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सोमवार, 10 जून 2019

बाडमेर ढाई सौ से अधिक पशु शिविरों में 35 हजार पशुओं का सरंक्षण, केंद्र सरकार द्वारा लागू लघु सीमांत कृषक नियम बाधा बने शिविर खुलने में

बाडमेर ढाई सौ से अधिक पशु शिविरों में 35 हजार पशुओं का सरंक्षण,

केंद्र सरकार द्वारा लागू लघु सीमांत कृषक नियम बाधा बने शिविर खुलने में
वसुंधरा राजे ने पांच साल के कार्यकाल में एक भी पशु शिविर नहीं खोला



पश्चिमी राजस्थान के सरहदी जिले बाडमेर में गो वंश के सरंक्षण को लेकर बड़ा हल्ला मचा रहा है।।साधु संत सड़को पे उतर आए।।गोवंश पे राजनीति की जा रही है।।बाडमेर जिले में जिला प्रशासन ने त्वरित गति से  आपदाग्रस्त गांवो में तीन सौ बाईस पशु शिविर स्वीकृत किये जिनमे 248 पशु शिविर आज संचालित ही रहे है।।इन शिविरों में करीब चालीस हजार गई वंश सरंक्षित हो रहा है।।इन शिविरों की जिला प्रशासन की विभिन टीमें नियमित निरीक्षण कर रही जिसमे चारे की मात्रा और गुणवत्ता प्रमुखता से जांची जा रही है।।लापरवाही बरतने वाले कुछ सरकारी कारिंदे निलंबित भी हुए।।पशु शिविरों के अलावा पचास पंजीबद्ध गो शालाओं में करीब छतीस सौ चार पशुओं के सरंक्षण के लिए नियमित अनुदान दिया जा रहा है।।जिला प्रशासन ने आपदाग्रस्त गांवो में 518 चारा डिपो स्वीकृत किये जिनमे 412 डिपो सुचारू संचालित हो रहे है।।जिला प्रशासन द्वारा 883 नॉन कमीशन्ड गांवो में टेंकरो के जरिये पेयजल सप्लाई कर आमजन को राहत देने का पूरा प्रयास किया जा रहा है।।

जिला प्रशासन द्वारा राज्य सरकार के निर्देशानुसार गो वंश सरंक्षण के हर सम्भव प्रयास किये जा रहे है इन प्रयासो को अनदेखा नही किया जा सकता।ग्राम पंचायतों से पशु शिविर खोलने के जितने प्रस्ताव जिला प्रशास
न को मिले उन सब मे पशु शिविर खोल दिये ।जिन गांवो से प्रस्ताव आ रहे है उनमें भी प्राथमिकता से खोले जा रहे। ।

केंद्र सरकार का अड़ंगा 

पूर्व में पशु शिविर खोलने के लिए पशु का आवारा होने काफी था ।मगर केंद्र  सरकार ने आपदा प्रबंध नियमो में संशोधन कर पशु शिविर सीमांत  लघु कृषकों की अनिवार्यता लागू कर दी जिसके कारण पशु शिविर खोलने में दिक्कतें आ रही है जबकि पूर्व में शिविर पटवारी,ग्राम सेवक की रिपोर्ट पर खोले जाते।।इस बार आपदा प्रबंध नियमो के तहत सहकारी समिति,ग्राम पंचायत ही शिविर संचालन के लिए योग्य माने गए।।जबकि पूर्व में स्वयं सेवी संस्थाओं ने सफलतापूर्वक शिविर संचालित किए।

भाजपा राज में एक भी शिविर नही खोला, अब राजनीति कर रहे

पशु शिविरों को लेकर क्षेत्र में राजनीति शुरू हो गई।। कांग्रेस के युवा नेता रिड़मल सिंह दांता ने बताया कि भाजपा के पांच साल के शासन काल मे लगातार अकाल पड़े।।गांवो को आपदाग्रस्त भी घोषित किये।मगर पांच साल में एक भी पशु शिविर या चारा डिपो नही खोला गया।।अब जबकि कांग्रेस सरकार ने शिविर खोल दिये और खुल भी रहे है।पर भाजपा और उनके समर्थित लोग अनावश्यके राजनीति कर रहे है।।केंद्र सरकार ने आपदा प्रबंध का बजट रोक रखा था।।केंद्र सरकार के नए नियमो के कारन पशु शिविर खोलने में प्रशासन को समस्या आ रही है।।

मुख्य कार्यकारी अधिकारी मोहनदान रतनू ने बताया कि अकालग्रस्त गांवो में पशु शिविर संचालित हो रहे है।इनकी नियमित मोनिटरिंग की जा रही है। चारे की उपलब्धता के साथ गुणवत्ता भी परखी जा रही है।जिन गांवो से शिविर खोलने के प्रस्ताव आये उनमें खोल दिये।।जंहा से प्रस्ताव आ रहे है उनमें भी खोलने की प्रक्रिया हाथों हाथ पूर्ण कर स्वीकृतियां जा की जा रही है। जिले में चार सौ से अधिक चारा डिपो संचालित हो रहे है। पेयजल समस्या से ग्रस्त गांवो में टेंकरो से पानी पहुंच रहा है।

शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2018

*राजस्थान का एक मात्र लोकसभा क्षेत्र जंहा के चार सांसद विधायक रहे,पांचवा तैयारी में*


*राजस्थान का एक मात्र लोकसभा क्षेत्र जंहा के चार सांसद विधायक रहे,पांचवा तैयारी में*



*बाड़मेर न्यूज ट्रैक*

*जातिगत समीकरणों में उलझे बाड़मेर जेसलमेर के विधानसभा क्षेत्रों में चुनावी हलचल शुरू हो गई। यह राजस्थान का एक मात्र लोकसभा क्षेत्र है जंहा के चार सांसद विधायक भी रहे।।पांचवे सांसद रहे हरीश चौधरी भी इस बार विधायक बनने की आजमाइस करेंगे बायतु से।।

बाड़मेर। राज्य और केन्द्र दोनों की राजनीति करने वाले कम ही राजनेता है लेकिन बाड़मेर जिले के चार सांसदों ने विधायकी भी की है। राजनीतिक उलटफेर के मुताबिक खुद की राजनीति को बचाने या उसकी साख जमाने के लिए वे कभी सांसद का चुनाव लड़े तो बाद में विधानसभा में भी आ गए।

जिले में रामराज्य परिषद से तनसिंह बाड़मेर से 1952 एवं 1957 में वे विधायक रहे। 1962 में उन्होंने सांसद का चुनाव जीता और 1977 में एक बार फिर तनसिंह सांसद रहे। उनके सामने ही 1952 में कांग्रेस से चुनाव हारने वाले वृद्धिचंद जैन 1967 में पहली बार बाड़मेर से विधायक बने। लगातार तीन बार 1962,72 एवं 77 में विधायक रहे वृद्धिचंद 1980 और 1984 में सांसद बन गए। 1998 में फिर वे बाड़मेर के विधायक बने। इसी तरह बतौर सांसद अपनी पानी शुरू करते हुए कर्नल सोनाराम चौधरी 1996,1998 एवं 1999 में तीन बार कांग्रेस से सांसद बने। 2008 में वे राज्य की राजनीति में आ गए और बायतु से विधायक चुने गए। यहां उनकी पटरी नहीं बैठी और 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने भाजपा ज्वाइन कर ली और फिर से सांसद हो गए। इसी तरह मानवेन्द्र ङ्क्षसह भी 2004 में बाड़मेर सांसद रहे लेकिन 2013 से वे शिव के विधायक हैं।

तनसिंह
सांसद : रामराज्य परिषद-1962
विधायक: रामराज्य परिषद -1952 एवं 1957

वृद्धिचंद जैन
सांसद : कांग्रेस- 1977 एवं 1980
विधायक: कांग्रेस 1967,1972,1977,1998

कर्नल सोनाराम चौधरी
सांसद : कांग्रेस 1996,1998,1999 एवं 2014 (भाजपा )
विधायक: कांग्रेस- 2008

मानवेन्द्र सिंह
सांसद : भाजपा- 2004
विधायक: भाजपा- 2013


*अब फिर तैयारी*

पूर्व सांसद हरीश चौधरी बायतु से टिकट के दावेदारों में है। मानवेन्द्र सिंह ने कमल का फूल मेरी भूल कहकर भाजपा छोड़ दी है। अब वे विधानसभा चुनाव नही लड़ रहे है। कर्नल सोनाराम चौधरी को भी बाड़मेर या बायतु विधानसभा से चुनाव लड़ाया जा सकता है।हरीश चौधरी बायतु से चुनाव लड़ सकटे है।।

गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018

*थार की राजनीति और सामाजिक शख्सियत महाराज रघुनाथ सिंह जी ,जनता के सच्चे हमदर्द* *आम जन के साथ घुलमिल के रहते थे,उनके सुखदुख के साथी रहे*


*थार की चुनाव रणभेरी 2019 हमारे सांसद*

*थार की राजनीति और सामाजिक शख्सियत महाराज रघुनाथ सिंह जी ,जनता के सच्चे हमदर्द*

*आम जन के साथ घुलमिल के रहते थे,उनके सुखदुख के साथी रहे*

*चन्दन सिंह भाटी बाड़मेर न्यूज ट्रैक के लिए*

देश आजाद होने के बाद लोक तंत्र की स्थापना का महापर्व संसदीय चुनाव का दौर शुरू ही हुआ था।।उस वक़्त राजनीति के कोई मायने नही थे।।चुनाव में प्रभावशाली व्यक्ति को मैदान में उतारा जाता था ताकि वो जनता के सुख दुख में काम आ सके।बाड़मेर जेसलमेर जिलो को मिलाकर संसदीय क्षेत्र स्थापित था।।देश का पहला विशाल बहु भाग में फैला सनसदिय क्षेत्र।।देस दूसरे आम चुनाव की तैयारी 1957 को आरम्भ हुई।।उस वक़्त देसी रियासतों का एकीकरण भी हुआ था।।आम चुनाव में राजपरिवारों का दबदबा था।।1957 के चुनाव में कांग्रेस ने गोरधन दास बिनानी को मैदान में उतारा तो जेसलमेर के महाराज कैप्टेन (आर्मी की और से सम्मान) रघुनाथ सिंह जी निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे।।इन चुनाव में महाराज रघुनाथ सिंह ने गोवर्धन दास को करीब बीस हजार वोट से हराकर संसद में प्रवेश किया। महाराज रघुनाथ सिंह जी जेसलमेर की जनता की आंखों के नूर थे।।उनके और जनता के बीच दूरियां नही थी।।वो महाराज जवाहर सिंह जी की परंपरा को ही आगे बढ़ा रहे थे।।18 नवम्बर 1920 को जन्मे रघुनाथ सिंह जीने मेयो कॉलेज से शिक्षा अर्जित की।।उनका विवाह1950 में महारानी श्रीमती मुकुट राज्यलक्ष्मी नेपाल के संग हुआ।शादी के चार माह बाद ही उनका राजतिलक 27 अगस्त 1950 को हुआ।।घुड़ सवारी,तैराकी,शूटिंग,हाईकिंग,और पतंगबाजी के महाराज रघुनाथ सिंह बड़ा शौक रखते थे।।उनके चार पुत्रियां दो पुत्र युवराज बृजराज सिंह और पृथ्वीराज सिंह थे।।युवराज पृथ्वीराज सिंह का 1997 में निधन हो गया।। युवराज बृजराज सिंह जी का महारावल के रूप में राजतिलक हुआ।।।

*जेसलमेर में पर्यटन के भीष्म पितामह*

जेसलमेर को विश्व पटल पर उभारने और जेसलमेर को पर्यटन नगरी के रूप में विकसित करने का श्रेय भी महाराज रघुनाथ सिंह जी को जाता है।उनके कार्यकाल में विख्यात फ़िल्म निदेशक सत्यजीत रे ने अपनी फिल्म सोनार किला के जरिये जेसलमेर की खूबसूरत पर्यटक स्थलों को विश्व पटल के सामने रखा।सत्यजीत रे को प्रेरित महाराज रघुनाथ सिंह ने किया उन्हें सुविधाएं उपलब्ध करवाई।।सोनार किला फ़िल्म के प्रदर्शन के साथ ही जेसलमेर पर्यटन क्षेत्र के रूप में चर्चित हुआ।।देस विदेश से लोग जेसलमेर देखने पहुंचने लगे।।इसी बीच जेसलमेर की लोकेशन सोनार किला में देख विख्यात फ़िल्म कलाकार सुनील दत्त ने अपनी फिल्म रेशमा और शेरा का फिल्मांकन जेसलमेर में करने की इच्छा लेकर महाराज रघुनाथ सिंह जी से मुलाकात की।।उस वक़्त महाराज ने फ़िल्म यूनिट की समस्त व्यवस्थाएं सुलभ करवाई।।जिसकी बदौलत सुनील दत्त रेशमा और शेरा जैसी बेजोड़ खूबसूरत फ़िल्म बना पाए।इस फ़िल्म में जेसलमेर के अंदरूनी भागो और रेगिस्तानी धोरों और लोक जीवन को बड़ी खूबसूरती के साथ उभारा। यही से जेसलमेर का पर्यटन दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ता गया ।

*मिलनसार और मददगार थे रघुनाथ सिंह*

जेसलमेर के महाराज होने के नाते रघुनाथ सिंह पर काफी बंदिशें थी।।मगर उन्होंने इन बंदिशों को दरकिनार कर अपनी जनता के मददगार बने।।जरूरतमंद लोगों की मदद करना उनकी प्राथमिकता रही ।उन्होंने आमो अवाम को कष्ट में नही रहने दिया।।आर्थिक मोर्चो पर भी मदद के लिए हमेशा तत्पर रहते। जजेसलमेर में कोई तीज़ त्योहार हो वो जनता जे साथ ही मनाते। नजराना भी भेंट करते।जनता के सुख दुख में भी शरीक होते।।उन्हें होली की गैर खेलने जा बड़ा शौक था। घण्टो तक गैर खेलते। फाग गाते। तीज़ त्योहार रघुनाथ सिंह जी के बिना जनता कल्पना नही करते।।निर्धन और जरूरतमंद परिवारों की बालिकाओं के विवाह भी खुद के खर्चे से करवाते।  उनका दरबार चौबीस घण्टे आमजनता के लिए खुला रहता।कोई फरियादी खाली हाथ नही जाता।।

*अकाल में की मदद आज भी लोगो को याद है*

छपनिया अकाल में स्थितियां बेहद नाजुक हो गई थी इस रेगिस्तानी जनता की।अकाल के दुर्भिक्ष में जीना मुश्किल हो गया।सात सात अकाल लगातार।।राज्य सरकार ने  जेसलमेर के लोगो को गंगानगर बीकानेर में बसाने का फैसला लिया।जिसका महाराज रघुनाथ सिंह जी ने कड़ा विरोध करते हुए अपने स्तर पर राहत कार्य चलाने का फैसला किया।इस वक़्त महाराज रघुनाथ सिंह ने आमजन को अपना गांव छोड़ नही जाने को कहा।।उन्होंने उसी वक़्त बड़े पैमाने पर जिले भर में राहत कार्य शुरू करवा दिए।।रघुनाथ सिंह ने रियासत का खजाना आम जनता की मदद के लिए खोल दिया। बड़े पैमाने पर राहत कार्य शुरू होने के साथ ही जनता को भी राहत मिली।पशुधन के लिए भी बड़े पैमाने पर व्यवस्थाएं की।।अकाल में रघुनाथ सिंह की संवेदनषीलता और मानवीय गुणों के कारण लोग उन्हें देवता तुल्य मानने लगे।।रघुनाथ सिंह लोक संस्कृति ,परंपराओं का निर्वहन करने वाले,बड़े बुजुर्गों का आदर सम्मान करने के गुण थे। इन्ही गुणों के कारण जनता एक शासक के रूप में उन्हें बहुत मां सम्मान देती थी।।राजनीति में रहते हुए उन्होंने जेसलमेर के विकास के भरसक प्रयास किये।।

उन्हें राजनीति ज्यादा रास नही आई।।वो अपनी जनता की सेवा में ही खुश रहे।। जेसलमेर की जनता आज भी उन्हें याद करती है।।अट्ठाइस फरवरी उनीस सौ ब्यासी को आपका देवगमन हुआ।।लोगो की आंखों से आंसू रुकने का नाम नही ले रहे थे।।

गुरुवार, 18 अक्टूबर 2018

*थार की चुनाव रणभूमि 2018* *जैसलमेर फकीर परिवार के अलावा किसी नेता की वंशवाद राजनीति का इतिहास नही*


*थार की चुनाव रणभूमि 2018*

*जैसलमेर फकीर परिवार के अलावा किसी नेता की वंशवाद राजनीति का इतिहास नही*

*बाड़मेर न्यूज ट्रैक*


जैसलमेंर की राजनीति में भी वंशवाद नही पनपा।।अलबत्ता अब गाज़ी फकीर और रूपाराम धनदे परिवार चुनावों में अपना प्रभाव रखते है।इन दो परिवारों में राजनीति की वंश बैल बढ़ रही है।।जबकि जेसलमेर विधायको में हुकुम सिंह दो बार विधायक बने,इनके परिवार से इनके पुत्र डॉ जितेंद्र सिंह तीन चुनाव लड़े एक बार जीते दो बार हारे।।इसके अलावा किशन सिंह भाटी,भोपाल सिंह ,छोटू सिंह भाटी,चन्द्रवीर सिंह भाटी,मुल्तानाराम बारूपाल,सांग सिंह ,गोवर्धन कल्ला के परिवार से कोई राजनीति में नही है इनके उत्राधिकारीं की गादी खा ली रही।।सरहद की राजनीति के खेवनहार मानें जाने वाली मुस्लिम धर्मगुरु गाज़ी फकीर के परिवार से पहले उनका भाई फतेह मोहम्मद,उनके पुत्र साले मोहम्मद,अब्दुला फकीर और अमरदीन फकीर राजनीति में सक्रिय रहे।।अब्दुला  फकीर जिला प्रमुख,साले मोहम्मद पोकरण से विधायक,और अमरदीन फकीर जेससलमेर प्रधान है।।फतेह मोहम्मद विधान सभा का चुनाव लड़े और हारे बाद में जिला प्रमुख बने।।

रूपाराम धनदे पिछले चुनाव से इन वक़्त पहले राजनीति में आये धूमकेतु की तरह छा गए।विधान सभा का चुनाव लड़ा नाममात्र वोट से हार गए।।इसके बाद पंचायत राज चुनाव में अपना दमखम दिखा अपनी पुत्री अंजना मेघवाल को जिला प्रमुख बनाया।।।

अंजना मेघवाल अपने सरल ,सहज स्वभाव और मृदुभाषी होने के कारण जिले में अपनी खास पहचान बना चुकी है।।अंजना भविष्य की राजनीति की धुरंधर है। इधर जिले की राजनीति अब तक गाज़ी फकीर परिवार पर आश्रित रही।।भाजपा हो या कांग्रेस हर पार्टी का नेता उनके यहां धोक देने जरूर जाता था। फ़क़ीर परिवार ने अपने राजनीति वर्चस्व को चुनोती देने वाले नेताओं का राजनीति केरियर खत्म कर दिया।।कोई बड़ा नेता जेसलमेर की धरती पर पनप नही  पाया।

अलबत्ता चन्द्रवीर सिंह जी भाटी मे बड़ी राजनीति संभावनाए दिखी मगर उनका निधन होने से रिक्तता चली आई।।चन्द्रवीर सिंह जिले की राजनीति में सिरमौर थे।चन्द्र वीर सिंह एक बार विधायक रहे दूसरी बार सांसद का चुनाव लड़ा।मगर सांसद चुनाव वो वृद्धि चंद जैन से हार गए।उनका अपना प्रभाव रहा।।उनके बाद उनकी धर्मपत्नी श्रीमती रेणुका भाटी राजनीति में सक्रिय रही।जिला प्रमुख बनी।।इससे आगे वो गुटबाज़ी के चलते बढ़ नही पाई।।रेणुका भाटी पढ़ी लिखी आधुनिक विकास की हिमायती थी ।राजनीति में उनके आगे बढ़ने से कई राजनेताओं का करियर चौपट हो जाता उन्हें आगे बढ़ने नही दिया।।

राजपरिवार से महारावल रघुनाथ सिंह जी सांसद रहे।।उनके बाद राजपरिवार से कोई राजनीति में नही आया।।अलबत्ता इस बार राजपरिवार की बहू महारानी रासेश्वरी राज्यलक्ष्मी चुनाव मैदान में है।।यह वंशवाद की राजनीति के दायरे में नही आता।।

शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2018

*थार की चुनाव रणभेरी 2018* *सुनहरे शहर की राजनीति में राजपरिवार और डॉ जालम सिंह की सक्रियता से कई स्थापित नेताओ की सियासी जमीन खिसकने की संभावना*



*थार की चुनाव रणभेरी 2018*
*सुनहरे शहर की राजनीति में राजपरिवार और डॉ जालम सिंह की सक्रियता से कई स्थापित नेताओ की सियासी जमीन खिसकने की संभावना*


साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए राजस्थान में सियासी दलों ने अपनी बिसात बिछानी शुरू कर दी है. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की गौरव यात्रा का समापन अजमेर संभाग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में हो गई. वहीं कांग्रेस भी संकल्प यात्रा रैली के माध्यम से अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रही है.राहुल गांधी के दौरों ने सियासी हलचल तेज कर दी।।सरहदी जिले जैसलमेर की राजनीति उफान पर है। रोज नए समीकरण बनते बिगड़ते है।।राजपरिवार की राजनीति प्रवेश के बाद कई स्थापित नैरो की जमीन  खिसक गई।।भाजपा नया दांव खेला रही। बाड़मेर के पूर्व जिला अध्यक्ष ,शिव के पूर्व विधायक डॉ जालम सिंह रावलोत को जैसलमेर की राजनीति में सक्रिय कर कई सवाल खड़े कर दिए।।

सीटों के लिहाज से राजस्थान के सबसे बड़े क्षेत्र मारवाड़ में जोधपुर संभाग के 6 जिले-बाड़मेर, जैसलमेर, जालौर, जोधपुर, पाली, सिरोही की कुल 33 सीट और नागौर जिले की 10 सीटों को मिलाकर कुल 43 विधानसभा क्षेत्र हैं. कभी कांग्रेस का गढ़ रहे मारवाड़ में पिछले चुनाव में बीजेपी ने 39 सीट जीत कर इस गढ़ को ढहा दिया. कांग्रेस के खाते में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सीट समेत महज तीन सीट आई जबकि एक सीट पर निर्दलीय ने कब्जा जमाया.

जैसलमेर का इतिहास

भारत के सुदूर पश्चिम में स्थित थार के मरुस्थल में जैसलमेर की स्थापना भारतीय इतिहास के मध्यकाल के प्रारंभ में 1156 ई. के लगभग यदुवंशी भाटी के वंशज रावल-जैसल द्वारा की गई थी. रावल जैसल के वंशजों ने यहां भारत के गणतंत्र में परिवर्तन होने तक बिना वंश क्रम को भंग किए हुए 770 वर्ष सतत शासन किया, जो अपने आप में एक महत्वपूर्ण घटना है. जैसलमेर राज्य ने भारत के इतिहास के कई कालों को देखा व सहा है.

जैसलमेर शाही परिवार का सियासी इतिहास

इस बार कयास लगाए जा रहे हैं कि जैसलमेर राजघराने की बहू राजेश्वरी राज्य लक्ष्मी विधानसभा चुनावी लड़ सकती हैं. हालांकि वो किस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगी अभी तय नहीं हुआ है लेकिन माना जा रहा है कि उनके लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों दलों के दरवाजे खुले हैं. राजेश्वरी राज्य लक्ष्मी नेपाल के सिसोदिया राणा राजघराने की राजकुमारी हैं, जिनकी शादी जैसलमेर शाही परिवार के वंशज बृजराज सिंह से 1993 में हुई थी.

जैसलमेर राजपरिवार से सियासत में प्रवेश करने वाली वह पहली सदस्य नहीं हैं. 1957 में पूर्व महाराजा रघुनाथ सिंह सांसद बने थे, वहीं राजघराने के ही हुकुम सिंह 1957-67 तक लगातार दो कार्यकाल के लिए विधायक रहे. इसके बाद वर्तमान वंशज बृजराज सिंह के चाचा चंद्रवीर सिंह 1980 में विधायक निर्वाचित हुए. उनके बाद डॉ. जितेंद्र सिंह का बतौर विधायक 3 साल का छोटा कार्यकाल रहा. इसके बाद से जैसलमेर रॉयल फैमिली का कोई सदस्य चुनाव नहीं जीत सका. 

क्षेत्रफल के लिहाज से जैसलमेर देश का सबसे बड़ा जिला है जिसके अंतर्गत दो विधानसभा जैसलमेर और पोकरण आते हैं. दोंने ही सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. जैसलमेर विधानसभा क्षेत्र संख्या 132 की बात करें तो यह सामान्य सीट है. 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की जनसंख्या 366257 है जिसका 82.12 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण और 17.88 प्रतिशत हिस्सा शहरी है. वहीं कुल आबादी का 15.35 फीसदी अनुसूचित जाति और 6.81 फीसदी अनुसूचित जनजाति हैं.

2017 की वोटर लिस्ट के अनुसार जैसलमेर में मतदाताओं की संख्या 215384 और 353 पोलिंग बूथ हैं. 2013 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर 84.69 फीसदी वोटिंग हुई थी और 2014 के लोकसभा चुनाव में 74.82 फीसदी वोटिंग हुई थी. पिछली तीन विधानसभा चुनाव में इस सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा है.

2013 विधानसभा चुनाव का परिणाम

साल 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी विधायक छोटू सिंह भाटी ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज करते हुए कांग्रेस के रूपाराम ढांड़े को 2867 वोटों से पराजित किया. बीजेपी के छोटू सिंह को 78790 और कांग्रेस से रूपाराम ढांड़े को 75923 वोट मिले थें.

2008 विधानसभा चुनाव का परिणाम

साल 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के छोटू सिंह भाटी ने कांग्रेस की सुनीता भाटी को 5775 मतों से शिकस्त दी. बीजेपी के छोटू सिंह भाटी को 34072 और कांग्रेस की सुनीता भाटी को 28297 वोट मिले थें.

थार की चुनावी रणभेरी 2018* *थार की राजनीति में कई नेताओ की राजनितिक विरासत संभालने वाला नहीं*

थार की चुनावी रणभेरी 2018*

*थार की राजनीति में कई नेताओ की राजनितिक विरासत संभालने वाला नहीं*



*बाड़मेर न्यूज़ ट्रैक के लिए*

*-भाटी चन्दन सिंह-*

बाड़मेर । थार में पिछली सदी में वंशवाद की राजनीति नहीं रही लेकिन अब बुजुर्ग हो रहे नेता अपने परिवार के सदस्यों को राजनीति में आगे करने लगे हैं। आगामी विधानसभा चुनाव में यह स्थितियां बलवती हो रही हैं।कई नेताओं के अब रिटायरमेंट की उम्र होने के बाद उनका कोई राजनीतिक उत्तराधिकारी नही हैं।तो कई नेता अपने रिश्तेदारों को राजनीति में लाने के प्रयास कर रहे।।मगर कोई धाकड़ नेता बनकर कोई नही उभर रहा।।

*ये हैं दावेदार*

*पूर्व सांसद तन सिंह के पुत्र* पृथ्वी सिंह रामदेरिया ने सिवाना सीट सामान्य होने के साथ कांग्रेस से अपनी सशक्त दावेदारी पेश की थी। उनका नाम फाइनल भी हो गया था ।स्थानीय जाट नेताओं के विरोध के आगे झुकते हुए उनका नाम ऐनवक्त काट बालाराम कलबी को टिकट दिया।सिवाना की राजनीति में सक्रिय पृथ्वी सिंह इस बार भी सिवाना से अपनी दावेदारी पेश कर रहे।

*गंगाराम की पोती*: दल बदलकर जीतने, गठजोड़ की राजनीति के लिए जाने जाते रहे बाड़मेर से तीन, गुड़ामालानी से चार एवं चौहटन से एक बार चुने गए गंगाराम चौधरी आठ बार विधायक रहे। उनकी पोती
प्रियंका चौधरी बाड़मेर से भाजपा की और से गत विधानसभा चुनाव हार चुकी है।इस बार फिर भाग्य आज़माने को तैयार है।।

*अब्दुल हादी के बेटे-बहू* : चौहटन से ही छह बार विधायक रहे अब्दुल हादी के बेटे गफूर अहमद और बहू शम्मा खान राजनीति में सक्रिय हैं। गफूर राज्यमंत्री और उप जिला प्रमुख रहे हंै और शम्मा चौहटन प्रधान रही हैं। वर्तमान में जिला परिषद सदस्य है।।महिला कांग्रेस की प्रदेश सचिव है।।इस बार शिव से शम्मा खान अपनी दावेदारी पेश कर रही हैं।

*अमीन के बेटे भी लाइन में* :

 शिव के पूर्व विधायक एवं वक्फ मंत्री रहे अमीन खां के बेटे शेर मोहम्मद राजनीति में ज्यादा सक्रिय नही है।इस बार अमीन खान के बदले उनके समर्थक शेर मोहम्मद के लिए टिकट मांग रहे है।।

*कर्नल का बेटा* : बायतु विधायक एवं कचौथी बार सांसद बने कर्नल सोनाराम चौधरी के पुत्र रमन चौधरी भी सक्रिय हैं ।।


*जसवंतसिंह का परिवार* : पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवंतसिंह के पुत्र मानवेन्द्रसिंह पूर्व में सांसद रह चुके हैं।  शिव से मानवेन्द्रसिंह विधायक है।। साथ उनकी पत्नी चित्रासिंह के नाम की भी चर्चा है,वो जल्द राजनीति में सक्रिय होंगी।।


*रामदान चौधरी परिवार*

पिता-पुत्र दोनों के विधायक रहने का उदाहरण जिले मे रामदान चौधरी व गंगाराम चौधरी का है। रामदान चौधरी 1957 से1962 तक गुड़ामालानी से विधायक रहे। उनके पुत्र गंगाराम चौधरी गुड़ामालानी, बाड़मेर और चौहटन से आठ बार विधायक रहे।अब उनकी पड़पोती डॉ प्रियंका चौधरी भाजपा की राजनीति में सक्रिय है।।बाड़मेर से दावेदार।

*1989 में जनता दल से सांसद रहे कल्याण सिंह कालवी के पुत्र लोकेन्द्र सिंह कालवी ने 1998 में चुनाव लड़ा, लेकिन वे जीत नहीं पाए।*


*परिवार को रखा दूर राजनीति से*

बाड़मेर विधानसभा से चार बार विधायक और एक बार सांसद रहकर लंबी राजनीति करने वाले वृद्धिचंद जैन के परिवार से कोई राजनीति में नहीं है। वर्तमान विधायक बाड़मेर मेवाराम जैन के परिवार का कोई सदस्य राजनीति में सक्रिय नही हैं। गुड़ामालानी से पांच बार विधायक रहे हेमाराम चौधरी के परिवार से भी कोई राजनीति में नहीं है। पचपदरा से तीन व गुड़ामालानी से एक बार विधायक रह चुकी मदनकौर के परिवार का कोई भी सदस्य राजनीति में सक्रिय नहीं है। पचपदरा से ही लंबी राजनीति कर चार बार विधायक रहे अमरराराम चौधरी का परिवार भी राजनीति से दूर है।पूर्व विधायक चंपालाल बांठिया के परिवार से कोई राजनीति में सक्रिय नही है।।वर्तमान विधायक चोहटन तरुण कागा के परिवार का कोई सदस्य राजनीति में सक्रिय नही है ऐसे ही सिवाना विधायक हमीर सिंह भायल के परिवार से कोई राजनीति में सक्रिय नही हैं।