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शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2019

लोकसभा चुनाव 2019: बाड़मेर जैसलमेर लोकसभा सीट के बारे में जानिए

लोकसभा चुनाव 2019: बाड़मेर जैसलमेर  लोकसभा सीट के बारे में जानिए 


नई दिल्ली: राजस्थान के बाड़मेर लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद भाजपा नेता कर्नल सोनाराम चौधरी हैं। ये सीट कभी बीजेपी के कद्वावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जसंवत सिंह की नाराजगी और बगावत की वजह से सुर्खियों में रही थी। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कर्नल सोनाराम चौधरी ने निर्दलीय चुनाव लड़ रहे जसवंत सिंह को 8,74,61 वोटों से हराया था। इस चुनाव में इस सीट पर नंबर 2 पर निर्दलीय उम्मीदवार जसवंत सिंह और नंबर 3 पर कांग्रेस थी। ऐतिहासिक रूप से मशहूर 'बाड़मेर' जिले का नाम प्रसिद्ध बाहड़ शासक राव परमार के नाम पर पड़ा है। ऐसा माना जाता है कि प्रसिद्ध बाहड़ शासक बाहड़ राव परमार ने 13 वीं सदी में इस शहर की स्थापना की थी। बहुत सारी वीरगाथाओं को अपने आंचल में समेटे बाड़मेर की कुल आबादी 29,70,008 थी, जिसमें से 91 प्रतिशत आबादी गांवों मे निवास करती है और मात्र 8 प्रतिशत लोग शहरों में रहते हैं

बाड़मेर लोकसभा सीट का इतिहास बाड़मेर संसदीय क्षेत्र में विधानसभा की आठ सीटें आती हैं, साल 1952 में यहां पहला आम चुनाव हुआ था, जिसे कि निर्दलीय उम्मीदवार भवानी सिंह ने जीता था, 1957 में भी ये सीट निर्दलीय नेता के ही नाम रही तो वहीं 1962 का चुनाव यहां राम राज्य परिषद ने जीता था। साल 1967 में पहली बार इस सीट से कांग्रेस जीती और उसका राज 1971 में भी कायम रहा जबकि 1977 के चुनाव में यहां जनता पार्टी विजयी हुई लेकिन 1980 और 1984 दोनों ही चुनावों में यहां कांग्रेस का ही बोलबाला रहा जबकि 1989 में यहां जनता दल जीती। 1991 के चुनाव में यहां पर कांग्रेस जीती और उसका राज 1999 तक कायम रहा और सोनाराम लगातार तीन बार इस सीट से सांसद चुने गए लेकिन उनके विजयी रथ को साल 2004 के चुनाव में जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह ने रोका, जो कि भाजपा के टिकट पर यहां से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे लेकिन 2009 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के हरीश चौधरी जीत गए लेकिन साल 2014 के चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और बीजेपी नेता कर्नल सोनाराम चौधरी यहां से विजयी हुए

कर्नल सोनाराम का लोकसभा में प्रदर्शन कर्नल सोनाराम चौधरी ने कांग्रेस में लंबी राजनीति पारी खेलने के बाद 2014 में चुनावों से ठीक पहले भाजपा का दामन थामा था और लोकसभा चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह को हराया था, जिसके बाद पार्टी में कद बढ़ने के साथ उनका वर्चस्व भी बढ़ा है। दिसंबर 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक लोकसभा में उनकी उपस्थिति 96 प्रतिशत रही है और इस दौरान उन्होंने 43 डिबेट में हिस्सा लिया है। इसके अलावा सदन में 364 प्रश्न पूछे हैं। 2014 में यहां पर कुल वोटरों की संख्या 16,77,582 थी, जिसमें से मात्र 12,19,119 लोगों ने अपने मतों का प्रयोग किया था, जिनमें पुरुषों की संख्या 6,55,642 और महिलाओं की संख्या 5,63,477 थी। बाड़मेर में 86 प्रतिशत हिंदू और 12 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। जाट और राजपूतों की धरती कहे जाने वाले बाड़मेर में पिछली बार जाट समुदाय ने ही बाजी मारी थी, जिसके चलते कर्नल सोनाराम को सांसद की कुर्सी नसीब हुई थी, हालांकि उन्हें मोदी लहर का साथ भी बखूबी मिला था लेकिन आज समीकरण बदल चुके हैं। राज्य की सत्ता से भाजपा गायब हो गई है और इस वक्त सूबे में कांग्रेस की सरकार है, इतिहास गवाह है कि ये सीट अब तक कांग्रेस और भाजपा के बीच ही बंटी हुई है, देखते हैं कि इस बार दोनों पार्टियों में से कौन जनता को लुभा पाता है, कहना गलत ना होगा कि इस सीट पर चुनाव इस बार दोनों ही पार्टियों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण है, जिसमें जीतेगा वो ही जिसके साथ जनता खड़ी होगी।


शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

थार चुनावी रणभेरी २०१३ राजनितिक शख्शियत - बाड़मेर जैसलमेर के संसद रहे रामनिवास मिर्धा

थार चुनावी रणभेरी २०१३ राजनितिक शख्शियत - बाड़मेर जैसलमेर के संसद रहे रामनिवास मिर्धा

जीवन परिचय :
कांग्रेस के कद्दावर नेता रामनिवास मिर्धा इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकारों में वर्षो तक विभिन्न मंत्रालयों में मंत्री रहे। उनका जन्म 24 अगस्त 1924 को नागौर जिले के कुचेरा ग्राम में तत्कालीन जोधपुर रियासत के पुलिस महानिरीक्षक बलदेवराम मिर्धा के यहां हुआ। उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में एमए तथा लखनऊ विश्वविद्यालय से विधि स्त्रातक किया। मिर्धा ने कुछ दिनों तक जिनेवा में भी अध्ययन किया। मिर्धा राजस्थान प्रशासनिक सेवा के भी अधिकारी रहे।

राजनीतिक परिचय :
मिर्धा ने 1953 में राज्य सेवा से इस्तीफा दिया और जायल क्षेत्र से उपचुनाव में कांग्रेस टिकट पर विधायक चुने गए। वो 13 नवम्बर 1954 से मार्च 1957 तक सुखाडिया मंत्रिमंडल में कृषि, सिंचाई और परिवहन आदि विभागों में मंत्री रहे। 1957 के चुनाव में वो लाडनूं और 1962 में नागौर से फिर विधायक चुने गए।

मिर्धा लगातार 25 मार्च 1957 से 2 मई 1967 तक राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष रहे। 1970 में पहली बार इंदिरा गांधी की सरकार में गृहराज्य मंत्री नियुक्त हुए और 1977 तक आपूर्ति एवं पुनर्वास राज्यमंत्री रहे। 1977 से 80 तक राज्यसभा के उपाध्यक्ष रहे। मिर्धा ने 1983 में सिंचाई राज्य मंत्री और 1984 में विदेश राज्यमंत्री का पद ग्रहण किया।

राजीव गांधी सरकार में उन्होंने केबिनेट मंत्री के रूप में पदोन्नत होकर वस्त्र मंत्रालय का भी कार्यभार संभाला। दिसंबर 1984 में मिर्धा ने पहली बार नागौर से लोकसभा चुनाव लडा और नाथूराम मिर्धा को पराजित किया। उसके बाद वो 1991 के मध्यावधि चुनाव में बाडमेर लोकसभा क्षेत्र से भी चुने गए। मिर्धा कई सालों तक राजस्थान ललित कला अकादमी के अध्यक्ष भी रहे। उनके छोटे बेटे हरेन्द्र मिर्धा भी पिछली अशोक गहलोत के मंत्री मंडल में मंत्री थे। हरेन्द्र मिर्धा कुशल राजनेता हें।
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