बाड़मेर आदर्श शिक्षक गरिमा सद्व्यवहार और अनुशासन के आदर्श कमल सिंह महेचा
बाड़मेर गुरूवार को सारा देश शिक्षक दिवस के रूप में मनायेगा। सरहदी जिले बाड़मेर में कई ऐसे शिक्षक हें जो अपने आप में परिपूर्ण शिक्षक कहलाने के हकदार हें। इन आदर्श शिक्षको ने हजारो छात्रो को जिंदगी जीने के काबिल बनाया। बाड़मेर में आदर्श शिक्षक के रूप में कमल सिंह महेचा का कोई सानी नहीं। एक शिखर पुरुष जिसके आदर्श उनके आगे चलते हें। सदा जीवन उच्च विचार की कहावत को चरितार्थ करते हें ,कमल सिंह। मल्लिनाथ छात्रावास में व्यवस्थापक के रूप में निरंतर तीन दशको से अपनी सेवाए दे रहे कमल सिंह अपने अनुशसन्प्रिओयत के लिए पुरे राजस्थान में खासतौर से पहचाने जाते हें। बाड़मेर जिले की में अपनी सेवाएं देने वाले कमल सिंह ने शिक्षक पद की गरीमा को भलीभांति समझा।
बाड़मेर गुरूवार को सारा देश शिक्षक दिवस के रूप में मनायेगा। सरहदी जिले बाड़मेर में कई ऐसे शिक्षक हें जो अपने आप में परिपूर्ण शिक्षक कहलाने के हकदार हें। इन आदर्श शिक्षको ने हजारो छात्रो को जिंदगी जीने के काबिल बनाया। बाड़मेर में आदर्श शिक्षक के रूप में कमल सिंह महेचा का कोई सानी नहीं। एक शिखर पुरुष जिसके आदर्श उनके आगे चलते हें। सदा जीवन उच्च विचार की कहावत को चरितार्थ करते हें ,कमल सिंह। मल्लिनाथ छात्रावास में व्यवस्थापक के रूप में निरंतर तीन दशको से अपनी सेवाए दे रहे कमल सिंह अपने अनुशसन्प्रिओयत के लिए पुरे राजस्थान में खासतौर से पहचाने जाते हें। बाड़मेर जिले की में अपनी सेवाएं देने वाले कमल सिंह ने शिक्षक पद की गरीमा को भलीभांति समझा।
उनके अपने आदर्श हें जिन पर उनके अनुयायी चलते हें। कठोर अनुशासन ,सद्व्यवहार और गरिमा उनके व्यक्तित्व को निखारते हें ,आज भी बाड़मेर जिला उन्हें एक आदर्श शिक्षक के रूप में जनता हें चाहे वो सरकारी सेवा से निवृत हो गए ,शिक्षको की जमात बड़ी हें मगर आदर्श शिक्षक बहूत कम मिल पाते हें। समाज सेवा के साथ मजलूमों और गरीबो की सेवा उनका लक्ष्य रहा हें। उनकी वाणी में सरस्वती माँ खुद विराजमान हें। राजस्थानी भाषा के प्रकां ज्ञाता। तो हिंदी के वे शिक्षक रहे ,शिक्षक दिवस पर उन जैसे शिक्षको को समानित नहीं किया जता क्यूंकि ऐसे लोग चमकदार और चापलूसी भरे वातावरण से खुद को कोसों दूर रख छात्रो के जीवन का निर्माण करते हें निश्वार्थ भाव से। जिले में शिक्षा की जो ज्योत जलाई उसे निरंतर आगे बाधा रहे हें। उन्होंने आदर्श नागरिक तैयार कर राष्ट्र को समर्पित किये उनके लिए इससे बड़ा शकुन क्या होगा। स्वभाव में और नित्यकर्म में अनुशासन न हो तो, यह स्वास्थ्य प्राप्त करना कदापि संभव नहीं। चारित्रिक विशेष्ाताओं का प्रतिबिंब होता है श्रेष्ठ स्वास्थ्य। व्यवहार, वेशभूषा, रहन-सहन और चाल-चलन सभी उनके नियंत्रण में रहा है। तन-मन दोनों में सही संतुलन से ही उनका व्यक्तित्व इतना उत्कृष्ट और आदर्श बना है। गरीबी में पले, मामूली शिक्षा प्राप्त कर शिक्षक बने और अनवरत अध्ययन व अध्यवसाय द्वारा ऊंची शिक्षा प्राप्त की, ख्याति प्राप्त शिक्षक बने और सक्षम श्रेष्ठ शिक्षा प्रशासक की शोहरत भी प्राप्त की। हर जगह मौलिक सूझ-बूझ का परिचय दिया।