खेतोलाई लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
खेतोलाई लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 28 जुलाई 2015

पोकरण को इसलिए प्यार करते थे कलाम,रेत के धोरों में पूर्णिमा की रात मुझे अच्छी लगती है।

रेत के धोरों में पूर्णिमा की रात मुझे अच्छी लगती है। मैं पूरे चांद वाली इस रात कुछ पल अकेले बिताना चाहता हूं...और मैं पोकरण को प्यार करता हूं क्योंकि यह कुछ करने और स्वच्छंदता का एक बेहतर मंच है।'


पूर्व राष्ट्रपति कलाम ने 2005 में जयपुर के करीब छह सौ स्कूली बच्चों के साथ संवाद के दौरान यह बात कही तो इसमें एक गहरा राज छिपा था। यह सभी जानते हैं कि 'जनता का राष्ट्रपति' (पीपुल्स प्रेजीडेंट) कलाम ने भारत को परमाणु ताकत के रूप में प्रतिष्ष्ठापित करने में अहम भूमिका निभाई थी और दोनों की परमाणु परीक्षण पोकरण की धरती पर हुए थे, लेकिन पोकरण के प्रति कलाम का प्यार परमाणु अभियान से लगातार 24 वर्षों तक जुड़े रहने का नतीजा था।







1974 के बाद जब 1999 में 'बुद्ध फिर मुस्कराए' तो ये कलाम का ही कमाल था कि 1995 में भारत की परमाणु परीक्षण तैयारियों को पकड़ लेने वाले अमरीकी उपग्रहों तक को भनक नहीं लग सकी। कलाम ने जैसे ही प्रधानमंत्री वाजपेयी को हॉटलाइन पर 'बुद्ध फिर मुस्कराए' का संदेश देकर लाइन काटी और इसकी आधिकारिक घोषणा हुई तो पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई।



ऑप शक्ति के अल्फा, ब्रावो, चार्ली....
कलाम ने ही परमाणु दो की परिकल्पना को साकार किया था। हालांकि 1999 में हुए पांच परमाणु विस्फोटों की तैयारी कई बरसों से चल रही थी, लेकिन मई 1999 के पहले 11 दिन जिस तरह से 'ऑपरेशन शक्ति' को अंजाम तक पहुंचाया गया, उसके कोड ने अल्फा, ब्रावो, चार्ली...आदि कलाम के अलावा किसी को पता नहीं थे।







सेव की पेटियां
ऑपरेशन शक्ति की शुरुआत सेव की पेटियां भारतीय वायुसेना के मालवाहन विमान एएन-32 में रखने के साथ हुई थी। एक मई को तड़के तीन बजे मुम्बई के सांताक्रुज हवाई अड्डे से जैसलमेर तक का हवाई सफर और जैसलमेर से पोकरण तक सेना के ट्रकों में सेव की पेटियों के साथ इस यात्रा की कमान मेजर जनरल नटराज (आर. चिदम्बरम) और 'मामाजी' (अनिल काकोडकर) के पास थी, लेकिन जैसे ही ट्रकों का कारवां सेव की पेटियां लेकर खेतोलाई गांव में बनाए गए 'डीयर पार्क' (परीक्षण नियंत्रण कक्ष) के प्रार्थना हॉल तक पहुंचा, कमान मेजर जनरल पृथ्वी राज (कलाम) के हाथ आ गई। दरअसल, लकड़ी के बक्सों में सेव नहीं, बल्कि भाभा ऑटोमिक रिसर्च सेंटर में बनाए गए परमाणु बम थे, जिन्हें बड़ी गोपनीयता के साथ मुम्बई से पोकरण लाया गया था।







व्हाइट हाउस में विस्फोट
परमाणु परीक्षण के लिए देह झुलसाने वाले गर्मी में महीनों से काम कर रहे कलाम ने सारा काम इस गोपनीयता से अंजाम दिया कि किसी को पता नहीं चल सका कि भारत इतना बड़ा धमाका करने वाला है। उन्होंने अल्फा कम्पनी की मदद से पांच गहरे कुए खुदवाए थे। इनके नाम भी अजीब थे।



इनमें से दो सौ मीटर गहरे जिस कुएं में हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया गया, उसे व्हाइट हाउस का नाम दिया गया था, जबति फिसन बम के कुए को ताजमहल और पहले सबकिलोटन बम वाले कुए को कुम्भकर्ण का नाम दिया गया। बाकी दो कुए एनटी-1 व एनटी-2 दूसरे दिन किए गए परीक्षणों के लिए आरक्षित रखे गए थे।



फौजी बनकर घूमते थे
पूरे अभियान के दौरान कलाम व अन्य वैज्ञानिक न सिर्फ फौजी नाम से रहे, बल्कि उन्होंने पूरे अभियान के दौरान फौज की वर्दी ही पहने रखी। पोकरण के बस स्टैण्ड पर कई बार ये वैज्ञानिक फौज की गाडिय़ों में घूमने आते थे, लेकिन इनकी हस्ती लोगों को भी तभी पता चली, जब दूसरे परमाणु परीक्षण की खबरें सामने आई।



फौजी वर्दी पहन छिपाया परमाणु बम
जयुपरÐ यूं तो भारत 1995 में ही परमाणु बम का परीक्षण करना चाहता था लेकिन अमेरिका के जासूसी सैटेलाइट ने इस तैयारी को पहले ही पकड़ लिया और भारत को दुनिया के दबाव के सामने झुकना पड़ा।



1996 में जब पहली बाजपेयी सरकार बनी तो परमाणु परीक्षण का राजनीतिक निर्णय तो ले लिया गया लेकिन चुनौती थी अमेरिकी सैटेलाइटों को मात देना। जिम्मा दिया गया एपीजे अब्दुल कलाम को।



इस दौरान पहली बाजपेयी सरकार गिर गई। 1998 में जब फिर से बाजपेयी की सरकार बनी तो डीआरडीओ प्रमुख कलाम और परमाणु ऊर्जा आयोग के चेयरमैन राजगोपाल चिंदमबरम को हरी छड़ी दे दी।



मिसाइल मैन अब्दुल कलाम ने इस जिम्मेंवारी को बखूबी निभाया। अभियान को लेकर सतर्क ने अमेरिकी सैटलाइट से बचने के लिए वह फौजी ट्रक में और फौज की वर्दी में ही पोकरण आते-जाते थे।



गुप्त तैयारी की बाद जब 11 मई 1998 में एक के बाद एक पांच विस्फोट पोकरण में किए गए तो फिर दुनिया की आंखें फटी की फटी रह गई और आपेरशन शक्ति में एक नहीं पांच बार बुद्ध मुस्कुराए।