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रविवार, 29 सितंबर 2013

बाड़मेर,सिवाना हल्देश्वर महादेव तीर्थ जगह-जगह बहते झरनो के बीच बिराजमान है

हल्देश्वर महादेव तीर्थ जगह-जगह बहते झरनो के बीच बिराजमान है  

हल्देश्वर महादेव तीर्थ  बाड़मेर जिले के  सिवाना से दस किलामीटर दूर स्थित पीपलून गांव की तलहटी में छप्पन की मनोरम पहाडिय़ों में रचा-बसा है हल्देश्वर महादेव तीर्थ। अरावली पर्वत श्रृंखला के अंतिम छोर पर स्थित है हल्देश्वर महादेव तीर्थ, जहाँ मनोरम पहाडिय़ा, कलरव करते पक्षी, जगह-जगह बहते झरनो के बीच बिराजमान है भगवान भोलेनाथ।
हल्देश्वर महादेव तीर्थ जाने के लिए श्रद्धालुओं कोहल्देश्वर महादेव तीर्थबालोतरा से सिवाना के रास्ते जाना पड़ता हैं। सिवाना से दस किलोमीटर पीपलून गांव की तलहटी से करीब 9 किलोमीटर 7 दुर्गम पहाडिय़ों के टेडे-मेडे व संकरे रास्तों से जाना पड़ता है। यहा हर श्रावण मास में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता हैं। भोले बाबा के दर्शनार्थ दूर-दूर से मन में आस्था लेकर शिव के दरबार में पहुंचते हैं। यहा आने वाले भक्तों के पैर भी पैदल चलते-चलते जवाब देने लगते है फिर भीहल्देश्वर महादेव तीर्थ भक्तों व कावड़ीयों का विश्वास कायम रहता हैं। शिव भक्त सैकड़ो की तादाद में यहा हर साल दर्शन करने के लिए आते हैं। यहा हल्देश्वर महादेव का अपना रूप ही निराला हैं। भक्त दर्शन करने के पश्चात मन्नते मांग कर पूजा अर्चना करते है तथा क्षेत्र में खुशहाली की कामना करते है।हल्देश्वर महादेव तीर्थ
यह है मान्यता : पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पांडवों के अज्ञातवास में कुंती पुत्र पांडवों ने इस मंदिर को स्थापित किया था। इस मंदिर के इर्द-गिर्द स्थित छप्पन की पहाडिय़ों में हल्दिया राक्षस रहता था और उसने यहां पर आतंक फैला रखा था। उस वक्त हल्दिया राक्षस के आतंक की वजह से ग्रामीणों ने भगवान भोलेनाथ को याद किया तब शंकर भगवान इसी स्थान पर एक पीपल के वृक्ष के नीचे प्रकट हूए और हल्दिया राक्षस का वध किया था। उसी दिन से यह स्थान हल्देश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। मंदिर के उत्तर में एक बड़ी शिखर टेकरी है उसमें गुरू गोरक्षनाथ महाराज की धूणी व गुफा है यहा पर गुरू गोरक्षनाथ ने कई वर्षो तक तपस्या की थी। पहाडों में सबसे उंची चोटी पर मॉ भवानी का मंदिर भी हैं। यहां पर पहुंचना बहुत ही कठिन हैं।
हल्देश्वर महादेव तीर्थअनूठी है पूंगला-पूंगली की पोल : हल्देश्वर महादेव मंदिर पर जाने वाले रास्ते में पहाडिय़ों के मध्य भाग में स्थित है पूंगला-पूंगली पोल। इस पाले की पौराणिक मान्यता है कि यहा पर सत्रहवीं सदी में कनाना के शासक आसकरण के पुत्र वीर दुर्गादास राठौड़ ने बनवाई थी। तत्कालीन महाराजा जसवंतसिंह को जोधपुर की गद्दी पर बिठाने के लिए दिल्ली औरंगजेब से वीर दुर्गादास राठौड़ ने अनुरोध किया तब औरंगजेब ने जोधपुर को शाही रियासत के अंदर सम्मिलित करने को कहा और अजीतसिंह को महाराजा बनाने से इंकार कर दिया। तब वीर दुर्गादास ने अपने सैनिकों के साथ दिल्ली प्रस्थान किया एवं दुर्गादास की बात मानने से मना कर दिया तत्पश्चा दुर्गादास राठौड़ ने औरंगजेब के पुत्र व पुत्री ( पूंगला-पूंगली) का अपहरण कर मारवाड़ में सिवाना के समीप छप्पन की पहाडिय़ों में लाकर छुपा दिया। फिर यहा पर वीर दुर्गादास ने पत्थरों की कारीगरी से एव विशाल पोल का निर्माण करवाया। इस पोल के अंदर दो कमरे बनाए उसमें औरंगजेब के पुत्र व पुत्री को गुप्त रूप से रखा गया था। आखिर अपने पुत्रों की खातिर औरंगजेब ने वीर दुर्गादास की बात मान ली और अजीतसिंह को मारवाड़ का राजा बना दिया। तब वीर दुर्गादास ने औरंगजेब के दोनो बच्चों को सकुशल वापस लौटा दिया। इस पोल की खासियत यह भी है कि पोल को सिर्फ पत्थरों से बनाया गया है इसमें चूना व सिमेंट का कही नामों निशान तक नही हैं।
बनाया जा सकता है पर्यटन स्थल : यहां वर्ष में दो माह तक श्रद्धालुओं का आवागमन रहता हैं। यहा आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु का यही कहना है कि प्रकृति का यहा एक अनोखा आनंद भी है। भगवान भोले बाबा का दरबार भी तो सरकार या पर्यटन विभाग पहल करे तो इस स्थान पर मूलभूत सुविधाएं व दुर्गम व उबड़-खाबड़ रास्तों को ठीक करे और विद्युत व्यवस्था करवाई जाएं तो सरकार के लिए नया आमदनीहल्देश्वर महादेव तीर्थ का रास्ता खुल सकता हैं। हल्देश्वर महादेव मंदिर को देवस्थान विभाग व पर्यटन विभाग मिलकर इस तीर्थ को विकसित करे तो हर साल अच्छी आमदनी भी हो सकती हैं।
पिकनिक स्थल भी : शिव भक्त बड़ी संख्या में यहा दर्शनार्थ तो आते है लेकिन भक्त यहा मनोरम पहाडिय़ों के बीच बहते झरने व पहाडिय़ों के बीच बने कई तालाबों में नहाने का भी भरपूर आनंद लेते हैं। चारों ओर हरियाली की ओट में बसे इस तीर्थ पर भक्त श्रावण व भाद्रपद्र मास में सैकड़ो की तादाद में पिकनिक भी मनाने आते हैं।
मिल सकती है जड़ी बुटियां : छप्पन की पहाडिय़ों में कई तरह की जड़ी बुटियां व अमूल्य खनिज के भंड़ार हो सकते हैं। बुजुर्गो का मानना है कि यहा पर कई तरह की जड़ी-बुटियां होती थी और उन्हें घरेलू उपचार व गंभीर बिमारियों के इलाज के लिए काम में लिया जाता था। जानकारों का कहना है कि सरकार गंभीर विचार कर इसे पर्यटन स्थल घोषित करे तो यहां विकास के नए आयाम स्थापित हो सकते है तथा इस पहाडी पर कई तरह के खनिज के भंड़ार भी हो सकते हैं।