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शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

बाड़मेर अब जन नेता नहीं धन नेताओ का बोलबाला

राजनीती के बदलते रंग अब नेताओ के प्रति आस्था कान्हा। । आस्था की  जगह ली स्वार्थ ने


बाड़मेर अब जन नेता नहीं धन नेताओ का बोलबाला


बाड़मेर सरहदी जिले बाड़मेर कि राजनीती ने भारतीय राजनीती को अनमोल रत्न दिए हें। इन रत्नो ने बाड़मेर कि राजनीती को परवान चढ़ाया। आज राजनीती इन महानुभावो कि कमी महसूस कर रही हें ,यह वो नेता थे जिनके प्रति आज जनता ने आस्था थी उनके प्रति जूनून था। आज का नेता नेता कम दलाल और व्यापारी हो गया हें। नेतागिरी में आते ही सोने के बंगले का ख्वाब पूरा करने में जुट जाता हें। बाड़मेर के लगभग सभी वर्त्तमान जन प्रतिनिधि राजनीती को कुबेर का खज़ाना मान इसससे अपना घर भर रहे हें। कल तक लाखो में खेलने वाले आज करोडो अरबो में खेल रहे। पांच सालमें बेनामी सम्पति बेहताशा बढाती जाती हें। चुनाव जीतने के लिए पैसो का सहारा लेकर उसे पानी कि तरह बहते हें। बाड़मेर के वर्त्तमान नेता जन सेवक कम व्यापारी ज्यादा लगते हें। चुनाव जीतते ही बादशाह बन जाते हें। पहला काम होता हें विरिधियो को ठिकाने लगाना। चुन चुन कर बदला लेते हें। कपड़ो से बहार आने के साथ जमीन छोड़ देते हें जिसका नतीजा कि पांच साल आते आते जनता कि नज़रो से गिर जाते। पैसो कि उगाही अधिकारियो से लेकर योजनाओ तक में वसूली। स्थानांतरण से लेकर विकास कार्यो कि स्वीकृतिओ में दलाली 


कोई जमाना था जब बाड़मेर के नेताओ के प्रति जनता कि आस्था थी तो उसकला कारण नेताओ का जमीं से जुड़ा रहना था। आठ आठ चुनाव जीत गए मगर अपने आप को आम जनता के बीच बेहद सहज रखते थे। आज भी उनके घर एक साधारण घर कि तरह हें मगर आज वो मंदिर कि मानिंद हो गए। आज भी जन नेताओ के घर पैसो कि खनक से दूर लगते हें ,बाड़मेर के जन नायको में श्री रामदान चौधरी जिनकी उंगली पकड़ आज जाट समाज तरक्की के रस्ते पर हें। सीमान्त गांधी के नाम से मशहूर रहे श्री अब्दुल हादी सादा उच्च विचार के आदर्श को लेकर राजनीती कि। उन्हें देख कोई न कहता कि राजनीती के मंझे हुए धुरंधर हें। श्री तन सिंह महेचा एक युग पुरुष बन गए क्षत्रिय समाज में जो शिक्षा और संसकारो कि अलख जगाई वो आज भी क्षत्रिय घरों को रोशन कर रही हें। राजनीती के साथ जन सेवक का तमगा नसीब वालो को मिलता हें।




गंगाराम चौधरी राजनीती के माहिर खिलाड़ी। शायद राजनीती उनके लिए ही बनी। जनता का अगाध प्रेम। उन्हें दल बदलू कहने वाल्वे भूल जाते हें कि जनता कि आस्था ने उन्हें इतनी शक्ति दी कि उन्हें किसी एक दल का मोहताज़ नहीं होना पड़ा ,जनता के सेवक के रूप में ख्याति अर्जित कि। ईमानदार राजनीती के प्रेरणा पुंज विरधी चंद जैन जिनके पास मरते दम तक रहने को ढंग का घर नसीब न हुआ। जनता उनके लिए मरती थी उनकी बात को आज्ञा मानती थी। चुनाव लड़ना और उसे जीतना कोई बड़ा कम नहीं। मानवेन्द्र सिंह इस दौर के नेता हें मगर उन पर कभी भर्ष्टाचार या पद के दुरूपयोग का आरोप नहीं लगा। मगर इन नेताओ ने जनता का असीम प्यार पाया। वो दौर पैसो का खेल ना था ,चुनावो में जो खर्च होता वो आज के उम्मीदवार एक दिन में खर्च करते हें ,तन सिंह जी ने संसदीय चुनाव मात्र आठ हज़ार रुपये के खर्चे से जीता था। जनता भी वैसी थी अपने नेता से कभी खर्च नहीं मांगती। अपनी जेब से खर्च कर नेताओ के लिए वोट जुटाते ,आज के दौर में सिर्फ हेमाराम चौधरी ऐसी शख्शियत हे जो जनता के लिए आज भी सहल हें। शायद बाड़मेर के अंतिम जन नायक हें।

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