कौवे लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
कौवे लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 14 सितंबर 2019

बाड़मेर जैसलमेर कौवे ही नहीं पितरो की शांति कैसे मिले


बाड़मेर  जैसलमेर कौवे ही नहीं पितरो की  शांति कैसे मिले 

यूं तो जिले में गौरैया संरक्षण के लिए तमाम इंतजाम किए जा रहे हैं, लेकिन कौए पर जरा भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है। लिहाजा अब कौवे कम नजर आ रहे हैं। सही वातावरण और हरियाली कम होने से कौवे लुप्त हो रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पितृ पक्ष में पितृों की आत्मिक शांति को कौवे के लिए भी भोजन निकाले धारणा है।


पर्यावरणविद राजेंद्रसिंह बताते हैं कि कौवे नीम, पीपल, बरगद जैसे पेड़ों पर ही आते हैं। शहर में ये पेड़ कम होते जा रहे हैं। नई सोसायटी बनने से ऐसे पेड़ कटते जा रहे थे। कौवों को खाने को जो भी मिल रहा था, वह भी जहरीला हो गया है।शहरी क्षेत्रो से तो कौवे लुप्तप्रायः हो गए ,जिसका मुख्य कारन पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ हैं ,कौवो के रहने का थॉर खत्म होने के साथ कौवो की प्रजापति भी लुप्त हो रही हैं

कौवों को बुलाने के लिए लगाए जा रहे पेड़

कौवों की संख्या बढ़ने के लिए लिए पिछले तीन-चार वर्षों से नीम, पीपल, बरगद, पिलखन के पौधे लगाए जा रहे हैं।    पेड पोधो की संख्या घटने के साथ कौवो की संख्या  लगातार घटती गई ,आज  हे की श्राद्ध के दिन पितरो को कागोल देते वक़्त  तक नहीं दीखते कोई जमाना था कागोल  रखते ही कौवे झुण्ड में झपट पड़ते ,

अब कम दिखते हैं कौए
श्राद्ध के समय ही लोगों को कौए की याद आती है, मगर आसानी से नहीं मिल पाते हैं। इसके लिए लोगों को भटकना पड़ता है। बहुत से लोग छत पर भोजन रखते हैं तो वह ऐसा ही रखा रह जाता है। पुराने मोहल्लों और सोसायटियों में तो कौए दिखाई ही नहीं देते हैं।