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शुक्रवार, 7 मार्च 2014

"बार्डर" पर बहादुरी की नई इबारत

श्रीगंगानगर। इसे पुरूष प्रधान क्षेत्र में घुसपैठ भी कह सकते हैं। या फिर यूं कहे कि पुरूष को "शक्ति स्वरूपा" खुद सुरक्षा के लिए आगे आ गई है। भारत-पाक सीमा पर श्रीगंगानगर सेक्टर की करीब 80 किलोमीटर लम्बी बॉर्डर लाइन पर बीएसएफ की 35 महिला सिपाही और अधिकारी कुछ ऎसा ही अहसास कराती हैं।
हर खतरे और प्रकृति की विषम परिस्थतियों का मुकाबला करते हुए ये सीमा पर देश की सुरक्षा में मस्तैदी से खड़ी है। पेट्रोलिंग के दौरान कई ऎसे मौके भी आए जब बॉर्डर पर घुसपैठ की कोशिश को इन महिला जवानों ने विफल कर दिया।

कंधे पर राइफल और कदमों में विश्वास
इनके न तो कंधे राइफल के बोझ से झुकते हैं और ना ही कदम लड़खड़ाते हैं। भारतीय नारी के लिए आम धारणा के विपरीत ये सिपाही शक्ति और साहस का अद्भुत संगम नजर आती है।

गुरूवार सुबह हिन्दुमलकोट सीमा चौकी पर बीएसएफ की उपनिरीक्षक का इशारा मिलते ही महिला सिपाहियों की टोली पेट्रोलिंग के लिए सीमा की तरफ बढ़ जाती है।

चौकस निगाहें और विश्वास के साथ बढ़ते कदम इनके हौसले की कहानी कहते है। महिला अधिकारी कहती है डेढ़ साल से यहां तैनात हैं। लोग सुरक्षित है। यही बात हौसला बढ़ाती है।

मां, बेटी और बहू
बॉर्डर पर तैनात महिला जांबाजों में जयपुर, अलवर, नागौर, झुंझुनूं के साथ गुजरात निवासी भी है। इनमें दो बच्चों की मां, अविवाहिता और पति के देहांत के बाद बीएसएफ की नौकरी ज्वाइन करने वाली एक युवती भी शामिल है।

महिला जांबाजों का कहना है कि पिछले कुछ सालों में यह बड़ा बदलाव आया है कि जोखिम और पुरूष आधिपत्य वाले क्षेत्र में महिलाओं के आने में समाज उन्हें प्रोत्साहित कर रहा है।

भाई से मिली प्रेरणा
झुंझुनूं निवासी सिपाही ने बताया कि उसका भाई बीएसएफ में नौकरी करता है। उसके वर्दी की नौकरी के प्रति जुनून ने उसे भी बीएसएफ में आने की प्रेरणा दी।

अलवर की युवती का पति तो बीएसएफ में ही नौकरी करता था। उसके सड़क हादसे में मौत के बाद अब वह सीमा पर डटी हैं। दोनों बच्चे नाना-नानी के पास है। -