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सोमवार, 21 मार्च 2016

फाग की मस्ती ,थार मरुस्थल में चंग बजने लगे

फाग की मस्ती ,थार मरुस्थल में चंग बजने लगे


बाड़मेर[चन्दन भाटी] बाड़मेर जिले में मदोत्सव एवं रंगोत्सव की मस्ती छाई हुई हैं।आधुनिकता की दौड़ के बावजूद थार मरुस्थल में लोक कला और संस्कृति से जुड़ी परम्पराओं का निर्वाह किया जा रहा हैं।ग्रामीण अंचलों में होली की धूम मची हैं।ग्रामीण अंचलों में रंगोत्सव की मदमस्ती बरकरार हैं।ग्रामीण चौपालों पर सूरज लते ही ग्रामीण चंग की थाप पर फाग गाते नजर आते हैं।वहीं फागुनी लूर गाती महिलाओं के दल फागोत्सव के प्रति दीवानगी का एहसास कराती हैं।

सीमावर्ती बाड़मेर जिले की लोक परम्पराओं का निर्वहन ग्रामीण क्षैत्रों में आज भी हो रहा हैं।रंग और मद के इस त्यौहार के प्रति ग्रामीण अंचलों में दीवानगी बरकरार हैं।ग्रामीण चौपालों परगा्रमीणों के दल सामुहिक रुप से चंग की थाप पर फाग गीत गाते नजर आते हैं।जिले में लगातार

पड़ रहे अकाल का प्रभाव अधिक नजर नहीं आ रहा ।अलबता होली के धमाल के लिए प्रसिद्ध सनावड़ा गांव के बुर्जुग रुपाराम ने बताया कि अकाल के कारण गांव के युवा रोजगार के लिए गुजरात गए हुए हैंअकाल के कारण हमारे गॉव में होली का रंग फीका नही। पडता।होली से

तीन चार रोज पूर्व रोजगार के लिए बाहर गए युवा पर्व मनाने अपने घर आएंगे  ।गांव की परम्परा हैं जो हम अपने बुजुर्गों के समय से देखते आ रहे हैं।इसकी पालना होती हैं।


होली से 15 दिन पूर्व गांव में होली का आलम शुरु होता हैं।चोपाल पर शाम होते होते गांव के बडे बुड़े जवान बच्चे सभी एकत्रित हो जाते हैं।चंग बजाने वालो की थाप पर गा्रमिण सामुहिक रुप से फाग गाते हैं।वहीं गांव की महिलाए रात्री में एक जगह एकत्रित हो कर बारी बारी से घरों के आगे फाग गाती हैं।जो महिलाऐं इस दल में नहीं आती उस महिला के घर के आगे जाकर महिला दल अश्लील फाग गाती हैं,जिसे सुनकर अन्दर बैठी महिला शर्माकर दल मे शामिल हो जाती हैं।


महिलाओं द्घारा दो दल बनाकर लूर फाग गाती हैं।लूर में दोनों महिला दल आपस में गीतों के माध्यम से सवालजवाब करती हैं।लूर थार की परम्परा हैं।लुप्त हो रही लूर परम्परा सनावडा तथा सिवाना क्षैत्र के ग्रामीण अंचलों तक सिमट कर रह गई हे ।फाग गीतों के साथ साथ डाण्डिया गेर नृत्य का भी आयोजन होता हैं।भारी भरकम घुंघरु पांवों में बांध कर हाथें में आठ आठ मीटर लम्बे डाण्डियेंल करोल की थाप और थाली टंकार पर जब गेरिऐं नृत्य करते हैं तों लोक संगीत की छटा माटी की सौंधी में घुल जाती हैं। सनावडा में होली के दूसरे दिन बडे स्तर पर गेर नृत्यो का आयोजन होता हैं।जिसमें आसपास के गांवों के कई दल हिस्सा लेते हैं।ग्रामीण क्षैत्रों में होली का रंग जमने लगा हैं।शहरी क्षैत्र में भी गेरियों के दल इस बार नजर आ रहे हैं।जो शहर की गलियों में चंग की थाप पर फाग गाते नजर आते हैं।

मंगलवार, 3 मार्च 2015

फीकी पड़ रही चंग की रंगत थार में

फीकी पड़ रही चंग की रंगत थार में 


ओम प्रकाश सोनी 
बालोतरा। होली पर्व को लेकर बालोतरा में फाग की मस्ती को दुगुना करने वाले वाद्य यंत्र चंग कर ब्रिकी जोरोे पर है। शहर में चंग विक्रेताओ की दुकानो पर चंग खरीदने वाले लोगो की भीड़ उमड़ रही है। बाजार में मांग के अनुसार पांच सो रूपये से लेकर दो हजार रूपयो के चंग उपलब्ध है। विषेषकर ग्रामीण इलाको में होली पर चंग की थाप पर फाग गाने की प्रथा ओर रवायतो को लोग जीवीत रखे हुये है। इस बार मंहगाई की मार चंग पर भी दिखने लगी है। चंग को बनाने का वर्षो से काम करते आ रहे लोग बताते है कि आधुनिक संगीत यंत्रो ओर डीजे आदि के सामने चंग ओर ढोल जेसे परम्परागत वाद्य यंत्रो की चमक फीकी पड़ने लगी है। चंग बनाने में मेहनत बहुत लगती है पर मुनाफा नाम मात्र का होता है। मंहगाई की मार से चंग की किमते भी बढ गई है। चंग खरीदने आने वाले लोगो को चंग की उची कीमत एक बार खरीद करने से पहले सोचने को मजबूर करती है। चंग के निर्माताओ को कहना है कि वर्ष दर वर्ष चंग की बिक्री में कमी आ रही है। ऐसे में आने वाले समय में होली की मस्ती ओर चंग की थाप का आने वाली पीढी आनंद ही नही ले पायेगी।

रविवार, 1 मार्च 2015

बाड़मेर फाग की मस्ती छाई हैं थार मरुस्थल में,चंग बजने लगे


बाड़मेर फाग की मस्ती छाई हैं थार मरुस्थल में,चंग बजने लगे
चन्दन सिंह भाटी
बाड़मेर सीमावर्ती बाड़मेर जिले में मदोत्सव एवं रंगोत्सव की मस्ती छाई हुई हैं।आधुनिकता की दौड़ के बावजूद थार मरुस्थल में लोक कला और संस्कृति से जुड़ी परम्पराओं का निर्वाह किया जारहा हैं।ग्रामीण अंचलों में होली की धूम मची हैं।ग्रामीण अंचलों में रंगोत्सव की मदमस्ती बरकरारहैं।ग्रामीण चौपालों पर सूरज लते ही ग्रामीण चंग की थाप पर फाग गाते नजर आते हैं।वहीं फागुनी लूर गाती महिलाओं के दल फागोत्सव के प्रति दीवानगी का एहसास कराती हैं।सीमावर्ती बाड़मेर जिले की लोक परम्पराओं का निर्वहन ग्रामीण क्षैत्रों में आज भी हो रहा हैं।रंग और मद के इस त्यौहार के प्रति ग्रामीण अंचलों में दीवानगी बरकरार हैं।ग्रामीण चौपालों पर गा्रमीणों के दल सामुहिक रुप से चंग की थाप पर फाग गीत गाते नजर आते हैं।जिले में लगातार

पड़ रहे अकाल का प्रभाव अधिक नजर नहीं आ रहा ।अलबता होली के धमाल के लिए प्रसिद्धसनावड़ा गांव के बुर्जुग माधो सिंह दांता ने बताया कि अकाल के कारण गांव के युवा रोजगार के लिएगुजरात गए हुए हैं। के आभाव हमारे गॉव में होली का रंग फीका नही। पडता।होली सेतीन चार रोज पूर्व रोजगार के लिए बाहर गए युवा पर्व मनाने पहफॅच जाएगे।गांव की परम्परा हैंजो हम अपने बुजुर्गों के समय से देखते आ रहे हैं।इसकी पालना होती हैं।होली से 15 दिन पूर्व गांव में होली का आलम शुरु होता हैं।चोपाल पर शाम होते होते गांव के बडे बुे जवान बच्चे सभी एकत्रित हो जाते हैं।चंग बजाने वालो की थाप पर गा्रमिण सामुहिक रुप से फाग गाते हैं।वहीं गांव की महिलाए रात्री में एक जगह एकत्रित हो कर बारी बारी से घरों के आगे फाग गाती हैं।जो महिलाऐं इस दल में नहीं आती उस महिला के घर के आगे जाकर महिला दल अश्लील फाग गाती हैं,जिसे सुनकर अन्दर बैठी महिला शर्माकर दल मे शामिल हो जाती हैं।महिलाओं द्घारा दो दल बनाकर लूर फाग गाती हैं।लूर में दोनों महिला दल आपस में गीतों के माध्यम से सवालजवाब करती हैं।लूर थार की परम्परा हैं।लुप्त हो रही लूर परम्परा सनावडा तथा सिवाना क्षैत्र के ग्रामीण अंचलों तक सिमट कर रह गई हेैं।फाग गीतों के साथ साथ डाण्डिया गेर नृत्य का भी आयोजन होता हैं।भारी भरकम घुंघरु पांवों में बांध कर हाथें में आठ आठ मीटर लम्बे डाण्डियेंल े कर ोल की थाप और थाली िी टंकार पर जब गेरिऐं नृत्य करते हैं तों लोक संगीत की छटा माटी की सौंधी में घुल जाती हैं। सनावडा में होली के दूसरे दिन बडे स्तर पर गेर नृत्यो का आयोजन होता हैं।जिसमें आसपास के गांवों के कई दल हिस्सा लेते हैं।ग्रामीण क्षैत्रों में होली का रंग जमने लगा हैं।शहरी क्षैत्र में भी गेरियों के दल इस बार नजर आ रहे हैं।जो शहर की गलियों में चंग की थाप पर फाग गाते नजर आते हैं।

गुरुवार, 13 मार्च 2014

फाग की मस्ती ,थार मरुस्थल में चंग बजने लगे


बाड़मेर। बाड़मेर जिले में मदनोत्सव एवं रंगोत्सव की मस्ती छाई हुई है। आधुनिकता की दौड़के बावजूद थार मरुस्थल में लोक कला और संस्कृति से जुड़ी परम्पराओं का निर्वाह किया जा रहा हैं।ग्रामीण अंचलों में होली की धूम मची हैं।ग्रामीण अंचलों में रंगोत्सव की मदमस्ती बरकरार हैं।ग्रामीण चौपालों पर सूरज लते ही ग्रामीण चंग की थाप पर फाग गाते नजर आते हैं।वहीं फागुनी लूर गाती महिलाओं के दल फागोत्सव के प्रति दीवानगी का एहसास कराती हैं।

सीमावर्ती बाड़मेर जिले की लोक परम्पराओं का निर्वहन ग्रामीण क्षैत्रों में आज भी हो रहा हैं।रंग और मद के इस त्यौहार के प्रति ग्रामीण अंचलों में दीवानगी बरकरार हैं।ग्रामीण चौपालों परगा्रमीणों के दल सामुहिक रुप से चंग की थाप पर फाग गीत गाते नजर आते हैं।जिले में लगातार पड़ रहे अकाल का प्रभाव अधिक नजर नहीं आ रहा ।अलबता होली के धमाल के लिए प्रसिद्धसनावड़ा गांव के बुर्जुग रुपाराम ने बताया कि अकाल के कारण गांव के युवा रोजगार के लिए गुजरात गए हुए हैंअकाल के कारण हमारे गॉव में होली का रंग फीका नही। पडता।

होली से तीन चार रोज पूर्व रोजगार के लिए बाहर गए युवा पर्व मनाने पहुँच जाएगे।गांव की परम्परा हैं जो हम अपने बुजुर्गों के समय से देखते आ रहे हैं।इसकी पालना होती हैं।

होली से 15 दिन पूर्व गांव में होली का आलम शुरु होता हैं।चोपाल पर शाम होते होते गांव के बडे बुड़े जवान बच्चे सभी एकत्रित हो जाते हैं।चंग बजाने वालो की थाप पर गा्रमिण सामुहिक रुप से फाग गाते हैं।वहीं गांव की महिलाए रात्री में एक जगह एकत्रित हो कर बारी बारी से घरों के आगे फाग गाती हैं।जो महिलाऐं इस दल में नहीं आती उस महिला के घर के आगे जाकर महिला दल अश्लील फाग गाती हैं,जिसे सुनकर अन्दर बैठी महिला शर्माकर दल मे शामिल हो जाती हैं।

महिलाओं द्घारा दो दल बनाकर लूर फाग गाती हैं।लूर में दोनों महिला दल आपस में गीतों के माध्यम से सवालजवाब करती हैं।लूर थार की परम्परा हैं।लुप्त हो रही लूर परम्परा सनावडा तथा सिवाना क्षैत्र के ग्रामीण अंचलों तक सिमट कर रह गई हे ।फाग गीतों के साथ साथ डाण्डिया गेर नृत्य का भी आयोजन होता हैं।भारी भरकम घुंघरु पांवों में बांध कर हाथें में आठ आठ मीटर लम्बे डाण्डियेंल करोल की थाप और थाली टंकार पर जब गेरिऐं नृत्य करते हैं तों लोक संगीत की छटा माटी की सौंधी में घुल जाती हैं।

सनावडा में होली के दूसरे दिन बडे स्तर पर गेर नृत्यो का आयोजन होता हैं।जिसमें आसपास के गांवों के कई दल हिस्सा लेते हैं।ग्रामीण क्षैत्रों में होली का रंग जमने लगा हैं। शहरी क्षैत्र में भी गेरियों के दल इस बार नजर आ रहे हैं।जो शहर की गलियों में चंग की थाप पर फाग गाते नजर आते हैं।

सोमवार, 25 मार्च 2013

चंग है होली की शान,नहीं रहे अब कद्रदान

चंग है होली की शान,नहीं रहे अब कद्रदान

जैसलमेर। स्वर्णनगरी में होली पर्व के आगाज के साथ ही गेरियाें व होली के रसियाें का उन्माद झलकना शुरू हो जाता है, लेकिन इस बार न तो चंग की थाप पर झूमने वाले दीवाने दिखाई दे रहे हैं और न ही वाद्य यंत्र चंग के कद्रदान। ऎसे में चंग बनाने वाले कारीगर सिमटती परम्पराओं व घटती कद्रदानाें की संख्या से काफी मायूस है। हालांकि शहर के मुख्य बाजाराें व गलियाें में होली का रंग जमना शुरू हो गया है, फिर भी चंग बजाते व होली गीताें को मस्ताना अंदाज में गाते व मचलते लोग इक्का -दुक्का जगह ही दिखाई दे रहे हैं।

ऎसे में होली का खास वाद्य माने जाने वाले चंग को बनाने वाले हाथ भी थम से गए है। चंग बनाने वाले कारीगराें को वो दिन भी याद है जब वे अपने पिता के साथ चंग बनाते थे। उस दौरान चंग खरीदने सैकड़ाें लोग उसके पास प्रतिदिन आते थे। समय के करवट बदलने के साथ लोगाें की जीवन शैली बदली, मानवीय मूल्याें में कमी आई व त्योहाराें के प्रति रूझान घटा। ऎसे में चंग की उपेक्षा से इनका निर्माण बहुत कम रह गया है।

यही कारण है कि इन दिनाें वे चंग बनाने का कार्य परम्पराओं को जीवित रखने व मांग के आधार पर ही करते हैं। पुरखाें से मिले हुनर को ईमानदारी व व्यवसायिक रूप में लेने वाले इन कारीगराें को भय है कि कहीं यह कला उनके जीवन काल में ही सिमट न जाए।

यूं बनता है चंग
मृत नर भेड़ के चमड़े को सूखाकर व धूप में कठोर होने के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके बाद लकड़ी के वृताकार वलय में इस खाल को चढ़ा कर चंग का निर्माण किया जाता है। पूर्ण निर्माण के बाद इस पर हल्दी व इच्छानुसार व अन्य खुशबूदार रसायनाें का लेप किया जाता है।

मंगलवार, 12 मार्च 2013

फाग की मस्ती छाई हैं थार मरुस्थल में,चंग बजने लगे



फाग की मस्ती छाई हैं थार मरुस्थल में,चंग बजने लगे
चन्दन सिंह भाटी

बाड़मेर सीमावर्ती बाड़मेर जिले में मदोत्सव एवं रंगोत्सव की मस्ती छाई हुई हैं।आधुनिकता की दौड़ के बावजूद थार मरुस्थल में लोक कला और संस्कृति से जुड़ी परम्पराओं का निर्वाह किया जारहा हैं।ग्रामीण अंचलों में होली की धूम मची हैं।ग्रामीण अंचलों में रंगोत्सव की मदमस्ती बरकरारहैं।ग्रामीण चौपालों पर सूरज लते ही ग्रामीण चंग की थाप पर फाग गाते नजर आते हैं।वहीं फागुनी लूर गाती महिलाओं के दल फागोत्सव के प्रति दीवानगी का एहसास कराती हैं।सीमावर्ती बाड़मेर जिले की लोक परम्पराओं का निर्वहन ग्रामीण क्षैत्रों में आज भी हो रहा हैं।रंग और मद के इस त्यौहार के प्रति ग्रामीण अंचलों में दीवानगी बरकरार हैं।ग्रामीण चौपालों पर गा्रमीणों के दल सामुहिक रुप से चंग की थाप पर फाग गीत गाते नजर आते हैं।जिले में लगातार
पड़ रहे अकाल का प्रभाव अधिक नजर नहीं आ रहा ।अलबता होली के धमाल के लिए प्रसिद्धसनावड़ा गांव के बुर्जुग माधो सिंह दांता ने बताया कि अकाल के कारण गांव के युवा रोजगार के लिएगुजरात गए हुए हैं। के आभाव हमारे गॉव में होली का रंग फीका नही। पडता।होली सेतीन चार रोज पूर्व रोजगार के लिए बाहर गए युवा पर्व मनाने पहफॅच जाएगे।गांव की परम्परा हैंजो हम अपने बुजुर्गों के समय से देखते आ रहे हैं।इसकी पालना होती हैं।होली से 15 दिन पूर्व गांव में होली का आलम शुरु होता हैं।चोपाल पर शाम होते होते गांव के बडे बुे जवान बच्चे सभी एकत्रित हो जाते हैं।चंग बजाने वालो की थाप पर गा्रमिण सामुहिक रुप से फाग गाते हैं।वहीं गांव की महिलाए रात्री में एक जगह एकत्रित हो कर बारी बारी से घरों के आगे फाग गाती हैं।जो महिलाऐं इस दल में नहीं आती उस महिला के घर के आगे जाकर महिला दल अश्लील फाग गाती हैं,जिसे सुनकर अन्दर बैठी महिला शर्माकर दल मे शामिल हो जाती हैं।महिलाओं द्घारा दो दल बनाकर लूर फाग गाती हैं।लूर में दोनों महिला दल आपस में गीतों के माध्यम से सवालजवाब करती हैं।लूर थार की परम्परा हैं।लुप्त हो रही लूर परम्परा सनावडा तथा सिवाना क्षैत्र के ग्रामीण अंचलों तक सिमट कर रह गई हेैं।फाग गीतों के साथ साथ डाण्डिया गेर नृत्य का भी आयोजन होता हैं।भारी भरकम घुंघरु पांवों में बांध कर हाथें में आठ आठ मीटर लम्बे डाण्डियेंल े कर ोल की थाप और थाली िी टंकार पर जब गेरिऐं नृत्य करते हैं तों लोक संगीत की छटा माटी की सौंधी में घुल जाती हैं। सनावडा में होली के दूसरे दिन बडे स्तर पर गेर नृत्यो का आयोजन होता हैं।जिसमें आसपास के गांवों के कई दल हिस्सा लेते हैं।ग्रामीण क्षैत्रों में होली का रंग जमने लगा हैं।शहरी क्षैत्र में भी गेरियों के दल इस बार नजर आ रहे हैं।जो शहर की गलियों में चंग की थाप पर फाग गाते नजर आते हैं।