप ये भी श्वेत, रक्त, पीत और कृष्ण वर्ण के होते हैं...ऋषियों का
निर्देश है कि मनुष्य को अपने वर्ण के अनुसार रुद्राक्ष धारण करना
चाहिए... भोग और मोक्ष, दोनों की कामना रखने वाले लोगों को रुद्राक्ष की
माला अथवा मनका जरूर पहनना चाहिए... विशेषकर शैव मताबलाम्बियो के लिये तो
रुद्राक्ष को धारण करना अनिवार्य ही है.... जो रुद्राक्ष आँवले के फल के
बराबर होता है, वह समस्त अरिष्टों का नाश करने में समर्थ होता है... जो
रुद्राक्ष बेर के फल के बराबर होता है, वह छोटा होने पर भी उत्तम फल देने
वाला व सुख-सौभाग्य की वृद्धि करने वाला होता है... गुंजाफल के समान बहुत
छोटा रुद्राक्ष सभी मनोरथों को पूर्ण करता है... रुद्राक्ष का आकार
जैसे-जैसे छोटा होता जाता है, वैसे-वैसे उसकी शक्ति उत्तरोत्तर बढती जाती
है... विद्वानों ने भी बडे रुद्राक्ष से छोटा रुद्राक्ष कई गुना अधिक
फलदायी बताया है किन्तु सभी रुद्राक्ष नि:संदेह सर्वपापनाशक तथा
शिव-शक्ति को प्रसन्न करने वाले होते हैं... सुंदर, सुडौल, चिकने, मजबूत,
अखण्डित रुद्राक्ष ही धारण करने हेतु उपयुक्त माने गए हैं... जिसे कीडों
ने दूषित कर दिया हो, जो टूटा-फूटा हो, जिसमें उभरे हुए दाने न हों, जो
व्रणयुक्त हो तथा जो पूरा गोल न हो, इन पाँच प्रकार के रुद्राक्षों को
दोषयुक्त जानकर त्याग देना ही उचित है... जिस रुद्राक्ष में अपने-आप ही
डोरा पिरोने के योग्य छिद्र हो गया हो, वही उत्तम होता है... जिसमें
प्रयत्न से छेद किया गया हो, वह रुद्राक्ष कम गुणवान माना जाता है...

रुद्राक्ष, तुलसी आदि दिव्य औषधियों की माला धारण करने के पीछे वैज्ञानिक
मान्यता यह है कि होंठ व जीभ का प्रयोग कर उपांशु जप करने से साधक की
कंठ-धमनियों को सामान्य से अधिक कार्य करना पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप
कंठमाला, गलगंड आदि रोगों के होने की आशंका होती है। उसके बचाव के लिए
गले में उपरोक्त माला पहनी जाती है।
रुद्राक्ष अपने विभिन्न गुणों के कारण व्यक्ति को दिया गया ‘प्रकृति का
अमूल्य उपहार है’ मान्यता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के
नेत्रों से निकले जलबिंदुओं से हुई है. अनेक धर्म ग्रंथों में रुद्राक्ष
के महत्व को प्रकट किया गया है जिसके फलस्वरूप रुद्राक्ष का महत्व जग
प्रकाशित है. रुद्राक्ष को धारण करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं इसे
धारण करके की गई पूजा हरिद्वार, काशी, गंगा जैसे तीर्थस्थलों के समान फल
प्रदान करती है.
रुद्राक्ष की माल द्वारा मंत्र उच्चारण करने से फल प्राप्ति की संभावना
कई गुना बढ़ जाती है.इसे धारण करने से व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा
प्राप्त होती है. रुद्राक्ष की माला अष्टोत्तर शत अर्थात 108 रुद्राक्षों
की या 52 रुद्राक्षों की होनी चाहिए अथवा सत्ताईस दाने की तो अवश्य हो इस
संख्या में इन रुद्राक्ष मनकों को पहना विशेष फलदायी माना गया है. शिव
भगवान का पूजन एवं मंत्र जाप रुद्राक्ष की माला से करना बहुत प्रभावी
माना गया है तथा साथ ही साथ अलग-अलग रुद्राक्ष के दानों की माला से जाप
या पूजन करने से विभिन्न इच्छाओं की पूर्ति होती है.धारक को शिवलोक की
प्राप्ति होती है, पुण्य मिलता है, ऐसी पद्मपुराण, शिव महापुराण आदि
शास्त्रों में मान्यता है।

शिवपुराण में कहा गया है :
यथा च दृश्यते लोके रुद्राक्ष: फलद: शुभ:।
न तथा दृश्यते अन्या च मालिका परमेश्वरि:।।

अर्थात विश्व में रुद्राक्ष की माला की तरह अन्य कोई दूसरी माला फलदायक
और शुभ नहीं है।

श्रीमद्- देवीभागवत में लिखा है :
रुद्राक्षधारणाद्य श्रेष्ठं न किञ्चिदपि विद्यते। अर्थात विश्व में
रुद्राक्ष धारण से बढ़कर श्रेष्ठ कोई दूसरी वस्तु नहीं है।

रुद्राक्ष दो जाति के होते हैं- रुद्राक्ष एवं भद्राक्ष...

रुद्राक्ष के मध्य में भद्राक्ष धारण करना महान फलदायक होता है-
रुद्राक्षाणांतुभद्राक्ष:स्यान्महाफलम्...
रुद्राक्ष-धारण करने से पहले उसके असली होने की जांच अवद्गय करवा लें।
असली रुद्राक्ष ही धारण करें। खंडित, कांटों से रहित या कीड़े लगे हुए
रुद्राक्ष धारण नहीं करें। जपादि कार्यों में छोटे और धारण करने में बड़े
रुद्राक्षों का ही उपयोग करें।
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कितनी हो माला में रुद्राक्ष की संख्या ????
(Number of Rudraksha beads in Rudraksha Mala )

माला में रुद्राक्ष के मनकों की संख्या उसके महत्व का परिचय देती है.
भिन्न-भिन्न संख्या मे पहनी जाने वाली रुद्राक्ष की माला निम्न प्रकार से
फल प्रदान करने में सहायक होती है जो इस प्रकार है
-----रुद्राक्ष के सौ मनकों की माला धारण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
------रुद्राक्ष के एक सौ आठ मनकों को धारण करने से समस्त कार्यों में
सफलता प्राप्त होती है. इस माला को धारण करने वाला अपनी पीढ़ियों का
उद्घार करता है
------रुद्राक्ष के एक सौ चालीस मनकों की माला धारण करने से साहस,
पराक्रम और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है.
------ रुद्राक्ष के बत्तीस दानों की माला धारण करने से धन, संपत्ति एवं
आय में वृद्धि होती है.
------ रुद्राक्ष के 26 मनकों की माला को सर पर धारण करना चाहिए
----- रुद्राक्ष के 50 दानों की माला कंठ में धारण करना शुभ होता है.
----- रुद्राक्ष के पंद्रह मनकों की माला मंत्र जप तंत्र सिद्धि जैसे
कार्यों के लिए उपयोगी होती है.
----- रुद्राक्ष के सोलह मनकों की माला को हाथों में धारण करना चाहिए.
------ रुद्राक्ष के बारह दानों को मणिबंध में धारण करना शुभदायक होता है.
------ रुद्राक्ष के 108, 50 और 27 दानों की माला धारण करने या जाप करने
से पुण्य की प्राप्ति होती है.
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किस कार्य हेतु केसी माला धारण करें..???
तनाव से मुक्ति हेतु 100 दानों की,
अच्छी सेहत एवं आरोग्य के लिए 140 दानों की,
अर्थ प्राप्ति के लिए 62 दानों की तथा सभी कामनाओं की पूर्ति हेतु 108
दानों की माला धारण करें।
जप आदि कार्यों में 108 दानों की माला ही उपयोगी मानी गई है।
अभीष्ट की प्राप्ति के लिए 50 दानों की माला धारण करें।
26 दानों की माला मस्तक पर, 50 दानों की माला हृदय पर, 16 दानों की माला
भुजा पर तथा 12 दानों की माला मणिबंध पर धारण करनी चाहिए।
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क्या महत्त्व हें रुद्राक्ष की माला का..??? Significance of Rudraksha
Mala.........

रुद्राक्ष की माला को धारण करने पर इस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक होता
है कि कितने रुद्राक्ष की माला धारण कि जाए. क्योंकि रुद्राक्ष माला में
रुद्राक्षों की संख्या उसके प्रभाव को परिलक्षित करती है. रुद्राक्ष धारण
करने से पापों का शमन होता है. आंवले के सामान वाले रुद्राक्ष को उत्तम
माना गया है. सफेद रंग का रुद्राक्ष ब्राह्मण को, रक्त के रंग का
रुद्राक्ष क्षत्रिय को, पीत वर्ण का वैश्य को और कृष्ण रंग का रुद्राक्ष
शुद्र को धारण करना चाहिए.

क्या नियम पालन करें जब करें रुद्राक्ष माला धारण..???
क्या सावधानियां रखनी चाहिए रुद्राक्ष माला पहनते समय..???
जिस रुद्राक्ष माला से जप करते हों, उसे धारण नहीं करें। इसी प्रकार जो
माला धारण करें, उससे जप न करें। दूसरों के द्वारा उपयोग में लाए गए
रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला को प्रयोग में न लाएं।

रुद्राक्ष की प्राण-प्रतिष्ठा कर शुभ मुहूर्त में ही धारण करना चाहिए -
ग्रहणे विषुवे चैवमयने संक्रमेऽपि वा। दर्द्गोषु पूर्णमसे च पूर्णेषु
दिवसेषु च। रुद्राक्षधारणात् सद्यः सर्वपापैर्विमुच्यते॥

ग्रहण में, विषुव संक्रांति (मेषार्क तथा तुलार्क) के दिनों, कर्क और मकर
संक्रांतियों के दिन, अमावस्या, पूर्णिमा एवं पूर्णा तिथि को रुद्राक्ष
धारण करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। मद्यं मांस च लसुनं पलाण्डुं
द्गिाग्रमेव च। श्लेष्मातकं विड्वराहमभक्ष्यं वर्जयेन्नरः॥
(रुद्राक्षजाबाल-17) रुद्राक्ष धारण करने वाले को यथासंभव मद्य, मांस,
लहसुन, प्याज, सहजन, निसोडा और विड्वराह (ग्राम्यशूकर) का परित्याग करना
चाहिए।

सतोगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी प्रकृति के मनुष्य वर्ण, भेदादि के अनुसार
विभिन्न प्रकर के रुद्राक्ष धारण करें। रुद्राक्ष को द्गिावलिंग अथवा
द्गिाव-मूर्ति के चरणों से स्पर्द्गा कराकर धारण करें। रुद्राक्ष
हमेद्गाा नाभि के ऊपर शरीर के विभिन्न अंगों (यथा कंठ, गले, मस्तक, बांह,
भुजा) में धारण करें, यद्यपि शास्त्रों में विशेष परिस्थिति में विद्गोष
सिद्धि हेतु कमर में भी रुद्राक्ष धारण करने का विधान है।

रुद्राक्ष अंगूठी में कदापि धारण नहीं करें, अन्यथा भोजन-द्गाचादि क्रिया
में इसकी पवित्रता खंडित हो जाएगी। रुद्राक्ष पहन कर किसी
अंत्येष्टि-कर्म में अथवा प्रसूति-गृह में न जाएं।

स्त्रियां मासिक धर्म के समय रुद्राक्ष धारण न करें। रुद्राक्ष धारण कर
रात्रि शयन न करें। रुद्राक्ष में अंतर्गर्भित विद्युत तरंगें होती हैं
जो शरीर में विद्गोष सकारात्मक और प्राणवान ऊर्जा का संचार करने में
सक्षम होती हैं। इसी कारण रुद्राक्ष को प्रकृति की दिव्य औषधि कहा गया
है। अतः रुद्राक्ष का वांछित लाभ लेने हेतु समय-समय पर इसकी साफ-सफाई का
विद्गोष खयाल रखें। शुष्क होने पर इसे तेल में कुछ समय तक डुबाकर रखें।
रुद्राक्ष स्वर्ण या रजत धातु में धारण करें। इन धातुओं के अभाव में इसे
ऊनी या रेशमी धागे में भी धारण कर सकते हैं।
रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को लहसुन, प्याज तथा नशीले भोज्य
पदार्थों तथा मांसाहार का त्याग करना चाहिए. सक्रांति, अमावस, पूर्णिमा
और शिवरात्रि के दिन रुद्राक्ष धारण करना शुभ माना जाता है.
सभी वर्ण के मनुष्य रुद्राक्ष को पहन सकते हैं. रुद्राक्ष का उपयोग करने
से व्यक्ति भगवान शिव के आशीर्वाद को पाता है. व्यक्ति को दिव्य-ज्ञान की
अनुभूति होती है. व्यक्ति को अपने गले में बत्तीस रुद्राक्ष, मस्तक पर
चालीस रुद्राक्ष, दोनों कानों में 6,6 रुद्राक्ष, दोनों हाथों में
बारह-बारह, दोनों भुजाओं में सोलह-सोलह, शिखा में एक और वक्ष पर एक सौ आठ
रुद्राक्षों को धारण करता है, वह साक्षात भगवान शिव को पाता है.
किस तरह धारण करें रुद्राक्ष माला को..???

अधिकतर रुद्राक्ष यद्यपि लाल धागे में धारण किए जाते हैं, किंतु एक मुखी
रुद्राक्ष सफेद धागे, सात मुखी काले धागे और ग्यारह, बारह, तेरह मुखी तथा
गौरी-शंकर रुद्राक्ष पीले धागे में भी धारण करने का विधान है। विधान है।
अतः यह विधान किसी योग्य पंडित से संपन्न कराकर रुद्राक्ष धारण करना
चाहिए। ऐसा संभव नहीं होने की स्थिति में नीचे प्रस्तुत संक्षिप्त विधि
से भी रुद्राक्ष की प्राण प्रतिष्ठा कर सकते हैं। रुद्राक्ष धारण करने के
लिए शुभ मुहूर्त या दिन का चयन कर लेना चाहिए। इस हेतु सोमवार उत्तम है।
धारण के एक दिन पूर्व संबंधित रुद्राक्ष को किसी सुगंधित अथवा सरसों के
तेल में डुबाकर रखें। धारण करने के दिन उसे कुछ समय के लिए गाय के कच्चे
दूध में रख कर पवित्र कर लें। फिर प्रातः काल स्नानादि नित्य क्रिया से
निवृत्त होकर क्क नमः शिवाय मंत्र का मन ही मन जप करते हुए रुद्राक्ष को
पूजास्थल पर सामने रखें। फिर उसे पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी, मधु एवं
शक्कर) अथवा पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, मूत्र एवं गोबर) से अभिषिक्त
कर गंगाजल से पवित्र करके अष्टगंध एवं केसर मिश्रित चंदन का लेप लगाकर
धूप, दीप और पुष्प अर्पित कर विभिन्न शिव मंत्रों का जप करते हुए उसका
संस्कार करें।

तत्पश्चात संबद्ध रुद्राक्ष के शिव पुराण अथवा पद्म पुराण वर्णित या
शास्त्रोक्त बीज मंत्र का 21, 11, 5 अथवा कम से कम 1 माला जप करें। फिर
शिव पंचाक्षरी मंत्र क्क नमः शिवाय अथवा शिव गायत्री मंत्र क्क
तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् का 1 माला जप
करके रुद्राक्ष-धारण करें।

अंत में क्षमा प्रार्थना करें। रुद्राक्ष धारण के दिन उपवास करें अथवा
सात्विक अल्पाहार लें।
विद्गोष : उक्त क्रिया संभव नहीं हो, तो शुभ मुहूर्त या दिन में (विशेषकर
सोमवार को) संबंधित रुद्राक्ष को कच्चे दूध, पंचगव्य, पंचामृत अथवा
गंगाजल से पवित्र करके, अष्टगंध, केसर, चंदन, धूप, दीप, पुष्प आदि से
उसकी पूजा कर शिव पंचाक्षरी अथवा शिव गायत्री मंत्र का जप करके पूर्ण
श्रद्धा भाव से धारण करें।

एक से चौदहमुखी रुद्राक्षों को धारण करने के मंत्र क्रमश:इस प्रकार हैं-

1.ॐह्रींनम:, 2.ॐनम:, 3.ॐक्लींनम:, 4.ॐह्रींनम:, 5.ॐह्रींनम:, 6.ॐ
ह्रींहुं नम:, 7.ॐहुं नम:, 8.ॐहुं नम:, 9.ॐह्रींहुं नम:, 10.ॐह्रींनम:,
11.ॐह्रींहुं नम:, 12.ॐक्रौंक्षौंरौंनम:, 13.ॐह्रींनम:, 14.ॐनम:।

निर्दिष्ट मंत्र से अभिमंत्रित किए बिना रुद्राक्ष धारण करने पर उसका
शास्त्रोक्त फल प्राप्त नहीं होता है और दोष भी लगता है...

रुद्राक्ष धारण करने पर मद्य, मांस, लहसुन, प्याज, सहजन,लिसोडा आदि
पदार्थो का परित्याग कर देना चाहिए... इन निषिद्ध वस्तुओं के सेवन का
रुद्राक्ष-जाबालोपनिषद् में सर्वथा निषेध किया गया है... रुद्राक्ष
वस्तुत:महारुद्र का अंश होने से परम पवित्र एवं पापों का नाशक है... इसके
दिव्य प्रभाव से जीव शिवत्व प्राप्त करता है..

रुद्राक्ष की माला श्रद्धापूर्वक विधि-विधानानुसार धारण करने से व्यक्ति
की आध्यात्मिक उन्नति होती है। सांसारिक बाधाओं और दुखों से छुटकारा होता
है। मस्तिष्क और हृदय को बल मिलता है। रक्तचाप संतुलित होता है।
भूत-प्रेत की बाधा दूर होती है। मानसिक शांति मिलती है। शीत-पित्त रोग का
शमन होता है। इसीलिए इतनी लाभकारी, पवित्र रुद्राक्ष की माला में भारतीय
जन मानस की अनन्य श्रद्धा है। जो मनुष्य रुद्राक्ष की माला से मंत्रजाप
करता है उसे दस गुणा फल प्राप्त होता है। अकाल मृत्यु का भय भी नहीं रहता
है
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शास्त्रों में एक से चौदह मुखी तक रुद्राक्षों का वर्णन मिलता है...
इनमें एकमुखी रुद्राक्ष सर्वाधिक दुर्लभ एवं सर्वश्रेष्ठ है... एकमुखी
रुद्राक्ष साक्षात् शिव का स्वरूप होने से परब्रह्म का प्रतीक माना गया
है... इसका प्राय: अ‌र्द्धचन्द्राकार रूप ही दिखाई देता है... एकदम गोल
एकमुखीरुद्राक्ष लगभग अप्राप्य ही है... एकमुखीरुद्राक्ष धारण करने से
ब्रह्महत्या के समान महा पाप तक भी नष्ट हो जाते हैं... समस्त कामनाएं
पूर्ण होती हैं तथा जीवन में कभी किसी वस्तु का अभाव नहीं होता है... भोग
के साथ मोक्ष प्रदान करने में समर्थ एकमुखी रुद्राक्ष भगवान शंकर की परम
कृपा से ही मिलता है...

दोमुखी रुद्राक्ष को साक्षात् अ‌र्द्धनारीश्वर ही मानें... इसे धारण करने
वाला भगवान भोलेनाथके साथ माता पार्वती की अनुकम्पा का भागी होता है...
इसे पहिनने से दाम्पत्य जीवन में मधुरता आती है तथा पति-पत्नी का विवाद
शांत हो जाता है... दोमुखी रुद्राक्ष घर-गृहस्थी का सम्पूर्ण सुख प्रदान
करता है...

तीन-मुखी रुद्राक्ष अग्नि का स्वरूप होने से ज्ञान का प्रकाश देता है...
इसे धारण करने से बुद्धि का विकास होता है, एकाग्रता और स्मरण-शक्ति बढती
है... विद्यार्थियों के लिये यह अत्यन्त उपयोगी है...

चार-मुखी रुद्राक्ष चतुर्मुख ब्रह्माजीका प्रतिरूप होने से धर्म, अर्थ,
काम और मोक्ष- इन चारों पुरुषार्थो को देने वाला है... नि:संतान व्यक्ति
यदि इसे धारण करेंगे तो संतति-प्रतिबन्धक दुर्योग का शमन होगा... कुछ
विद्वान चतुर्मुखी रुद्राक्ष को गणेश जी का प्रतिरूप मानते हैं...

पाँचमुखी रुद्राक्ष पंचदेवों-शिव, शक्ति, गणेश, सूर्य और विष्णु की
शक्तियों से सम्पन्न माना गया है... कुछ ग्रन्थों में पंचमुखी रुद्राक्ष
के स्वामी कालाग्नि रुद्र बताए गए हैं... सामान्यत:पाँच मुख वाला
रुद्राक्ष ही उपलब्ध होता है... संसार में ज्यादातर लोगों के पास
पाँचमुखी रुद्राक्ष ही हैं...इसकी माला पर पंचाक्षर मंत्र (नम:शिवाय)
जपने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है...

छह मुखी रुद्राक्ष षण्मुखी कार्तिकेय का स्वरूप होने से शत्रुनाशक सिद्ध
हुआ है...इसे धारण करने से आरोग्यता,श्री एवं शक्ति प्राप्त होती है...
जिस बालक को जन्मकुण्डली के अनुसार बाल्यकाल में किसी अरिष्ट का खतरा हो,
उसे छह मुखी रुद्राक्ष सविधि पहिनाने से उसकी रक्षा अवश्य होगी...

सातमुखी रुद्राक्ष कामदेव का स्वरूप होने से सौंदर्यवर्धक है... इसे धारण
करने से व्यक्तित्व आकर्षक और सम्मोहक बनता है... कुछ विद्वान
सप्तमातृकाओं की सातमुखी रुद्राक्ष की स्वामिनी मानते हैं... इसको पहिनने
से दरिद्रता नष्ट होती है और घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है...

आठमुखी रुद्राक्ष अष्टभैरव-स्वरूप होने से जीवन का रक्षक माना गया है...
इसे विधिपूर्वक धारण करने से अभिचार कर्मो अर्थात् तान्त्रिक प्रयोगों
(जादू-टोने) का प्रभाव समाप्त हो जाता है... धारक पूर्णायु भोगकर सद्गति
प्राप्त करता है...

नौमुखी रुद्राक्ष नवदुर्गा का प्रतीक होने से असीम शक्तिसम्पन्न है...
इसे अपनी भुजा में धारण करने से जगदम्बा का अनुग्रह अवश्य प्राप्त होता
है... शाक्तों(देवी के आराधकों) के लिये नौमुखी रुद्राक्ष भगवती का वरदान
ही है... इसे पहिनने वाला नवग्रहों की पीडा से सुरक्षित रहता है...

दसमुखी रुद्राक्ष साक्षात् जनार्दन श्रीहरि का स्वरूप होने से समस्त
इच्छाओं को पूरा करता है... इसे धारण करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता
है तथा कष्टों से मुक्ति मिलती है...

ग्यारहमुखी रुद्राक्ष एकादश रुद्र- स्वरूप होने से तेजस्विता प्रदान करता
है... इसे धारण करने वाला कभी कहीं पराजित नहीं होता है...

बारहमुखी रुद्राक्ष द्वादश आदित्य- स्वरूप होने से धारक व्यक्ति को
प्रभावशाली बना देता है... इसे धारण करने से सात जन्मों से चला आ रहा
दुर्भाग्य भी दूर हो जाता है और धारक का निश्चय ही भाग्योदय होता है...

तेरहमुखी रुद्राक्ष विश्वेदेवों का स्वरूप होने से अभीष्ट को पूर्ण करने
वाला, सुख-सौभाग्यदायक तथा सब प्रकार से कल्याणकारी है... कुछ साधक
तेरहमुखी रुद्राक्ष का अधिष्ठाता कामदेव को मानते हैं...

चौदहमुखी रुद्राक्ष मृत्युंजय का स्वरूप होने से सर्वरोगनिवारक सिद्ध हुआ
है... इसको धारण करने से असाध्य रोग भी शान्त हो जाता है...
जन्म-जन्मान्तर के पापों का शमन होता है...