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बुधवार, 17 अक्टूबर 2018

जैसलमेर के शक्तिपीठ;देगराय माता मंदिर* *जनसैलाब उमड़ता है देगराय माता मंदिर में,जन जन की आस्था जुड़ी है*

*जैसलमेर के शक्तिपीठ;देगराय माता मंदिर*

*जनसैलाब उमड़ता है देगराय माता मंदिर में,जन जन की आस्था जुड़ी है*

*जैसलमेर जेसलमेर रियासत काल से शक्तिपीठों के प्रति जन जन कि आस्था का केंद्र रहे हैं।।बाड़मेर न्यूज ट्रैक पाठकों तक इन शक्तिपीठ की विस्तृत जानकारी पहुंचाने का प्रयास है।।इस शक्तिपीठ की सीरीज आपको केसी लगी जरूर बताएं।

*जैसलमेर  रासला गांव के पास स्थित देगराय माता मंदिर ,पर्यावरण सरंक्षण का अनूठा केंद्र*
 *विशाल श्रृंखला है माता जी की ओरण की*

राजस्थान का विविध रंगी लोक जीवन अपने वैविध्य के सौंदर्य से किसी का भी मन मोह सकता है और जब जीवन के हर क्षेत्र में रंगों का वैविध्य हो तो भला आस्था का क्षेत्र अछूता कैसे रह सकता है. शायद इसीलिए राजस्थान में अनेक लोक देवताओं और लोक देवियों की अमूल्य उपस्थिति जन-जीवन से अभिन्न जुड़ाव रखती है

एक जागृत शक्ति-पुंज है - देगराय . देगराय आवड़ माता का ही एक रूप है कहते हैं जब सिंध के शासक उमर सूमरा ने आवड़ माता से विवाह का प्रस्ताव रखा तो देवी ने उसका वध करके जैसलमेर की ओर प्रस्थान किया उस शक्ति पुंज ने एक स्थान पर भैंसे के सिर को देग बनाकर उसमे अपनी चुनरी रंगी तब से उनका एक नाम देगराय भी हुआ. भाटी राजवंश पर आवड़ माता की विशेष कृपा रही और भाटी राजवंश के ही जैसलमेर से बाड़मेर जाने के रास्ते में ही देवीकोट से कुछ दूरी पर है देगराय का प्रकृति के सानिध्य में बसा एक खूबसूरत सा मंदिर। किसी भी स्थान के लोक देवी-देवता इसलिए बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये अपने दौर के वो नायक हैं जिन्होंने जनमानस के लिए संघर्ष किया और शुभ की स्थापना का साहस दिखाया आप पूरे भारत में कहीं भी चले जाइए लोक देवता हर जगह होंगे और साथ ही होंगी बुराई के विरुद्ध उनके संघर्ष की अनेक कहानियां . कालांतर में जनमानस उन्हें देवी-देवता बनाकर पूजता भी इसीलिए है क्योंकि वो भी सदैव शुभ और सत्य की सत्ता का आग्रही है. दूसरी बात जो बेहद महत्वपूर्ण है वो है लोक देवी-देवताओं का प्रकृति से अमिट जुड़ाव अधिकांश लोक देवी-देवताओं का किसी वृक्ष से जोड़ा जाना भी शायद जन-जन में प्रकृति से जुड़ाव की भावना का संचार करने का कोई भारतीय विचार ही रहा होगा. देगराय के मंदिर में मुझे सबसे अधिक आकर्षित किया वहां की शांति ने. साथ ही मंदिर के पीछे एक झील हें .सामने ही औरण में देगाराय माता का निज मूल मंदिर हें ,

शनिवार, 13 अक्टूबर 2018

*जैसलमेर शक्तिपीठ काले डूंगर राय मन्दिर जैसलमेर* *जन जन की आस्था का केंद्र*

जैसलमेर शक्तिपीठ काले डूंगर राय मन्दिर ,जन जन की आस्था का केंद्र
 

*बाड़मेर न्यूज़ ट्रैक*

स्वर्णनगरी जैसलमेर शक्ति उपासना का सबसे बड़ा केंद्र है।।पकुस्तान सीमा से सटे इस रियासत में रियासत काल से कुलदेवियों के प्रति आस्था का ज्वार उमड़ता रहा। समय समय पर राजपरिवार ने इन शक्ति पीठ परमन्दिर निर्माण करवा कर आम जन के लिए श्रद्धा के केंद्र खोल दिये।

काले डूगर राय मन्दिर यह मन्दिर जैसलमेर शहर से ४५ की. मी उतर दिशा मे हड्डा गांव के समीप एक पहाड़ी की चोटी पर हें ! इस पहाड़ी का रंग काला होने के कारण इस मन्दिर को काले डूगर राय के नाम से जाना जाता हें ! जब माड़ प्रदेश के महाराजा भादरिये से जब वापिस पधारे तब मैया के कथानुसार इस पहाड़ी पर पधार कर मैया के नाम से एक छोटे से मन्दिर की स्थापना कर दी थी जो कालांतर मे अनेको भक्तो के सहयोग से भव्य मन्दिर बन गया ! जैसलमेर व आसपास के ग्रामो का विशेष श्रद्धा का केन्द्र हें !

ग्रामीणों ने बाड़मेर न्यूज़ ट्रैक को बताया कि उस समय माड़ प्रदेश एक सुनसान क्षेत्र था उबड़ खाबड़ इलाका था , हालाँकि मैया उस समय शशरीर इस धरा पर विराजमान थी ! लेकिन मैया एसे पर्वतो मे जाकर तपस्या लीन हो जाती थी !सभी को दर्शन दुर्लभ थे सिर्फ़ धर्मात्मा राजा या अनन्य भक्तो के वसीभूत होकर मैया को शशरीर उस समय पधारना पड़ता था , मैया कभी नभ डूगर , कभी काले डूगर , कभी भूरे डूगर इस प्रकार अनेको पर्वतो पर निवास स्थान था ! जिस जगहों का भक्तो का मालूम हुवा वहा तो स्थान बना दिए बाकि जगहों का आज तक पता नही हे !संवत 1998 में महारावल जवाहर सिंह जी ने मंदिर निर्माण करवाया।।लोगो की काले डुंगरराय के प्रति जबरदस्त आस्था है।।

*काले डूगर कोड सु , नमै नगर नर नार पूजा ! चढ़े पहाड़ पर, पुरे भगत पुकार !!*

शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2018

जेसलमेर के शक्तिपीठ भारत-पाक सीमा पर है घन्टयाली माता का चमत्कारी मदिर


जेसलमेर के शक्तिपीठ


भारत-पाक सीमा पर है घन्टयाली माता का चमत्कारी मदिर

पश्चिमी राजस्थान मे थार के अतिम जिले जैसलमेर से करीब 110 कि.मी. दूर पाकिस्तानी सीमा से सटे तनोट क्षेत्र स्थित 'घन्टयाली माता' मदिर शक्तिस्थल के रूप मे आम श्रद्धालुओ के अलावा भारतीय सैनिको व अधिकारियो के आस्था स्थल के रूप मे प्रसिद्ध है। यहा पर दिनभर सैनिको एव फौज का आना-जाना लगा रहता है। इस मदिर परिसर मे सन् 1965 मे भारत-पाक युद्ध मे पाकिस्तान द्वारा गिराये 'बम' भी देवी के चरणो मे नतमस्तक होकर नही फटे। ये मङ्क्षदर मे आज भी रखे हुए है। साथ ही साथ पाक सेना द्वारा इस क्षेत्र मे घुसकर मदिर स्थित अनेक मूर्तियो को खडित भी किया गया। वे भी मदिर मे रखी हुई है। 1965 की लड़ाई के दौरान घन्टयाली माता ने अपने पर्चे भी दिये जिससे सेना व आम नागरिक अभिभूत हो गये।

घन्टयाली माता के मदिर की देखरेख भी जवान ही करते है जो मदिर मे सुबह-शाम पूजा-अर्चना भी करते है। यह मदिर मातेश्वरी तनोट के दर्शन करने जाते समय 7 कि.मी. पहले रास्ते मे पड़ता है। घन्टयाली मा के दर्शन अत्यत ही शुभ माने जाते है।

घन्टयाली माता के मदिर के बारे मे यहा रोचक प्राचीन कथा सुनने को मिलती है। इस सदर्भ मे मदिर परिसर मे खडित मूर्तियो के ऊपर दीवार पर पूरी कथा श्रद्धालुओ को पढऩे को मिलती है। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीनकाल मे कुछ अपराधी प्रवृत्ति के लोगो ने सीमावर्ती गावो के पास रहने वालो पर अत्याचार किये व इस दौरान एक परिवार के सभी सदस्यो को मौत के घाट उतार दिया गया। उस समय मात्र परिवार की एक गर्भवती महिला ही बची, जो अपने गाव को छोड़कर दूसरे स्थान पर चली गई। कुछ समय के बाद उसने एक पुत्र को जन्म दिया। बड़ा होने के बाद जब उसने अपने परिवार के बारे मे पूछा तो उसकी मा ने उसे सारी घटना से अवगत कराया। इस घटना को सुनकर उसने अपराधियो से बदला लेने की ठानी व एक दिन तलवार लेकर घन्टयाली गाव मे आया जहा एक छोटा-सा मदिर था। यहा उसने माता को बच्ची के रूप मे देखा। मा ने उसे अपने हाथो से जल पिलाकर उसकी प्यास बुझाकर आशीर्वाद दिया कि तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी। तत्पश्चात उसने चरणो मे शीश झुकाकर अपनी इच्छा पूरी करने का उपाय पूछा। जगत जननी माता ने उसे कहा कि तुम केवल एक व्यक्ति को मारना, बाद मे सभी एक-दूसरे पर हमला कर मारे जाएगे। माता की बात सुनकर लड़के ने कहा कि यदि यह चमत्कार हो गया तो मै पुन: यहा आकर अपना शीश आपके चरणो मे चढ़ा दूगा। उसके बाद वह लड़का उसी गाव मे पहुचा तो उसने देखा कि एक समुदाय की बारात आ रही है। उसने पीछे से एक बाराती को मार डाला। अचानक इस घटना से क्षुब्ध लोग आपस मे लड़ पड़े और देखते ही देखते सारे बाराती मारे गये और गाव के अन्य लोग भी।

दूर से सब कुछ समाप्त हुआ देख वह पुन: घन्टयाली माता के मदिर के पास आया और मा को पुकारने लगा। काफी देर तक जब माता प्रकट न हुई तो वह तलवार से ज्यो ही अपना शीश काटने लगा तभी मा प्रकट हुई और उसका हाथ पकड़कर कहा- मै तो यही विराजमान हू और मै अपने भक्तो को दर्शन देकर आगे भी कृतार्थ करती रहूगी।

इस घटना के बाद दूर-दूर तक मा के चमत्कारी होने की बात फैल गई व दूरदराज से भी ग्रामीण दर्शनाभिलाषी पहुचने लगे। धीरे-धीरे मदिर को दूर-दूर तक फैले रेत के टिब्बो के मध्य भव्य रूप प्रदान किया गया। फिर तो भारत-पाक सीमा पर तैनात सेना के जवानो और अधिकारियो ने मदिर मे नित्य पूजा-अर्चना करनी शुरू कर दी जो आज भी जारी है।
घन्टयाली माता के अद्भुत चमत्कार युद्ध मे भी दिखाई दिये जिससे सभी मे इतनी आस्था प्रबल हो उठी कि आज जैसलमेर आने वाले हजारो पर्यटक चाहे वे विदेशी हो या भारतीय, घन्टयाली माता व तनोट राय के दर्शन किये बगैर नही लौटते है। मदिर मे तैनात फौज के जवान पूरी निष्ठा व नि:स्वार्थ भाव से आने वाले भक्तो की सेवा मे कोई कमी नही रखते। घन्टयाली माता के मदिर मे सभी तरह की सुविधाए भी मुहैया करवाई गई है जिससे श्रद्धालुओ को कोई परेशानी नही होती।