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शनिवार, 22 दिसंबर 2012

अनोखा चोर ...पचपन सुहागरात मना चुका ‘जमाई राजा चोर’

अनोखा चोर ...पचपन सुहागरात मना चुका ‘जमाई राजा चोर’


बाड़मेर: राजस्‍थान के बाड़मेर जिले का जीया बिना शादी के 55 सुहागरात मना चुका है, वो भी जमाई बनकर। शायद आपको आश्चर्य हो रहा हो, मगर यह हकीकत है। बाड़मेर जिले के सिणधरी थाना क्षेत्र के निम्बलकोट गांव का निवासी चालीस वर्षीय जीया राम पूरे क्षेत्र में ‘जमाई राजा चोर’ के नाम से कुख्यात हैं। यह ऐसा चोर है, जो रात के अंधेरे में ग्रामीण अंचलों की ढाणियों में जमाई बन कर पहुंचता। रात में कथित पत्नी के साथ सुहागरात मना कर उसी घर में चोरी कर अलस्‍सुबह भाग जाता।

सिणधरी सहित जिले के विभिन्न थानों में जीया के खिलाफ 18 मुकदमे दर्ज हैं। हाल ही में पुलिस के हत्थे चढ़े जीया राम ने बताया कि उसने पहली वारदात 18 साल की उम्र में की थी। राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह का प्रचलन है। बाल विवाह के बाद गौना होने तक लडकी पीहर ही रहती है। जीया ऐसे घरों का पता करता था, जिन घरों में गौना होना होता था। जीया ऐसी ढाणियों में रात्रि नौ-दस बजे जमाई बन कर पहुंच जाता। ढाणियों में आज भी बिजली नही हैं। ऐसे में जमाई राजा की घर वाले खातिरदारी जमकर करते तथा लडकी को सुहागरात के लिए जमाई के पास भेज देते।

जीया ने बताया कि वह सावधानी रख कर ऐसे घरों का चयन करता, जहां जमाई को शक्ल से कोई ना जानता हो। ग्रामीण अंचलों में आज भी जमाई से घर की महिलाएं नही बोलतीं। जीया ने बताया कि सुहागरात मनाने के बाद घर में ही छोटी-मोटी चोरी कर अलस्‍सुबह भाग जाता। लोक-लाज के चलते लडकी के घर वाले जीया के खिलाफ छेड़छाड़ तथा चोरी का मुकदमा दर्ज करा इतिश्री कर लेते। जीया के खिलाफ 18 मामले दर्ज हैं। जीया ने बताया कि वह कभी पुलिस द्वारा नहीं पकडा गया। अलबता ग्रामीणों ने कई बार उसकी धुनाई जरूर की है। जीया अब चालीस पार है। घर में अपनी मां के साथ अकेला रहता है। जीया को अब अपने किये पर पछतावा हो रहा है।

जीया ने बताया कि उसने कुल 55 वारदातों को अंजाम दिया, 55 युवतियों के साथ सुहागरात मनाई। पूरे क्षेत्र में बदनाम हो जाने के कारण जीया को कोई लडकी नहीं दे रहा। जीया को अब अपने किये पर पछतावा हो रहा है। सिणधरी थानाधिकारी मूलाराम चौधरी ने बताया कि जीया पूरे जिले में जमाई राजा चोर के नाम से बदनाम था। ग्रामीण लोक-लाज के कारण जीया के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज कराने की बजाय छेड़छाड़ तथा चोरी के मामले दर्ज कराते थे। उसके खिलाफ इस तरह के 18 मामले दर्ज हैं।

शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

सांप्रदायिक सदभाव की मिशाल .....हिन्दू भी रख रहे हें रोजे

रोजे छोड़ते हिन्दू 

पाकिस्तान  स्थित पीर पिथोरा का मंदिर 

सांप्रदायिक  सदभाव की मिशाल .....हिन्दू भी रख रहे हें रोजे

बाड़मेर: भारत-पाकिस्तान सरहद पर बसे राजस्‍थान के बाड़मेर जिले के पाकिस्तान से सटे सरहदी गांव सांप्रदायिक सद्भावना की अनुठी मिसाल पेश करते हैं। एक तरफ जहां मुस्लिम, हिंदुओं के त्‍योहार हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं, वहीं हिंदू परिवार रमजान के पवित्र माह में रोजे रख मुस्लिम भाइयों की खुशी में शरीक होते हैं।

बाड़मेर जिले के सरहदी गांवों में हिंदू परिवारो द्वारा रोजे रखने की पुरानी परम्परा हैं। भारत-पाकिस्तान विभाजन एवं उसके बाद भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध के दौरान पाकिस्तान से भारत आए हिंदू और मुस्लिम परिवारों में समान रीति रिवाज हैं। हिंदुओं में, विशेष कर मेघवाल जाति के परिवार सिन्ध के महान संत पीर पिथोरा के अनुयायी हैं। सिन्धी मुसलमान भी पीर पिथोरा में समान आस्था रखते हैं। पीर पिथोरा के जितने भी अनुयायी हैं, वे पीर पिथोरा के उपदेशों की पालना के तहत रमजान के महीने में श्रद्धानुसार रोजे रखते हैं।

पाकिस्‍तान की सीमा से सटे बाड़मेर के गौहड का तला, रबासर, साता, सिहानिया, बाखासर, केलनोर सहित सैकडों गांवों के हिंदू रोजे रख सांप्रदायिक सद्भावना का परिचय दे रहे हैं। नवातला निवासी पाताराम ने बताया कि वह अपनी समझ के साथ हर साल रोजे रखते हैं और रोजे के दौरान बाकायदा नमाज भी पढ़ते हैं।

सरहद पर रह रहे हिन्दू और मुस्लिम परिवारों के रीति-रिवाजों भी कोई ज्यादा फर्क नहीं है। शादी, विवाह, मृत्यु, तीज-त्‍योहार, खान-पान, पहनावा तथा भाषा समान है। हिंदू परिवारों के छोटे-छोटे बच्चे भी रोजे रखते हैं। मौलवी हनीफ मोहम्मद ने बताया कि सरहद पर हिंदू और मुस्लिम भाईचारे के साथ रहते हैं। दोनों के रीति-रिवाजों में इतनी समानता है कि कई बार भेद करना मुश्किल हो जाता है। रमजान में तो हिंदू और मुस्लिम साथ-साथ रोजे रखते हैं। एक दूसरे के यहां इफ्तार भी करते हैं।

हालांकि, पीर पिथोरा का धार्मिक स्थल पाकिस्तान में है, मगर उनके अनुयाइयों ने बाड़मेर जिले के जयसिंधर गांव के समीप जेता की जाल नामक धार्मिक स्थल बनाया, जहां पीर पिथोरा की पूजा होती है। पीर पिथोरा की पूजा मुसलमान भी करते हैं। यही वजह है कि बाड़मेर जिले के सरहदी गांव सांप्रदायिक सद्भावना के प्रतीक के रूप में जाने जाते हैं।सरहद पार पकिस्तान में भी हिन्दू देवी देवताओ के प्रति मुस्लिम समुदाटी में जबरदस्त आस्था हें ,राजस्थान के लोक देवता बाबा रामदेव ,पाबूजी ,वीर तेज्ज़ ,माता हिंगलाज ,माता रानी भटीयानिजी,आदी लोक देवो के प्रति आस्था झलकती हें .राजस्थान के बाड़मेर जिले के सरहदी इलाको में बसे हिन्दू भी परंपरागत रूप से रमजान के पवित्र महीने में रोजे रखते हें ,

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

मुस्लिम बस्ती में लड़की के जन्म पर खुशियां मनाने की अनूठी परम्परा

मुस्लिम बस्ती में लड़की के जन्म पर खुशियां मनाने की अनूठी परम्परा

बाड़मेर: पाकिस्‍तान की सीमा से सटे राजस्थान के बाड़मेर जिले के सरहदी गांव खच्चरखडी की मुस्लिम बस्ती में लड़की के जन्म पर खुशियां मनाने की अनूठी परम्परा है। शिव तहसील के इस गांव में करीब चालीस परिवारों की मुस्लिम बस्ती है, जहां बेटी की पैदाइश पर खुशियां मनाई जाती हैं तथा खास तरह के नृत्य का आयोजन होता है।
 किसी भी घर में बेटी के जन्म पर गांव भर में गुड़ बांटा जाता है और सामुहिक भोजन की अनूठी परम्परा का निर्वाह किया जाता है। इस सीमावर्ती जिले के कई गांवों में भ्रूण हत्या की कुप्रथा की वजह से जहां सदियों से बारातें नहीं आईं, वहीं खच्चरखडी की लड़कियों के लिए अच्छे परिवारों से रिश्तों की कोई कमी नहीं रहती है। अच्छे नाक-नक्श वाली इस गांव की खूबसूरत लडकियां और महिलाएं कांच कशीदाकारी में सिद्धहस्त होती हैं। हस्तशिल्प की इस कला से उन्हें खूब काम मिलता है। इससे घर चलाने लायक पैसा आ जाता है। हस्तशिल्प कला में अग्रणी इस गांव की लडकियों के रिश्ते आसानी से होने और साथ ही, ससुराल पक्ष द्वारा शादी-विवाह का खर्चा देने की परम्परा के चलते भी यहां बेटियों का जन्म खुशियों का सबब बना हुआ है।
इसी गांव के खुदा बख्‍श बताते हैं, ‘सगाई से लेकर निकाह तक सारा खर्चा लड़के वालों की तरफ से होता है। निकाह के कपड़े, आभूषण, भोजन आदि का खर्चा लड़के वाले ही उठाते हैं। यहां तक की मेहर की राशि भी लड़के वाले अदा करते हैं। लड़की जितनी अधिक सुन्दर और गुणवान होगी, निकाह के वक्त उतनी ही अधिक राशि मिलती है।’ गांव की बुजुर्ग महिला सखी बाई ने बताया कि गांव की लडकियों के रिश्‍ते की मांग अच्छे परिवारों में लगातार बनी हुई है।
भारत-पाकिस्तान विभाजन से पहले सिन्ध से (वर्तमान में पाकिस्‍तान का एक प्रांत) इस गांव की लडकियों के रिश्ते बहुत आते थे। इस गांव की लड़कियां गजब की खुबसूरत, घरेलू कामकाज में निपुण और गुणी होती हैं। बहरहाल, भारत-पाक सरहद पर बसे खच्चरखडी गांव में उच्च प्राथमिक विद्यालय की जरूरत गांव के लोगों को महसूस हो रही हैं।ताकि बेटियों को पढ़ाई सही तरीके से चल सके।

रविवार, 26 दिसंबर 2010

लोक व सुफी गायकी का पर्याय हैं फकीरा खान







लोक व सुफी गायकी का पर्याय हैं फकीरा खान

बाड़मेर: पश्चिमी राजस्थान की धोरा धरती की कोख से ऐसी प्रतिभाएं उभर कर सामने आई हैं, जिन्होंने ‘थार की थळी’ का नाम सात समंदर पार रोशन कर लोक गायिकी को नए शिखर प्रदान किए हैं। इसी कड़ी में एक अहम नाम है-फकीरा खान। लोक गायकी में सुफियाना अन्दाज का मिश्रण कर उसे नई उंचाईयां देने वाले लोक गायक फकीरा खान ने अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर अपना एक मुकाम बनाया है।

राजस्‍थान के सीमावर्ती बाड़मेर जिले के छोटे से गांव विशाला में सन 1974 को मांगणियार बसर खान के घर में फकीरा खान का जन्‍म हुआ था। उनके पिता बसर खान शादी-विवाह के अवसर पर गा-बजाकर परिवार का पालन-पोषण करते थे। बसर खान अपने पुत्र को उच्च शिक्षा दिलाकर सरकारी नौकरी में भेजना चाहते थे ताकि परिवार को मुफलिसी से छुटकारा मिले, मगर कुदरत को कुछ और मंजूर था।

आठवीं कक्षा उर्तीण करने तक फकीरा अपने पिता के सानिध्य में थोड़ी-बहुत लोक गायकी सीख गए थे। जल्दी ही फकीरा ने उस्ताद सादिक खान के सानिध्य में लोक गायकी में अपनी खास पहचान बना ली। उस्ताद सादिक खान की असामयिक मृत्यु के बाद फकीरा ने लोक गायकी के नये अवतार अनवर खान बहिया के साथ अपनी जुगलबन्दी बनाई। उसके बाद लोक गीत-संगीत की इस नायाब जोड़ी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्‍होंने लोक संगीत की कला को सात समंदर पार ख्याति दिलाई। फकीरा-अनवर की जोड़ी ने परम्परागत लोक गायकी में सुफियाना अन्दाज का ऐसा मिश्रण किया कि देश-विदेश के संगीत प्रेमी उनके फन के दीवाने हो गए। फकीरा की लाजवाब प्रतिभा को बॉलीवुड़ ने पूरा सम्मान दिया।

फकीरा ने ‘मि. रोमियों’, ‘नायक’, ‘लगान’, ‘लम्हे’ आदि कई फिल्मों में अपनी आवाज का जलवा बिखेरा। फकीरा खान ने अब तक उस्ताद जाकिर हुसैन, भूपेन हजारिका, पं. विश्वमोहन भट्ट, कैलाश खैर, ए.आर. रहमान, आदि ख्यातिनाम गायकों के साथ जुगलबंदियां देकर अमिट छाप छोडी। फकीरा ने 35 साल की अल्प आयु में 40 से अधिक देशों में हजारों कार्यक्रम प्रस्तुत कर लोक गीत-संगीत को नई उंचाइयां प्रदान की। फकीरा के फन का ही कमाल था कि उन्‍होंने फ्रांस के मशहूर थियेटर जिंगारो में 490 सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर राजस्थान की लोक कला की अमिट छाप छोड़ी।

फकीरा ने अब तक पेरिस, र्जमनी, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया, फ्रांस, इजरायल, यू.एस.ए बेल्जियम, हांगकांग, स्पेन, पाकिस्तान सहित 40 से अधिक देशों में अपने फन का प्रदर्शन किया। मगर, फकीरा राष्‍ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस पर वर्ष 1992, 93, 94, 2001, 2003 तथा 2004 में नई दिल्‍ली के परेड ग्राउंड में दी गई अपनी प्रस्तुतियों को सबसे यादगार मानते हैं।

फकीरा खान ने राष्‍ट्रीय स्तर के कई समारोहों में शिरकत कर लोक संगीत का मान-सम्मान बढ़ाया है। उन्होंने समस्त आकाशवाणी केन्द्रों, दूरदर्शन केन्द्रों, डिश चैनलों पर अपनी प्रस्तुतियां दी हैं।

फकीरा खान ने सितम्बर 2009 में जॉर्डन के सांस्कृतिक मंत्रालय द्वारा आयोजित ‘द सुफी फेस्टिवल’ में अपनी लोक गायिकी से धूम मचा दी। उनके द्वारा गाये राजस्थान के पारम्परिक लोक गातों के साथ सुफियाना अन्दाज को बेहद पसंद किया गया।

फकीरा लोक गीत-संगीत की मद्धम पड़ती लौ को जिलाने के लिए मांगणियार जाति के बच्चों को पारम्परिक जांगड़ा शैली के लोक गीतों, भजनों, लोक वाणी और सुफियाना शैली का प्रशिक्षण देकर नई पौध तैयार कर रहे हैं। फकीरा ने हाल में ही ‘वर्ल्‍ड म्यूजिक फैस्टिवल’, शिकागो द्वारा आयोजित 32 देशों के 57 ख्यातिनाम कलाकारों के साथ लोक संगीत की प्रस्तुतियां दे कर परचम लहराया। फकीरा खान को ‘दलित साहित्य अकादमी’ द्वारा सम्मानित किया गया। राज्य स्तर पर कई मर्तबा समानित हो चुके फकीरा खान के अनुसार, लोक संगीत खून में होता है, घर में जब बच्चा जन्म लेता है और रोता है, तो उसके मुंह से स्वर निकलते हैं।

उनके अनुसार, लोक गीत संगीत की जांगड़ा, डोढ के दौरान लोक-कलाकारों के साज बाढ में बह गए थे। फकीरा खान ने खास प्रयास कर लगभग दो हजार लोक कलाकारों को सरकार से निःशुल्क साज दिलाए।