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बुधवार, 16 जुलाई 2014

यमराज को एक सावित्री से हार माननी पड़ी



ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन यमराज को एक ऐसी स्त्री से हार माननी पड़ी थी जो अपने पति को ही भगवान मानकर उसकी सेवा करती थी। उस स्त्री का नाम है सावित्री और इनके पति का नाम है सत्यवान। इन दोनों की प्रेम कथा ऐसी है जो संसार में सभी प्रेमियों के लिए आदरणीय और पूजनीय है।


Vat Savitri Amavasya fast


इनके प्रेम और समर्पण को याद करके आज भी सुहागन स्त्रियां हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री का व्रत रखकर इनकी पूजा करती हैं। सुहागन स्त्रियां प्रार्थना करती हैं कि उन्हें भी ऐसी शक्ति और आशीर्वाद प्राप्त हो कि वह अपने पति के प्रति समर्पित हो सके और उनके पति की आयु लंबी हो।

यह व्रत पूजन इस वर्ष बुधवार 28 मई को है। सावित्री और सत्यवान की कथा का जो उल्लेख मिलता है उसके अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि के दिन यमराज ने सत्यवान के प्राण छीन लिए। लेकिन प्रेम और पति के प्रति समर्पण की शक्ति से सावित्री ने यमराज को ऐसा उलझा दिया कि यमराज को सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े। यमराज ने सावित्री को एक चना दिया और कहा इसे ले जाकर अपने मृत पति के मुंह में डाल दो, वह जीवित हो जाएगा।



सावित्री ने ठीक वैसा ही किया जैसा यमराज ने कहा था। चना मुंह में डालते ही सत्यवान जीवित हो उठा और सौ वर्षों तक सावित्री ने पति के साथ गृहस्थ जीवन बिताया। इसलिए वटसावित्री व्रत में प्रसाद के तौर पर चना अर्पित किया जाता है और यह प्रसाद पत्नी अपने पति को खिलाती है ताकि पति दीर्घायु हो।

सावित्री के साथ सुहागन स्त्रियां इस व्रत में वट वृक्ष की भी पूजा करती है। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि जब यमराज सत्यवान के प्राण ले कर जा रहे थे और सावित्री यमराज के पीछे-पीछे चल रही थी उस समय हिंसक जीवों से सत्यवान के मृत शरीर को बचाने के लिए वट वृक्ष ने अपनी शाखाओं का घेरा बनाकर सुरक्षा प्रदान किया था। इसलिए इस व्रत में वट वृक्ष भी पूजनीय माना जाता है।